करवा चौथ २०२४ में कब है?

 करवा चौथ २०२४ में कब है?


Karva chauth JPG image tells, That the wife get darshan of moon at the time of "chandoday muhurat"and later of her husband. So her husband feed his wife with his own hand and break her fasting fast. 

अनुच्छेद /पेरेग्राफ शीर्षक
प्रस्तावना
करवा चौथ कब है?
करवा चौथ कैसे मनाते है?
चन्द्रदेवता को आह्वान और थाली कैसे सजाते है?
चन्द्रदेवता को आह्वान और पूजा
करवा चौथ में क्या नहीं करना चाहिए
सावधानी
करवा चौथ की कथा
करवा चौथ की कथा २
हिन्दू धर्म का पत्नी का अपने पति के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने का त्यौहार है। इस दिन पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र के लिए निर्जला उपवास करती है। रात को चन्द्र दर्शन के बाद ही पति की पूजा करके अन्न और जल ग्रहण करती है। इस दिन पत्नी अपनी सास को भी उपहार देती है। यह हिन्दू त्यौहार पति पत्नी के निस्वार्थ प्रेम का प्रतिक है। भारत में यह त्यौहार उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बड़ी श्रधा से मनाया जाता है।            

                                                                         करवा चौथ कब है?

करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है। इस साल करवा चौथ का त्यौहार २०/१० /२०२४, रविवार को आता है। 

इस साल चतुर्थी का आरंभ रविवार २०/१०/२०२४ की सुबह ०६:४७ मिनिट को होता है और चतुर्थी की समाप्ति सोमवार २१/१०/२०२४  की सुबह  ०४.१७  मिनिट को है।

करवा चौथ ब्रह्म मुहूर्त  सुबह ०४ :५३ से सुबह ०५:४१ तक है। 

करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त  २० /१०/ २०२४  की शाम ५:४६  से ०७:०९शाम बजे तक है। कुल अवधि  १ घंटा २३ मिनट है।

चंद्रोदय का समय २०/११/२०२४ रविवार रात  ८:१५  का है। 

भद्रा समय  २०/१०/२०२४, रविवार सुबह ६:२५ से सुबह ६:४६ मिनट तक है। 

राहु काल दोपहर ०४:३० से ६:०० तक है। 

                                                                     करवा चौथ कैसे मनाते है?                                                                                                                                                                                                                   Lord Shiva with Family Painting, By Nitijsandy JPG  image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                                                      करवा चौथ की थाली 11, By Suyesh Dwivedi, JPG image compossed and resized, Source is licsenced under CC BY-SA 4.0 

पत्नी की सास अपनी बहु के लिए सरगी बनाती है, जो की एक प्रकार की मिठाई होती है। पत्नी ब्रह्म मुहरत में उठकर स्नान आदि करके सास ने बनाई हुइ सरगी खाती है। फिर शिव मंदिर में जा के व्रत का संकल्प करती है। मंदिर में श्रृंगार का सामान चढ़ाती है। संकल्प मंत्र बोलकर व्रत की शुरुआत करती है।   

सबसे पहले घरमे पूजा स्थान पर गंगाजल छिडककर शुध्ध करते है। घर में चौकी पर लाल आसन बिछाकर करवा चौथ के पूजन की तैयारी करती है। अपनी दाहिनी तरफ आटे से स्वस्तिक और बायीं और अष्टदल बनाए। स्वस्तिक के सामने शिवजी के परिवार की छबि रखे, और अष्टदल के सामने माँ करवा और चन्द्र देव की छबि रखे।  एक कलश के ऊपर रोली और देशी घी की पेस्ट बनाकर स्वस्तिक बनाए कलश में कलावा बांधे। उसमे पानी सुपारी हो सके तो चांदी का सिक्का डाले। आम के पांच पान लोटे में रखे। एक श्रीफल के ऊपर चुनरी लपेटकर ऊपर कलावा बाँध देना है। श्रीफल को कलश में आम के पान के बीच में रखना है।  

