अनुच्छेद | शीर्षक |
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१. | हिन्दू रंगो का त्यौहार |
२. | पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ और समाप्ति |
३. | भद्राकाल |
४. | होलिका दहन की तिथि और शुभ मुहूर्त |
५. | रंगवाली होली (धुलेटी) |
६. | होलाष्टक |
७. | होली कैसे जलाते है? |
८. | होली का त्यौहार क्यों मनाते है? |
९. | विष्णु जी का नरसिंह अवतार |
१०. | कृष्ण और पूतना |
११. | होली कैसे मनाते है? |
१२. | होली त्यौहार एक मगर, मनाने के तरीके अनेक |
होली का त्यौहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। ये समय गर्मी की शुरुआत और ठण्ड ऋतु के जाने का समय है। इस समय अपनी फसल काट कर पहले अग्नि देव को भोग देने के बाद खुद के उपयोग में लेते है। यह त्यौहार बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत का भी है। इस त्यौहार को रंगो से मनाया जाता है।
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ और समाप्ति
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ १३ /०३/२०२५ गुरुवार सुबह को १०: ३६ मिनट को होगा। पूर्णिमा तिथि का समाप्ति १४/०३/२०२५ शुक्रवार दोपहर को १२: २३ मिनट को होगी। १३/०३/२०२५ ,गुरूवार प्रात:काल पूजा मुहूर्त सुबह ५:२१ से ६:३३ को है। सायकाल पूजा मुहूर्त शाम ६:२८ से ७:४१ तक है। गोधुली मुहूर्त शाम ६:२६ से ६:५० तक है। चंद्रोदय शाम ५:५४ को है।
भद्राकाल
भद्राकाल काल का प्रारंभ १३/०३/२०२५ गुरूवार सुबह को १ ०: ३५ को होगा। भद्राकाल काल की समाप्त रात ११ : २६ को होगी।
होलिका दहन की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस साल होलिका दहन की तिथि गुरूवार, १३ मार्च २०२५ को होगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त गुरुवार, १३ मार्च २०२५ रात को १२: ३० मिनट से शुरू होकर रात ११:२६ मिनट को समाप्त होगा।
रंगवाली होली (धुलेटी)
रंगवाली होली सोमवार, १४/०३/२०२५ को मनायी जायेगी। प्रात: काल पूजा का मुहूर्त सुबह ५ :२० से ६: ३२ तक है। अभिजित मुहूर्त दोहपर १२:१२ से १२:५९ तक है। राहुकाल सुबह १०:३० से दोपहर १२: ०० तक है।
होलाष्टक
होलाष्टक की अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। होलाष्टक का प्रारंभ सोमवार, ०६ /०३/२०२५ सुबह १०:५२ से को होगा। होलाष्टक की समाप्ति रविवार, १४/०३/२०२५ दोपहर १२:२५ को
होली कैसे जलाते है?
होली के दीन इसके पास में रंगोली बनाई जाती है। शाम के वक़्त सभी श्रद्धालु होलिका दहन के पास जमा होते है और फिर इस होलिका को प्रगट किया जाता है। सभी श्रद्धालु आकर होली के दर्शन करते है। महिलाये होली की पूजा करती है। इसमें अक्षत, रोली, अबिल, गुलाल, गाय के उपले लॉन्ग और कपूर डालकर पूजा करती है। साथ में एक लोटे मे पानी के अंदर गाय का दूध मिलाकर इस से अग्नि के चारो और जल और दूध की धारा करके ५ या ७ फेरे लगाती है। उसके बाद पुरे होलिका दहन के चारो और कलावा या सूती धागे से परिक्रमा करती है। होली में श्रीफल को तोड़कर उसका पानी को होलिका दहन पर चढ़ाया जाता है। साथ में भगवान विष्णु जी को प्राथना की जाती है की इस होली में हमारे सारे संकट ख़त्म हो जाये और जैसे आपने होलिका दहन में प्रह्लाद की रक्षा की वैसे ही इस संसार के संकट रूपी होली से हमारी भी रक्षा करे। इस प्रकार प्राथना करके सभी अपने घर को जाते है।
होली का त्यौहार क्यों मनाते है?
