नवरात्री २०२४

                                           नवरात्री २०२४                 

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                                 Navratri Garbo, By Vaidyarupal, image compressed and resized, source, is licensed under CC BY 2.0

 
अनुछेद /पेरेग्राफ शीर्षक
१. प्रस्तावना
२. २०२३ में नवरात्री और शुभ मुहूर्त कब है?
३. नवरात्री घर में कैसे मनाते है।
४. नवरात्री जाहीर में कैसे मनाते है।
५. नवरात्री के हरेक दिन की महिमा
६. नवरात्री की पौराणिक कथा
७. महिषासुर का जन्म
८. माँ दुर्गा का प्रागट्य [उत्पति]
९. महिसासुर मर्दन (वध)
१०. नवरात्री का त्यौहार
नवरात्री
 दुनिया का सबसे लंबा हिंदु त्यौहार  है, जो पुरे दस दिन तक मनाया जाता है, और साल में दो बार आता है। ये अनोखा इसलिए भी है, क्योकि माँ दुर्गा ने सामान्य मानव को नहीं, बल्कि देवताओ को महिसासुर से बचाया था। माँ और महिषासुर के बीच लड़ाई नव दिन तक चली थी। दसवा दिन, दशहरे के रूप में माँ की असुर पर  पाई गयी  जीत की ख़ुशी में मनाया जाता है। नवरात्री  हजारो साल से मनाई जाती है। ये त्यौहार में पूरा कुटुंब, बच्चो से लेकर बुजुर्ग तक भाग लेते  है। नवरात्रि में पूरा देश भक्तिमय बन जाता है। ये त्यौहार माँ दुर्गा को समर्पित है।

                                            २०२३ में नवरात्री और शुभ मुहूर्त कब है?




नवरात्री का त्यौहार हिंदु केलेंडर के अश्विन मास की प्रतिपदा से दशम तक चलता है। नवरात्री  की  शुरुआत श्राद्ध पक्ष ख़त्म होते ही हो जाती है। इस साल नवरात्री  की शुरुआत तारीख़ ०३/१० /२०२४, गुरु वार से होती है। अष्टमी तारीख़ ११ /१०/२०२४  शुक्रवार को है। दशहरा तारीख़ १२/१०/२०२४  , शनिवार को है।

प्रतिपदा तिथि की शुरुआत ०३ /१० /२०२४ रात्रि  को १२:००  मिनट से होती है। 
प्रतिपदा तिथि की समाप्ति ०४/ १० /२०२४  प्रात; ०३:०० मिनट को होती है।

कलश स्थापन मुहूर्त : प्रतिपदा तिथि ० ३/१०/२०२४ को सुबह ०६ :१९ से सुबह ०७ :२३  तक है।
कलश स्थापन की अवधि १ घंटा ०४ मिनट्स की होगी।
  
कलश स्थापन अभिजीत मुहूर्त: प्रतिपदा तिथि ०३ /१०/२०२४ को सुबह ११:५२ से दोपहर १२: ४८ तकहै।कलश स्थापन अभिजीत मुहूर्त की अवधि ०० घंटे और ५६ मिनट्स  की होगी।

                                                 
                                   नवरात्री घर में कैसे मनाते है।

                                                                                                                                                          GHOLAI DEVI,JPG, By Moreshwar101, Image compressed and resized, Resource is licensed under CC BY-SA 4.0.

नवरात्री के पहले पुरे घर को साफ़ किया जाता है। घरमे गंगाजल या गौ मूत्र छिडका जाता है। घरको पवित्र किया जाता है। पूजा घर या घर का पूजा स्थान को गंगा जल से पवित्र किया जाता है और लाइटिंग और फूलो से सजाया जाता है। स्नान करके शुध्ध होने के बाद, स्थापन के लिए चौकी रखी जाटी है। उस पर लाल कपडा बीछाया जाता है। उस पर अक्षत से नव कोना निकालकर फुल जैसा बनाया जाता है।अब सबसे पहले चौकी के आगे गणेशजी का स्थापन किया जाता है।  गणेशजी की मूर्ति को सिन्दूर से तिलक किया जाता है। "ॐ गं  गणपतये नम:" बोलकर, गणेशजी को नमन किया जाता है।