अब गंगाजल छिड़ककर सब बाहर से आये हुए सामान को शुध्ध करते है, दो करवा लेना है। दो नो के ऊपर स्वस्तिक बनाना है। दोनो करवा को कलावा बांधना है। पार्वतीजी का जी करवा उनकी छबि के सामने गेहू के ऊपर रखना है। बाजू में दूसरा करवा भी गेहू के ऊपर रखना है। करवा में हरेक राज्य में अलग वस्तु से भरे जाते है ज्यादातर पानी से और कही राज्य में सूखे मेवे या गुलगुला से भरे जाते है और उसमे सरए रखी जाती है। । ढक्कन के ऊपर कही जगह पर रेवड़ी और चुरा रखा जाता है। 

अब एक सुपारी के ऊपर कलावा बांधकर गणपति जी बनाकर, प्रथम गणपति जी का स्थापन किया जाता है। साथ में, शिवजी और माँ गौरी का भी स्थापन मिटटी से बनाकर किया जाता है। अब माँ गौरी, शीवजी और गणेशजी के साथ चंद्रजी को स्न्नान करवाते है।अब सबसे पहले दीपक जलाया जाता है। धुप और अगरबत्ती जलाते है।  

अब शिवजी, माँ पार्वतीजी और गणेशजी की पूजा में अक्षत और कुमकुम चढाते है। अब शिवजी, माँ गौरी को बेल पत्र और गणेशजी को दुर्वा चढाते है। अब शिवजी को शंखपुष्पी, माँ पार्वतीजी को सदाबहार पुष्प जिसे सदा सुहागन भी कहते है वह चढाते है। गणेशजी को लाल पुष्प चढाते है। माँ करवा और चन्द्र देवता को भी कुमकुम और अक्षत से पूजा जाता है। अब माँ गौरी, शिवजी और गणेशजी को रक्षा सूत्र और जनेऊ चढाते है।

अब श्रीफल, लड्डू, मिठाई, फल वगेरे चढ़ाते है। इस प्रकार नैवेद्य चढ़ाते है। अंत में पान, सुपारी, इलायची, लॉन्ग  और दक्षिणा अर्पित करते है। गौरी माँ को श्रृंगार की सब चीज़ चढ़ाते है। अब सब मिलकर आरती करते है। सौभायवती स्त्रीया कथा का श्रवण करती है। 

कथा समाप्ति के बाद, जो भी नैवेद्य और करवा के ऊपर रखा हुआ चुरा और रेवड़ी घर के सभ्यो और आस पड़ोस   में बाट दिया जाता है। पूजा के फूल,और पूजा का बचा हुआ सामान पानी में प्रवाहित किया जाता है। श्रृंगार का सामान खुद भी रख सकती है। कलश के नीचे रखे हुए चावल और गेहू पक्षी को खिला देते है। 

 पोस्ट जरूर पढ़े: १ ब्लड प्रेशर / रक्त चाप  २. मधुमेह  ३. आंवला /आमला, ४ . सोंठ (सूखा अदरक)                                                                                                                                               

 चंद्र देवता को आह्वान और पूजन के लिए थाली कैसे सजाते है?

                                                       Karvachauth, By CSG-Info, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0 

एक थाल में कुमकुम से शुभता का प्रतिक स्वस्तिक बनाये। उसके ऊपर पान और अक्षत रखे ,जो खंडित नहीं होने चाहिए। श्रीफल के ऊपर चन्दन से स्वस्तिक बनाकर,कुमकुम और हल्दी लगाकर कलावा बांधे। एक मिटटी के करवे ऊपर भी चन्दन से स्वस्तिक बनाकर कलावा बांधे। 

 करवे को थाल में सजाके,उसके ऊपर ढक्कन रखकर दक्षिणा रखे। दूध की मिठाई, कच्चा दूध, और सफ़ेद पुष्प रखे। सफ़ेद चन्दन और दूध की सफ़ेद मिठाई चंद्र देवता के लिए होती है। करवा माँ के लिए मीठे गुलगुले बनाये जाते है। पान, सुपारी, अखंडित लॉन्ग, और इलायची रखे।  

थाल में फल को काटे बिना ही रखे। थाल में काजू , किसमिस, छुआरे रखे। सुहागन की सामग्री में चुंदड़ी ,साडी, अंगूठी ,चुडिया, बिछुआ, सिंदूर, काजल, बिंदी, लिपस्टिक, नेइल पोलिस, मेहंदी, महावर और इत्र रखे। रक्षा सूत्र, कुमकुम और अक्षत चावल रखे।                                           

