१५ ऑगस्ट १९४७ स्वतंत्रता दिवस

                                                  १५ ऑगस्ट १९४७ स्वतंत्रता दिवस 
                                                                                                                     Indian-flag-photos-HD-wallpapers-download-free-696x447,Savory crowded, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.


नंबरशीर्षक
१.१५ अगस्त कैसे मनाया जाता है?
२.देश के तिरंगे ध्वज को बनाने और लहराने के नियम
३.१५ अगस्त क्यों मनाया जाता है औका इतना महत्रत्व क्यों है?
४.१८५७ का पहला विद्रोह
५.गांधीजी का आगमन
६.जलियावाला बाग़ हत्याकांड
७.भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी
८.सुभाषचंद बोस
९.दांडी कुच
१०.भारत छोडो आन्दोलन

१५ ऑगस्ट १९४७ के दिन भारत ब्रिटिश राज की करीब २०० साल की गुलामी से आज़ाद हुआ था। २०० साल की गुलामी में ब्रिटिश राज ने अत्याचार, अन्याय और दमन किया। जिसमे अनेक मातृभूमि के भक्तो ने बलिदान दिए। जिसमे माताओ और बहनों ने भी अपना योगदान दिया। भारत के सभी टपके के लोगो ने कंधे से कन्धा मिलाकर जी जान लगा दी थी। इसलिए यह दिन बहोत ही महत्त्व का है। भारत की हर एक कौम, जाती, धर्म, गरीब और अमीर सभी ख़ुशी ख़ुशी यह दिन मनाता है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत आज़ादी का ७८ वा  साल मना रहा है। 
 
                                                          १५ ऑगस्ट कैसे मनाया जाता है? 

                                                                            Prime Minister Narendra modi's address to the nation on independence day,, By Prime minister'office,government of India, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 2.                                                                                                                                                                                                        15th august 3 flag hosting ceremony of independence day in Bhuj, By Prime Minister office, Government of India, image compressed and resized, Source is licensed by CC BY_SA 2.०                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            १५ ऑगस्ट के दिन, सबसे पहले देश के राष्ट्रपति पुरे देश को संबोधित करते है। राष्ट्रपति का संबोधन रेडियो और टीवी के दूरदर्शन चेनल में प्रसारित किया जाता है। जो लगभग सभी प्राइवेट टीवी चेनले भी दिखाती है। प्रधान मंत्री लाल किल्ले पे भारत का राष्ट्र ध्वज तिरंगा लहराते है। फिर देश के प्रधान मंत्री लाल किले से देश को संबोधित करते है। उस दिन कई वि.आई.पी.और सभी राजकीय पक्ष के नेता को आमंत्रित किया जाता है। प्रधान मंत्री के भाषण का पुरे देश को इंतज़ार रहता है। प्रधान मंत्री के भाषण के बाद राष्ट्रगान गाया जाता है। २१ तोपों की सलामी दी जाती है। उसके बाद सशस्त्र बल, अर्ध सशस्त्र बल, एन सी सी कैडेड परेड करती है। परेड को देखना एक सुनहरा अवसर जैसा होता है। 


                                                        
                                                        My School, By Capt. Saravanan, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                               International border at Wagah - evening flag, By Kamran Ali, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

देश के सभी राज्यों में और केन्द्रशासित प्रदेश में राज्यों के मुख्यमंत्री द्वारा ध्वज लहराया जाता है। जब की स्कूल और कोलेज में सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रतियोगिता के लिए स्कूल और कॉलेज को सजाने काम कई सप्ताहों पहले से चालू हो जाता है। उस दिन सभी स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तरों, पोस्ट-ओफ़ीस, बेंक वगेरे बंध होता है। उस दिन कई लोग अपने वस्त्र पर छोटा सा ध्वज लगाते है। बहोत सी शहर की सोसायटी में भी ध्वजारोहण का कार्यक्रम होता है। प्रतियोगिता के साथ इनाम वितरण भी किया जाता है। सब टपके के लोग,अपने तरीके से इसे मनाते है।

                                                       नयी पोस्ट आंवला  /आमला जरूर पढ़े 

                                           देश के तीरंगे ध्वज के बनाने और लहराने के नियम 

                                                                                                                                                                                India-flag-a4g, By Greatthinker2310, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