अब चौकी के ऊपर माताजी का फोटो स्थापित किया जाता है। माताजी को कुमकुम से तिलक किया जाता है। माताजी के फोटो पर  चुन्नी और फूलो का हार चढ़ाया जाता है। अब नव दुर्गा के प्रति सामान अक्षत के बनाए हुए फुल पर कलश स्थापित किया जाता है। अब कलश पर मौली बाँधी जाती है।  इसमें हल्दी या फिर हल्दी की गाठ, चावल और हो सके तो चांदी का सिक्का डालकर थोड़ा गंगाजल डाले। अब आम के पत्ते कलश मे सजाके एक श्रीफल पर मौली  बांधकर रखा जाता है।

अब घी के दीपक को माँ के फोटो के दाई और रखे। अपना आसन ग्रहण करे और अब गंगा जल से हाथ को शुध्ध करके अखंड दीपक को जलाए। और माँ को नमस्कार करे अब सबको तिलक करे। "ॐ दुर्गा दैव्ये नम:" का नाम लेकर जल का आचमन करे। 

अब ये दीपक माँ का उस्थापन तक बूजना नहीं चाहिए। कलश भी हिलना नहीं चाहिये।  माँ के पास श्रृंगार रखे। माँ के लिए बनाया गया प्रसाद, पांच फल, पानी का ग्लास थाली में सजाकर माँ के सामने रखे। अब मिटटी के खुले पात्र को मौली से बांधकर,उसमे मिटटी छानकर डाले, ऊपर जव के दाने फैलाए। अब पहले थोडासा गंगाजल छिडक कर पवित्र करे। अब सादा पानी हररोज पिलाए। 

 इस दस दिन में जवारे नीचे सफ़ेद,ऊपर हरे और लम्बे नीकले तो अति शुभ माना जाता है। अगर नीचे पीले,ऊपर हरे और लम्बे निकले तो साल शुरुआत अच्छी नहीं होगी बाद में अच्छी रहेगी ऐसा माना जाता है। जवारेअगर नीचे पीले और काले जैसे नीकले तो पूरा साल खराब जाएगा ऐसा माना जाता है और माँ हमसे नाराज है  ऐसा माना जाता है।















 

घर मे माँ के स्थापन के बाद, दस दिन माँ को धुप, अगरबत्ती, दीपक नियमित करना पड़ता है। शाम को माँ की आरती घर के सभी व्यक्ति मिलकर करनी पड़ती है। रजस्वाला वाली  स्त्री  पास नहीं जानी चाहिए। इत्र छिड़क कर वातावरण सुगंधी रखना चाहिए।

नवरात्री की आठम को हरेक के घर मे नैवेध किया जाता है। नैवेध मे बननेवाली वानगी कुटुंब के कुलदेवी के मुताबित होती है  मुताबित अलग होती है। पहले उस नैवेध माँ को धराया जाता है। बाद में ही सब को खाना होता है।    धराय जाता है। बाद में हीज्यादातर  सब को खाना होता है।

नवरात्री समाप्त होने पर दशहरा के दिन माँ के स्थापन का उस्थापन किया जाता है। माँ के ज्वारा, पूजा की सामग्री , अक्षत, कलश मे रखी हुई वस्तु आदी को पानी में प्रवाहित किया जाता है। पूजा स्थापन की बची हुई कोई भी सामग्री हो उसे भी पानी में प्रवाहित किया जाता है।

 पोस्ट जरूर पढ़े: १ ब्लड प्रेशर / रक्त चाप  २. मधुमेह  ३. आंवला /आमला, ४ . सोंठ (सूखा अदरक) 

                                                           नवरात्री जाहीर में कैसे मनाते है।                                                                                                                                                                                            Navratri Garba, By Hardik Jadeja, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CCBY 3.0                                                                                    Arial View of Garba Mahotsav JPG, By Unted Way of Baroda, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

नवरात्री जाहिर में मनाने के लिए एक मंडल की स्थापना की जाती है। मंडल एक इलाका मिलकर बनाते है। पुरे इलाके के हरेक घर से चन्दा इकठा किया जाता है। उस पैसे से माताजी के लिए मंडप बांधा जाता है। जिसे "गरबी" कहा जाता है। मंडप में माताजी का स्थापन ब्राह्मण द्वारा जाता है। एक मिटटी का घडा जिसमे कही छेद होता है, उसे "गरबा" कहते है। मंडप में एक गरबा का स्थापन किया जाता है उसमे दस दिन तक अखंड दीपक जलाया जाता है। 

