जन्माष्टमी २०२४

                                          जन्माष्टमी २०२४  
                                                                                       
Janmashtami image represents, In childhood,  Krishna and his friends gang stole butter (Makhan) from neghibors and party
नंबर  शीर्षक 
१. जन्माष्टमी क्यों मनाते है?
२. जन्माष्टमी कब मनायी जायेगी ?
३. जन्माष्टमी पूजन मुहूर्त और रोहिणी नक्षत्र कब तक रहेगा?
४. जन्माष्टमी का इंतजार
५. जन्माष्टमी की तैयारी हवेली में कैसे करते है?
६. जन्माष्टमी की तैयारी भक्तु "घर मंदिर" में कैसे करते है?
७. हवेली और घर में कृष्ण जन्म कैसे होता है?
८. जन्माष्टमी का पर्व कैसे मनाते है ?
९. कारागृह में चमत्कार
१०. कृष्ण जन्म
११ . पूतना वध
१२. कालिया मर्दन और गोवर्धन पर्वत
१३. कंस वध
                                                                                                                                                                   
हिंदू पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आज से ५२४९ साल पहले, जब द्वापर  युग चल रहा था। उस द्वापर युग की भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के रोहिणी नक्षत्र में  बुधवार के दिन, जब चन्द्रमा अपनी उच्च राशी याने की ऋषभ राशी में बिराजमान थे। तब मध्य रात्रि १२:०० बजे मथुरा नगरी के कारावास में हुआ था। पूर्ण पुरुषोतम भगवान कृष्ण,  भगवान विष्णु के आठवे अवतार है। इसलिए इस दिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इसे कृष्ण जन्माष्टमी, गोकुल अष्टमी भी कहते है।कृष्ण जन्म के दिन एक सूत्र जरुर सुनाने को मिलता है "नन्द घेर आनंद भयो, जय कनैया लाल की" इसे नंदोत्सव  के रूप में भी मनाया जाता है। 

                                                                          यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत,                                                                                                                                       अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मान सुबाम्म्हम,                                                                                                                                         परित्राणाय  साधूनां  विनाशाय दुष्कृताम,                                                                        धर्म संस्थापनार्थाय सम्भावानी  युगे युगे |

याने की, जब जब भारत में धर्म का नाश होगा, तब तब धर्म की रक्षा के लिए और धर्म की पून्ह स्थापना के लिए भगवान अवतार लेंगे।                               

                                                                          जन्माष्टमी क्यों मनाते है ? 

जब मथुरा में उग्रसेन नाम का राजा राज्य करता था। उसका पुत्र कंस बहोत ही दुष्ट था। उसने अपने पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर कारागार में आजीवन कैद में डाल दिया। वह खुद राजा बन बैठा। उसने राजा  बनते ही साधू,संत और सामान्य प्रजा को दुखी करना चालू कर दिया। सामान्य प्रजा पर अत्याचार करने लगा। वह खुद को ही बह्मांड का स्वामी समजने लगा। साधू संतो को प्रताड़ित करने लगा। धर्म को समाप्त कर दिया। सत्ता हाथ में आते ही, वह बहुत ही अभिमानी हो गया था। उसके मुताबित,भगवान विष्णु को भी कंस का जाप करना चाहिये |

राजा कंस के अत्याचार से संसार को छुड़ाने के लिए भगवान विष्णु ने भगवान कृष्ण का अवतार लिया। भगवान कृष्ण ने अपनी शक्ति से और अपनी लीला से समग्र संसार को राजा कंस के अत्याचार से छुड़ाया।  भगवान कृष्ण ने १० वर्ष की छोटीसी आयु में राजा  कंस का वध किया। अपने माता पिता देवकी और वासुदेवजी को कारागार से छुड़ाया। फिर से धर्म की स्थापना की। अपने नाना को, मथुरा का राजा फिर से बनाकर शांति की स्थापना की। बस इसलिये जिस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था याने की, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को “जन्माष्टमी “ का त्यौहार मनाया जाता है। श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। 

                                                                     जन्माष्टमी कब मनायी जायेगी?

