देव दीपावली २०२४
Dev Diwali of varanasi, By Pritiwary, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0 Festival of Diya Dev-Diwali, By Pritiwary, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0
अनुच्छेद/पेरेग्राफ | शीर्षक |
---|---|
१. | देव दीपावली, देव दिवाली, त्रिपुरारी पूर्णिमा, कारतकी पूर्णिमा, प्रकाश पर्व |
२. | देव दीपावली कब है? |
३. | गणेशजी, महादेवजी,विष्णुजी,शालिग्राम और तुलसी की पूजा |
४. | पांच दीप का दान |
5. | गंगा स्नान और गंगा आरती |
6. | देव दीपावली से जुडी पौराणिक कथा |
7. | विष्णुजी और तुलसीजी की कथा |
देव दीपावली कब है?
देव दीपावली कार्तिक माह की पूर्णिमा को आती है। जो इस साल शुक्रवार, १५ नवम्बर २०२४ को आती है।
देव दीपावली याने पूर्णिमा तिथि प्रारंभ शुक्रवार, १५ नवम्बर २०२४ प्रात:काल को ०६: १९ मिनट से होगा। देव दीपावली याने पूर्णिमा तिथि की समाप्ति शनिवार, १६ नवम्बर २०२४ सुबह को ०२:५८ मिनट को होगी।
प्रदोष काल का मुहूर्त: १५ नवम्बर २०२४ , शुक्रवार शाम ०५:१० से शाम ७:४७ को होगा। प्रदोष काल की अवधि २ घंटा और ३७ मिनट की होगी
गणेशजी, महादेवजी,विष्णुजी,शालिग्राम और तुलसी की पूजा
इस दिन हो सके तो, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा नदी में स्नान करना चाहिए। नदी में स्नान के बाद एक दिप भी जलाना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान का अधिक महत्त्व है। अगर गंगा स्नान शक्य न हो तो, गंगा जल में घरका पानी मिलाकर स्नान करना चाहिए। इस दिन प्रथम देव गणेशजी पूजा करनी चाहिए।



देव दीपावली में सबसे पहले, देव गणेशजी को फुलों का आसन बनाकर मूर्ति स्थापित करते है। देव गणेशजी को पंचामृत और गंगा जल से स्नान करवाते है। धूप, दिप, अगरबत्ती प्रज्वलित करके अबिल, गुलाल और सिन्दूर लगाते है। गणेशजी को दूर्वा, जसुद के फूल और लाडू का नैवेध समर्पित करते है।
देव दीपावली के दिन महादेवजी ने तारकासुर के वंश का वध करके देवताओ को उससे मुक्त करवाया था। इसलिए महादेवजी की भी पूजा की जाती है। महादेव के शिवलिंग को गंगा जल से अभिषेक करके, धुप दिप अगरबत्ती प्रज्वलित करके, अबिल गुलाल बिलीपत्र चढ़ाते है। उसके बाद नैवेध समर्पित करते है।
देव दीपावली के दिन विष्णुजी के प्रतिक शालिग्राम और तुलसीजी की पूजा की जाती है। इस दिन विष्णु देव की पूजा में उनका स्थापन करके, पंचामृत और गंगाजल से स्नान करवाया जाता है। नए पिले वस्त्र पहनाये जाते है। धुप दिप अगरबत्ती करके अबिल, गुलाल और पिले फूल चढ़ाये जाते है। तुलसी के पान, आवला और नैवेद्यम अर्पित करते है।
इस प्रकार श्री गणपतिजी, महादेवजी, विष्णुजी और तुलसीजी को स्थापित करके सब की आरती की जाती है। इस दिन तुलसी जी की पूजा सुबह और शाम दो बार की जाती है। इस दिन दिप दान का अधिक महत्त्व होता है। पांच दिप का दान किया जाता है।
पांच दीप का दान
देव दीपावली के प्रथम दिप दान, नदी स्नान के बाद, नदी को दिप दान किया जाता है। कहते है इससे कुम्भ स्नान का पुण्य मिलता है। दुसरा दिप दान मंदिर में भगवान् को किया जाता है। तीसरा दिप दान पीपल पेड़ के नीचे करने से लक्ष्मीजी कृपा होती है, चौथा दिप दान तुलसी जी को किया जाता है जिस से घरके सभी का स्वास्थय अच्छा रहता है। पांचवा दिप घरके सभी सभ्य के सर से उलटा घुमाकर चौराहे पे रखा जाता है। इस से घर की नकारात्मक्ता दूर होती है।
गंगा स्नान और गंगा आरती

देव दीपावली के दिन, दशाश्वमेघ घाट पे शाम के वक्त गंगा आरती होती है। दूर दूर से लोग आरती में शामिल होने आते है। घाट के ऊपर दिप प्रजलित करते है। कही लोग बांस का मंडप बना कर आकाश दिप भी करते है। इस दिन घाट के ऊपर सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य, गणेश वन्दना और रामायण का पाठन भी किया जाता है। घाटों के ऊपर प्रज्वलित कि गई दिपमाला और आकाश दिप के दृश्य से मानो धरती स्वर्ग समान दिखती है।
देव दीपावली से जुडी पौराणिक कथा

तब सब देवतागण विष्णुजी के पास उपाय के लिए गए। विष्णुजी ने एक मायावी पुरुष की रचना करके असुरो के बीच भेजा। उस मायावी ने असुरो को हवं पूजा छुड़ाने के लिए समझाया की यह सब मिथ्या है। इस हवन, पूजा, वेद पुराणों से कोई लाभ नहीं। स्वर्ग नर्क जैसा कुछ नहीं है। अपने अच्छे समय में आनंद कर लो वही जीवन है। आनंद प्रमोद, व्यसन, नृत्य, गणिका इन सब में ही आनंद है। मौज मज़ा ही असल ज़िंदगी है। इस प्रकार असुरो को भोग विलाश ने डालकर कमजोर कर दिया।
फिर कार्तिक पूनम के दिन महादेवजी ने मौक़ा देखकर तीनो का अपने एक ही वार से संहार कर दिया। इस तरह महादेवजी ने तारकासुर का वंश का अंत कर दिया। देवताओ को अपना स्वर्ग वापस मिल गया और इस खुसी में देवताओ ने दिप प्रज्वलित करके दीपावली मनाई। तब से आज तक पृथ्वीवासी भी इस दिन को देव दीपावली के रूप में देवताओ साथ मनाने लगे।
विष्णुजी और तुलसीजी की कथा

Dev Dipavali's image represents, Marriage of Tulsi - Shaligram.. tulsi was vrunda and shaligram was vishnu before the crush was given by vrunda to Vishnu.
आगे का पढ़े: १. कुंभ मेला २. तीर्थंकर पार्श्वनाथ
PS. These images are taken from the internet, no copyright is intended from this page. If you are the owner of these pictures kindly e-mail us we will give you the due credit or delete it.
Please do not enter any spam link in the comment box. ConversionConversion EmoticonEmoticon