दिवाली २०२४

                                           दिवाली २०२४
                
                                           Diwali Lights, By Arne Huckelheim, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0                                                                                                    Diwali (Festival of lights) November 2013, By Peddhapati, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0

अनुच्छेद/पेरेग्राफ शीर्षक
१. दिवाली याने प्रकाशोत्सव
२. दिवाली और माँ लक्ष्मी पूजा और चोपड़ा पूजन का मुहूर्त
३. दिवाली में घर की सफाई
४. घर मे दिवाली में महालक्ष्मी की पूजा कैसे करते है?
५. पूजा की विधि
६. जैन के लिए दिवाली का महत्व
दिवाली
, हिन्दू महा पर्व के पांच दिन का सबसे महत्त्व का दिन है। इस दिन भगवान श्री राम ने, दशहरा के दिन रावण का वध करके, सीताजी, लक्ष्मण और हनुमानजी आदि के साथ,अयोध्या नगरी पहुंचे थे। इसलिए अयोध्या वासिओ में, श्रीराम की वापसी से ख़ुशी का माहौल छा गया था। मगर इस दिन अमावस्या का दिन था। इसलिए अयोध्या वासिओ ने श्रीराम का स्वागत पूरी अयोध्या नगरी को दिये से प्रज्वलित करके मनाया। इस तरह दिवाली में  दिये  को प्रज्वलित करने की परम्परा शुरू हुई। इसलिए इसे "प्रकाशोत्सव" भी कहते है। 

ऐसा कहा जाता है की, शरद पूर्णिमा से दिवाली तक माँ लक्ष्मीजी का पृथ्वी पर वास होता है। इसलिए दिवाली के दिन माँ लक्ष्मीजी का पूजन करना आवश्यक है। हिन्दूओ का इस दिन साल का अंतिम दिन होता है। ये छूट्टी  का दिन होता है। घर मे पूजा और त्यौहार का माहौल होता है। इस दिन घर मे सभी लोग नये वस्त्र पहनते है। घर की महिलाए घर के आँगन में रंगोली बनाती है। घर के दरवाजे पर फूलो का तोरण लगाती है। पूजा आदि के बाद, बच्चे और बड़े सभी फटाके फोड़ते है। कहा जाता है के फटाके की आवाज़ से बुरी शक्ति भाग जाती है। घरमे अच्छा भोजन, मिठाई और कही तरह के पकवान बनते है। पुरे घर को लाइट के तोरण से प्रकाशित किया जाता है। 

दूसरे दिन से नया साल शुरू हो जाता है। इसलिए दिवाली का दिन व्यापारी वर्ग के लिए बहुत ही महत्त्व का होता है। इस दिन कई व्यापारी चोपड़ा पूजन भी करते है। इस दिन हिन्दू के घर में महालक्ष्मी जी की पूजा अचूक होती   है। गरीब और अमिर सभी हिन्दू अपने हैसियत के मुताबित, माँ लक्ष्मीजी की पूजा जरूर करते है। घरमे सुख और समृद्धि के लिए महालक्ष्मीजी का उपवास रखते है। इस प्रकार दिवाली का हिन्दू धर्म के मुताबित सांस्कृतिक, सामाजिक, और आर्थिक महत्त्व है। 

                           दिवाली और माँ लक्ष्मी पूजा और चोपड़ा पूजन का मुहूर्त    

दिवाली की शुरुआत 

दिवाली का त्यौहार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है।                                                                                                इस साल दिवाली अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार ०१/११/२०२४ , शुक्रवार को मनाया जाएगा।

इस साल अमावस्या तिथि का प्रारंभ ३१/१०/२०२४ , गुरुवार दोपहर  को ०३:५४ मिनट से  होता है।                                                          इस साल अमावस्या तिथि की समाप्ति ०१  /११ /२०२४ , शुक्रवार दोपहर को ०६ :१६ मिनट को होती है।                                   

लक्ष्मी पूजा और चोपड़ा पूजन का मुहूर्त   

इस साल लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त का समय ०१/११/२०२४, शुक्रवार की शाम को ०५ :३६मिनट से शाम  ०६:१६ मिनट तक  है।                                                     

प्रदोष काल पूजा मुहूर्त 

इस साल प्रदोष काल का समय  ०१/११/२०२४, शुक्रवार की शाम को ०५ :३६  मिनट से शाम को ०८:११ मिनट तक   है।                                                                                                 

   ऋषभ काल मुहूर्त 

 इस साल ऋषभ काल मुहूर्त का समय  ०१/११/२०२४, शुक्रवार की शाम को ०८:१५ मिनट से ०७:३५ मिनट तक है।                                                 

विजय मुहूर्त

 इस साल विजय मुहूर्त प्रारंभ ०१/११/२०२४, शुक्रवार की दोपहर को ०१:५५  मिनट स दोपहर  को ०२:३१  मिनट तक है।                               