  इस साल जन्माष्टमी का उत्सव सोमवार, २६, अगस्त, २०२४ सुबह ०३:४८ से प्रारम्भ होगा।                                                        इस साल जन्माष्टमी का उत्सव मंगलवार, २,अगस्त २०२४ सुबह ०२:१९  को समाप्त होगा।

 इसलिए इस साल जन्माष्टमी का उत्सव सोमवार, २६ ,अगस्त, २०२४  को मनाया जाएगा। 

                                              जन्माष्टमी पूजन मुहूर्त और रोहिणी नक्षत्र कब तक रहेगा?

   इस साल जन्माष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त,सोमवार, २६,अगस्त, २०२४  रात १२ :००   से प्रारम्भ होगा।                                  इस साल जन्माष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त, सोमवार, २६,अगस्त, २०२४ रात १२: ४५  को समाप्त  होगा। .                                इस प्रकार पूजा अवधि  ००.४५ मिनट की होगी।   

                                रोहिणी नक्षत्र का प्रारम्भ, सोमवार, २६,अगस्त २०२४, दोपहर ०३:५५ से होगा                                                             रोहिणी नक्षत्र का समापन,मंगलवार २७,अगस्त २०२४ दोपहर ०३:३८ को होगा।                                                                                                                                                                                                                                                          जन्माष्टमी का अभिजीत मुहूर्त  अमृत काल और राहु नक्षत्र कब है ?                                                                                                                                                           अभिजीत मुहूर्त: सोमवार २६ अगस्त २०२४ दोपहर १२:०३ मिनट से १२:५३ मिनट तक रहेगा।                                       अमृत काल समय : सोमवार २६ अगस्त २०२४ दोपहर ०१:३६ से ०३:०९ तक रहेगा।                                                       राहु काल समय : सोमवार २६ अगस्त २०२४, सुबह ०७ :३० से ९:०० तक रहेगा।                                               

          जन्माष्टमी का इंतज़ार

ये त्यौहार वैष्णव लोग मनाते है। वह लोग भगवान कृष्ण को अपने देवता मानते है। वैसे तो जन्माष्टमी  त्यौहार पुरे हिन्दुस्थान में मनाया जाता है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन सुबह से लोग उपवास रखते है।  कोई लोग उपवास में फलाहार और फराल करते है। मगर उस दिन अनाज नहीं खाते है। उस पुरे दिन लोग कृष्ण जन्म के महोत्सव की तैयारी करते है। साधू, संत और भगवान के पुजारी भी अपने कार्यक्रम की तैयारी करते है।  पूरा दिन कृष्ण जन्म की तैयारी में ही बितता है। सब लोग भगवान कृष्ण का जाप करते है। "ॐ नमो भगवते वासु देवाय नम:" का जाप करते है और भगवान के जन्म का इंतज़ार करते है। 

                                      जन्माष्टमी की तैयारी हवेली में कैसे करते है?

                                                 
Janmashtmi Puja, by Chinmayee Mishra, image compressed and resized, Source, is licensed under CC BY-SA 4.0
Decoration of Janmashtmi, By Krish Dulal,  image compressed and resized, Source, is licensed under CC BY-SA 3.0

वैष्णव लोग कृष्णजी को अपना भगवान मानते है ,वो भगवान् के मंदिर को "हवेली" कहते है |हवेली में पुजारी जन्माष्टमी के दिन, फूलो के हार, रंगबेरंगी फूल ,भगवान के लिए नविन लाल और पीले रंग के वस्त्र, बासुरी, मोरपंख ,इत्र, खिलोने, मुगट और ऐसे कही सजाने के सामान, भगवान को सुलाने और बिठाने के लिए “पारना”, रुई की गद्दी, भगवान की पूजा के लिए, चन्दन, धुप, दीप, तुलसी, गंगाजल, शंख, घंटी, पंचामृत, कंकू, चावल, खीरा, भगवान के भोग के लिए कई प्रकार के फल, भगवान के लिए अलग अलग व्यंजन से बने ५६ भोग वगैरे की तैयारी की जाती है। उस दिन पूरी हवेली को लाइट के तोरण, फूल, हार से दुल्हन की तरह सजाया जाता है। कृष्ण जन्म के दुसरे दिन “कृष्ण लीला का पठन” किया जाता है और “भागवत कथा” करते है। उसकी भी तैयारी की जाती है। उसके लिए मंडप और व्यास पीठ बनाते है। 

                                 जन्माष्टमी की तैयारी भक्तो “घर मंदिर” में कैसे करते है?