हररोज शाम को मंडप में सब जमा होकर माताजी की आरती और स्तुति करते है और ब्राह्मण माताजी का पूजापाठ करता है। प्रसाद बाटा जाता है।  फिर सब जमा होकर मंडप में डांडिया खेलते है। ये डांडिया करीब १० बजेसे १ बजे तक चलता है।  

अब एक नया ट्रेंड चालू हुआ है। डांडिया के साथ म्यूजिक पार्टी को बुलाया जाता है। म्यूजिक की धून पर डांडिया रास किया जाता है। अच्छे खिलाड़ी को इनाम दिया जाता है। जवान लड़के लडकिया नए फेशनेबल वस्त्र पहनते है। पैसेवाले मंडल में सेलिब्रिटी को भी बुलाया जाता है।

दशहरा के दिन पूरी रात कार्यक्रम चलता है। अंतिम कार्यक्रम को अच्छे खिलाड़ी को इनाम दिए जाते है।

                                                    नवरात्री के हरेक दिन की महिमा

१. माँ शैलपुत्री: देवी सती के पिताने यज्ञ में अपने जमाई याने देवी के पति शिवजी को आमंत्रण नहीं दिया बाकि सबको  आमंत्रित  किया। इसलिए देवी सतीने योग अग्नि से प्राण त्याग दिया। दुसरा जन्म हिमालय के राजा शैलराज  के घर हुआ। इसलिए उसे शैलपुत्री भी कहा जाता था। वह नंदी पर सवारी करती है। शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल और दुसरे  हाथ में कवल होता है। नवरात्री के पहले दिन माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है। 

                                                                       
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 २. माँ ब्र्हम्चारिणी: नारदजी के बताए उपाय से, शैलपुत्री ने शिवजी को पाने के लिए १००० साल तपस्या की। धरती पर रहकर सिर्फ फल, फुल खाकर तप किया। कही वर्षो तक कुछ भी नहीं खाया। इतना कठिन तप करने पर उन्हें ब्र्हम्चारिणी कहा गया। उनका कोई भी वाहन नहीं है। उनके एक हाथ में कमंडल और एक हाथ में जप की माला है। नवरात्री के दुसरे  दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।

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 ३.माँ चंद्रघंटा देवी: माता शैलपुत्री की कठोर तपस्या से प्रस्सन होकर शिवजी ने उनसे विवाह किया। इसलिए उनके सर पर भी शिवजी की तरह चन्द्र आ गया। जो घंटे के समान दीखता था। इसलिए देवी को चंद्रघंटा कहा जाता है।माता की सवारी बाघ पर है। माता के हाथो में त्रिशूल, गदा, धनुष, बाण, कमल और कमंडल है। नवरात्री के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। 
                                                                 
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४. माँ कुष्मांडा: पुरानो के अनुसार, माँ कुष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना एक छोटे से अंडे की उष्मा से की  थी। इसलिए माँ के कार्यो के अनुसार, लोग माँ को लोग कुष्मांडा के नाम से बुलाने लगे। "क" माने "छोटा" उष्मा याने उष्मा और अंडा माने अंडा, तीनो को मिलाने पर क+उष्मा +अंडा =कुष्मांडा। माँ की सवारी बाघ है। माँ की अष्ट भुजा है। माँ के चार हाथो में शस्त्र है। बाकी की चार भुजा मे कमंडल, जाप माला, कमल, अमृत का घडा होता है। नवरात्री के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है। 

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५.माँ स्कंधमाता: कुमार स्कंध जिसे कुमार कार्तिकेय भी कहते है। जो देवता के सेनापति भी थे। देव और असुर के संग्राम में सेनापति थे। स्कंध की माता होने के कारण उसे स्कंध्माता भी कहते है। माँ की सवारी सिंह है और चार भुजा धारी है। माँ की गोद कार्तिकेय बैठे है। नवरात्री के पाचवे दिन माँ स्कन्धमाता की पूजा की जाती है।

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६. माँ कात्यायिनी: महान ऋषि कात्याय ने महा भगवती की अति कठोर तप और उपासना की। ऋषि की इच्छा थी की उनके यहाँ पुत्री का जन्म हो। माता ने ऋषि की तपस्या से प्रस्सन होकर ऋषि के घर जन्म लिया। कात्याय ऋषि के घर जन्म लेनेके कारण कात्यायिनी कहा गया। नवरात्री का छठवा दिन माँ कात्यायिनी की पूजा की जाती है।  

