नंबर | शीर्षक |
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१ | पर्युषण पर्व में पर्युषण का अर्थ क्या है? |
२ | पर्युषण पर्व क्यों और कबसे मनाया जाता है? |
३ | “पर्युषण पर्व” कब है? |
४ | पर्युषण पर्व क्यों और कबसे मनाया जाता है? |
५ | “पर्युषण पर्व” कैसे मनाया जाता है? |
६ | तीर्थंकर महावीर जन्म वांचन दिन |
७ | पर्युषण पर्व का आखरी दिन कैसे मनाते है? |
८ | पारणा का दिन (उपवास खोलने का दिन) |
९ | तीर्थंकर महावीर स्वामी का जीवन चरित्र |
पर्युषण पर्व क्यों और कबसे मनाया जाता है?
जैन धर्म के २४ वे तीर्थकर महावीर स्वामी के निर्वाण के ९८० साल के बाद, आनंदपुर जो की अब उसका नाम वड़नगर है, उस के राजा ध्रुवसेन थे। उनके राज में प्रजा सुखी थी। एक वक्त उनके राज्य में आचार्य कालक सूरी जी महाराज चातुर्मास के लिए पधारे थे। दुर्भाग्य से उस समय राजा ध्रुवसेन का पुत्र का निधन हो गया। पूरा राज परिवार शोकमग्न हो गया। समय के साथ राज परिवार के सदस्य धीरे धीरे शोक से बाहर आ गए। मगर राजा ध्रुवसेन शोक से बहार नहीं आ रहे थे। यह समाचार चातुर्मास के लिए पधारे हुए आचार्य कालक् सूरीजी महाराज को मिले।
तब आचार्य कालक् सूरीजी महाराज ने राजा धुवसेन को पुत्र के शॉक से बहार लाने के लिए एक शास्त्र सुनाने का निर्णय लिया। यह सूत्र सभी साधू भगवंत चातुर्मास के ५० वे दिन याने की, सवत्सरी के दिन, रात के समय आपस में अध्ययन करते है। इस शास्त्र का नाम कल्सूप सुत्र है। जब आचार्य कालक् सूरीजी महाराज ने राजा धुवसेन को शास्त्र सुनाया तब जाकर राजा पुत्र के शॉक से बाहर आ गए। इसलिए कलक सूरीजी महाराज ने यह शास्त्र पुरे शास्त्र को पुरे संघ को सुनाने का निर्णय लिया ताकि सभी का शोक, दुःख और तकलीफ दूर हो।
तब से इस शास्त्र को आठ दिन के पर्व में सुनाया जाता है। जिस में जैन धर्म के २४ तीर्थंकर के पूर्ण जीवन की घटना का वर्णन किया जाता है। राजा धुव सेन की इस घटना के बाद से पर्युषण का महापर्व मनाया जाता है। तब से इस शास्त्र को आठ दिन के पर्व में सुनाया जाता है।
पोस्ट जरूर पढ़े: १ सोंठ (सूखा अदरक) २ गणेश चतुर्थी ३ मधुमेह ४. आंवला /आमला
अंत में २४ तीर्थंकर का टेबल जरुर देखे।
“पर्युषण पर्व” कैसे मनाया जाता है?









नंबर | तीर्थंकर | माता | पिता | जन्म भूमि | च्यवन कल्याणक | जन्म कल्याणक | दीक्षा कल्याणक | केवल ज्ञान कल्याणक | निर्वाण कल्याणक | केवलज्ञान वृक्ष | लांछन |
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१ | श्री ऋषभ स्वामी | मरू देवी | नभि राजा | अयोध्या | ज्येष्ठ वद ४ | फाल्गुन वद ८ | फाल्गुन वद ८ | माध वद ११ | पोष वद १३ | न्यु ग्रोध/कैलाश | वृषभ |
२ | श्री अजितनाथ स्वामी | विजया राणी | जितशत्रु राजा | अयोध्या | बैशाख सूद १३ | माध सुद ८ | पोष वद ९ | पोष सुद ११ | चैत्र सुद ५ | सप्तछंद | गज |
३ | श्री संभवनाथ स्वामी | सेना राणी | जितारी राजा | श्रावस्ती | फाल्गुन सूद ८ | माघ सूद १४ | मार्गशीर्ष सुद १५ | आसो वद ५ | चैत्र ५ | सालतर/ | अश्व |
४ | श्री अभिनंदन स्वामी | सिध्धार्था देवी | संवर राजा | अयोध्या | बैशाख सुद ४ | माघ सुद २ | माघ सुद १२ | मार्गशीर्ष वद १४ | बैशाख सूद ८ | राजधनी/देवदार | कपि |
५ | श्री सुमतिनाथ स्वामी | मंगला देवी | श्री मेघरथ राजा | अयोध्या | श्रावण सुद २ | बैशाख सुद ८ | बैशाख सुद ९ | चैत्र सुद ११ | चैत्र सुद ९ | प्रियंगु | कौच पक्षी |
६ | श्री पद्मप्रभ स्वामी | सुसीमा देवी | श्रीधर राजा | कौशाम्बी | पोष वद ६ | अश्विन वद १२ | अश्विन वद १२ | चैत्र सुद १५ | कार्तिक वद ११ | वटवृक्ष | कवल |
