दशहरा २०२४

अनुच्छेद/पेरेग्राफ | शीर्षक |
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१. | विजया दशमी |
२. | दशहरा के मुहूर्त |
३. | मैसूर का दशहरा |
४. | गुजरात का दशहरा |
५. | कलकत्ता का दशहरा |
६. | महाराष्ट्र का दशहरा |
७. | काशी का दशहरा |
८. | कुल्लू का दशहरा |
९. | माँ दुर्गा से जुडी पौराणिक कथा |
१०. | श्री राम और रावण की पौराणिक कथा |
११ | गंगा नदी की पौराणिक कथा |
इसलिए दशहरा मानव और देवता दोनों के लिए अति महत्त्व का दिन है। इस दिन को कोई भी नए और शुभ कार्य का आरंभ करने के लिए मुहूर्त देखने की जरुरत नहीं है। लोग इस दिन को नया धंधा, नए घर मे प्रवेश, विवाह, मुंडन, नया वाहन खरीदना, सोने के गहने खरीदना आदि करते है। शहर में बिल्डर अपना नया प्रोजेक्ट शुरू करता है। इस दिन हरेक घरमे नया उत्साह,आनंद और ख़ुशी का माहोल होता है। इस दिन को पूरे देश के हर राज्य अपने तरीके से त्यौहार की तरह मनाते है।
दशहरा के मुहूर्त
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार,दशहरा अश्विन माह के शुकल पक्ष की दशमी को है।
इस साल दशहरा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, १२/ १०/२०२४/ , शनिवार को है।
इस साल दशहरा का प्रारंभ १२/ १०/२०२४ , शनिवार प्रात:काल को १०:५८ मिनट को होता है।
इस साल दशहरा की समाप्ति १३ / १०/२०२४, रविवार प्रात:काल को ०९:०८ मिनट को होती है।
इस साल दशहरा का विजय मुहूर्त का प्रारंभ १२/१०/२०२४, शनिवार दोपहर को ०२:०३ मिनट को होता है।
इस साल दशहरा का विजय मुहूर्त की समाप्ति १२/१०/२०२४, शनिवार दोपहर को ०२:४९ मिनट को होती है। विजय मुहूर्त कुल ४६ मिनट तक रहेगा।
इस साल दशहरा का अपरान्ह पूजा मुहूर्त का प्रारंभ १२/१०/२०२४, शनिबार दोपहर को ०१.१७ मिनट को होता है।
इस साल दशहरा का अपरान्ह पूजा मुहूर्त की समाप्ति २४/१०/२०२४, साय:काल को ०३:३५ मिनट को होती है। विजय मुहूर्त कुल २.१८ मिनट तक रहेगा। श्रवण नक्षत्र का प्रारंभ शनिवार १२/१०/२४ प्रात: काल ०५:२५ मिनट को होगा। श्रवण नक्षत्र की समाप्ति रविवार १३/१०/२०२४ प्रात:काल ०४:२७ मिनट को होगी। रावण दहन का मुहूर्त शनिवार १२/१०/२०२४ शाम ०५:५४ से ०७:२७ तक रहेगा।
पोस्ट जरूर पढ़े: १ ब्लड प्रेशर / रक्त चाप २. मधुमेह ३. आंवला /आमला, ४ . सोंठ (सूखा अदरक) ५. नवरात्री
मैसूर का दशहरा
Dasara Navratri Festival Lights Mysore India. By Ananth BS, JPG image compressed and resize, Source is licensed under CC BY 2. Kumar, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 2.0.
