महाशिवरात्रि २०२५

                                                                    महाशिवरात्रि २०२५  


                                           

अनुच्छेद शीर्षक
१. देवो के देव महादेव
२. महाशिवरात्री कब है?
महाशिवरात्री की पूजाविधि
४. मृत्युंजय महादेव
५. शिवजी और रुद्राक्ष
६. मृग और भील शिकारी की पौराणिक कथा
७. शिवजी और गंगाजी
८. शिवाजी क्यों नीलकंठ कहा जाता है?
९. १२ ज्योतिर्लिंग
महाशिवरात्रि देवो का देव महादेव को समर्पित है। महा महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दर्शी [१४] की रात्र को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। ये शिव जी की अतिप्रिय रात्रि मानी जाती है। पुराणों के अनुसार, इस दिन शंकर भगवान और पार्वतीजी का विवाह हुआ था। इसलिए इस दिन को शिव और श्रुष्टि के मिलन के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इस दिन कोई कंवारी कन्या व्रत और उपवास  करे तो उनका विवाह जल्द हो जाता है। अगर शादीशुदा इस दिन व्रत, पूजा और जागरण आदि करे तो उसे अखंड सौभाग्यवती का वरदान मिलता है। 

कोई भी देव का नाम सुनते ही हमारे मन मे, गहनों से लदे हुए और साफ़ सुथरे वस्त्र से सज्ज कोई मूर्ति सामने आ जाएगी। मगर ठीक इस से उल्टा ही सब कुछ हमारे महादेवजी में पाया जाता है। पुरे अंग पे भभूति, ललाट पे तीसरा नेत्र, हाथ में डमरू और त्रिशूल, किसी शानदारआसन या सिंहासन से बिलकुल विपरीत व्यघचर्म पर आसन. पुरे शरीर में अनमोल वस्त्र के बदले रुद्राक्ष की माला, गले में सुवर्ण की माला के बजाए सर्प और लम्बी और अति घनी जटा, फिर भी वो देवो के देव है। इसलिए भक्तो उन्हें महादेव कहते है। महादेव की ये महाशिवरात्रि साधना, सिद्धि, भोलेनाथ की भक्ति के लिए और शुभ आध्यात्मिक कार्य के लिए अति उत्तम है।शिवरात्रि का मतलब कल्याण करनेवाला सर्जन। शिव याने कल्याण करनेवाला और लिंग याने सर्जन।  

                                                                                महाशिवरात्रि कब है ? 

महाशिवरात्रि हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दर्शी को मनाया जाता है।                                                             इस वर्ष महाशिवरात्रि  २६ /०२/२०२५, बुधवार को है। इस दिन चतुर्दशी है।                                                           जिसकी शुरुआत २६/०२ /२०२५ बुधवार को सुबह के ११:०९  मिनिट पर होगी .                                                 जिसकी  समाप्ति २७ /०२ /२०२५ , गुरुवार शाम को ०८:५४ मिनिट को होगी।                                                                           जलाभिषेक मुहूर्त : मुहूर्त १. सुबह ०६: ४८ से ०९:४१. मुहूर्त २.   ११: ०७ से १२:३४.                                                                             दोपहर  ०३: २६ से ०६:०९.  रात  ०८: ५३ से १२:०१.                                                                                                                     निशीथ काल पूजा का समय २६/०२ /२०२५ बुधवार रात  १२:०९ से १२ :५९ तक रहेगा।                               महाशिवरात्रि व्रत पारण का समय :२७/०२ /२०२४ , गुरुवार  सुबह ०६:२३ मिनट से ०८:५४  मिनट तक   रहेगा। 

                                                                                महाशिवरात्रि पूजाविधि    

महाशिवरात्रि की सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके, भक्तजन किसी भी शुभ मुहूर्त में अपने घर मे या मंदिर जाकर शिवलिंग की पूजा करे। शिवलिंग के ऊपर दूध, पंचामृत से अभिषेक करे। शिव जी को अतिप्रिय तीन पत्तिवाला  बेलपत्र जरूर चढ़ाये। साथ में धुप, दीप और गाय का शुद्ध घी, अगरबत्ती, पांच फल, भांग और धतूरा जरूर चढ़ाए। इस पूजा के साथ में "ॐ नमः शिवाय" का जाप जरूर करे। रात्रि के समय ब्राह्मण को बुलाकर रुद्राभिषेक कराना अति शुभ माना गया है। वैसे तो मनोकामना पूर्ण करने हेतु अलग अलग सामग्री चढ़ाई जाती है। निरोगी रहने के लिए जायफल, इच्छापूर्ति के लिए गन्ने का रस, कार्यो को आसान बनाने के लिए शहद आदि चढ़ाया जाता है। शिव जी को चढ़ाया हुआ प्रसाद बात देना है याने खुद नहीं खाना है।