दूसरी कथा अनुसार, जब महिषासुर को मारने के लिए ब्रहमा, विष्णु, महेश और सभी देवता ने मिलकर जब दुर्गा माँ की उत्पति की। उस माँ का दर्शन पहले कात्याय ऋषि ने किया। इसलिए माँ को कात्यायिनी कहा जाता है। चारभुजा धारी माँ की शेर पर सवारी है।  इक हाथ में तलवार ,एक हाथ में कमल,एक हाथ की मुद्रा आशीर्वाद की है। 

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७. माँ कालरात्री: असुरो की ह्त्या करने के बाद जब असुरो का रक्त पृथ्वी पर पड़ता था तो उसमे से अनेक राक्षस की उत्पति होती थी। इसे रोकने के लिए माता ने अपने सुवर्ण से माँ कालरात्री की उत्पति की। जब दुर्गा माँ कोई राक्षस की ह्त्या करती थी , तो माँ कालरात्रि उसका खून धरती पर पड़ने से पहले ही पी जाती थी।  गधा माँ की सवारी है। माँ का रंग काला है। माँ की चार भुजा है। माँ इस रूप में हमेशा लोगो का शुभ ही करती थी, इसलिए माँ को "शुभदे" भी कहा जाता है। नवरात्री  के सातवे दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। 

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८. माँ महागौरी: जब माँ शैलपुत्री में अपने दूसरे जन्म में शिवजी को पाने के लिए १००० साल की तपस्या की जिसमे माँ ने कही दिन के उपवास किये या कई दिन सिर्फ फल और फूल खा के गुजारे। इस कठोर तपस्या से माँ का रंग काला पड गया। इस कालेपन को मिटाने के लिए  माँ ने गंगाजी में स्नान किया और गोरी हो गई। इसलिए उनका नाम महागौरी पड़ा। 

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दूसरी  कथा के मुताबित, जब माँ ने कालरात्रि के रूप में राक्षस का रक्तबीज धरती से गिरने से पहले ही पी  लेती थी ताकि उस रक्तबीज धरती पर न गीरे और नए राक्षस की उत्पति न हो। इसलिए माँ का रंग काला पड गया था। इसलिए माँ ने जब गंगा में स्न्नान किया तो गोरी हो गई इसलिए माँ महागौरी कहलाई।

माँ की सवारी नंदी पर है। उनकी चार भुजा है। एक हाथ में त्रिशूल दूसरे हाथ में डमरू है। नवरात्री  के आठवे दिन  माँ महागौरी की पूजा की जाती है।

९. माँ सिद्धिदात्री: माँ के नाम के अनुसार ही वह सिद्धि को देने वाली है। शिवजी ने भी माँ की तपस्या करके सिद्धि  प्राप्त की थी और शिवजी का आधा शरीर नारी का हो गया था। इसलिए शिवजी को "अर्धनारीश्वर" भी कहा जाता है। माँ कमल पर बिराजमान रहती है। माँ की चार भुजा है। माँ के हाथो में  में कमल शंख, गदा और चक्र है। नवरात्री के नव वे दिन माँ सिद्धदात्री की पूजा की जाती है।

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नवरात्री विविध माँ की पूजा के साथ खत्म होती है। 

                                                      नवरात्री की पौराणिक कथा  

एक पौराणिक कथा के अनुसार, रंभा और करंभा नाम के दो असुर थे। दो भाई के बीच अपार प्रेम था। कमनसीबी की वजह से दोनों के वहा कोई संतान नहीं थी। आखिर थक हार कर दोनो भाई ने अग्नि देव की तपस्या का संकल्प किया। दोनो भाई ने संकल्प किया की दो नो भाई पलक जबकाये बिना, कुछ भी न खाकर,  बिना हीले डुले १००० साल तपस्या करेंगे। मगर करंभा ने और एक संकल्प किया की, यह तपस्या वह पानी के नीचे जाकर करेंगे।

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इस दोनों भाई की तपस्या को देखकर, इंद्र डर गए।  इंद्र को अपना स्वर्ग लोक खतरे में लगा। इसलिए एक दिन इंद्र ने मगरमच्छ का रूप लेकर पानी में तपस्या कर रहे करंभा को मार दिया। इस का एहसास जमीन पर तपस्या कर रहे, रंभा को हो गया। तपस्या के संकल्प से बंधे, रंभा तपस्या में लीन रहने पर मजबूर था।

                                                                          महिषासुर का जन्म  


महिष +असुर =महिषासुर  याने आधा भैसा और आधा असुर.महिषासुर का आधा शारीर भैसे का था. वह बड़ा ही विकराल दीखता था .

