बुद्ध पूर्णिमा २०२५

                                                                        बुद्ध पूर्णिमा २०२५                                                                                                                                                                                                                                                                            Gautam buddha in meditation, By Krishna Kumar Shrestha, image com pressed and resized, Source is licensed under CC BY-S4.0                                                 

अनुच्छेद/पेरेग्राफ शीर्षक/हैडिंग
१. गौतम बुद्ध का जन्म दिन
२. सिद्धार्थ गौतम का जन्म
३. सिद्धार्थ गौतम का गृह त्याग
४. सिद्धार्थ गौतम से तथागत बुद्ध की सफर
५. कश्यप ऋषि को सत्य का ज्ञान
६. डाकू अंगुलिमाला का समर्पण
७. देवदत्त और देवदत्त के हाथी का समर्पण
८. नगरवधू आम्रपाली बनी बुद्ध की भिक्षु
९. ३ महीने पहले अपने महानिर्वाण की भविष्यवाणी

बुद्ध पूर्णिमा  तथागत गौतम बुद्ध का जन्म दिन है। शाक्य वंश की राजधानी कपिलवस्तु के राजा सुद्धोधन थे। उन्हें रानी महामाया और रानी गौतमी नामक दो पत्नी थी।  गौतम बुद्ध राजा सुद्धोधन और रानी महामाया के पुत्र थे। एक दिन रानी महामाया को स्वपन में सुमेघ नामक बोधिसत्व याने मुनि स्वपन में दिखायी दिए। सुमेघजी ने अपने अंतिम जन्म के लिए उनके द्वारा जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। तब रानी महामाया ने परवानगी दी। जब रानी महामाया ने राजा सुद्धोधन को स्वपन के बारे में बताया।  तब राजा ने स्वपन निष्णांत ऋषियो को बुलाया तो उन्हों ने कहा आपके यहाँ तेजस्वी बालक का जन्म होगा। जो पूरी दुनिया को जीवन जिनकी दिशा दिखायेगा।

                                                                       सिद्धार्थ गौतम का जन्म 
रीती रिवाजो के अनुसार, रानी के पहले संतान का जन्म उसके माता पिता के घर याने मायके में होना था।  इसलिए रानी महामाया अपने मायके देवदह जाने के लिए लुम्बनी वन में मुकाम करने पर, वन में ही शाल वृक्ष के नीचे ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ। ५६३ ईसा पूर्व वैशाख माह की पूर्णिमा को गौतम बुद्ध का जन्म हुआ। इसलिए वैशाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते है। इस साल बुद्ध पूर्णिमा १२ मई २०२५,सोमवार को है। रानी महामाया को कपिलवस्तु वापस आना पड़ा। राजगुरु असीता ने बालक को देखकर राजा को बताया की, यह बालक महाज्ञानी और महापुरुष बनेगा। राजगुरु असिता ने उनका नाम सिद्धार्थ रखा। जैसे वह बढ़ता जाएगा उसे संसार का सुख दुःख का ज्ञान होगा। उस वक़्त वह संसार त्याग करके बोधि ज्ञान प्राप्त करके गौतम बुध्ध के नाम से प्रसिद्ध हो जाएगा।

                                                                  
                                                             Birth of Buddha at Lumbini, By Myself, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0                                               सिध्धर्थ के जन्म के पांचवे दिन ही उनकी माता महामाया का बीमारी से निधन हो गया। तब राजा सुद्धोधन को सिध्धर्थ की परवरिश की चिंता होने लगी। तब राजा सुद्धोधन की दूसरी पत्नी गौतमी ने सिद्धार्थ की उनकी सगी माता की तरह परवरिश की। इसलिए माता गौतमी के नाम से उनको प्रजा गौतम भी कहने लगी। मगर सिद्धार्थ की उम्र बढ़ने के साथ राजा सुद्धोधन की चिंता भी बढने लगी। क्योंकी राजगुरु की भविष्यवाणी के अनुसार, उम्र के साथ सिद्धार्थ को संसार के सुख दुःख का पता चलेगा तो सिद्धार्थ राजपाट छोड़कर सन्यासी बन जाएंगे। इसलिए सिद्धार्थ के लिए अलग महल बनाया जिसमे संसार कि एशोआराम की सारी व्यवस्था की। संसार के हरेक दुःख से वंचित रखा। कभी राजमहल से बाहर जाने ही नहीं दिया। 