शिव जी की पूजा में बसी फुल, केतकी का फूल , नारियल, टूटे हुए चावल, हल्दी, कुमकुम, तुलसी, सिन्दूर नहीं चढाने चाहिए। शंख से जलधारा नहीं करनी चाहिए।  वैसे देखा जाए तो शिवलिंग के अलग अलग प्रकार होते है। काष्ट का, किसी भी धातु का, स्फटिक का और पारद का, इन सब मे पारद और स्फटिक का शिवलिंग पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है। शिवजी के प्रसाद के रूप में ऊपर दी हुई कोई भी सामग्री में से भक्तजन अपने हैसियत के अनुसार चढ़ा सकता है।                         

                                                                         मृत्युंजय महादेव                                              


पौराणिक कथा के  अनुसार कश्मीर में भद्रसेन नाम का राजा राज करता था। राजा का 1 पुत्र था। जो महान शिव भक्त था। उसका नाम सुधर्मा था। वह भगवान शिव की तरह गले में रुद्राक्ष की माला और शरीर पर महादेव जी की तरह भस्म लगाता था। निरंतर  महादेव के भक्ति करता था।

 

एक दीन त्रिकाल ज्ञानी और भविष्य वेता महामुनी पराशर, कश्मीर के राजा भद्रसेन के वहां पधारे। राजा भद्रसेन ने पराशर मुनि का भव्य स्वागत किया और उनकी पूजा की। पराशर मुनि ने जब राजा  भद्रसेन के पुत्र को देखा, तो त्रिकाल  ज्ञानी होने की वजह से उनको पता चल गया की, राजा का पुत्र की अकाल मृत्यु सातवें दिन में होने वाली है। यह बात पराशर मुनि ने राजा भद्रसेन को  बताई। यह सुनकर पूरा राज परिवार शोक में डूब गया। राजा ने पराशर मुनि को पुत्रों का अकाल मृत्यु न  हो उसका उपाय बताने को कहा। तब पराशर मुनि ने उपाय बताते हुए कहा अगर, 10,000 रुद्रावतार से शिवजी पर अभिषेक किया जाए तो अकाल मृत्यु को रोका जा सकता है। क्योंकि इससे महादेव जी प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से  ही अकाल मृत्यु रोकी जा सकती है।

राजा भद्रसेन ने तुरंत हजारों ब्राह्मण को बुलाया और रुद्राभिषेक का प्रारंभ किया। मगर सातवें दिन राजा का पुत्र सुधर्मा का निधन हो गया। तुरंत ही पराशर मुनि ने रुद्राभिषेक का पवित्र जल सुधर्मा के मृत शरीर पर डाला। यह जल मंत्र सिद्ध रुद्राक्ष से पवित्र किया गया था। इसलिए राजकुमार सुधर्मा के मृत शरीर पर  पवित्र जल पडते ही सुधर्मा जीवित हो गया। राजकुमार सुधर्मा ने कहां की, मुझे तो यमराज अपने साथ ले जा रहे थे।


मगर वहां अचानक जटाधारी योगी जिसने गले में सर्प, हाथ में त्रिशूल धारण किया था। उसके पूरे शरीर पर  भस्म का लेप था। उनको देखते ही, यमराज ने जटाधारी को प्रणाम करके उनकी स्तुति करने लगे। और उस जटाधारी के आदेश से यमराज ने मुझे मुक्त कर दिया। तब मैं समझ गया की. यह जटाधारी  भगवान शिव ही है। शिवजी ने मुझ में फिर से मेरे मृत शरीर में पुनः प्राण संचित किए। और मैं फिर से जिंदा हो गया। वह शिवजी ही मुझे वापस राजमहल में लेकर आए। उसकी बात सुनकर पूरा परिवार में आनंद छा गया। तब से महादेव मृत्युंजय महादेव कहे जाने लगे।  