रम्भा ने १००० वर्ष की तपस्या का संकल्प पूरा किया। भाई वियोग से दुखी रंभा ने अपनेआप को खत्म करने के लिए तैयार हो गया, तब अग्निदेव ने रोका और वरदान मांग ने को कहा। भाई के शोक में व्याकुल, रंभा ने अग्निदेव से ऐसा शक्तिशाली पुत्र माँगा की, जो इंद्र का वध कर सके।

तब इंद्र ने रंभा असुर के चारोओर एक अग्नि का वलय बनाया और कहा की जो भी नारी या मादा इस अग्नि वलय के बीच में आ जायेगी, वो तुरंत तुम्हारे बच्चे की गर्भवती हो जायेगी। इस वरदान को पाकर असुर रंभा अत्यंत खुश हो गया। वह ख़ुशी के मारे जोर से चिल्लाया। उसकी त्राड से जंगल के सभी प्राणी भागने लगे मगर एक भेस इस अग्नि वलय के बीच आ गई और गर्भवती हो गई। 

इसके बीच एक घटना घटी। सोते हुये रंभा पर और भैस पर एक जंगली भैसे ने हमला किया। इसका प्रहार से रंभा की मौत हो गई और गर्भवती भेस भी मरनेवाली थी। इतने में एक तेज प्रकाश का पुंज भैस के शरीर से बाहर निकला। वो महाकाय राक्षस था उसका आधा शरीर भैसे का था और आधा शरीर असुर का था। इसलिए उसको महिषासुर का नाम दिया गया। वो बड़ा ही विकराल था।.

आते ही उसने १०,००० साल की तपस्या की और ब्रह्माजी को प्रस्सन किया। ब्रह्माजी ने वरदान मांगने को कहा। महिषासुर ने अमरत्व का वरदान माँगा। ब्रह्माजी ने कहा यह वरदान  छोड़ दो, चाहे इसके बदले दो वरदान मांग लो। महिषासुर ने मांगा की मै जब चाहे अपना शरीर बड़ा या छोटा कर सकू।  दुसरा की मेरी मौत किसी नारी के हाथो ही हो। कोई भी मर्द कितना भी शक्तिशाली हो, मुझे नहीं मार सकता। 

ये वरदान मिलते ही, महिषासुर बेकाबू हो गया। पूरी पृथ्वी के राजा का राज्य छीन लिया।  इंद्र का स्वर्गलोक छीन लिया। सभी देवता को परेशान करना आरंभ कर दिया। सभी देवता अपना स्थान छोड़कर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए गए। तब, सब देवता ने इक्ठा होकर लड़ने का निश्चय किया। जब युद्ध चालू हुआ तो पहले इंद्र ने आक्रमक युद्ध करके महिषासुर के शक्तिशाली असुर ताम्बला, विशाला  चिकासुर आदि को मार डाला। इसलिए   महिषासुर ने इंद्र पर प्रहार चालू कर दिया। विष्णु जी के साथ अंधक नाम के असुर ने कई दिन तक युद्ध किया। यमराज त्रिनेत्र असुर के साथ और कुबेरजी महाहनु के साथ कई दिन तक लड़ते रहे। सभी असुर सब देवो पे भारी पड रहे थे।

अब महिषासुर ने धोके से युद्ध जीतने के लिए विष्णुजी के गरुड़ पर प्रहार कर दिया। गरुड़ जब जमीन पर गीर गया तो  विष्णुजी जब गरुड़ के पास आए तो महिषासुर ने धोकेसे विष्णु पर प्रहार कर दिया। मगर गरुड़ ने पूरी ताकत से विष्णुजी को उठाकर युद्ध मैदान से बाहर ले गया और विष्णुजी की जान बचा ली। विष्णुजी को मूर्छित देखकर बाकी देवता रण मैदान छोड़कर भाग गए।