विष्णु जी का नरसिंह अवतार
इसलिए वह क्रूर बन गया था। उसने अपने राज्य में कोई भी देवी या देवता को पूजने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। सभी प्रजा को उसी की ही पूजा करने का आदेश दे दिया था। उसके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ जो विष्णु का भक्त था और पुरे समय विष्णु जी को ही याद करता था। पुरे समय श्री हरी का ही जाप करता था। इसलिए वह हमेशा अपने पुत्र प्रहलाद पर क्रोधित रहते थे। उसने अपना पुत्र को साम दाम दंड और भेद से श्री हरी का नाम छुड़वाने का प्रयत्न किया मगर वह सफल ना हो सका। उसने अपने पुत्र को पानी में डुबाकर मार ने की कोशिश की, हाथी के पैर के नीचे कुचलवाने की कोशिश की। नाग से कटवाने की कोशिश की।
इन सब कोशिश के बावजूद, जब प्रहलाद को नहीं मार सका तब उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका को वरदान था की अग्नि उसे नहीं जला सकती। इसलिए होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी। मगर उलटा ही हो गया, होलिका अग्नि में जल गयी और प्रहलाद फिर बच गया। इसलिए इस दिन जो अग्नि जलाते है उसे होली कहते है। प्रहलाद हमेशा यही कहता था की श्री हरी हर जगह पर है। इसके यही विश्वास से हिरण्यकश्यपु बहोत ही क्रोधित था। एक दिन यही क्रोध में उसने प्रहलाद को कहा अगर तुम्हारा श्री हरी हर जगह पर है तो इस खंभे में भी होगा ऐसा कहकर उसने खम्भे पर जोरदार प्रहार किया।
उस वक़्त शाम का वक़्त था। उस खम्भे में से श्री हरी याने विष्णु जी नरसिंह अवतार में प्रगट हुए। याने आधे सिंह और आधे मानव के रूप में प्रगट हुए। ना तो सुबह थी ना तो शाम थी। इस नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु जी ने हिरण्यकश्यपु को घसीट कर आँगन में अपने पैरो के ऊपर सुलाकर अपने सिंह नाखुनो से हिरण्यकश्यपु का पेट चिर डाला। इस तरह हिरण्यकश्यपु का अंत हो गया। इस तरह बुराई के ऊपर अच्छाई की विजय हुई। इस विजय का उत्सव होली खेलकर मनाया जाता है। तब से आज तक ये त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
कृष्ण और पूतना
Holi Image shows how demonic putanaa is killed by Shri Krishna in the Mother's milking age
इस होली के त्यौहार के साथ कृष्ण और पूतना की भी पौराणिक कथा जुडी हुई है। जब कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से किया तब आकाशवाणी हुई और कंस को पता चल गया की देवकी के आठवे पुत्र से उसका नाश होगा। इसलिए कंस ने वासुदेव और अपनी बहन देवकी को कारागृह में दाल दीया। उसके बाद देवकी और वासुदेव की संतान का जन्म होते ही उसे मार दिया जाता था। इस तरह आठवे पुत्र के रूप में जब कृष्ण का जन्म हुआ तो चमत्कार हो गया। कारागृह के सभी दरवाजे अपने आप खुल गए। चौकीदार बेहोश हो गए।
उस वक़्त रात का वक़्त था चारोओर मूसलाधार बारिश हो रही थी। उस वक़्त हुई आकाशवाणी के मुताबित वासुदेव कृष्णा को लेकर गोकुल अपने दोस्त नंद के घर गए। उस वक़्त उसके वहा एक बेटी का जन्म हुआ था। वासुदेव ने कृष्णा को वहा रखकर उनकी पुत्री को लेकर वापस कारागृह लौट आये। फिर कारागृह के दरवाजे बाध हो गए। सभी चौकीदार फिर होश में आ गये। चौकीदार ने कंस को आठवे संतान के बारे में बताया। तब कंस इस कन्या को मारने के लिए हाथ में लिया तब वह आकाश में चली गयी और कहा की तुमको मारनेवाले ने गोकुल में जन्म ले लिया है।
यह आकाशवाणी सुनकर, अपनी जान बचाने के लिए कंस ने एक राक्षसी पूतना को गोकुल भेजा जिसने नए जन्मे सभी बालक को अपने स्तन से विषपान करके मारने लगी। जब पूतना कृष्ण को अपने स्तन से विष पैन कराने लगी तो कृष्णा ने पूतना को ही मार डाला। इस प्रकार गोकुल के बाकि सभी बच्चे सुरक्षित हो गए। इस तरह अच्छाई की बुराई हार गई। इस कृष्ण लीला को याद करके और अपनी ख़ुशी को जाहिर करने के लिए होली का त्योहार मनाया जाता है। जब पूतना को मारा गया वह दिन बसंत पूर्णिमा का दिन था। आजतक कृष्ण लीला को याद करके विविध रंगो से होली खेली जाती है।
होली कैसे मनाते है?

फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन प्रजा को हिरण्यकश्यपु नामक राक्षस से और पूतना जैसी राक्षसी से छुटकारा मिला था। इस ख़ुशी में होली त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन केशु और पलाश के फूल से बने गुलाल से होली खेली जाती है। मगर समय के साथ इसमें अलग अलग रंगो से होली खेली जाने लगी। इस दिन लोग एक दूसरे पे रंग डालकर ख़ुशी का एहसास करते है। दोस्तों मिलकर एक दूसरे को रंग लगाते है। छोटे बच्चे अपनी पिचकारी से एक दूसरे पर पानी और रंग उड़ाते है। उस दिन भांग, ठंडाई और घर मे पकवान बनाते है। इस दिन अपने मतभेद भूलकर एकदूसरे को गले लगाकर पुराने वैरभाव को भूलकर एक नए रिश्ते की शुरुआत करते है।
होली खेलने के बाद शाम को नए वस्त्र पहनकर एक दूसरे को होली की बधाई देते है। समय के साथ अब एकदूसरे के घर आना जाना कम हो गया है। मगर त्यौहार अब भी इतने ही धूमधाम से मनाया जाता है। अब इस त्यौहार की बधाई मोबाइल से ज्यादातर दी जाती है। मोबाइल से ही होली के दिन लगे सेल की माहिती मिलती है, जिसका हर महिला को इंतज़ार रहता है। इस दिन दुकानों को सजाया जाता है। होली के बहाने डिस्कंट देकर अपनी सेल बधाई जाती है। इसे आप होली में नए जमाने की असर कह सकते है।बच्चो में आज भी इतना ही उत्साह होता है।
होली त्यौहार एक मगर, मनाने के तरीके अनेक

भारत देश अनेक विविध बना हुआ है। सभी राज्यों की अपनी एक अलग परम्परा है। इसलिए होली का त्यौहार अलग अलग राज्यों में अपनी अपनी परंपरा से मनाया जाता है।
सबसे पहले बरसाना गांव की लठमार होली बड़ी प्रचलित है। जिसमे गोकुल गांव से जवान बरसाना की युवती पर रंग डालने आते है तो बरसाने गांव की युवतियां अपने हाथ में लेथ लेकर या कपडे से बना लेथ लेकर मारने जाती है। यह परंपरा हमें कृष्ण की याद दिलाती है जब कृष्ण गोकुल से अपने दोस्तों के साथ राधा के बरसाना गांव रैंड डालने जाते थे तो बरसाने गांव की नारी ऐसे ही कृष और दोस्तों को हाथ में लेथ लेकर मारने जाती थी।
कृष्ण के गांव मथुरा, वृन्दावन और ब्रज में आज भी यह होली १५ दिन मनाई जाती है। बड़े धूमधाम से, बड़े उत्साह से अनेक रंगो साथ होली खेली जाती है। क्योकि कहते है की, रंगो से होली खेलने की परंपरा की शुरुआत, पूतना वध की कृष्ण लीला के साथ प्रारम्भ हुआ था।
बिहार में भगुआ होली खेली जाती है। छतीश गढ़ में होली के दिन लोक गीत गाकर मनाते है। गुजरात में होली में खजूर और धनि खाने का रिवाज़ है। जब की लड़की के ससुराल रंगीन पतासे भेजने का रिवाज़ भी है। महाराष्ट्र में इसे रंग पंचमी कहते है, होली गुलाल से खेलने का रिवाज़ है।
कुमाव में यह त्यौहार शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम से मनाया जाता है। गोवा में भी सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करके मनाते है। पंजाब में यह त्यौहार शिख लोग अपनी शक्ति प्रदशन का कार्यक्रम रखकर होला महोल्ला के नाम से मनाते है। मध्य प्रदेश में यही त्यौहार भगोरिया के नाम से मनाते है।
हरियाणा में इस त्यौहार में भाभी अपने देवर को परेशान करके मनाती है जिसे धुरंडी कहा जाता है। इस तरह तमिलनाडु में कामदेव से संबधित होली के रूपमे मनाया जाता है। जिसे कमलपोंडिगई के नाम से जाना जाता है। मणिपुर में नदी के किनारे झोपड़ी बनाई जाती है जिसे ओमसांग कहते है। इस कार्यक्रम को याउसांग कहते है। नेपाल में यह त्यौहार धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम करके मनाया जाता है।
इस तरह भारत देश में विविधता में एकता कोई न कोई रूप में जरूर मिलती है। होली का त्यौहार एक मगर इसे मनाने के तरीके अनेक।
आगे का पढ़े : १. गुड़ी पड़वा २. राम नवमी
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