
अनुच्छेद/पैराग्राफ | शीर्षक |
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१ | अधिक मास-मलमास -पुरुषोतम मास |
२ | विज्ञानं और अधिक मास/माह |
३ | अधिक मास का महत्व |
४ | अधिक मास में क्या नहीं करना चाहिए? |
५ | अधिक मास "मल मास" से "पुरषोत्तम मास" कैसे बना? |
अधिक मास ३२ महीना ६ दिन और ८ घडी [१ घडी =२४ मिनिट] के बाद में आता है। इस साल अधिक मास याने श्रावण माह का अधिक मास तारीख १८ जुलाई २०२३, मंगलवार से तारीख १६ अगस्त २०२३, बुधवार तक है। श्रावण में अधिक मास १९ साल के बाद आया है। इस साल श्रावण माह के बिच में अधिक माह शुरू होता है। इसलिए श्रावण माह और अधिक माह दोनों मिलकर कुल ५९ दिन होते है। श्रावण माह का प्रारंभ ०४ जुलाई २०२३, मंगलवार से और उसकी समाप्ति ३१ अगस्त २०२३ गुरूवार को होगा।
श्रावण माह का प्रारंभ ०४ जुलाई २०२३, मंगलवार से १७ जुलाई २०२३ याने १४ दिन और १७ अगस्त से ३१ अगस्त २०२३ ३१ अगस्त २०२३ याने १५ दिन =कुल मिलकर यह २९ दिन श्रावण माह के है।
अधिक माह का प्रारंभ १८ जुलाई २०२३, मंगलवार से और समाप्ति १६ अगस्त २०२३ याने अधिक माह ३० दिन का है। इस तरह कुल मिलकर ये श्रावण माह ५९ दिन का है। ये संयोग १९ साल के बाद आया है।
विज्ञानं और अधिक मास/माह

ज्योतिष गणना के अनुसार, सूर्य को बारह राशि में भ्रमण करने में जितना समय लगता है उसे सौर वर्ष कहा जाता है। जिसकी अवधि ३६५ दिन ८ घंटा और ११ सेकण्ड है।
इस बारह राशि में चंद्र भी भ्रमण करता है चन्द्रमा यह भ्रमण ३५४ दिन और ९ घंटे में करता है। इसे चंद्र माह कहा जाता है।
इस तरह,ज्योतिष गणना के अनुसार,जो सूर्य और चंद्र के भ्रमण के बीच साल में करीब १० दिन से ११ दिन का फर्क पड़ता है। इस फर्क को मिटाने के लिए अधिक मास बनाया गया है। अधिक मास ३२ महीना, १६ दिन और ८ घडी [१ घडी = २४ मिनिट] याने करीब ३ घंटा के बाद आता है।जो वैज्ञानिक दृष्टि से भी एकदम सही है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर एक राशि, नक्षत्र बारह माह के स्वामी होते है। मगर अधिक मास का कोई भी स्वामी नहीं है। इस चंद्र माह में सूर्य कोई राशि नहीं बदलता परन्तु, एक ही राशि में रहता है।जो के शुभ नहीं है।
"यस्मिन मासे न संक्रांति, संक्रांति दयमेव वा। मलमास: स विज्ञेयो, मासे त्रिशतमे भवेत।"
अर्थांत,जिस में संक्रांति न पड़ती हो, इसे "मलमास" कहते है।
अधिक मास का महत्व

