गुड़ी पड़वा २०२५

अनुच्छेद (पेराग्राफ) | शीर्षक |
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१. | हिंदू नया साल |
२. | गुड़ी पड़वा का मुहूर्त |
३. | गुड़ी पड़वा का पर्व कैसे मनाते है ? |
४. | गुड़ी कैसे बनाते है? |
५. | गुड़ी पड़वा से जुडी प्रभु राम की पौराणिक कथा |
६. | गुड़ी पड़वा से जुडी शालिवाहन की पौराणिक कथा |
७. | त्यौहार एक नाम अनेक |
गुड़ी पड़वा में गुड़ी का अर्थ ध्वजा होता है। ध्वजा विजय का प्रतिक है। पड़वा याने एकम यानि शुरुआत। गुड़ी पड़वा याने विजय का प्रारम्भ होता है। हिन्दू धर्म के भारतीय कैलेंडर के मुताबित नए साल की शुरुआत होती है। गुड़ी पड़वा भारतीयों के अनुसार नए साल का पहला दिन है। कहा जाता है की इस दिन ब्रह्माजी ने पृथ्वी के निर्माण की शुरुआत की थी। इस दिन से ही सतयुग का प्रारम्भ हुआ था। आज से ही चैत्र नवरात्री की शुरुआत होती है। इसका मतलब आज के दिन ही आद्य शक्ति का प्रागट्य हुआ था। आज ही के दिन प्रभु राम ने बाली का वध किया था। इतने सब शुभ कार्य आज ही के दिन संभव हुए थे। यही इस दिन का महत्त्व हिन्दू के लिए क्या है, वो बताता है।
गुड़ी पड़वा का मुहूर्त
गुड़ी पड़वा साल २०२५ में, ३० मार्च २०२५ , रविवार को मनाई जाएगी। चैत्र सुद प्रतिपदा की शुरुआत शनिवार, २९ मार्च २०२५ , शाम ०४:२७ से होगी और समाप्ति रविवार, ३० मार्च २०२५ , दोपहर १२.४९ को होगी।
गुड़ी पड़वा का पर्व कैसे मनाते है ?


गुड़ी पड़वा के अगले दिन पुरे घर की सफाई की जाती है। गुड़ी पड़वा के दिन प्रातः काल उठकर अभ्यंग स्नान करने का महत्त्व है। स्नान करके सर्व प्रथम दरवाजे पर आम के पत्ते और फूल का तोरण लगाया जाता है। आँगन में रंगोली बनाई जाती है। सुबह पहले नीम का पता खाया जाता है। नीम का पता शरीर के खून को शुद्ध करता है। जिसके कारण शरीर स्वस्थ रहता है। नया वर्ष होने के कारण घर मे मीठा बनाया जाता है। महाराष्ट्र में पुरण पोली जरूर बनाई जाती है, क्योकि वह महाराष्ट्र की पारम्पारिक मिठाई है। घर में श्रीखंड पूरी, बासुदी पूरी और गुलाब जामुन भी बनाते है। शुभ मुहूर्त में घर के आँगन में गुड़ी बनाकर ऊचे स्थान पर रखते है।
गुड़ी कैसे बनाते है?



अब इस साडी, आम के पत्ते की माला, फूल का हार, साखर की गाठी, नीम के पत्ते इन सभी को बाम्बू के साथ कलावे की मदद से मजबूती से बाँध दिया जाता है। इस के ऊपर जो कलश या लोटा को उल्टा लगा दिया जाता है ताम्बे के लोटे को कलावे से मजबूती से बांधे ताकि वह गिर न जाये। अब गुड़ी तैयार हो गई है। इसे घरके आँगन में या छत पर इस प्रकार रखे की बाहर से वह सबको दिखाई दे। जहा पर आपने गुड़ी को लगाया है उसके बराबर नीचे की जगह को पानी से साफ़ करके वहा रंगोली बनाये। रंगोली के दोनों तरफ पाट रख दे। अब पाट के ऊपर हल्दी, कुमकुम और अक्षत रखे। नारियल और नैवेद्य चढ़ाकर आरती करे।
इस गुड़ी को शाम तक रखा जाता है। शाम को गुड़ी को उतार लिया जाता है। साखरगूठी का प्रसाद किया जाता है। साडी को महिला पहन सकती है। गुड़ी को चढ़ाया नैवेद्य को घर के सभी सभ्य में बाट दिया जाता है। इस प्रकार गुड़ी पड़वा का त्यौहार बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। कई जगह पर शाम के बाद मराठी नृत्य लेज़िम करने का चलन भी है।
गुड़ी पड़वा से जुडी प्रभु राम की पौराणिक कथा