                                            चंद्र देवता को आह्वान और पूजा 

                                                                                                                                                                                                                        Karwachauth, By lamwiki001, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

चंद्र देवता की पूजा के लिए अलग थाल में चन्दन से स्वस्तिक करे। चंद्र देव के सम्बंधित पलाश के पते पर चांदी के सिक्के को चंद्र देव का प्रतिक मानकर, पहले गंगाजल से स्नान करवाए। सिक्के को चन्दन का टीका, कुमकुम और अक्षत चावल चढ़ाये  "ॐ चंद्र मसे नमः" का जाप करते रहे। सफ़ेद पुष्प, जनेउ और सफ़ेद गमछा चढ़ाये।  चंद्र देवता को दो वाट का दिया और अगरबत्ती जलाकर पूजा करे और दक्षिणा रखे। 

दूध की मिठाई का भोग लगाए। पान सुपारी लॉन्ग और इलायची से भरा पान चढ़ाये। अब चंद्र देवता से सामने थाली  घुमाये। अब मिटटी के करवा, जो पानी से भरा हुआ है उसमे कच्चा दूध डालकर सफ़ेद बनाये और उसमे सफ़ेद पुष्प डाले। अब इस पानी से चंद्र देवता को अर्ध्य दे ते हुए "ॐ चन्द्रमसे नमः" का श्लोक बोले। इस प्रकार पूजा शुद्ध भाव से करे।  

चंद्र देवता के पूजन के बाद, एक छन्नी  लेकर उसमे दिप जलाये। इस छन्नी से चंद्र देवता का दर्शन करे। अपने पति की दीर्घायु के लिए आह्वान करे। उसी छन्नी से अपने पति को देखे। पति को कुमकुम और अक्षत का टिका लगाए। पति के दाए हाथमे रक्षा सूत्र बांधे। 

अब पति के हाथो से करवे का पानी पीकर और मिठाई खाकर व्रत की समाप्ति करे। कई क्षेत्र में पति और पत्नी दोनों एक दूसरे को मिठाई खिलाते है और यह दूसरे को इत्र लगाते है।  पति पत्नी दोनों एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते है। इस प्रकार क्षेत्र के मुताबित पूजा की जाती है। 

अब पूजा की थाली की सामग्री, जिसमे सुके मेवे, मिठाई, श्रृंगार का सामान आदि चंद्र देवता को दिखाई जाती है। यह थाली पत्नी अपनी सास को देती है और पाँव छूती है। इस प्रकार व्रत की समाप्ति होती है। 

अब बचा हुआ जल और पुष्प बहते हुए जल में प्रवाहित किया जाता है। प्रसाद आस पड़ोस में बाटा जाता है। दीपक को बूजने के बाद किसी पेड़ के नीचे रखा जाता है। 

इस प्रकार करवा चौथ की समाप्ति होती है। 

                                                       करवा चौथ में क्या नहीं  करना चाहिए                                                                                                                                                                                                                                                                                      necessities, By Lenore Edman, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0                                                                                                             Sewing machine (6281723598), By Leslie Seatone from Seattle ,WA,USA, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0               

सरगी ग्रहण करने के बाद, झाडू, पोछा नहीं करना चाहिए। जूठे बर्तन और गंदे कपडे धोने जैसे काम नहीं करने चाहिए। सिलाई, कढ़ाई, बुनाई ,सब्जी काटना या बाल और नाख़ून काटना आदि वर्जित है। सोये हुए को जगाना नहीं है। पूजा की हरेक सामग्री नई होनी चाहिए। माता गौरी, गणेशजी और कलश भी नया होना चाहिए। पूजा में लगाने वाला सब सामान नया होना चाहिए। 

                                                                                  सावधानी 

करवा चौथ में बिंदी, मेहंदी, महाउर, नए या धुले हुए वस्त्र से पूरा श्रृंगार करना है। मांग पूरी भरनी है। सासुमा अगर विधवा है तो सास की थाली के श्रृंगार का सामान अपने से बड़ी जेठानी या सास की बराबर की स्त्री को देना है। पूजा समाप्ति के बाद, माता गौरी, गणेश और मिटटी के पात्र का और पूजा किये हुए सामान का पानी में विसर्जित करे।  तालाब नहीं है तो खड्डा करके मिटटी में दबा दे। प्रसाद और वस्त्र का दान करे।