हिन्दू धर्म के अनुसार, २९ जून २०२३, को देवशयनी एकादशी और २३ नवम्बर २०२३,को देव प्रबोधिनी एकादशी [देव जागृत दिन] है। याने १५५ दिन देव शयन काल है।
हिन्दू धर्म के अनुसार, हर एक माह का राशि या नक्षत्र स्वामी होता है। जब की अधिक मास का कोई स्वामी नहीं होता है। उसके उपरांत भगवान् विष्णु का शयनकाल होता है। इस परिस्थिति में कोई भी शुभ कार्य नहीं करता है। इस माह में कोई भी शुभ कार्यजैसे की, सगाई, शादी, नामकरनविधि , नए घरका वास्तु पूजन आदि नहीं किया जाता है। कोई नए कार्य के काम का प्रारंभ वर्जित है।
इस माह में भले ही शुभ कार्य वर्जित हो, मगर,इस काल में किये गए कोई भी धार्मिक कार्य या विधि का फल १० गुना मिलता है। इस पुरे माह हिन्दू ,अपने भगवान या इष्ट देव के तप, जप और पूजा पाठ करते है। सादगी पूर्ण जीवन जीते है।
प्रातकाल जल्दी उठकर स्न्नानादि के बाद, पूजा, व्रत, जाप, में बिताते है। "ॐ नमः वासु देवाय" का जाप करते है। मंदिर में जाकर, श्रीमद भगवत पुराण सुनते है। श्रद्धा और विश्वास के साथ, भगवान् विष्णु के सहस्त्र नामो का पाठ और वेद मंत्र का श्रवण करते है या खुद पढ़ते है। अन्न, गुड, वस्त्र, पुस्तके और पौराणिक ग्रंथो का दान करते है। यह पूरा माह हिन्दू जन धार्मिक क्रिया पूजा पाठ में इस लिए बिताते है क्योकि इस माह में उसका १० गुना फल मिलता है। इस माह में किये धार्मिक कार्य से आत्मा को मुक्ति मिलती है जो बड़े बड़े ऋषि मुनि को सालो की तपस्या के बाद मिलती है। इसलिए अधिक मास या मल मास होने के बावजूद, इस माह का महत्व बाकी सभी माह से विशेष है।
अधिक मास में क्या नहीं करना चाहिए?
इस माह में सूर्योदय के बाद नहीं उठना चाहिए। सुबह उठकर हो सके तो नदी में जाकर स्न्नान करना चाहिए।
तेल में पका हुआ खाना नहीं खाना चाहिए। प्याज, गाजर, मूली, राइ, लहसुन, जल में होने वाले फल, तिल का तेल, गाय बकरी का दूध, बासी खाना और अगले दिन का गरम किया हुआ खाना नहीं खाना चाहीये।
हो सके तो मौन व्रत रखना चाहिए या कमसे कम एक घंटा मौन व्रत रखकर भगवान विष्णु जी का जाप करना चाहिए।
चमड़े के पात्र में रखा हुआ पानी, ताम्बे का बर्तन में दूध, लोहे में पकाया गया भोजन को नहीं उपयोग में लेना चाहिए।
तीर्थ स्थल की नदी में स्न्नान करना चाहिए।
लोगो की निंदा करने से,जूठ बोलने से किसी की इर्षा करने से दूर रहना चाहिए।
स्त्री पुरुष दोनों को मिलकर इस पुरे माह जमीन पर सोना चाहिए और ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए।
अपने धर्म, गुरु, अपने शुभ चिंतक, भाई बहन, माता पिता या अपने पे आश्रित बुजुर्ग की निंदा नहीं करनी चाहिए।
कोई भी शुभ कार्य जैसे की, नए घर का वास्तु पूजन, सगाई, विवाह करना, नए अलंकार बनाना, नए वस्त्र लेना, किसी का नामकरण करना, घरमे मूर्ति का स्थापन करना, नया धंधा चालु करना, जनकल्याण कार्यजैसे की, कुआ, तालाब बनवाना आदि कार्य नहीं करने चाहिए।
दिन में निंद्रा नहीं लेनी चाहिए।
अधिक मास "मल मास" से "पुरषोत्तम मास" कैसे बना?

हिन्दू धर्म के हरेक मास के स्वामी होते है। मगर अधिक मास का कोई स्वामी न होने के कारण, कोई भी हिन्दू इस माह को महत्व नहीं देता था। कोई भी शुभ काम नहीं करता था। इस से दुखी होकर अधिक मास भगवान विष्णु के पास गए और दुखी होकर कहा की, हे प्रभु मेरा कोई स्वामी नहीं है इसलिए मेरा कोई सन्मान नहीं है। अगर मेरा कोई स्वामी नहीं है इसमें मेरा क्या कसूर? ऐसा जीवन से मर जाना ही बहेतर है।
अधिक मास को दुखी देखकर भगवान विष्णु ने वचन दिया की, भले ही कोई हिन्दू इस माह में शुभ कार्य न करे मगर इस माह में जो कोई भी धार्मिक कार्य जैसे जप, तप, दान करेगा, मंदिर में जाकर कथा श्रवण करेगा। श्री विष्णुसहस्त्रनाम, श्री हरिवंश पुराण, श्री पुरुष सूत का पाठ और वेद मंत्र आदि करेंगा इसे १० गुना फल मिलेगा।
इस मास में श्री कृष्ण जी की विशेष पूजा करनी चाहिए। "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः" का जाप करना श्रेष्ठ है। अन्न, वस्त्र, गुड़, पौराणिक ग्रंथ, धार्मिक पुस्तके आदि दान देना श्रेष्ठ है, और भगवान विष्णु ने कहा कि, इस माह में जो भी पूर्ण श्रद्धा से धर्म करेगा उसकी जीवन की सारी समस्या देर होगी। उसकी दरिद्रता खत्म होगी और जीवन के बाद उसके आत्मा को मुक्ति मिलेगी।
जो पुण्य फल बड़े बड़े ऋषि मुनि को कठोर तपस्या से मिलता है वही फल इस माह में धार्मिक विधि से मिलेगा। इस माह को अब से सब माह में सबसे श्रेष्ठ और पवित्र माह कहलायेगा। उस दिन से अधिक मास जो "मल मास" कहलाता था वह "परषोत्तम मास" बन गया।
आगे का पढ़े : १ महात्मा गाँधी २. . नवरात्री
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