जब रावण ने सीताजी का अपहरण किया तब सीताजी की खोज करते हुए प्रभु राम दक्षिण भारत पहुंचे। उस वक्त प्रभु राम की मुलाक़ात हनुमानजी द्वारा सुग्रीव से हुई। सुग्रीव का राज्य उसी के भाई बाली ने धोके से छीन लिया था।उसकी पत्नी को भी छीन लिया था। बाली एक अति क्रूर राजा था। साथ में शक्तिशाली भी था। इसलिए उसके राज्य में प्रजा बहुत ही परेशान थी। मगर उसके बल के आगे कोई उसका विरोध नहीं कर सकता था।
जब सुग्रीव ने प्रभु राम को अपनी परेशानी बताई तब प्रभु राम ने उसे मदद करने का वचन दिया। अब तक सुग्रीव एक पर्वत पर छिप गया था जहां पर उसका भाई श्राप के कारण नहीं जा सकता था। जब प्रभु राम ने मदद का वचन दिया तो वह बाली से लड़ने को तैयार हो गया। इस लड़ाई मे प्रभु राम ने बाली का धोके से वध कर दिया। सुग्रीव को प्रभु राम ने सुग्रीव उसकी पत्नी और राज्य वापस दिलवाया। बलि के ज़ुल्म से प्रजा को भी छुटकारा मिला। ये दिन चैत्र माह की प्रतिप्रदा का ही दिन था। इसलिए दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का दिन उगादी के नाम से मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा से जुडी शालिवाहन की पौराणिक कथा
शालिवाहन के समय में प्रजा बहोत ही दुर्बल, कायर थी वह अपने शासको से डरी हुई और दबी हुई थी। शासक कितना भी जुल्म करने पर भी प्रजा सहन करती थी। अन्याय का विरोध करना ही भूल गई थी। जुल्म से बचाने वाला कोई नहीं था। उस समय में एक कुम्भार का लड़का था जिसे मिटटी के खिलौना बनाने का शोख था।
एक दिन उसने उस मिटटी से बहोत सारे सैनिक बनाये। उस पर उसने पानी छिड़का और कहते है की चमत्कार हुआ। सारे खिलोनो में जान आ गई। सारे सैनिक जीवित हो गए। उस सैनिको ने क्रूर शासको से प्रजा की रक्षा की। उस क्रूर शासको से प्रजा को बचाया और एक नयी ज़िन्दगी दी। इस तरह इस दिन आसुरी शक्ति पर विजय पाया गया। इसलिए सारी प्रजा इस दिन अपने मुक्ति की ख़ुशी में अपने घर पर विजय पताका लहराते है और अपनी ख़ुशी मनाते है। कहते है उस दिन से शालिवाहन सवंत की शुरुआत हुई।
त्यौहार एक नाम अनेक
चैत्र माह की प्रतिपदा के दिन आसुरी शक्ति का पराजय के रूप में मनाया जाता है। भारत के अलग अलग राज्य में इस त्यौहार को अलग अलगनाम से मनाया जाता है।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पुकारी के नाम से जाना जाता है। गोवा और केरल में सवत्सर के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक में उगादि के नाम से मनाया जाता है।कश्मीर में हिन्दू इसे नवरे के नाम से मनाते है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा के नाम से मनाते है।
गुड़ी पड़वा का त्यौहार में हरेक इंसान नए वस्त्र और मनभावन पकवान और हसी ख़ुशी से मनाता है। वह आनंद हरेक मनुष्य के मुख पे दिखाई देता है। इसी प्रकार मानो पूरी धरती अपने आप को इस ख़ुशी में शामिल करती है। वसंत ऋतु में, पूरी धरती पर रंगबेरंगी फूल खिले दिखते है। पेड़ हो या पौधा, हरेक ने अपने आप को इस विजय में शामिल करने के लिए मानो रंगीन वस्त्र से तैयार किया हो ऐसा दीखता है।
आगे का पढ़े : १.राम नवमी २.महावीर जयंती
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