     
Festival dishes on Krishna Janmashtmi, by Bhavana Homecook, image compressed and resized, Source, is licensed under CC BY-SA 4.0 
                                 Bhog Decorated Sweet and Food shabt ras, বাক্যবাগীশ, image compressed and resized, source, is license under CC BY-SA 4.0

भक्तो अपने घर के द्वार पर जन्माष्टमी के दिन भगवान के स्वागत के लिए रंगबेरंगी कलर, फुग्गे, फूलो के हार रंगबेरंगी सजाने के सामान,भगवान को सुलाने और बिठाने के लिए  पारना”, रुई की गद्दी, भगवान की पूजा के लिए, चन्दन, तुलसी, शंख ,घंटी, गंगाजल, पंचामृत, कंकू, धुप, दीप,चावल, फूल, लाइट के तोरण, भगवान के लिए नविन लाल और पीले रंग के वस्त्र, बासुरी, मोरपंख, इत्र,खिलोने, मुगट और ऐसे कही सजाने के सामान लाया जाता है। 

जिस भक्तो घर में कृष्ण की छोटी मूर्ती होती है वह लोग खीरा अवश्य लाते है। जो कृष्ण जन्म के लिए जरुरी है।  उस दिन भक्तो के घरो में साबूदाना की टिक्की और खिचड़ी, बटाटे की भाजी,राजगरा की पूरी, थालीपीठ की खिचड़ी आदि व्यजन फराल के लिए बनाये जाते है। दूध और दही रखा जाता है।आंगन में रंगोली बनाई जाती है। 

                                          हवेली और घर में कृष्ण जन्म कैसे होता है?

Krishna Jayanthi Festival, By Nvvchar, image compressed and resized, source, is licensed under CC BY-SA 3.0

हवेली में बड़े से बर्तन में कृष्ण की मूर्ति को रखी जाती है और उसमे मूर्ति के आसपास खीरा और फूलो  के हार रखे जाते है। फिर पुरे बर्तन को फूलो से भर दिया जाता है। भक्तो के घरो में छोटी मूर्ति को खीरे को काट के थोडा मावा निकाल लिया जाता है। उस जगह में कृष्ण भगवान की छोटी मूर्ति रखी जाती है। उस खीरे को  बर्तन में रखकर, उसे फूलो से ढक दिया जाता है। फिर रात के १२ बजे का इंतज़ार किया जाता है। 

जैसे ही १२ बजते  है  तब हवेली में और घरो में, बर्तन में रखे गए, कृष्ण की मूर्ति को बाहर निकाला जाता है। इसे कृष्ण जन्म कहते है। फिर उस मूर्ति को पचामृत से नहलाया जाता है। फिर गंगाजल से स्नान करवाया जाता है। नए लाल या पीले वस्त्र पहनाते है। इत्र लगाया जाता है। मूर्ति को फूलो से सजाये हुए “पारणा” में बिठाया जाता है।  भगवान की मूर्ति को फूलो की माला चढाते है। फिर चन्दन का टिका और चावल लगाया जाता है। 

शंख और घंटी बजाकर वातावरण को शुध्ध किया जाता है। बाद में भगवान् के आगे दिया जलाया जाता है। धुप, अगरबत्ती जलाकर आरती उतारी जाती है। उसके बाद हवेली में कृष्ण भगवान् के आगे ५६ भोग लगाये जाते है। जब की भक्तो के घरो में प्रसाद, दही और मख्हन चढ़ाया जाता है। एक कटोरी में जल में तुलसी पत्ते डालकर मूर्ती के आगे रख्खा जाता है।भक्तो के घरो में कही रंगों को मिलाकर रंगोली रची जाती है। भगवान के छोटे छोटे  पदचिन्ह घरमे प्रवेश होते हुए बनाये जाते है। 

सारा वातावरण में हर्ष और उल्लास फ़ैल जाता है। पूरा माहोल में ख़ुशी फ़ैल जाती है मानो भगवान् कृष्णका फिर से सच में जन्म हुआ हो। सभी भक्तजन अपना उपवास खोलते है। हवेली में सभी अपने व्यंजन एक दूजे के साथ बाटते है और अपना उपवास खोलते है। उस दिन सभी भक्तजन, टीवी के सामने प्रभु दर्शन के लिए १२ बजे का इंतज़ार करते है। 

                           आयुर्वेद की आंवला /आमलाऔर एलोवेरा की पोस्ट जरूर पढ़े।                                                             आनेवाली पर्युषण पर्व की पोस्ट जरूर पढ़े।

                                                 जन्माष्टमी का पर्व कैसे मनाते है?