७ | श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी | पृथ्वी देवी | सुप्रथिष्ठ राजा | वाराणसी | श्रावण वद ८ | जयेष्ठ सुद १२ | जयेष्ठ सुद १३ | माघ वद ६ | माघ वद ७ | शिरीष | स्वस्तिक |
८ | श्री चन्द्रप्रभ स्वामी | लक्ष्म देवी | श्री महसेन राजा | चंद्र | फाल्गुनी वद ५ | मार्गशीर्ष वद १२ | मार्गशीर्ष वद १३ | माघ वद ७ | श्रावण वद ७ | पुन्नाग | चन्द्र |
९ | श्री सुविधिनाथ/श्री पुष्पदंत स्वामी | रामा राणी | सुग्रीव राजा | काकंदी | माघ वद ९ | कार्तिक वद ५ | कार्तिक वद ६ | कार्तिक सुद ३ | भाद्रपद सुद ९ | मालुर | मगर |
१० | श्री शीतलनाथ स्वामी | नंदा राणी | दृढ राजा | भद्रिल नगर | चैत्र वद ६ | पोष वद १२ | पोष वद १२ | मार्गशीर्ष वद १४ | चैत्र वद २ | ढलक्ष | श्रीवच्छ |
११ | श्री श्रेयांनाथ सनाथ स्वामी | विष्णुदेवी | विष्णु राजा | सिंहपुर | बैशाख सुद ६ | माघ वद १२ | माघ वद १३ | पोष वद ३ | आषाढ़ वद ३ | अशोक | गैंडा |
१२ | श्री वासुपूज्य स्वामी | जया देवी | वसुपुज्य राजा | चंपा पूरी | ज्येष्ठ सूद ९ | माघ वद १४ | फाल्गुन वद १५ | माघ सुद २ | अषाढ़ सूद १४ | पाटली/चंपापुरी |
भैसा/ |
१३ | श्री विमलनाथ स्वामी | जय श्यामा देवी | कृतवर्मा | कम्पिलपुर | जयेष्ट वद १० | माघ सुद ३ | माघ सुद ४ | पोष सुद ६ | आषाढ वद ७ | जामुन |
सूअर |
१४ | श्री अनंतनाथ स्वामी | सुयशा देवी | सिंह सेन | अयोध्या | आषाढ वद ७ | चैत्र वद १३ | चैत्र वद १४ | चैत्र वद १४ | चैत्र सुद ५ | पीपल | बाज |
१५ | श्री धर्मनाथ स्वामी | सुव्रत देवी | राजा भानु | बैशाख सुद ७ | माध सूद ३ | माध सूद १२ | पोष सूद १५ | जयेष्ट सूद ५ | ढाक | वज्र | |
१६ | श्री शांतिनाथ स्वामी | अचिरा देवी | विश्वसेन | हस्तिनापुर | श्रावण वद ७ | वैशाख वद १३ | वैशाख वद १४ | पोष सुद ९ | वैशाख वद १३ | साल | मृग |
१७ | श्री कुंथूनाथ स्वामी | श्री देवी | सुर सेन | हस्तिनापुर | आषाढ़ वद ९ | चैत्र वद १४ | चैत्र वद ५ | चैत्र वद ५ | चैत्र वद १ | लोंधा | बकरा |
१८ | श्री अरनाथ स्वामी | देवी राणी | सुदर्शन राजा | हस्तिना पुर | फाल्गुन सूद २ | मार्गशीर्ष सुद १० | मार्गशीर्ष सुद ११ | कार्तिक सुद १२ | मार्गशीर्ष सुद १० | आम | नंदाव्रत/ |
१९ | श्री मल्लिनाथ स्वामी | प्रभावती राणी | कुंभ राजा | मिथिला | फाल्गुन सुद ४ | मार्गशीर्ष सुद ११ | मार्गशीर्ष सुद ११ | मार्गशीर्ष सुद ११ | फाल्गुन सूद १२ | अशोक | कुंभ |
२० | श्री मुनीसुव्रत स्वामी | पद्मा देवी | सुमित्र राजा | राज गृही | श्रावण सुद १५ | बैशाख सुद ८ | फाल्गुन सुद १२ | महा वद १२ | बैशाख वद ९ | चंपक | कछुआ |
२१ | श्री नमिनाथ स्वामी | वप्रा राणी | विजय राजा | मिथिला | अश्विन सुद १५ | आषाढ़ वद ८ | जयेष्ट वद ९ | मार्गशीर्ष सुद ११ | चैत्र वद १० | बकुल | नील कँवल |
२२ | श्री नेमीनाथ स्वामी / श्री अरिष्टनमिनाथ | शिवा देवी | समुद्र विजय राजा | शौर्य | अश्विन वद १२ | श्रावण सुद ५ | श्रावण सुद ५ | भाद्रपद वद ३० | आषाढ़ सूद ८ | जल वेतरा/गिरनार | शंख |
२३ | श्री पार्श्वनाथ स्वामी | वामा देवी | अश्वसेन राजा | वाराणसी | फाल्गुन वद ४ | मार्गशीर्ष वद १० | मार्गशीर्ष वद ११ | फाल्गुन वद ४ | श्रावण सुद ८ | धातकी | सर्प |
२४ | श्री महावीर स्वामी | त्रिशला देवी | सिध्धार्थ राजा | क्षतिय कुं | अषाढ़ सूद ६ | चैत्र सूद १३ | कार्तिक वद १० | बैशाख सुद १० | अश्विन वद ३० | शाल/पावापुरी | सिंह |
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