छठ पूजा २०२४ में कब है?

                                                           छठ पूजा २०२४ में कब है? 

                                                                                                                       Suryanarayan - swaminarayan temple, By Bhargavinf, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0                                                                                   Katyayani Sanghsri 2010 Amah Dutta, By Jonoikobangali, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

अनुच्छेद/पेरेग्राफ शीर्षक
१. छठ्ठ पूजा, छठ्ठी मैया, कात्यानी देवी
२. छठ पूजा की शुरुआत और समाप्ति
३. छठ्ठ पूजा का पहला दिन "नहाय खाय"
४. छठ्ठ पूजा का दूसरा दिन "खरना"
5. छठ्ठ पूजा का तीसरा का दिन "साय काल का अर्ध्य"
6. छठ्ठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन "उषा का अर्ध्य"
७. छठ्ठ पूजा से जुडी पौराणिक कथा
८. छठ्ठ पूजा से जुडी विशेष जानकारी
हिन्दू धर्म के पांच दिन के दिवाली महापर्व की समाप्ति के बाद छठ्ठ पूजा का त्यौहार आता है। यह त्यौहार सूर्यदेव को समर्पित है। सूर्यदेव पुरे विश्व के लिए ऊर्जा के श्रोत है। इसलिए यह दिन सूर्यदेव की उपासना करते है। इस दिन माँ दुर्गा का छठा स्वरुप छठ्ठी मैया का है। नवरात्रि में माँ के छठे स्वरुप कात्यानी देवी का है। इस दिन छठ्ठी मैया या ने की कात्यानी देवी की पूजा करते है।

यह त्यौहार ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता था। इस प्रदेश के लोग अपनी जीविका कमाने के लिए देश के विभिन्न भाग में गए और कही लोग विदेश भी आजीविका के लिए गए। इन लोगो के साथ ये त्यौहार धीरे धीरे पुरे भारत से होकर विदेश में भी मनाया जाने लगा।

विज्ञान के अनुसार, इस छठ्ठ की तिथि को सूर्य के अल्ट्रा वायोलेट किरण पृथ्वी पर सामान्य से ज्यादा मात्रा में आते है। जो हमारे स्वास्थय के लिए बहुत ही हानिकारक होते है। इस किरणों के नुकशान से बचाने के लिए यह महापर्व मनाया जाता है। इसलिए हमें सब व्रतधारी का आभारी होना चाहिए। 

छठ्ठ पूजा का महा पर्व साल में दो बार आता है। पहला कार्तिक सूद चतुर्थी से सप्तमी तक और दूसरा चैत माह में आता है। यह त्यौहार पुरुष और महिला दोनों द्वारा मनाया जाता है। फिर भी ज्यादातर यह व्रत महिलाये द्वारा किया जाता है। यह त्योहार चार दिन चलता है। पहला दिन "नहाय खाय" दूसरा दिन खरना या लोहंडा, तीसरा दिन "सांय काल अर्ध्य" और चौथा दिन "सुबह का अर्ध्य" के  मनाया जाता है। 

                                                छठ पूजा की शुरुआत और समाप्ति

इस साल यह छठ्ठ पूजा का पर्व कार्तिक माह की शुकल पक्ष की चतुर्थी याने ०५/११/२०२४ , मंगलवार  से कार्तिक माह की शुकल पक्ष की सप्तमी, याने ०८/ ११/२०२४, शुक्रवार तक मनाया जाएगा। 

इस साल इस साल कार्तिक माह की शुकल पक्ष की चतुर्थी याने ०५/११/२०२४ , मंगलवार  को "नहाय खाय" मनाया जाएगा। इस दिन सूर्योदय ६:३८ मिनट पर होगा। वही सूर्यास्त शाम ५:४२ मिनट्स को होगा। 

इस साल इस साल कार्तिक माह की शुकल पक्ष की पंचमी याने ०६/११/२०२४, बुधवार को "खरना" या "लोहंडा" मनाया जाएगा। इस दिन सूर्योदय ६:३९ मिनट पर होगा। वही सूर्यास्त शाम ५:४१ मिनट्स को होगा।  

इस साल छठ पूजा कार्तिक माह की शुकल पक्ष की षष्टी याने०७ /११/२०२४, गुरुवार को "संध्या अर्ध्यमनाया जाएगा। षष्ठी के दिन सूर्योदय ६:३९ मिनट पर होगा। वही सूर्यास्त शाम ५:४१ मिनट्स को होगा। याने षष्ठी का संध्या अर्ध्य गुरुवार शाम ०५:४१ को दिया जाएगा ।                                                                                                                                                                      षष्ठी तिथि का प्रारंभ ०६/११/२०२४ बुधवार मध्य रात्रि १२:४२ मिनट को होगा।                          षष्ठी तिथि की समाप्ति ०७/११/२०२४ गुरुवार मध्य रात्रि १२:३४ मिनट को होगी। 