                                                                              शिवजी और रुद्राक्ष                        


                                              13 Mukhi- Rudraksha, By omm Rudraksha, image compressed and resized, Source, is licensed under CC BY-SA 4.0

पुराण के अनुसार, त्रिपुरासुर नाम का एक असुर था। कहते है की, असुर होने के बावजूद वह अतिशय बुद्धिमान था, अतिशय बलवान भी था। उसके अंदर १००० हाथी के बराबर बल था। उसने पुरे ब्रह्मांड में हाहाकार मचा के रखा था।  उसने इंद्र को स्वर्ग से भगा दिया और खुद मालिक बन बैठा।  सभी देवगण इंद्र के साथ महादेवजी के शरण में आये और इस त्रिपुरासुर से बचाने के लिए बिनंती की। 

तब इंद्र और देवगण की दशा देखकर शिवजी ने त्रिपुरासुर को मारने का निर्णय किया। शिव जी ने अपना पिनाक नामका धनुष्य उठाया और उसके ऊपर तीर लगाकर  त्रिपुरासुर की और जब छोड़ा तो उसमे से हजारो सूर्य का प्रकाश उजागर हुआ। इस के प्रकाश से देवतागण के आँखों के सामने अन्धेरा छा गया। दूसरे ही पल त्रिपुरासुर का नाश हो गया। देवतागण को उसकी चीख से पता चला की उनके दुश्मन का सफाया हो गया। 

इस पिनाक धनुष्य के प्रकाश से शिव जी की आँख से भी पानी निकला जो बूंद की शकल में धरती पर गिरे। उस अश्रु के पृथ्वी पर गिरने से वहा ६० फ़ीट लंबा वृक्ष पनप गया। उस वृक्ष का फल ही रुद्राक्ष है। यह शिवजी के आँख के पानी से बना है इसलिए उसमे औषधीय गुण के साथ साथ मानवी की मुसीबतो को दूर करने की भी ताक़त है। उसके चार प्रकार है। जो ४ वर्ण प्रथा के अनुसार धारण किया जाता है। सफ़ेद रुद्राक्ष ब्राह्मण के लिए, लाल रुद्राक्ष क्षत्रिय के लिए, पिले वैश्य के लिए और कला रुद्राक्ष शूद्र के लिए है। रुद्राक्ष १ मुखी से १४ मुखी होता है। उस १ मुखी से १४ मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मानव जीवन की अलग अलग तकलीफे दूर होती है। सोचो शिवजी का एक अश्रु मानव जाती का इतना कल्याण कर सकता है तो खुद महादेव प्रस्सन हो जाए तो मानवी की कितनी उन्नति हो सकती है।

                                                       मृग और भील शिकारी  पौराणिक कथा

शिव पुराण के अनुसार एक शिकारी था जो अपने जीवन का निर्वाह शिकार से ही चलाता था। उसका नाम गुरुरुद्र था। कही दिनों से उसे शिकार नहीं मिला था। वह काफी परेशान था। उसने ठान लिया था की आज वो शिकार करके ही जाएगा। इसलिए वह शिकार की राह में एक पेड पर चढ़ गया। मगर जब कोई शिकार नहीं दिखा तो मायुशि में उसने पद के पत्तो को तोड़कर निचे फेकने लगा। इस तरह शिकार की रह में समय पसार करने लगा। सदभाग्य से निचे शिवलिंग था और उसने टोकॉकर फेके हुए पत्ते शिवलिंग पर गिरते थे। वह पत्ते शिव जी को अति प्रिय बेल के पत्ते थे।  कही घंटो के बाद उसे एक हिरणी अपने बच्चे के साथ दिखाई दी। 

हिरणी को मारने जब शिकारी ने निशाना लगाया तब हिरणी ने देख लिया। उसे मानो वाचा फूटी उसने शिकारी को बिनती करते हुए कहा की, अगर मेरा मॉस किसी के पेट भरने को काम आता है तो मुझे कोई एतराज़ नहीं मगर मेरे इस बच्चे को मै उसके पिता के पास छोड़कर आती हूँ बाद में तुम मेरा शिकार करना। शिकारी को तरस आ गया।  उसने हिरणी को जाने दिया और आने की प्रतीक्षा करने लगा। इस बीच पूरी रात बीत गई। पूरी रात शिकारी बेल के पत्ते तोड़कर शिवलिंग पर अनजाने में ही चढ़ाते रहा। इस तरह पूरी रात का जागरण भी हो गया। 