गुजरात का दशहरा
Jalebi and Fafda, By Varun Joshi, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0 GujaratiDance-opening - Opening Ceremony- Wiki Conference- India CGC- MAHOLI- 2016-08-05-6620, by Biswarup Ganguly, JPG Image is Compressed and resized, Source is licensed under CC BY 3.0
गुजरात में दशहरा के दिन सभी घर में जलेबी और गाठिया जरूर खाया जाता है। नवमी की पूरी रात लोग डांडिया और गरबा खेलते है। इस दिन पूरे गुजरात में माँ के गरबा का पंडालों से उथापन किया जाता ह। घर के अंदर माँ के गरबे और गहु के ज्वारे का जो स्थापन किया होता है ,उसे मंदिर में जाकर रख दिया जाता है। अगर किसी ने माँ दुर्गा की मूर्ति का स्थापन किया होता है उसका भी उथापन किया जाता है। यह सब माँ दुर्गा की मूर्ति ,गरबा और ज्वारे का नदी में विसर्जन किया जाता है। इस दिन पूरा वातावरण बड़ा ही पवित्र होता है।
कलकत्ता का दशहरा
Durga Puja Sindoor Khela before image immersion Vijaya Dashami, By Arindam Mitra, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0 Durga puja in shakhariBazar, By Ahemed Imteaz-nsu, JPGimage compressd and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0
कलकत्ता में माँ दुर्गा के दशहरा का बड़ा ही महत्त्व होता है। माँ दुर्गा की विशालकाय मूर्ति पंडालो में स्थापित की जाती है। माँ को इस दिन कई प्रकार की मिठाई और प्रसाद का भोग लगता है। माँ की आरती उतारी जाती है। इस आरती में स्त्रियाँ एक अनोखा नृत्य करती है जिसे "धुणची" कहा जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियाँ सिंदूर खेला की विधि करती है। जिसमे माँ दुर्गा को सौभाग्यवती स्त्रियाँ सिन्दूर और मिठाईया अर्पण करती है। इस प्रकार बड़ी धूमधाम से माँ दुर्गा की विदाई की जाती है।
महाराष्ट्र का दशहरा
Weapons of Marathas, By Amit20081980, JPGimage compossed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0. Hermitage room-65 -Eastrn Weapons-54, By Netelo, JPG image compossed and resized , Source is licensed under CC BY-SA 4.0.
महाराष्ट्र में दशहरा का बहोत ही महत्त्व होता है। इस दिन महाराष्ट्र के गांव में "सिमोलंघन" होता है यानी "गांव की सीमा का उल्लंघन" करना। इस दिन गांव के लोग सीमा पार के मंदिर में जाते है। माँ को कठमूली और शमी के पान अर्पण करते है। इस शमी के पान को सोना [गोल्ड] जैसा मानते है। इस पान को एक दूसरे को देते है और मानते है की इस से घरमे समृद्धि आती है। इस दिन सभी लोग अस्त्र और शस्त्र की पूजा करते है। इस दिन को कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत के लिए पवित्र मानते है।
काशी का दशहरा

काशी देश की सबसे पवित्र और पौराणिक नगरी है। जिसे वाराणसी भी कहते है। यहाँ दशहरा राम लीला के तौर पे मनाया जाता है। यहा की रामलीला पुरे देश में मशहूर है। पूरा वाराणसी रामलीला मय बन जाता है। यहाँ रामलीला कोई पंडाल में नहीं, मगर चलती फिरती रामलीला होती है। रामलीला के कलाकार राम ,सीता और लक्मण का परिवेश धारण करके घूमते है और उसके पीछे पूरी जनता घूमती रहती है।
कुल्लू का दशहरा
Ravana Fizzles, By Pete Birkinshaw, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0 Kullu Dushera, By Bleezebub, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0
कुल्लू दशहरा त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, जो दशहरा के बाद पुरे सात दिन चलता है। ढालापुर नामक मैदान में उनके देव जगन्नाथ और कुल्लू के सभी स्थानिक देवी देवता की पूजा करते है और अंत में लकड़ी और घास का दहन करते है जो रामायण के रावण का प्रतिक है।
इस तरह पुरे देश में दशहरा अपने राज्य या कौम के तरीके से मनाते है। और एक दशहरा जयेष्ठ माह के शुकल पक्ष की दसमी को भी भारत में मनाया जाता है। इस रोज़ गंगाजी का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। गंगा नदी का हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्त्व है। इसे दुनिया की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। इसे "गंगा दशहरा" कहते है।
इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठकर गंगाजी में स्न्नान करते है। अगर गंगाजी या कोई नदी न हो तो घरके पानी में थोडासा गंगाजल डालकर स्नान करते है। घरमे पूजा अर्चना करते है या सत्यनारायण की कथा ब्राह्मण से कराते है। स्त्रियाँ गंगाजी में स्नान करके गंगाजी की आरती करती है और गंगाजी में सुहागन का सामान याने की सिन्दूर, बिंदी आदि श्रृंगार की वास्तु अर्पण करती है। लोग उस दिन १० को महत्त्व देते है याने १० फल, १० फूल मंदिर में अर्पण करना। १० जरुरतमंदो की मदद करना। १० ब्राह्मण को दान और दक्षिणा देना। उपवास करना। जप माला करना। शाम को गंगाजी की आरती करना।
माँ दुर्गा से जुडी पौराणिक कथा
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पुराने काल में रंभा और करंभा नामक निसंतान असुर थे। संतान प्राप्ति के लिए दोनों ने बिना हिले डुले और अपनी पलके भी जपकाये बिना १ हजार साल अग्निदेव की तपस्या करनेका संकल्प किया। करम्भा असुर ने यह तपस्या पानी के नीचे चालू की। इनकी तपस्या से इंद्र देव को अपना स्वर्ग जोखिम में लगा इसलिए इंद्र ने मगरमच्छ बनकर करंभा असुर को मार दिया।
१००० साल की तपस्या समाप्त होने पर रंभा असुर जब जागे तब करंभा के न होने पर आत्मह्त्या करने गया तब अग्निदेव ने प्रस्सन होकर रंभा को वरदान मांगने को कहा। रंभा ने इंद्र को मार सके ऐसा पुत्र देने को कहा। अग्नि देव ने रंभा को एक अग्नि वलय से घेर लिया और कहा की इस अग्नि वलय के बीच में जो भी मादा आएगी वो गर्भवती बन जायेगी। इस वरदान मिलते ही रंभा ख़ुशी से चीखा। जिससे एक भैस इस वलय के बीच में आ गयी। इस प्रकार महिषासुर का जन्म आधे भैसे और आधा असुर के रूप में हुआ।
महिषासुर ने ब्रह्माजी की तपस्या करके अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्माजी ने कहा ये मेरे लिए संभव नहीं है इस के बदले में तुम दो वरदान मांग लो। महिषासुर ने माँगा की कोई भी नर चाहे वो मानव हो या देवता उसे नहीं मार सकता। उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथो से ही शक्य हो। दुसरा वरदान मैं अपना रूप कितनी भी बार बदल शकु। इस वरदान के मिलते ही महिषासुर ने पूरी पृथ्वी और स्वर्गलोक को जित लिया। देवता को स्वर्गलोक से भगा दिया।
जब ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी [त्रिदेव] के साथ इंद्र और स्वर्ग के देवता साथ में महिषासुर से लड़के भी जीत न सके और हजारो साल वन में छुपके रहना पड़ा। तब त्रिदेव ने मिलकर एक ऐसी नारी को उतप्पन करने को सोचा जो महिषासुर को परास्त कर सके। कही सालो तक त्रिदेव और देवता ने अपनी शक्ति को ब्रह्माण्ड के बिंदु में एकत्रित करके रखा। नियत समय पर एक प्रचंड विस्फोट हुआ और उसमे से अठारा हाथोंवाली महाकाय ,तेजस्वी मुखवाली एक अत्यंत स्वरूपवान नारी की उत्पत्ति हुई।
इस नारी को सभी देवता ने अपने अमूल्य शस्त्र से सज्ज किया। इस तरह माँ दुर्गा का आगमन हुआ। महिषासुर को पता चलने पर माँ से शादी का प्रस्ताव रखा और हिरा मोती सोना चांदी जवाहरात का प्रलोभन दिया। माँ ने महिषासुर को बताया की मैं इस जगत की माता हूँ और मेरा जन्म तुम्हारा वध करनेके लिए हुआ है।
माँ दुर्गा और महिषासुर का युद्ध नव दिन और नव रात चला। इस युद्ध में महिषासुर ने अनेक रूप बदलकर माँ से लड़ा मगर जगत जननी माँ दुर्गा ने त्रिशूल छाती में उतार दिया और महिषासुर का शिरच्छेद करके मौत के घाट उतार दिया। इस तरह माँ ने त्रिदेव और सभी देवता को महिषासुर के त्रास से मुक्त किया और इंद्र और देवता को स्वर्ग वापस दिलवाया।
माँ दुर्गा के इस नव दिन लड़ने के बाद दसवे दिन मिले विजय को "विजया दशमी" कहते है। यह विजय महिषासुर का वध दसवे दिन हुआ इसलिए "दशहरा" भी कहते है।
श्री राम और रावण की पौराणिक कथा
Rama kills ravana, By Sujatha N 1830791, JPG image compossed and resized, Sources is licensed under CC BY-SA 4 Hanuman Fires Lanka, By Tej Kumar Book Depo, JPG image compressed and esized, source is licensed under CC0 1.0