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Dahi Handi Jay Bharat Seva Sangh, By Sandeshmahadik8, image compressed and resized, Source, is licensed under CC BY-SA 3.0 

कृष्ण भगवान के जन्म के दुसरे दिन, हवेली में कृष्ण पाठ और भागवत गीता पढ़ी जाती है। कृष्ण लीला भी पढ़ी जाती है। कही हवेली में कृष्ण लीला की नाटिका भी की जाती है। कृष्ण भगवान रासलीला के रुप में रास गरबा खेला जाता है। भक्तो के घर में घरमंदिर को सजाया जाता है। रंगीन लाइट के तोरण और फूलो  से घरमंदिर को सजाया जाता है। 

युवा मंडल, दही हांड़ी का उत्सव मनाते है। दो मकान  के बिच में दही से भरी हांड़ी ३० फिट या ४० फिट की उच्चाई  पे बाँधी जाती है। उसके साथ रुपये की नोटों भी लटकाई  जाती है। शहर या गॉव में  मटकी फोड़ने वाले गोविंदा की कई टुकडिया होती है। जो इस दिन मटकी फोड़ने का कार्य करते है। वह गोविंदा, भगवान् कृष्ण की तरह अपने दोस्तों के साथ पिरामिड बनाकर दही हांड़ी को फोड़ते है। यह देखने के लिए कई सौ लोग जमा होते है और मटकी फोड़ने में उनका हौसला बढ़ाते है। मटकी फोड़ने का ये द्रश्य शानदार होता है। इस प्रकार भगवान कृष्ण की लीला को याद किया जाता है। इस पर्व के आने का पूरा भारत को इंतज़ार होता है। 

                                               कारागृह में चमत्कार                                               

                                                     Janashtami Image reprents, Lord Krishna"s 8th incarnation of Lord vishnu was born in Kansa" jail.   

त्रेता युग में, मथुरा नगरी का राजा उग्रसेन था। उसका राजकुमार कंस था। वह अतिशय क्रूर और जुल्मी था। उसने अपने ही पिता को बंदी बनाकर कारागार में आजीवन बंदी बना दिया और वह खुद मथुरा का राजा  बन बैठा था | वह खुद को भगवान से भी ऊपर समजता था। उसने अपने राज्य में साधू,संत और मंदिर के पुजारी को हेरान परेशान करने लगा था। धर्म को समाप्त कर दीया था। उसकी प्रजा बहोत ही दुखी थी। प्रजा अपने को असलामत महेसुस करती थी। प्रजा की फ़रियाद सुनाने वाला कोई नहीं था। प्रजा को जैसे अपने राजा से मुक्ति चाहिए थी। 

कंस अपनी चचेरी बहन से बहोत स्नेह करता था। कंस ने शादी वासुदेव से बड़ी धामधूम से की। शादी के बाद,जब वह अपनी बहन देवकी और वासुदेव को अपने ससुराल छोड़ने जा रहा था। तब रास्ते में एक आकाशवाणी सुनाए दी। "हे कंस, तेरी बहन देवकी की आठवी संतान तेरा वध करेगी" ये सुनते ही, कंस ने अपनी ही बहन देवकी को मरने के लिए तलवार निकाली। तब वासुदेव ने कंस को वचन दिया की, मै अपनी आठवी संतान का जन्म होते ही तुम्हे दे दूंगा। तुम देवकी को मत मारो कंस ने देवकी को जीवत दान दिया। मगर दोनों को कारावास में बंदी बना दिया। 

जैसे ही कारावास में देवकी ने अपनी पहली संतान को जन्म दिया, कंस ने उसे मार दिया। वैसे कंस जन्म होते ही सभी संतान को मारने लगा। वैसे ही जब आठवी संतान का जन्म हुआ,रात्रि का मध्य काल था और एक चमत्कार हुआ।  जेल के सभी पहेरेदार अचानक बेहोश हो गए। देवकी और वासुदेव के हाथ में बंधी बेडियां टूट गई। जेल के दरवाजे अपने आप खुल गए। भगवान विष्णु ने दर्शन दिया और इस बालक को वृदावन के नंदजी वहा लेकर जाने को कहा। वृन्दावन में नंदजी की पत्नी ने एक बालिका को जन्म दिया था। नन्द जी की पत्नी अभी गहरी नींद थी। यशोदा के पास इस बालक को रखकर, उस बालिका योगमाया को जेल में लाने की सूचना देकर भगववान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।