                                                                 सिद्धार्थ गौतम का गृह त्याग                                                                     उनका विवाह यशोधरा नामक राजकुमारी से करवा दिया। जिस से वह राहुल नामक पुत्र के पिता भी बने। एक दिन सिद्धार्थ राजमहल के बाहर निकलने की इच्छा की।  तब राजा सुद्धोधन लगाकि अब तो वह सांसारिक मोह मया में बंध गया है। इसलिए किसी राजा ने जाने पर कोई ऐतराज़ नहीं किया। मगर राजा ने पुरे राज्य में दुखीजन मांगनेवाले को हटा दिया। जब सिद्धार्थ अपने रथ पर सवार होकर महल के बहार निकलने के बाद सिद्धार्थ को एक वृद्ध दिखाई दिया जो लकड़ी के सहारे बड़ी मुश्किल से चल रहां था। ऐसा मनुष्य पहली बार देखने पर, अपने सारथी को पूछा, तो सारथी ने कहा हरेक मनुष्य वृद्ध होता है। आप भी हो जाओगे।  थोड़ा आगे जाने पर एक मनुष्य अपनी पीड़ा के कारण रो रहा था। तब सारथि को पूछने पर बताया की इसे कुष्ठ रोग हुआ है। उसकी पीड़ा सहन न होनेके कारण रो रहा है। 
अब उसके आगे जाने पर एक ननामी मिली।  जिसको चार आदमी कन्धा देकर ले जा रहे थे। इसके बारे मे सारथि ने बताया की इस दुनिया में जो भी जन्मा है उसे का मरना निश्चित है। जिसे कोई नहीं रोक सकता चाहे वह राजा हो या रंक। सिद्धार्थ यह सब देखकर सोच में पड गए। उनको शरीर नश्वर और जीवन क्षणभंगुर लगाने लगा। मन में वैराग्य पैदा हुआ। संसार पर से मोह उतरने लगा। जब सिद्धार्थ ने अपने पिताजी से महल छोड़कर साधू बनने की बात की तो राजा सुद्धोधन ने इजाजत नहीं दी। इसलिए एक दिन अपने एक दोस्त को साथ में लेकर महल छोड़ कर जंगल में चले गए। अपने दोस्त को राजकुमार होने पर पहने हुए सारे गहने महल भिजवा दिए।  इस तरह सिद्धार्थ  संसार का त्याग करके साधू बन गए।

                                             सिद्धार्थ गौतम से तथागत बुद्ध की सफर                                         संसार त्याग करके सिद्धार्थ जंगल गए। वहा साधू के साथ रहे। उनकी ही तरह पूजाविधि, जप, तप सब किया। मगर सिद्धार्थ संतुष्ट नहीं थे। उनको इस क्रियाओ से मुक्ति का मार्ग नहीं दीखता था। इसलिए वह अपने ५ शिष्यों के साथ अलग हो गए। उनके साथ ६ साल साथ गुजारे और कठोर तपस्या की। मगर अभी भी उन्हें सतोष नहीं था। उन्हों ने अपने शिष्यों को समझाया की हमें यह कठोर तपस्या का मार्ग छोड़कर अपनी शारीरिक और मानसिक कमी पर विजय पाना होगा सिर्फ शरीर को कष्ट देने से हमें मुक्ति का मार्ग नहीं मिलेगा। भूखे प्यासे रहने से इसका हल नहीं मिलेगा। इसलिए उपवास छोड़कर अपनी इन्द्रियों और मानसिक कमजोरी पर काबू पाना होगा। जब सिद्धार्थ ने खीर की भिक्षा ग्रहण की। तब उनके ५ शिष्यों उनको छोड़ कर चले गए।

                                                                                                                                                         Yempi Mahabihar, Evil disturbing Gautam Buddha duringhis meditation,I- Bahi,Lalitpur 06, By Suraj Belbase, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                                                                                                                                                                                                                                         अब वह अकेले थे। उन्हों ने बोधगया जाकर बोधिगया वृक्ष (पीपल का पेड़)  के नीचे ध्यान का प्रारम्भ किया। उनको ध्यानभंग करने दानव ने उन्हें परेशान करना चालू किया। अप्सरा ने भी उन्हें विचलित करने का प्रयत्न किया। मगर कोई भी सिद्धार्थ को ध्यानभंग न कर सका। इस ध्यानमय अवस्था में सिद्धार्थ गौतम को आदेश मिला की तुम्हे जो ज्ञान मिला है, वह लोगो में बाटो और लोगो को मुक्ति का मार्ग दिखाओ। इस तरह अब गौतम बुद्ध तथागत बुद्ध कहलाने लगे। तथागत का मतलब तथ +अगत से बना है।  जिस में तथ याने सच और अगत याने जाननेवाला। इस ज्ञान को लोगो में बाटने गौतम सारनाथ से शुरुआत की। जहा उनके पुराने  पांच अनुयायी मिले। इस तरह सिद्धार्थ गौतम से तथागत बुध्ध बनने का सफर शुरू हुआ।