                                                           दिवाली में घर की सफाई                            

                                                                                              Hemstandning, By SebastianAkerman, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                         India- Painting a Staircase- 0063, By Jorge Royan, image compressed and resized, Source is licensed CC BY-SA 3.0

दिवाली में महालक्ष्मी जी के पूजा से पहले पुरे घर की सफाई की जाती है। शास्त्रों के मुताबित, कहा जाता है की माता महालक्ष्मीजी का वास वही होता है जहा सफाई होती है।इस लिए घर के कोने कोने की सफाई की जाती है।  इस दिन पुरे साल का कबाड़ घर से बाहर किया जाता है। घरके दरवाजे या खिड़की टूटी हो तो ठीक की जाती है। अगर हैसियत है तो, घरको कलर भी किया जाता है, नहीं तो पानी से धोया जाता है। 

वास्तु शास्त्र के अनुसार, टूटा हुआ कांच का सामान जो मानसिक तनाव लाता है। टूटा हुआ पलंग जो दाम्पत्य जीवन में समस्या लाता है। बंध पड़ी हुई घडी जो,प्रगति में बाधा लाती है। टुटी हुई फोटो फ्रेम जो घरमे वास्तु दोष लाती है। बंध पडा हुआ इलेक्ट्रिक का सामान घरमे अशांति लाता है। टुटा हुआ चप्पल, डिब्बे, खिलोने, फटे हुए कपडे, जूने दिये, काँटेवाले पौधे, जो सब घरमे पैसे की तंगी लाते है। ताजमहल जो की कबर का प्रतिक है। ये सब सामान जो घरकी प्रगति को रोकते है उसे घरके बाहर किया जाता है।

इस तरह महालक्ष्मीजी के आगमन की तैयारी की जाती है।  

                                         घर मे दिवाली में महालक्ष्मी की पूजा कैसे करते है?

                                                          Laxmi pooja prasad 03, By Kritzolina, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY_SA 4.0

महालक्ष्मीजी की पूजा की सामग्री में पूजा के लिए चौकी, लाल कपड़ा, गणेशजी, विष्णुजी और लक्ष्मीजी की मूर्ति या फोटो, लक्ष्मी यंत्र, अष्टदल कवल, स्वस्तिक, चांदी के सिक्के, चांदी का थाल, कुशा, दक्षिणा, गंगा जल और आसन।

कलश, नारियल, मौली, आम का पत्ता, हल्दी की गाँठ, महालक्ष्मीजी की चुन्नी, श्रृंगार का सामान, गणपतिजी और विष्णुजी के वस्त्र, जनेऊ, लाल और सफ़ेद चन्दन, रोली, हल्दी, कुमकुम, चावल, सिंदूर, इत्र,अगरबत्ती, धुप, कपूर, शहद, रुई, पीला चावल और कमल गट्टे की माला। श्रीसुत के पाठ की किताब। 

लक्ष्मीजी लिए कमल का फूल, बेल पत्र, विष्णुजी के लिए पिले फूल, गणपतिजी के लिए जसुद के फूल, दूर्वा, पांच फल आदि।

लक्ष्मीजी के भोग के लिए सफ़ेद मिठाई और धनिया, गणपतिजी के लिए लड्डू, विष्णुजी के लिए पिली मिठाई, पतासे, पांच मेवा और खिल। 

मुख शुद्धि के लिए ताम्बूल, पान, सुपर, इलायची और लॉन्ग। 

दिये  प्रज्वलित करने के लिए के लिए मिटटी के दिये और तेल। 

                                                                                पूजा की विधि 

                             Laxmi Pooja| Laxmi Pooja done on Diwali| Chetan bisariya, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0

प्रथम घर के सभी सभ्य की और पूजा स्थल और सामग्री की शुद्धि के लिए गंगा जल का छिड़काव करे। चौकी के ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर गणेशजी, माँ लक्ष्मीजी और विष्णुजी का स्थापन करे। चौकी पर चावल से अष्टकमल बनाए।  उसके ऊपर कलश की स्थापना करे। कलश में गंगाजल, हल्दी की गाँठ ड़ालो। कलश में आम के पत्ते रखो। अब एक श्रीफल को लाल कपडे में लपेट कर मौली से बांधो। इस श्रीफल को कलश में आम के पत्तो के बीच स्थापित करो।अब कलश पर  हल्दी कुमकुम, रोली और चन्दन का टिका लगाकर पूजा करे।

अब गणेशजी, विष्णुजी और महालक्ष्मीजी को स्नान करवाना है। गणेशजी, विष्णु जी को जनेउ पहनाकर दोनों को वस्त्र पहनाना है। चन्दन, रोली, कुमकुम, हल्दी और सिंदूर का टिका लगाना है। गणेशजी को दूर्वा और जसुद का फूल , विष्णुजी को कमल का फूल और गौरी को बेलपत्र चढ़ाना है। महालक्ष्मीजी को श्रृंगार का सामान अर्पित करना है। अब सबको रुई में इत्र लगाकर समर्पित करना है।