करवा चौथ की कथा

                 Draupadi satisfy Krishna with one pinch of Rice, By Ramanarayanadatta astri, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC0 1.0

ये कहानी महाभारत से जुडी हुई है। वनवास के दरमियान अर्जुन नीलगिरि पर्वत पर तप करने गए। कही दिनों तक वापस नहीं आये तब द्रौपदी ने चिंतित होकर भगवान् कृष्ण का स्मरण किया। द्रौपदी ने कृष्ण को अर्जुन के बारे में बताया। इस स्थिति में से बाहर निकल ने का मार्ग पूछा तब भगवान् कृष्ण ने एक कथा सुनाई। ये कथा भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी। वो चतुर्थी का व्रत आप भी करो। 

इंद्रप्रस्थ नगरी में वेद शर्मा नामक वैद को सात पुत्र और वीरावती नामकी एक बहन थी। सभी भाई बहन विवाहित थे। विरावती का यह पहला करवा चौथ था। पुरे दिन कुछ भी न खाने से वह कमजोर हो गई थी। उसकी सब भाभी ने यह बात वीरावती के भाईओ को बतायी और कहा की अभी तो व्रत खोलने के लिए ४ घंटे बाकी है। वीरावती बहोत ही कमजोर हो गयी है। तब स्नेहवश सभी भाईओ ने अपनी बहन को खिलाने का प्लान बनाया। 

एक भाई ने खेत में आग जलाई और दो भाईने उसके आगे सफ़ेद कपड़ा रखा ताकि दूरसे वो चंद्र देवता जैसा दिखे। फिर वीरावती को दिखाया की चंद्र देवता का उदय हो चुका है तो आप व्रत खोलकर खाना खालो।  भाईओ के चंद्र देवता दिखाने पर वीरावती ने चंद्र देवता अपना व्रत खोलकर खाना खा लिया। इस प्रकार वीरावती का पहला ही व्रत तूट गया।

व्रत टूटते ही खबर आई की उसका पति बीमार है। वीरावती का पति मरने की कगार पर था।  वीरावती को यह पता भी चला की उसके भाईओ ने स्नेहवश उसका व्रत तुड़वाया था। उसके पति की यह हालत की जिम्मेदार वह खुद है।इसलिए वह अपने पति को स्वस्थ करने के लिए दिन रात सेवा करने लगी। वह हर चतुर्थी को व्रत करने लगी। 

स्वर्ग में जब इंद्र की पत्नी इंद्राणी को चतुर्थी के व्रत के बारे में पता चला तो वह पृथ्वी पर देखने आई। सभी पत्निया इंद्राणी का दर्शन करने गई। वीरावती ने भी दर्शन किये और अपने पति की बिमारी के  बारे भी बताया  तब देवी इन्द्राणी ने सलाह दी की तुम यही चतुर्थी का व्रत अगले करवा चालु रखो। करवा चौथ को व्रत करके अपनी भूल की क्षमा मांग लेना। 

वीरावती ने माता इन्द्राणी के कहने अनुसार, चतुर्थी का व्रत चालु रखा। करवा चौथ का व्रत भी विधि अनुसार किया और अपनी भूल की क्षमा याचना की। भविष्य में किसी के भी बातो में आकर व्रत को खंडित नहीं करेगी और जबतक वह सुहागन रहेगी यह व्रत करती रहेगी ऐसा संकल्प किया।  ऐसा करने पर उसका पति जो, मरने की कगार पर था वह फिर से स्वस्थ हो गया। 

इस प्रकार भगवान कृष्ण ने द्रौपती को कथा सुनाकर, चतुर्थी का व्रत करने को कहा। द्रौपदी ने भी व्रत करने का संकल्प  किया। 

                                                                करवा चौथ की कथा  २ 

               
                    Karava chauth JPG Image represents, Chhoti bahu express her sorrow to Ichchhadhari naag that she has no brother. so naag becomes his brother.