                                                                                 कृष्ण जन्म 

Shree krishna vasudev yadav, by Ranvijay Singh Bhadoria, image compressed and resized, Source, is licensed under CC BY-SA 4.0

भगवान विष्णु के आदेश के अनुसार, जब वासुदेवजी अपने आठवी संतान जो की पुत्र था, उसे लेकर वृन्दावन जाने के लिए निकले।  मगर मध्य रात्रि का समय था। मुसलाधार वर्षा हो रही थी। वासुदेवजी बालक, जो की स्वयं विष्णुजी के आठवे अवतार कृष्ण थे, वो एक टोकरी में थे। अचानक,मुसलाधार वर्षा से बालक को बचाने के लिए टोकरी पर, शेषनाग अपनी फन फैलाकर वासुदेवजी पीछे चलने लगा। रास्ते में यमुना नदी को पार करना था। मगर वर्षा के कारण पानी में बाढ़ आए हुई थी। जैसे ही वासुदेवजी ने यमुना पार करने के लिए प्रवेश किया |

यमुना का पानी वासुदेवजी के सर के ऊपर चला गया और जैसे पानी ने बालक के चरण स्पर्श किया। वैसे ही तुरंत यमुना दो भागो में बट गई। वासुदेवजी को जाने के लिए यमुना नदी में मार्ग बन गया। वासुदेवजी नंदजी के घर जाकर बालक [कृष्ण] को यशोदा जी के पास रख दिया और बालिका को उठाकर वापस जेल में आ गए। फिर से जेल के दरवाजे बंध हो गए। दोनों के हाथो में बेड़िया लग गई। पहरेदार बेहोशी से जाग्रत हो गए। पहेरेदारो कि सुचना से जब, कंस देवकी की संतान को मारने आया और उस बलिकाको उठाकर जमीं पर पटकने  गया, तब  बालिका ने देवी का स्वरुप धारण कर कंस को चेतावनी देते  हुए कहा की , कंस तेरे को मारने वाला इस दुनिया में जन्म ले चूका है और देवी अंतर्ध्यान हो गई।

                                                                              पूतना वध  

                                                       
                    Janmashtami image represents, Krishna killed Rakshasi Putana. she is send by Kansa to kill Bal Krishna. it is Krishnalila of a Lord  Krishna.  

कंस ने क्रोधित होकर, राक्षसी पूतना को बुलाया। जो इस दुनिया में अकेली राक्षसी थी, जिसका दूध जहरीला था।  उसने पूतना को अष्टमी के दिन जन्मे हुए राज्य के सभी बच्चो को अपना दूध पिलाकर मार डालने को कहा। पूतना अष्टमी के दिन जन्मे कई बच्चो को अलग अलग रुप में जाकर मार दिया। वैसे ही जब वह कृष्ण को मारने आई, तब कृष्ण ने उसका स्तनपान करते समय उसे छोड़ा ही नहीं और पूतना का वध कर दिया। “ पूतना वध “ कृष्ण की पहली लीला थी।

                                                           कालिया दमन और गोवर्धन पर्वत 

                                           Jamnashtami image represents, krishna in his childhood,controls and defeat KaliaA poisonious serpent (Nag), who made river water poisonious and killed villager. Janmashtami image represents, Krishna in his childhood, lifted Govardhan Parvat on his little finger  to save people from the anger of Indra Dev.        
जब पूतना वापस नहीं आई ,तो कंस ने अपने क्रूर राक्षस “त्रेनावत” को भेजा। मगर कृष्ण ने उसे भी मार दिया।  कृष्ण अपने बचपन में इस प्रकार की कही “कृष्ण लीला” करते रहे। जिस में “कालिया दमन" “गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली में उठाना” आदि। यह सभी खबरे कंस तक पहोचाती रही। इस तरह १० साल  बित गए। कंस का काल नजदीक आ गया था। इसलिए नारदजी ने आकर कंस को बताया की,अब तुम्हारा समय पूरा हो गया है।  तुम्हारा वध करने वाला इस पृथ्वी पर पैदा हो गया है। तब कंस ने पूछा वो कौन है?  तब नारदजी ने बताया कि, वह नंदजी का पुत्र कृष्ण है। तब कंस ने षड़यंत्र रचा। 