                                                                                      कश्यप ऋषि को सत्य का ज्ञान                                                  तथागत बुद्ध कश्यप ऋषि के आश्रम गए। जो होम हवन और अग्नि पूजा में पारंगत थे। कश्यप ऋषि के आश्रम में एक रात हवन कुंड वाले कमरे में बिताना चाहते थे। मगर कश्यप ऋषि ने कहा मै आप जैसे विद्वान को मना नहीं करता मगर वहा अत्यंत जहरीले साप और नाग आते है। जिस से बचना संभव नहीं है। कश्यप ऋषि को लगा की  तथागत  बुद्ध अब जीवित नहीं रहेंगे।  मगर तथागत  बुद्ध के तेज के आगे साप के अनेक हमलो के बाद भी नुकशान नहीं कर सके। जब सुबह में तथागत बुद्ध को जीवित पाया तो कश्यप ऋषि हैरान रह गए। मगर कश्यप ऋषि ने सोचा अगर तथागत बुद्ध यहाँ रहे तो मेरा महत्त्व नहीं रहेगा इसे यहाँ से उन्हें भगाना ही होगा। तथागत बुद्ध ऋषि कश्यप की मन की बात जान गए। तथागत बुद्ध ने जब आश्रम से जानेकी बात की तब ऋषि ने जूठा आग्रह किया की आप मत जाओ। तब तथागत बुद्ध ने कहा की आप के मन मे मेरे प्रति शत्रु का भाव जाग्रत हो रहा है। यही राग, द्वेष, इर्षा, शत्रुता, हिंसा आदि भाव ही मन से निकलना होता है। तब ही सत्य का ज्ञान होता है। यह सुनकर ऋषि कश्यप उनके अनुयायी बन गए।  

                                                                            डाकू अंगुलिमाला का समर्पण  

                                                                                                                                                     The Buddha teaches Angulimala, By Akuppa John Wigham, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0                                                                              इस प्रकार एक दिन तथागत  बुद्ध घने जंगल से जा रहे थे। तब उसको उंगलिमाला नामक भील डाकू ने रोका और कहा रुक जाव अपनी जगा से मत हिलना। तथागत बुद्ध ने कहा मै तो अपनी जगा पर स्थिर हु। उंगलिमाला ने ९९ लोगो को मारा था। हरेक की उंगली काटकर अपने गले में माला के रूप में पहनता था। इसलिए उसको लोग उंगलिमाला कहते थे। ऊंगलीमाला ने कहा तुम मेरे १०० वे शिकार हो। तुम्हारी भी उंगली काटकर गले में पहनूंगा। बुद्ध ने कहा उंगली नहीं तुम मेरे दोनों हाथ काट सकते हो। मगर तुम सचमुच शक्तिशाली हो तो इस पेड़ की डाल को काटो। उंगलिमाला ने ताबडतोब काट डाली। फिर तथागत बुद्ध ने कहा अब इसे जोड़ दो। उंगलिमाला ने गुस्से में कहा ऐसे कौन जोड़ सकता है। तुम तो पागलो जैसी बात करते हो। तब तथागत बुद्ध ने ज्ञान देते हुए कहा तुम ने जो काम किया वो एक बच्चा भी कर सकता है। तो तुम शक्तिशाली कैसे हुए। जोड़ने वाला ही शक्तिशाली है। इसलिए शक्तिशाली कहलाना है तो जोड़ने का काम करो। यह बाते सुनकर उंगलिमाला बुद्ध के पैरो में गिर गया। अपने बुरे कर्म छोड़कर तथागत बुद्ध का अनुयायी हो गया। 

                                                     देवदत्त और देवदत्त के हाथी का समर्पण 

                                                                                                                                                                                                                                                               Buddha with the elephant Nalagiri, By Myself, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0                                                                देवदत्त ने तथागत बुद्ध और उसका करीबी अनुयायी आनंद को मारने की योजना बनाते रहते थे।  इसबार एक पागल हाथी को तथागत बुद्ध पर छोड़ दिया। हाथी बड़ा ही खूंखार था। उसने सारे नगर में उत्पात मचा दिया। लोग भयभीत होकर भागने लगे। मगर जब तथागत बुध्ध को पता चला तो वह स्वयं ही हाथी के सामने गए। हाथी तथागत बुद्ध को देखकर शांत हो गया और उनके चरणों में झुक गया। इस प्रकार देवदत्त में पर्वत की टोच पर से बड़ी सी शिला तथागत बुद्ध के ऊपर फेंकी मगर बुद्ध को कुछ नहीं हुआ। इस सब प्रसंग से प्रभावित होकर राजा देवदत्त भी उनके अनुयायी बन गए। 