एक ब्राह्मण को सात पुत्र थे। सभी विवाहित थे। उसमे सबसे छोटी  बहु के मायके वाले गरीब थे। मगर इस बहु बहोत ही संस्कारी और समजदार थी। घर का सारा काम वही करती थी। मगर उसके मायके वाले त्यौहार और प्रसंग के अनुसार उसे व्यवहार नहीं कर पाते थे। जब की बाकी सभी बहु के मायके वाले हर प्रसंग के अनुसार अपनी बेटी के ससुराल वाले भेट और सौगात देते थे। इसलिए छोटी बहु का ससुराल में सबका काम करने के बाद    भी कोई मान नहीं था। इसलिए यह काफी दुखी थी। 

करवा चौथ के दिन जब छोटी बहु के सिवाय सबके यहाँ से उपहार आया। तब छोटी बहु को सास ने बहुत सुनाया। छोटी बहु की काम की कदर भी नहीं की। तब छोटी बहु बहोत दुखी हो गई। वह घर से दूर जंगल में जाकर रोने लगी। उसका रुदन एक इच्छाधारी नागराजा ने सूना। उसने मानव का शरीर धारण किया और छोटी बहु को अपना भाई समझकर अपना दर्द बताने को कहा। उसका दुःख सुनकर इच्छाधारी नाग ने उसे अपनी बहन बनाया। छोटी बहु को अपने महल में ले गया। इस प्रकार करवा चौथ के दिन एक बहन को भाई मिला। 

इच्छाधारी नाग देवता और छोटी बहु दोनों उसके ससुराल गए। नाग देवता जो की मानव शरीर धारण किया था और छोटी बहु के भाई बनकर गए थे, उसने ससुराल में सबको भेट सौगात देकर अच्छा व्यवहार किया। एक दिन जब छोटी बहु नागदेवता के महल कुछ दिन के लिए रहने गई तब उसके भाई ने पुरा महल दिखाया मगर एकजगह पे नाग पड़ा था उसे कभी भी न छूने को कहा। 

कुतूहलवश एक दिन, छोटी बहु ने उस नाग को अपने हाथ में उठाया और देखा की नीचे बहोत सारे सपोले है तो डरकर उसके हाथ से नाग सपोले पे गिर गया इसलिए एक सपोले की पूछ काट गई। इस घटना से छोटी बहु बहुत ही दुखी हो गई और जिसकी पूछ कट गई थी ,उसको  विशेष स्नेह करने लगी उसका बहुत ही ख्याल रखने लगी।

जब सपोले बड़े होने लगे तो जिसकी पूछ काट गई थी उसे सब "बंडा' कहकर चिढ़ाने लगे इससे वह दुखी रहने लगा। जब उसे पता चला की छोटी बहु कारण उसकी पूछ कटी है तो वह छोटी बहु से नफ़रत करने लगा। एक दिन उसने छोटी बहु को काटने का विचार बना लिया। 

तब मातापिता ने उसे समझाया की जो भी हुआ वह गलती से हुआ है। छोटी बहु तो तूमसे सबसे अधिक प्यार करती है। मगर "बंडा सपोला" बहुत ही ग़ुस्से मे था वह किसी की सुने बगैर ही छोटी बहु को काटने के लिए ससुराल पहुंच गया। जब वह ससुराल पहोचा तो छोटी बहु और उसकी सास के बीच  विवाद चल रहा था। जब सास को छोटी बहु के बात पर विश्वास नहीं हुआ तो को विश्वास दिलाने के लिए कहा की  मैं अपने "बंडा भाई" की कसम खाती हु ,आप जानती है वह मुझे सबसे अधिक प्रिय है। तो उसकी सास ने भी छोटी बहु पर विश्वास  कर लिया। 

इस दृश्य को देखकर बांड़ा को विश्वास हो गया की छोटी बहु बहोत अच्छी है जो भी हुआ है वो हुआ है, वो तो बहोत ही स्नेह करती है। इसलिए यह अपने महल वापस चला गया और छोटी बहु की इज्जत करने लगा। यह बात उसने अपने मातापिता भी बताई। इस प्रकार सारी समस्या सुलझ गई। 

मै ने यहाँ करवा चौथ की दो प्रचलित कहानिया बताई है, जो घरमे चौकी पूजा के बाद सुननी होती है। वैसे तो राज्य के हिसाब से अलग अलग कहानिया  सुनाई जाती है। यहाँ महत्व कथा सुनाने का है।

                                                                                                                                                                           

आगे का पढ़े :  १ धनतेरस     2.  काली चौदस    

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