वरदान में श्री राम को १४ साल का वनवास और अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाने को कहा। इस तरह श्री राम को वनवास हुआ, मगर श्रीराम की पत्नी सीताजी और भाई लक्ष्मण भी श्री राम का साथ देने वनवास में गये। जंगल में रावण की बहन सूर्पणखा लक्ष्मण पर मोहित हो गयी। विवाद होने पर लक्ष्मण ने सूर्पणखा की नाक काट डाली तब सूर्पणखा ने रावण को अपने अपमान के बदले में सीताजी के अपहरण के लिए उस्काया।
रावण अति शक्तिशाली राजा था ,महादेवजी का भक्त था। पिता ब्राह्मण थे और माता असुर थी। इसलिए रावण पिता की तरह माहा ज्ञानी था साथ में माता की तरह बड़ा ही क्रोधी, घमंडी और अहमवाला था। उसकी जान उसकी नाभि में थी। नाभि में तीर मारने पर ही वो मर सकता था।
रावण ने पंचवटी में आकर श्री राम और लक्ष्मण को सुवर्ण हिरन का रूप बदलकर सीताजी से दूर किया। साधू वेश में आकर छलकपट से सीताजी का हरण किया और अपने राज्य लंका में नजरबंद किया। सीताजी की खोज में श्री राम और लक्ष्मण की भेट सुग्रीव, हनुमानजी, नल, निल जैसे वफादार साथी से हुई। सब ने मिलकर लंका तक पहुंचने के लिए पानी के उपर रास्ता बनाया।
रावण के भाई कुंभकर्ण और विभीषण और अपने बेटे और पत्नी मंदोदरी के समझाने पर भी वह सीताजी को लौटाने को तैयार नहीं था। इसका यही अहमी और घमंडी स्वभाव के कारण श्रीराम से युद्ध हुआ। इस युद्ध में श्रीराम ने अपने तीर से रावण का शिर रावण के शरीर से अलग कर दिया मगर वह फिर जुड़ जाता था। इस प्रकार दस सर को रावण के शरीर से अलग करने के बाद भी नहीं मरा तब श्रीराम को पता चलने पर अगला तीर रावण की नाभि में मारा तब जाके रावण की मृत्यु हुई। इस तरह श्री राम ने रावण के दस सर का हरण किया। इसलिए ये दिन "दशहरा " के नाम से मनाया जाता है।
गंगा नदी की पौराणिक कथा

पुत्रो के वापिस न आने पर राजा सगर ने अपने पुत्र अंशुमान को ६०,००० पुत्र की खोज के लिए भेजा। अपने भाईओ को खोजते हुआ जब वह कपिल मुनि केआश्रम पहुंचा तब वहा रहे महात्मा गरुड़ ने सारा किस्सा सुनाया। महात्मा गरुड़ ने सलाह देते हुए कहा की अपने भाईओ की आत्मा की शांति के लिए तुम्हे गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना होगा।
अंशुमान यज्ञ के घोड़े को लेकर अपने राज्य में गए और अपने भाईओ की खबर राजा सगर को सुनाई। राजा सगर के मृत्यु के बाद अंशुमान ने अपने भाईओ की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की मगर सफलता नहीं मिली। अंशुमान के बाद उनके पुत्र राजा दिलीप ने भी असफल कोशिश की। उनके बाद राजा भगीरथ ने सफल कोशिश की। उनकी तपस्या से ब्रह्माजी प्रस्सन हुए और गंगाजी को पृथ्वी पर आने की इजाजत दी।

ब्रह्माजी के सलाह के अनुसार, गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आएगी तब उसके वेग को सिर्फ शिवजी ही सम्हाल सकेंगे। इसलिए शिवजी को प्रस्सन करने के लिए भगीरथ ने अपने एक अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या की। भगीरथ की तपस्या से प्रस्सन होकर शिवजी ने गंगाजी को अपनी जटा में समाने को तैयार हुए।
गंगाजी हिमालय से निकलकर ऋषि जह्नु के आश्रम से होकर बहने पर ऋषि जह्नु ने अपनी तप में भंग करने का प्रयास समजकर पी गए। ऋषि को हकीकत समजाने पर गंगाजी को अपने जांघो से बाहर निकाला इसलिए उसे जाह्नवी भी कहते है।
इस तरह जब गंगा कपिलमुनि के आश्रम में पहुची तब राजा सगर के ६०,००० पुत्रो के अवशेषों को तारकर मुक्त किया। इस तरह गंगा को पृथ्वी पर राजा भगीरथ लाये इसलिए ब्रह्माजी ने गंगा का नाम भागीरथी किया। इसलिए ज्येष्ठ माह के शुकल पक्ष की दशमी को, गंगा के पृथ्वी के अवतरण के कारण "गंगा दशहरा" कहते है।
दशहरा हिन्दू के लिए सबसे पवित्र दिवस है। इस तरह इस दिन असुरो के अत्याचार से त्रिदेव, सभी देवता और भूलोक के सभी प्राणी भयमुक्त हुए थे।
आगे का पढ़े : १ घुटनो का दर्द २. धनतेरस
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2 comments
Click here for commentsJay Ambe..!!
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