


ये पौधा कही भी गांव की बंजर जमीं पे या कम पानी में भी उगता है। उसकी डंडी तोड़ने पर उसमे से दूध निकलता है। वह जहरीला होता है। वह दूध आँख में जाने से आँख की रौशनी भी जा सकती है। उस पर आम के जैसे फल आते है, उस फल से रुई निकलती है।
हिन्दू धर्म के लिए यह एक अति आवश्यक पौधा है। हिन्दू धर्म के प्रथम देव गणेशजी को अति प्रिय है। अर्का या मदर या आक या आकड़ा की जड़ को निकाल कर इस जड़ से गणपति जी का आकार देकर शुभ मुहूर्त में घरमे स्थापित करते है। अर्का की जड़ गणपति बनाने के लिए पौधा कमसेकम चार साल का होना चाहिए।
अर्का या आक के पत्ते से या फुलो कि माला हनुमानजी को हर मंगलवार या शनिवार को अचूक चढ़ाते है। इस प्रकार हनुमानजी को चमेली के तेल के साथ इस पौधे के फूल या पत्ते की मला अचूक चढ़ाते है। इसके बिना हनुमान जी की पूजा अधूरी सी लगाती है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार इस पौधे को घर में या बंगले के दरवाजे में लगाया जाय तो घरके अंदर कोई भी अनिष्ट तत्व नहीं आ सकते। बुरे नज़र का कोई भी तांत्रिक प्रयोग से घरकी रक्षा होती है। नकारात्मक विचारो से छुटकारा मिलता है।
इस प्रकार अर्का या मदर या आक या आकड़ा का हिन्दू धर्म में एक ख़ास स्थान है।
अर्का एक जहरीला पौधा है मगर उसका औषधीय फायदे भी है। कहते है अगर उसकी डंडी को सुबह सूर्य निकलने से पहले तोड़ा जाए तो वह दूध की गुणवत्ता बहोत ही अच्छी होती है और दूध भी ज्यादा निकलता है। अर्का या मदर या आक या आकड़ा के इस दूध से बहोत सारी बिमारी ठीक होती है।
माइग्रेन या आधा शीशी : सूर्योदय से पहले, अर्का के पत्ते तोड़ना है, उसके दूधकी बूंद गुड़ या पतासे पर रखकर सात दिन तक खाना है। उसके १ घंटे बाद हलवा या जलेबी खाये। इससे आधा शीशी खत्म हो जाती है।
बवासीर : अर्का के पत्ते की दूध की बूँद एक से चालू करके २१ दिन में बढाकर चार बून्द तक लेने से बवासीर ठीक हो जाता है।
जोड़ो का दर्द : अर्का के पत्ते पे सरसो का तेल लगाकर तवे पे गरम करके दर्दवाली जगह पर सुबह और शाम बांधा जाए तो ७ से १० दिन में ही आराम हो जाता है। सूजन पर भी यही प्रयोग काम करता है।
त्वचा रोग : जहा पर भी खुजली, फोड़े, फुस्सी आदि जैसे त्वचा के रोग हो उस पर अर्का के पान या जड़ का पावडर बनाकर उसमे सरसो या निम् का तेल मिक्ष करके खुजली, फोड़े या फुसी की जगह पर लगा दिया जाए तो थोड़े ही दिन में रोग नाबूद हो जाता है।
सास लेने में तकलीफ: अर्का के जड़ का चूरन ५० से १०० मिलीग्राम लेने से सास लेने की तकलीफ दूर हो जाती है। क्योकि अर्का में कुदरती स्टराईड होता है। वह साँस की नाली को थोड़ा खोलता है। जिससे सास आसानी से ले सकता है।
बदहजमी या वायु प्रकोप : एक मिटटी की हांड़ी ले। उसमे अर्का के पत्ते बिछाए। पत्ते के उपर सीधा नमक और लवण बिछादे। फिर उसके ऊपर अर्का के पत्ते रखे। अब हांड़ी को चारो ओर से आग लगाए। जब पत्ते की भस्म बन जाए तबतक जलाए। इस भस्म को सुबह और शाम को लेने से बदहजमी और वायु की बिमारी ठीक हो जाएगी।
हर प्रकार की खासी : अर्का के फूल की पत्ती को निकल देना है और सिर्फ बीच के भाग को ही जमा करना है। अब फूल के बीच के भाग के वजन के बराबर काली मिर्च और छोटी पीपल मिलानी है। अब इस सब के वजन से दो गुना गुड़ मिलाकर चने से थोड़ी छोटी गोली बनाकर दिन में ३ बार २ गोली लेनी है। बच्चे को १ गोली ३ बार लेनी है। इससे हर प्रकार की खासी खत्म हो जाती है।
दमा और अस्थमा : अर्का के जड़ की छल का चूरन बनाकर सिर्फ ५० मिलीग्राम या १०० मिलीग्राम तक पानी या शहद के साथ लेना है। ३० मिनिट में राहत मिलती है। मात्रा बहोत ही कम है १० ग्राम में १०० पुड़िया बनती है।
देसी नुस्खा
अगर गलती से अर्का या आक़ का दूध आँखों में चले जाए तो आँख को मलना नहीं। बाजरे के १० या १५ दाने मुह मे चबाके इसके थूक को छानके आँखों में लगाए। तुरंत आराम मिलेगा।
अर्का या आक या मदार या आकड़ा के दिए हुए नुस्खे करने से पहले वैदजी से जरूर सलाह ले।
इस प्रकार अर्का, आक, मदार या आकडा हिन्दू धर्म में देवता से लेकर सामान्य जन मानस से जुडा हुआ पौधा है।
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