इस साल इस साल कार्तिक माह की शुकल पक्ष की सप्तमी याने ०८/११/२०२४ ,शुक्रवार को "उषा अर्ध्य" मनाया जाएगा। इस दिन सूर्योदय ०६:४० मिनट्स पर होगा।  

                                                             छठ्ठ पूजा का पहला दिन "नहाय खाय" 

                                                         Holy Bathe in Ganges - Chhath Puja ceremony, Baja Kadamtala Ghat - Kolkata 2013-11-09 4286, By Biswarup Ganguly, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 3.0                                                                                                                                                                                                                                                                        Litti Chokha, By Amrita Nityanand Singh, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

छठ पूजा का यह पहला दिन है। इस दिन से व्रत की शुरुआत की जाती है। इस दिन पुरे घर की साफ सफाई की जाती है। जिस कमरे में पूजा होती है इसे विशेष साफ़ किया जाता है। यह त्यौहार में पवित्रता का ख़ास  महत्त्व होता है। इसलिए पुरे घर की सफाई की जाती है। जिसे भी व्रत करना हो वह प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करके और नाख़ून काटके अपने कुलदेवी का स्मरण या माला करके गांव की नदी और तालाब में जाते है। इस दिन नए वस्त्र ही धारण करते है। तालाब या नदी के अंदर जाकर लोटे में गंगा जल, लाल पुष्प और रोली डालकर सूर्यदेव को अर्ध्य देते है। साथ में छठ्ठी मैया के व्रत का संकल्प करते है। 

इस दिन खानेमे नमक और चिन्नी वर्जित है। पूरा खाना सेंधा नमक और गुड़ से बनाया जाता है। इस दिन खाने में कद्दू की सब्जी, चावल और चने की दाल बनाई जाती है।कही जगह पर लौकी की सब्जी और पकोड़ा भी बनाते है। उस दिन लहसुन और प्याज  नहीं खाते है। पूरा अनाज, सब्जी, घी और तेल, बाज़ार से नया लाया जाता है।  पूरा शाकाहारी भोजन बनता है। पूरा भोजन शुद्ध घी में बनाया जाता है। व्रतधारी महिला सफ़ेद और काले कपडे नहीं पहनते है। ज्यादातर लाल हरे ऐसे रंग के वस्त्र ही पहनते है। पुरुष सफ़ेद धोती की बजाय पिली धोती पहनते है। स्त्रियाँ अपनी साडी, बलाउज और चुडिया भी बदल लेती है। 

इस दिन व्रतधारी के लिए खाना चाय आदि अलग से बनाया जाता है। पुरे दिन व्रतधारी गुड़ की चाय पी सकते है।व्रतधारी का खाना अलग पकाया जाता है। पकाने का सामान जैसे की सब्जी, चनेकी दाल, चावल, सेंघा नमक और मसाले सभी बाज़ार से नए लाये जाते है। चाय की सामग्री भी नयी लायी जाती है। 

                                          छठ्ठ पूजा का दूसरा दिन "खरना" 

                                                                                                  Chhat puja scene from a village, By Sakshichitra, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                                 Chhath puja sceneVartis stand in water offering the holy offering to surya, By Sakshichitra, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

कार्तिक शुकल पक्ष की पंचमी को खरना दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन निर्जला उपवास किया जाता है।  शाम को स्नान करके नए वस्त्र पहनने होते है। जल के लोटे में गंगा जल, रोली और पुष्प डाले। शाम को सूर्यास्त के पहले सूर्य देव को अर्ध्य दे। ऐसा कहा जाता है की सूर्य को अर्ध्य देने के साथ में घर मे छठ्ठी मैया का प्रवेश होता है।

उस दिन प्रसाद में रोटी और गुड़ की खीर बनाया जाता है। रोटी शुद्ध घी में ही बनाये। प्रसाद का सामान पूरा नया लाया जाता है। प्रसाद अलग जगह पर पूरी शुद्धता के साथ बनाया जाता है। प्रसाद को मिटटी के बर्तन में ही पकाया जाता है। रोटी के ऊपर शुद्ध घी लगाया जाता है। इस प्रसाद को पहले छठ्ठी मैया को अर्पित कीया जाता है। बाद में ये प्रसाद व्रतधारी भी खा सकते है। इस प्रसाद घर में सभी को बाटा जाता है। प्रसाद में केला और गन्ने जरूर रखा जाता है।  