* ध्वज हंमेशा कोटन सिल्क या खादी का बना होना चाहिए। प्लास्टिक के ध्वज बनाने की अनुमति नहीं है। 

* तिरंगा हंमेशा आयताकार होना चाहिए और उसका अनुपान ३:२ होना चाहिये। अशोक चक्र का कोई माप तय नहीं है मगर २४ तिल्लिया होना जरुरी होता है। 

* कोई भी दूसरा ध्वज तिरंगे से ऊपर या बरोबर नहीं लगाना चाहिए। 

* सरकारी अधिकारी की गाडी पर बराबर मध्य में या दाई और लगाना चाहिए। 

* तिरंगा कभी जुका हुआ नहीं होना चाहिए,केवल राष्ट्रीय शोक के वक्त ही आधा जुकाया जाता है। 

* तिरंगा कभी भी जमींन को छूता हुआ नहीं होना चाहिए। 
   कोई भी जगह और कोई भी स्थिति में तिरंगा कही से फटा  और गंदा नहीं होना चाहिए। 

* तिरंगा का उपयोग कही भी सजावट के लिए या ड्रेस बनाने के लिए करना वर्जित है। 

*  तिरंगे के ऊपर कुछ भी लिखना या बनाना मना है। 

* जब तिरंगा को किसी मंच पे लहराया जाए तो,इस प्रकार लगाया जाए की जब वक्ता का मुह श्रोता के मुह केसामने हो तो तिरंगा वक्ता की दाहिनी और रहे। 

* पहले तिरंगा हंमेशा सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ही लहराना चाहिए | २००९ में,उसे रात्री में भी लहराने की  इजाजत मिली। 

* तिरंगा के केशरिया रंग को हंमेशा उपर ही होना चाहिए,उसे निचे की तरफ रखना मना है। 

* लोगो को अपने घर और ऑफिस में तिरंगा लगाने की इजाजत २२ दिसम्बर २००२ के बाद मिली। 

* शहीद को  तिरंगे में लिपटते वक्त केशरिया रंग सर के पास और हरा रंग पैर के पास रखा जता है और उनके  शरीर को जलाने के वक़्त,तिरंगा निकाल लिया जाता है|फिर एकांत में जलाया जाता है। 

                                १५ ऑगस्ट क्यों मनाया जाता है और इसका इतना महत्व क्यों है?

भारत को गुलाम बनाने के षड्यंत्र की शुरुआत अंग्रेजो ने १६१९ में सूरत के पश्चिम–उत्तर तट पर चौकी बनाकर की थी। पहले ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना की। फिर बोम्बे,कलकत्ता और मद्रास जैसे शहरो में व्यापार के लिए ऑफिसे खोल दी। व्यापार के बहाने,भारत के स्थानिक शासको से अपने संबंध को मजबूत कर दिया। जब अंग्रेजो ने सब शासको को अंदर अंदर लड़ते देखा तो इस परिस्थिति का बेहिसाब फायदा उठाया।    

सब शासको की मज़बूरी का फायदा उठाकर १००/१५० सालो में  अंग्रेजो ने अपना आधिपत्य भारत,पकिस्तान और बांग्लादेश के अधिकांश भागो में स्थापित कर दिया। १८५७ में अंग्रेजो ने बंगाल के अंतिम नवाब को हराया। तब अंग्रेजो की साजिस खुल गई। अंग्रेजो ने यहाँ की प्रजा को लुटना चालू कर दिया था। किसानो को अपनी ज़मींन के अच्छे हिस्से पर इंडिगो की खेती करके कम भाव में अंग्रेजो को देनी पड़ती थी। किसानो से महेसुल इतना वसूल किया जाता था की किसान कर्ज़दार बन गया था। 

आम जनता भी कर वसूली से परेशान थी। पुरे भारत की संपति लूटकर ब्रिटन भेजा जा रहा था। सिपाहियो को भी जबरजस्ती विश्व युध्ध में भेजा जा रहा था। अंग्रेजो की निति से पूरा देश परेशान था। इसलिए पुरे देश में अंग्रेजो के सामने विद्रोह हुआ।

                                                                       १८५७  का पहला विद्रोह 

 
                                          Mangal-Pandey 1460075022-1, By Singh songs, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0 