 सिर्फ शिवजी ही सभी असुरो से लड़ते रहे। शिवजी समज गए की ब्रह्मा के वरदानअनुसार, महिषासुर को किसी नारी से ही मरवाना पडेगा। आखिर शिवजी भी युध्ध छोड़कर चले गए। इस प्रकार एक साथ लड़ने बावजूद भी महिषासुर को नहीं हरा सके और हार खानी पड़ी। बड़ा की घमासान युद्ध हुआ जो १०० सालो तक चला।  महिषासुर ने तीन देवो को भी अपना स्थान छोड़कर भागने को मजबूर कर दिया। कहते है की करीब, ३० लाख सालो तक, ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी के साथ सभी देवता महिषासुर से जंगल में छिपते फिरते रहे।

                                                     माँ दुर्गा का प्रागट्य [उत्पति]

                                                      Maa Durga JPG, By Sujit Kumar, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

आखीरकार सभी देवता ने एक नारी की रचना करने का संकल्प किया। सब अपनी शक्ति ब्रह्माण्ड में  एक निश्चित केंद्रबिंदु में जोड़ने लगे। एक दिन जबरजस्त विस्फोट हुआ और माँ दुर्गा जी का  प्रागट्य हुआ। बड़ा ही अलौकिक द्रश्य था। माँ का चहेरा शिवजी के तेज से बना होने के कारण सूर्य की तरह चमक रहा था। माँ  कीआँखे अग्निदेव की शक्ति से, माँ की भवे कामदेव की शक्ति से, माँ के केश यमराज की शक्ति से, माँ के कान वायुदेव की शक्ति से, माँ की नाक कुबेरजी की शक्ति से, माँ के नीचले होठअरुणा की शक्ति से, माँ के ऊपर के होठ कार्तिकेय की शक्ति से,  माँ के दांत यक्ष जी की शक्ति से, माँ के अठारा हाथ विष्णु जी की शक्ति से, माँ के नाखून वायुदेव की शक्ति से  बने थे। माँ की उचाई पर्वत समान थी। 

माँ ने तारो के देवता की बनाई हुई लाल कलर की तारो के समान चमकदार साडी पहनी थी। विश्वकर्मा ने माँ के लिए आभूषण बनाए और वरुण देव ने माँ के लिए खुशबूदार कमल के फुल बनाए। पर्वतो के राजा हिमावत ने मा के लिए सोने के रंगवाला और चमकदार शेर बनाया। शेर की त्राड से पूरा ब्रह्मांड काप गया।  माँ का स्वरुप देखते की लगता था की महिषासुर के दिन पुरे हो गए है। 

अब माँ को अस्त्र शस्त्र से सजाया गया। विष्णुजी ने अपना सुदर्शन चक्र, वायुदेव ने अखूट धनुष बाण, अग्नि देव ने प्रहार करनेवाले शास्त्र, वॉन देव ने शंख और पानी को बाँधने वाली रस्सी, विश्वकर्मा ने माँ के लिए युध्ध में पहन ने के लिए कवच तथा कुल्हाड़ी, महादेवजी अपना त्रिशूल, यमराज ने योजनो दूर से ही फासी दे सके ऐसा फंदा, कुबेरजी ने रतोका बना हुआ प्याला, ब्रह्माजी गंगाजल भरा हुआ ताम्बे का लोटा,और इंद्र ने कही पर भी बिजली गिरा सके ऐसा हतियार और सूर्यदेव ने अपनी अपार ऊर्जा शक्ति देकर माँ को युध्ध के लिए तैयार किया।

                                                                     महिसासुर मर्दन                                                           

                                                                                                नव दिन के भयानक युध्ध के बाद माँ दुर्गाजी ने महिषासुर के हरेक रूप को मारकर  देव और दुनिया को महिषासुर के जुल्म से मुक्त करवाया                                                                                  

 सभी देवता ने माँ को महिषासुर की यातना के बारे में बताया तो देवता की लाचारी देखकर माँ को जोर से हसी आ गई। माँ की हसी इतनी प्रबल थी की वह महिषासुर के कानो में पड़ी। जब उसे माँ के बारे मे पत्ता चला की, वह एक अति स्वरुपवान विशालकाय नारी है तो अपने असुरो को भेजकर विवाह का प्रस्ताव भेजा। तब माँ ने असुरो को चेताया की मै पुरे जगत की माँ हु, मेरा जन्म ही महिषासुर के वध के लिए हुआ है। तब महिषासुर सावध को गया।