अब गणेशजी को लड्डू, महालक्ष्मीजी को सफ़ेद मिठाई और विष्णुजी को पिली मिठाई का भोग लगाएंगे। सब को पंचामृत समर्पित करना है। अब सब को पंचमेवा, पतासे समर्पित करे। 

भोग के बाद ताम्बूल, पान, सुपारी, लॉन्ग और इलायची मुख शुद्धि के लिए समर्पित करे। 

अब घर के सभी सभ्य मिलकर धुप, दिप और अगरबत्ती से पूजा और आरती करे। लक्ष्मी श्रीसुत का पाठ करे।   पूजा और आरती के बाद, घर के सभी सभ्य को पंचामृत और पतासे और पांच मेवा  का प्रसाद बाटे।

पूजा का स्थापन का उथापन भी अच्छे मुहूर्त में किया जाता है। जो दूसरे दिन करना है। इसलिए स्थापन का दिया सारी रात जलाना पड़ता है। दूसरे दिन अच्छे मुहूर्त में गणेशजी, महालक्ष्मीजी और विष्णुजी का उथापन कर के वापिस उनके स्थान पर रख देना है। चावल और अनाज पंखी को दाल देना है। प्रसाद के लड्डू, मिठाई, मेवा, फल आदि घरवालों में बाट दे। मिटटी के दिये, फूल, जनेऊ, वस्त्र और पूजा का बचा हुआ सामान सब जमीन में खड्डा  करके दबा दे। इस तरह दिवाली की पूजा समाप्त होती है।

                                                     जैन के लिए दिवाली का महत्व

                                                                                         Pawapuri-001 Temple making Mahavira s Passing, By Photo Dharma from Penang Malasia, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0                                                        Lord Mahavira s Kevalgyana Kalyanaka, By user Rishabh rsd, image compressed and resized, Source is licensed CC BY-SA 4.0

जैन धर्म में २४ तीर्थंकर होते है। २४ वे तीर्थंकर महावीर स्वामी है। महावीर स्वामी का जन्म हिन्दू कैलेंडर के चैत्र सूद तेरस ईस्वीसन  पूर्व ५४३ को हुआ। उनके जन्म से ही उनके पिता के राज्य में धन धान्य विपुल मात्रा में हुआ। चारोओर प्रगति से लोगो के सुख में वृद्धि होने लगी। इसलिए उनका नाम वर्धमान रखा गया। 

राजा के पुत्र होने के बावजूद वह अति धार्मिक थे। राजपाट में उनकी रूचि नहीं थी। वह वैरागी जीवन जीना चाहते थे। मगर उनके माता पिता सहमत नहीं थे। इसलिए उन्हों ने मातापिता के जीवित रहने तक दीक्षा ग्रहण नहीं की।     माता पिता के अवसान के बाद राज कुमार वर्धमान ने संसार का त्याग कर दिया। दीक्षा ग्रहण कर र्ली।

दीक्षा काल के दरमियान उन्हों ने चंडकौशिक, कठपुतना, बैल, संगम देव के अगणित अत्याचार सहन किये। इनकी इस सहन शक्ति को देखकर स्वर्ग के इंद्र देव भी प्रभावित हो गए। दीक्षा काल दरम्यान उन पर देव, दानव, मानव, पशु सब ने अत्याचार किये मगर वह कभी क्रोधित नहीं हुए। जो भी अत्याचार हुए वह समता से सहन किये। इसलिए अब जैन समाज राजकुमार वर्धमान को महावीर के नाम से ही बुलाने लगे। 

साधु जीवन में उन्हों ने १२.५ साल तक तप किया।  महावीर प्रभु ने साधू  जीवन के  ४५१५ दिन में उन्हों ने सिर्फ ३४८ ही अन्न ग्रहण किया। उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। लोगो को महावीर स्वामी ने अहिंसा का ज्ञान दिया और उसके फायदे बताये। हिंसा से समाज को कितना  नुक्सान होता है। जिसमे स्त्रियाँ बेवा होती है बच्चे अनाथ होते है। कई घर बर्बाद हो जाते है आदि समजा कर लोगो को अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाया। 

ऐसे महात्मा तीर्थंकर महावीर का  निर्वाण दिवाली के दिन सुबह हुआ था।  इसलिए जैन के लिए यह दिन अपने तीर्थंकर महावीर को याद करके शांति पूर्ण अवस्था में बिताने का है। 

इस तरह दिवाली का दिन हिन्दू और जैन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।                                                                                                                                                                                                      

आगे का पढ़े :  १. बेसतु वर्ष २ भाई दूज

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