सूर्य देव को अर्ध्य देने के बाद, प्रसाद ग्रहण किया जाता है| पूजा के नए वस्त्र उतार के पानी से धोकर सूखा देना, क्योकि फिर पूजा और प्रसाद के समय आपको पहनना है। 

                                   छठ्ठ पूजा का तीसरा का दिन "सायकाल का अर्ध्य"  

                                                   Chhath - Puja - Bihar, By Cpjha 13, [mage compressed and resized, Source, is licensed under CC BA-SA 4.0

इस दिन कार्तिक माह के शुकल पक्ष की छठ्ठी को मनाया जाता है। इस दिन व्रतधारी को पुरे दिन निर्जला उपवास करना होता है। इस दिन सूर्य देव को शाम के समय अर्ध्य देना होता है। इस दिन प्रसाद में चावल के लड्डू और ठेकुआ यानी खस्ता बनाया जाता है। एक कलसूप में कमसे काम ५ लड्डू और कठुआ रखा जाता है। जो भी प्रसाद या फल हो उस पर थोडा एपन लगाया जाता है। 

Coming With Prasad - Chhath Festival - Strand Road - Kolkata - 2013 -11-09 4211, By Biswarup Ganguly, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 3.0

अब प्रसाद में नारियेल, मोसम्बी, सेब, जमरुख, अनानस, आवला, सिंघाड़ा, अनार, लिम्बु, मूली, कढ़ी पत्ता पान, आदि को धो कर रखे। सब पर एपन लगाए। पूजा के लिए हल्दी और चौरेठा मिलाकर बनाया हुआ एपन, सिन्दूर, किसमिस, बड़ी इलाइची, छोटी इलायची, कपूर, सुपारी, लॉन्ग, अगरबत्ती, रुई आदि रखे। लोटा, दिया, प्रसाद, सारे फल, और पूजा की सामग्री कम से कम दो कलसूप में रखे। इस कलसूप को भी धो कर रखे। कलसूप में हाथ का पंजा एपन में डुबोकर लगाए। कलसूप तीन, पांच और सात अपनी अपनी पूजा के सामान के अनसार लेते है। सब कलसूप को एक टोकरे में भरके ऊपर पीला वस्त्र ओढ़ाकर सर पर रखकर नदी पर लेके जाना है। इस पुरे टोकरे को "डालदौरा" कहते है।

शाम के वक्त, पूजा के नए वस्त्र पहनकर, इस डालदौरे को सर पर उठाकर नदी या तालाब के घाट या किनारे पे जाते है।  बिहार में नाक से लेकर मस्तिक तक सिन्दूर लगाकर, हाथ में एपन लगाकर पानी में डुबकी लगाते है। सूर्य देव को हाथ जोड़कर "ॐ सूर्याय नमः" का जाप  करते है। जब सूर्य देव अस्त होने लगे तो पानी में गंगाजल मिलाकर व्रतधारी अर्ध्य देते है और इच्छा अनुसार प्रदक्षिणा करते है। इस डालदौरे में से कलसूप नीकालकर उसमे दिया जलाते है। इस तरह सब कलसूप में दिया जलाकर व्रतधारी सूर्यदेव को दिखाते है। इस विधि के बाद, सूर्यदेव से भूलचूक के लिए क्षमाँ मांगकर पानी में से बाहर आ जाते है। और पूरा सामान लेकर घर जाते है

                                               Chhath Puja at naruwa 03, By Bijay Shah, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

घर में अपने पुत्र के स्वास्थ्य के लिए "कोशी भरना" की विधि करते है। इसमें ३, ५ या ७ गन्ने को एक साथ खड़ा करके उसके निचे पूरा पूजा का सामान रखकर पूजा करते है।अब कलसूप में रखे हुए फल और ठेकुआ निकाल कर नए फल और ठेकुआ रखा जाता है। इस नए बनाये गए कलसूप को फिर टोकरे में भरकर उसके ऊपर पीला कपड़ा बाँधकर "डालदौरा"तैयार किया जाता है। इस तरह तीसरे दिन की तैयारी की जाती है। 

                                       छठ्ठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन "उषा का अर्ध्य"  