इस तरह अनजाने में ही शिव जी की भक्ति और व्रत हो गए। शिवजी उससे काफी प्रस्सन हुए। शिवजी के प्रस्सन होते ही उस मे दया और करूना के भाव उत्प्पन हुए इतने में मृगनी भी आ गयी।  मगर शिकारी ने उसे जीवन दान दे दिया। इस से शिवजी अति प्रस्सन हुए और शिकारी को वरदान दिया की अगले जन्म में तेरे घर विष्णुजी राम के नाम से जन्म लेंगे। जिस शिकारी ने अनजाने भी शिवजी को बेल पत्र चढ़ाए और जागरण किया उसे भी शिव जी ने मूलयवान वरदान दे दिया। उनके इस भोलेपन की वजह से ही भक्तजन शिवजी को "भोलेनाथ" भी कहते है। सोचो जिसने अनजाने भी भक्ति की उसे भी वरदान दिया तो अगर कोई भी भक्तजन सोच समझकर और श्रद्धा से शिवजी को भजेंगे तो क्या नहीं पाएगे ?

                                                                  शिवजी और गंगाजी

                                    Birth of Ganga on Earth, By Tej Kumar Book Depo, image compressed and resized, Source is licensed under CC0 1.0

पुराणों के अनुसार, भागीरथ नाम का एक महाप्रतापी राजा था। उसने अपने पूर्वजो की जन्म और मरण की मुक्ति के लिए गंगाजी की तपस्या की। कहा जाता है की गंगा मे स्नान करने से सभी पाप धूल जाते है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगीरथ की कठोर तपस्या से गंगाजी प्रस्सन हुई। भगीरथ ने गंगाजी को स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर आने को कहा। तब गंगाजी ने कहा की स्वर्ग से धरती पर आने पर मेरा वेग से ही धरती रसातल हो जाएगी धरती मेरा वेग सहन नहीं कर पाएगी। 

तब भगीरथ ने महादेवजी की तपस्या करके उन्हें प्रस्सन किया। जब महादेवजी ने वरदान मांगने को कहा तब भगीरथ ने गंगाजी का प्रसंग सुनाया और गंगाजी को धरती पर लानेके लिए मदद करने को कहा। तब शिव जी ने तथास्तु कह कर मदद करने का वरदान दे दिया। वचन अनुसार जब गंगाजी ने धरती पर प्रवेश किया तो शिव जी ने गंगाजी का गर्व तोड़ने अपनी जटा में कैद कर लिया। जब गंगाजी ने शिव जी को अपनी जटा से आज़ाद करने की बिनती की तो शिव जी ने गंगाजी को हिमालय के एक पोखरमे छोड़ दिया। वहा से गंगाजी सात धारा में होकर बहने  लगी।             

                            शिवजी क्यों नीलकंठ कहलाये ?                          

                                                           Samudr_manthan, By elisams, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.5

विष्णु पुराण और महाभारत के अनुसार, स्वर्ग देवता ओ की भूमि है।  उसमे हर प्रकार की सुख सुविधा से भरपूर है। भरपूर ऐश्वर्य से भरी हुई है। एक समय दुर्वाशा मुनि के श्राप से इंद्र और सभी देवता अपनी ताकत खो बैठे और स्वर्ग पूरा ऐश्वर्य ख़त्म हो गया। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर असुरो के राजा बलि ने स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओ को पराजित कर दिया। सभी देवतागण इस परिस्थिति से बहार निकलने के लिए विष्णुजी से मिले तब विष्णुजी ने देवता को समुद्र मंथन करने को कहा। मगर देवता शक्तिहीन हो गये थे वह अकेले समुद्रमंथन के लिए समर्थ नहीं थे। इसलिए विष्णुजी की सलाह से असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया गया। 

इस मंथन से १४ रत्न निकले जो देव और असुरो ने आपस में बात लिया। कामधेनु गाय वशिष्ठ मुनि को दे दिया गया।उच्चैःश्रवास घोड़ा जो की सात मुखोवाला सफ़ेद घोड़ा था उसे असुरो का राजा बलि ने रख लिया। कोई उसे इंद्र या सूर्यदेव को दिया गया ऐसा भी कहते है। ऐराव्रत जो इंद्र देव को दिया गया। कौस्तुभ मणि को विष्णु जी ने लिया। कल्पवृक्ष जो इच्छापूर्ति वृक्ष कहा जाता है, जो इंद्रदेव को दिया गया। पारिजात वृक्ष के फूल जो देवी देवता को पूजा में चढ़ाये जाते है वह श्री कृष्णजी धरती पर लाये थे। रम्भा अप्सरा को स्वर्ग में रखा गया। वारुणी याने शराब जो की असुरो को दिया गया।