महिषासुर और असुरो ने माँ के साथ कैसे युद्ध किया जाय उसकी रणनीति तैयार की। महिषासुर ने पहले माँ से लड़ने के लिए अपने सबसे खुखार असुर दुर्मुख और विष्काल को भेजा। साथ में असुरो की सेनाको भी भेजा। जब सेना ने माँ को घेर लिया तब माँ ने अपने अठारा हाथोसे सभी असुरो को मार दिया साथ में भागते हुए दुर्मुख और विष्काल को भी मोत के हवाले कर दिया।

 महिषासुर को अब समज में आ गया की  मेरा काल के साथ मेरा सामना होने वाला है। अब माँ से लड़ने केलिए दूसरे खुखार असुरो ताम्रा और चिकासुर और विशाल सेना भी भेजी। सब ने फिर से माँ को घेर लिया इस बार माँ ने मारने की बजाय विशाल शंख इतनी जोर से बजाया की सेना सहन न कर सकी और मैदान छोड़कर  भाग ने लगी। माँ ने फिर धनुष उठाकर सिर्फ टंकार किया। उस  टंकार से असुरो युद्धभूमि छोड़कर भागने लगे। माँ ने फ़ारसी से ताम्रा और धनुष से चिकासुर को मार डाला। अब महिषासुर को अपना काल दिखने लगा। 

इस युद्ध से बचने के लिए महिषासुर राजा की तरह सजकर माँ के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर गया। बहोत सारे हीरा जवाहरात का प्रलोभन भी दिया। माँ ने फिर कहा के मै जगत की माँ हु और तेरा वध करने आई हु। 

बात सुनकर महिषासुर, माँ के उपर अग्निबाण चलाने लगा। बाकी असुरो ने माँ को घेरकर भाला और चुभिले हथियार से माँ को घायल करने लगे। क्रोधीत होकर माँ ने अपने अठारा हाथो से एक ही वार में असुरो को जख्मी कर दिया। महिषासुर को विष्णु की गदा का ऐसा प्रहार किया की चक्कर खाकर गिर गया। फिर तुरंत ही उठकर माँ के ऊपर प्रहार करने वाला था की माँ के शेर ने उसे अपने पंजे महिसासुर को घायल कर दिया। 

महिषासुर वरदान से कोई भी रूप बदल सकता था, उसने शेर के सामने शेर का रूप लेकर लड़ने लगा। तब माँ  जहरीले बाणों से उसे घायल कर दिया। अपनी मौत को सामने देखकर, क्रोधित होकर शेर से हाथी का रूप लेकर विशाल शिला फेकने लगा। तो माँ ने उस शिला को फूल बना दिया। तो महिषासुर विशालकाय पक्षी बन गया और माँ को घायल करने के लिए झपड़ मारने केलिए माँ की और उड़ा तो ने उनके पंख काट दिए। तो वो फिर अपने मूल रूप में आ गया और माँ को अपने शींग से प्रहार करने लगा। अब माँ भी क्रोधीत हो उठी और माँ ने महादेवजी के  त्रिशूल से महिषासुर की छाती को छेद दिया और उसका सर काट दिया।

                                                                     नवरात्री का त्यौहार 

                                                                                                             DandiyaJPG, Biswasmegha ,  JPG image compressed and resized , source is licensed under CC BY-SA 4.                                                                                               Traditional dress for Garba dance, Navratri festival Celebration JPG , By Sudhamshu Hebbar, Source is licensed under CC BY 2.0

इस  प्रकार महिषासुर ने युद्ध में इतनी बार अपना शरीर बदला की एक मिशाल कायम कर दी। माँ और महिषासुर का ये युद्ध नव दिन चला। इसलिए नवरात्री का त्योहार नव दिनहोता है। दसवा दिन माँ की महिसासुर के ऊपर विजय का दिन "दशहरा" के नाम से मनाया जाता है। उस दिन माँ ने मनुष्यो और देवताओ को असुरो से मुक्ति दिलाई थी। दशहरा के दिन हर घरमे मिठाई आती है। ज्यादातर जलेबी खाई जाती है। इस विजय का दिन हरेक हिन्दू पूरी रात रास गरबा खेलते है जिसमे माताजी की स्तुति की जाती है। पुरे देश में जश्न का माहौल होता है। इसलिए नव दिन जब माँ महिषासुर से लड़ रही थी वह नव दिन माताजी की पूजा प्राथना और हवन में बीताते है। उपवास रखते है। इसलिए माँ के इस महिषासुर मर्दन के नव दिन को "नवरात्री" कहा जाता है। 


आगे का पढ़े :  १. दशहरा  & करवा चौथ

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