                    People_Celebrating_Chhath_on_2nd Day_ Morning_Around the pond, By Abhishek jsr 2 at English Wikipedia, image compress and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0                                                                                                                                                                                                                                                                                              CHHATH POOJA , By Seema Jitendra, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY -SA 4.0 

छठ्ठ पूजा के अंतिम दिन, घरके सभी सभ्य सुबह ४ बजे उठकर स्नान आदि करके घाट या नदी के किनारे जाने के लिए तैयार हो जाते है। नए वस्त्र पहनकर व्रतधारी डालदौरा सर पर लेकर घाट पर जाते है। व्रतधारी साथ में सूर्यदेव को अर्ध्य देने के लिए दूध से भरा हुआ लोटा लेते है। व्रतधारी पानी में डुबकी लगाकर सूर्योदय तक पानी में ही खड़े रहते है। पानी में हाथ जोड़कर "ॐ सूर्याय नमः" का जाप करते है।

सूर्योदय होते ही, व्रतधारी दूध से सूर्यदेव को अर्ध्य देते है। कलसूप में दिया जलाकर सूर्यदेव को अर्पण करते है। जितने भी कलसूप है वह अर्पण करके जल से बहार आते है। अब नदी किनारे गोबर के उपले से सूर्यदेव का हवन करके पूजा की समाप्ति करते है।

अब छठ्ठ पूजा पारण करते है। पारण में सबसे पहले प्रसाद खाते है। बिहार और कही जगह पर सबसे पहले अदरक, घी और गुड़ का काढ़ा पिते है ताकि उपवास की वजह से एसिडिटी की तकलीफ न हो। घाट पर ही एकदूजे को प्रसाद देकर व्रत की पूर्ति करते है। इस प्रकार चार दिन के महाव्रत की समाप्त होता है। 

                                                छठ्ठ पूजा से जुडी पौराणिक कथा 

 Katyayani Sanghsri 2010 Amah Dutta, By Jonoikobangali, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंत को कोई संतान नहीं थी। इसलिए महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किया। राजा प्रियवंत की पत्नी को यज्ञ की आहुति के लिए बनाई हुई खीर खाने के लिए दी। मालिनी ने यह खीर खाई और इन्हे दुर्भायवश मृत पुत्र को जन्म दिया। इस प्रसंग से राजा प्रियवंत बहुत ही दुखी हुआ। उसने श्मशान में ही अपने प्राण त्याग देने की तयारी करने लगे। 

उस वक़्त इस सृष्टि की छठ्ठी अंश में जन्म लेनेवाली देवसेना, जिसे छठ्ठी भी कहते है वह देवी प्रगट हुई। देवी ने राजा को छठ्ठ पूजा और  व्रत करने को कहा। राजा ने यह व्रत और पूजा कार्तिक माह के शुकल पक्ष की छठ्ठी को किया था। जिस से राजा के वहा पुत्र जन्म हुआ। तब से राजा और उसकी प्रजा दोनों में यह छठ्ठ पूजा के व्रत करने की प्रथा शुरू हुए। 

                                              छठ्ठ पूजा से जुडी विशेष जानकारी 

छठ्ठ पूजा दुनिया की एक मात्र व्रत पूजा है जो,जैसे पौराणिक काल में होती थी वैसे ही आज भी होती है, उसकी पूजा में समय के साथ कोई परिवर्तन नहीं हुआ। यह दुनिया की एक मात्रा पूजा है जिसमे नमक और चीनी वर्जित है। इसका प्रसाद सेंधा नमक और गुड़ या गन्ने के रस से बनाया जाता है। इस पूजा का प्रसाद आज भी मिटटी के बर्तन में बनाया जाता है। 

इस व्रत और पूजा को, पुत्र प्राप्ति के लिए और संतान के अच्छे स्वास्थ्य के लिए करते है। इस व्रत की सामग्री से पहले व्रतधारी पूजा स्थान पर नहीं जाता। पहले पजा सामग्री को ही पहुंचाया जाता है। इस के व्रतधारी, चाहे वो राजा हो या रंक को सभी सुख वैभव का त्याग करना होता है। उसे बिना सिलाई किये हुए कम्बल या चद्दर पर ही सोना पड़ता है। छठ्ठ पूजा करनेवाली महिला को "व्रती" या "पर्वतीन" भी कहां जाता है।             

    

आगे का पढ़े :  १. देव दीपावली  २. कुंभ मेला

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1 comments:

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बेनामी
admin
18 नवंबर 2020 को 10:53 pm बजे ×

Good Information, keep providing such information 👌👍🏻

Congrats bro बेनामी you got PERTAMAX...! hehehehe...
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