                                                         नगरवधू आम्रपाली बनी  बुद्ध की भिक्षु                                           वर्षा ऋतू के चातुर्मास के आने पर साधू ४ महीने तक एक ही जगह रहते है। इस तरह तथागत बुद्ध अपने अनुयायी याने भिक्षु के साथ वैशाली नगरी पधारे तब वर्षा ऋतू का प्रारंभ होने वाला था। इसलिए तथागत बुद्ध और भिक्षु को ४ माह अब वैशाली नगर में ही रहना था। इस नगर में एक अति खूबसूरत एक नगरवधू याने वेश्या रहती थी। उसका नाम आम्रपाली था। अति खूबसूरत होने के कारण सभी राजकुमार और नगर के सारे धनिक उसे पाना चाहते थे। उसके माता पिता नहीं थे और जिसे उसे पाला उसे वह आम के पेड़ के निचे मिली थी।  इसलिए उसका नाम आम्रपाली रखा था। अगर वह किसी एक के साथ शादी करती तो बाकी नगर के धनी और राजकुमार नाराज हो जाते इसलिए नगर में कोई अनहोनी न हो इसलिए उसे नगरवधु बनना पड़ा था। 

एक दिन तथागत बुद्ध का भिक्षु आम्रपाली के महल में भिक्षा के लिए गया। तब आम्रपाली उस भिक्षु से आकर्षित और प्रभावित हो गई। उसने भिक्षु को इस बार का चातुर्मास उसके महल में ही रहकर करने को कहा। भिक्षु ने आकर यह बात तथागत बुद्ध को बताई और तथागत बुद्ध की आज्ञा मांगी। तथागत बुद्ध ने उसे आज्ञा दे दी। यह सुनकर बाकि भिक्षु को जलन होने लगी। सब आम्रपाली के बारे मे तथागत बुद्ध को बताने लगे। तब बुद्ध ने कहा मैंने उसकी आँखों में मजबूत संकल्प को देखा है। मुझे उस पर भरोसा है, आप अपना काम करो। चार माह खत्म हुआ। भिक्षु तथागत बुद्ध के पास वापस आ गया। उसके पीछे आम्रपाली भी आयी। उसने तथागत बुद्ध के चरण में गिरकर बोली इस चार माह भिक्षु को अनेक प्रलोभन दिए। अपनी ओर आकर्षित करने के अनेक प्रयास किये मगर आप का भिक्षु को मै अपने वश में न कर सकी। आपने उसे दी हुई शिक्षा से प्रभावित हु। आप मुझे भी आपकी भिक्षु बनाए। इस तरह उसने संसार का त्याग कर दिया।

                                                         ३ महीने पहले अपने महानिर्वाण की भविष्यवाणी 

                                                                                                                                                                        Gautam Buddha, Yempi Mahabihar, I-bahi, Lalitpur 09, By Suraj Belbase, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                  इस प्रकार तथागत  गौतम को बोधीज्ञान की प्राप्ति ३५ साल की उम्र में हुई। उनका निर्वाण ८० साल की उम्र में हुआ। इस ४५ साल में तथागत बुद्ध ने अनेक लोगो का और सभी प्रकार के लोगो का उद्धार किया। ४५ साल के प्रसंग इतने है की एक किताब कम पड जाए। तथागत बुद्ध ने अनेक लोगो का जीवन बदला। पुरे विश्व में अहिंसा का संदेश फैलाया। लोगो को अपने अंदर रहे दुश्मन से लड़ने को कहा। इर्षा, लोभ, मोह, माया आदि को मारने को कहा। अहिंसा अपनाने को कहा।  जब उनकी उम्र ८० साल की हुई तो, तथागत बुद्ध ने अपने निर्वाण की भविष्यवाणी ३ महीने पहले ही कर दी। जब तथागत बुद्ध वैशाली नगरी के चापाल चैत्य में थे। तब तथागत बुद्ध ने ३ महीने बाद, हिरण्यवती नदी के दूसरे तट पर स्थित, कुशी नगर में  पल्ली के सालवन में देह त्याग करने की बात कह दी थी।

बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धार्मिको के लिए अति महत्त्व का दिन है। क्योकी  तथागत बुद्ध का जन्म, तथागत बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति और तथागत का निर्वाण याने मृत्यु तीनो वैशाख मॉस की पूर्णिमा को ही हुआ था। इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा कहते है। जब तथागत बुद्ध निर्वाण के लिए बनाये गए अपनी निर्वाण शैया पर दाहिनी करवट लेट गए। इस तरह इतनी सहजता से अपनी निर्वाण शैया पर कोई तथागत ही लेट सकते है। जिसे जीवन के क्षणभंगुरता की सच्चाई को जान लिया हो। 

                                                                         जय जिनेन्द्र  


आगे का पढ़े :  १ वट सावित्री   २.रथ यात्रा - १. 

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