कंस ने कृष्ण के चाचा अक्रूर, जो कंस के राज्य में पदाधिकारी थे। उसे कृष्ण और बलराम दोनों को राज्य में होनेवाली प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का आमंत्रण लेकर भेजा। अक्रूर ने कृष्णा को उसकी माता देवकी आर पिता वासुदेवजी के बारे में बताया।  कंस ने उसके सभी भाई बहन को कैसे मारा और उसके माता पिता को कंस ने कैद करके रखा है। वह भी बताया। कृष्ण को मारने के लिए भी किये हुए षड़यंत्र के बारे में भी बताया। 

इधर कंस ने अपने पहेलवान “प्रद्युत“ को कृष्णा को कुश्ती के अखाड़े में मार डालने को कह दिया। कंस ने अपने हाथी के महावत, “माहुत” को भी कृष्ण को मौका मिलते ही हाथी के पैर से कुचल ने को कह दिया। अगर फिर भी बच जाये तो, मल्लयुध्ध के पहेलवान “चारुण” के हाथो मरवाने की साज़िश की।  

यहाँ कृष्ण ने भी अपने माता पिता,देवकी और वासुदेवजी और अपने नाना उग्रसेन को कंस की कैद से छुड़ाने का फैसला कर लिया। बलराम और कृष्ण दोनों ही प्रतियोगिता में हिस्सा लेने पहुच गए। जब १० साल के बालक को पहेलवान प्रद्युत ने देखा तो उसने उसका मजाक  उड़ाया। मगर जब अखाड़े में १० साल के कृष्ण ने प्रद्युत जैसे पहेलवान को मार दिया। तब कंस को कृष्ण की शक्ति का अहसास हुआ। उसके दिल में डर बैठ गया। इसलिए  उसने कृष्ण को छल से मारने के लिए एक पागल हाथी को कृष्ण के सामने छोड़ दिया। कृष्ण ने उस हाथी की सूंढ़ पकड़ कर उसे चारो और घुमाकर जमीन पर पटका। 

                                                                                  कंस वध  

                                                                        Janmashtmi image represents, Bal Krishna kills Mama Kansa in his palace itself.

कंस ये देखकर बहोत गभरा गया।अब कंस ने मल्लयुद्ध में कृष्ण के सामने अपने अति क्रूर पहलवान चारुण को उतारा। जब कृष्ण ने उसे भी वही मार डाला। तब कंस कृष्ण से दूर भागने लगा क्योकि वह बहोत ही भयभीत हो चूका था। मगर कृष्ण ने वही मैदान में उसे पछाड़कर अपने मुष्टि प्रहार से ही मार डाला। फिर कृष्ण ने अपने नाना को मथुरा का फिर से राजा बनाया। अपने माता पिता को जेल से छुडाया। 

इस तरह कृष्ण ने अपनी १० वर्ष की आयु में ही मथुरा की प्रजा को कंस जैसे क्रूर राजा से मुक्ति दिलवाई। ये तो कृष्ण की बाललीला थी। अपना पूर्ण जीवन कृष्ण ने अधर्मी से इस पृथ्वी को छुडाने में और धर्म की फिर से स्थापना करने में बिता दिया।                                                                  

जैसे की कृष्ण भक्तो,  कृष्ण को कही अलग अलग नाम से जानते है। जैसे की  कान्हा , नंदलाल, बाल गोपाल, कन्हैया, गोपाल, गोविन्द, मनमोहन, मुरली मनोहर, रणछोड़, रास रचैया आदि।  

इसलिए भगवान विष्णु के आठवे अवतार, भगवान् कृष्ण का जन्म दिवस  जन्माष्टमी, कई अलग अलग  नाम से मनाया जाता है।  इसे गोकुल अष्टमी ,कृष्ण जन्माष्टमी आदि नाम से भी जाना जाता है। 

                                                                                  जय श्री कृष्ण 


आगे का पढ़े :  १. 15thAugust1947   २. गणेश चतुर्थी


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