 माता लक्ष्मी जो की दोनों देव और असुर अपने पास रखना चाहते थे मगर लक्ष्मीजी ने स्वयं ही विष्णुजी को अपना वर चुन लिया। पांचजन्य शंख जिसे लक्ष्मीजी का भाई कहते है इसलिए वह विष्णु जी के हाथ की शोभा है। चन्द्रमा जो की, शिवजी के सर पर सजाया गया। भगवान धन्वन्तरि जब अमित कलश के साथ समुद्र से प्रगट हुए तो अमृत के लिए देव और दानवो में युद्ध हुआ। मगर अमृत देवता को मिला और स्वर्ग में फिरसे ऐश्वर्य लौटा। इन सब के साथ है हलाहल और कालकूट नाम का विष निकला जो देव और दानव के लिए हानिकारक था उसे कोई भी लेनेके लिए तैयार नहीं था उस समय फिर से भोलेनाथ ने निस्वार्थ भाव से उस विष को पीया मगर विष को गले में ही रखा जिस से शिवजी का कंठ नीला हो गया। तब से महादेवजी नीलकंठ कहलाये। 

                                                                  १२ ज्योतिर्लिंग

महाशिवरात्रि ऐसा त्यौहार है जो देश के हरेक कोने में मनाया जाता है। शिवजी ही अकेले भगवान है, जिनका शिवलिंग भारत के कश्मीर से कन्याकुमारी तक मिलेगा। भारत में शिवजी के १२ ज्योतिर्लिंग पुरे देश में  स्थापित है।१.    सोमनाथ     गुजरात.    २. मल्लिकार्जुन     आंध्र प्रदेश [दक्षिण का कैलाश]    ३. केदारनाथ     हिमालय.        ४-   कशी विश्वनाथ    गंगातट.    ५. महाकालेश्वर    मध्य प्रदेश [उज्जैन].     ६.    भीमाशंकर.     नाशिक.            ७.   नागेश्वर    गुजरात.     ८.    ॐ कारेश्वर.     मालवा [नर्मदा नदी के किनारे]     ९. बैधनाथ.    झारखंड.            १०. त्रयंबकेश्वर.     नासिक.     ११.    कृष्णेश्वर.    बेल्लूर. [महाराष्ट्र].    १२. रामेश्वर.    तामिलनाडु. [रामनाथजिल्ला].     

इस प्रकार शिवजी के भक्तजन ने उन्हें कही नाम से नवाजा है। शिव, महादेव, भोलेनाथ, शंकर, शम्भू, नीलकंठ, उमापति, महेश्वर, त्रिनेत्रेश्वर, त्रिलोकेश, रूद्र, सोम, परमेश्वर आदि नाम से जाना जाता है।इसके अलावा भी कही नाम है।                                                                                                                                                                                                           शिवजी को प्रसन्न करने के मंत्र                                                                                                                                                                                        

महाशिवरात्रि में शिवजी को प्रस्सन करनेका सबसे सरल मंत्र है।  "ॐ नमः शिवाय"

महाशिवरात्रि में शादी विवाह में आती हुयी बाधा दूर करने  के लिए मंत्र है।  "ॐ  गौरी  शंकराय नम:"

महाशिवरात्रि में शिक्षा में सफलता  के लिए मंत्र है। "ॐ रुद्राय नम:"

महाशिवरात्रि में  अकाल मृत्यु से बचने का महा मृत्युंजय मंत्र है।shi

ॐ  त्रय्म्बक्म यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम।                                                                                                                                उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योमुर्क्षीय मामृतात।

महाशिवरात्रि में जन्म और मृत्यु के सांसारिक फेरे से बाहर निकलना है तो यह मंत्र की आराधना करे। 

" ॐ मृत्युजय महादेव त्राहि माम शरणागतम।                                                                                                                         जन्म मृत्यु ज़रा व्याधि पीडितंकर्मबन्धनै:" 



                                                        जय महादेव  

 आगे का पढ़े :  १. कुंभमेला समाप्ति  २. होली

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