पहला विद्रोह मंगलपांडे ने किया। मंगल पांडे ने अकेले ही ब्रिटिश ऑफिसरो पे हमला किया। इसलिए मंगल पांडेजी को २९ मार्च १८५७ को बैरकपुर में फांसी दी गई। इस फांसी से सिपाइयो में काफी नाराजगी और रोष फ़ैल गया। तब मीरुत से खबर आई की,जिस कारतूस को सिपाही अपने दातो से खोलते है। उसमे गाय और सुव्वर की चर्बी मिलाई जाती है। तब हिन्दू और मुस्लिम सभी सिपाहिओ ने विरोध किया। अंग्रेजो ने कई सिपाहिओ को १० साल की कैद मे डाल दिया। इसके विरोध में सिपाहिओने जेल पर हमला कर के सभी सजा पाए हुए सिपाहिओ को छुडवा लिया।  इस तरह सिपाहिओ में विद्रोह चालू हो गया।
 
                                                         15 august image represents, Queen of Jansi, Rani Laxmi bai emerge as freedom fighter and martyred for the country.
 
विद्रोह मीरुत से दिल्ली पंहुचा। बहादुर शाह ने देश के सभी राज्यों के शासको को विद्रोह में साथ देने के लिए  विद्रोह सेन्ट्रलइंडिया, बिहार, पंजाब, अवध तक होने लगा। विद्रोह में झासी की रानी, बहादुरशाह, तात्याटोपे, नानासाहेब, कुंवर सिंह,  बेगम हजरत आदि साथ हुए।         

                                                                                                                                                                          British Forces Capture the rebel in 1857 near Kanpur, India, By Utkarsha Mohan, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

महाराष्ट्र,गोवा के किसानो ने भी साथ दिया।|सिपाहिओ के साथ अब किसानो भी जुड़ गए। किसानो को देखकर जनता भी जुड़ गई। विद्रोह ने बड़ा ही विकराल रूप ले लिया। अंग्रेज सरकार भी तनाव में आ गई। मगर सिंध,आधा पंजाब, कश्मीर, नेपाल, हैदराबाद, होलकर और ग्वालियर जैसी रियासत ने जन-आन्दोलन का साथ नहीं। दिया।अंग्रेजो से मिलकर उनसे वफ़ादारी दिखाई। इसलिए अंग्रेजो ने इस आन्दोलन को बुरी तरह कुचल दिया। चंद गद्दारों के कारण आज़ादी का स्वपन अधुरा रह गया।
 

                               Mahatma Gandhi Ashram, By Wizard vishalbhatt, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

इस के बाद,अंग्रेजो ने १३० तक भारत को लुटा। फिर १८८५ में भारत में पहली बार, राजकीय पार्टी का जन्म हुआ। विश्व युध्ध के १९१८ के बाद,अंग्रेजो से स्वराज की मांग की। जब ९ जान्यूआरी १९१५, गांधीजी साऊथ आफ्रिका से भारत वापस लौटे। तब उनकी आयु ४६ साल की थी। आते ही, भारत की सही परिस्थिति को जानने के लिए, पुरे भारत का भ्रमण किया। १९१६ में गांधीजी ने साबरमती आश्रम की स्थापना की। 

                                                                       गांधीजी का आगमन                                                                                               |

                                                PM pays tribute to Sardar Vallabhbhai Patel on his Punya Tithi,Narendra Mody, Selva Rangam faved, image compressed and resized, source is licensed under CC BY-SA 2.0  Sikar-Kisan-Andolan (Sikar Farmer Movement) By Rcmandota, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

१९१७ में गांधीजी ने "चंपारण सत्याग्रह" अंग्रेजो के "तिन्काथिया सिस्टम" के खिलाफ आंदोलन किया और किसानो को अपना हक़ दिलवाया। १९१७/१९१८ में गांधीजी "खेडा सत्याग्रह" सफलता पूर्वक समप्पन किया। उसमे गांधीजी के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल और इन्दुलाल नायक भी जुड़े थे। यह सत्याग्रह गाँधीजी ने किसानो के ऊपर लगाये गए बहोत भारी कर को कम करने के लिए किया था। तीसरा आन्दोलन १९२० में "खिलाफत मूवमेंट" किया, जिसमे गांधीजी ने तुर्की में वल्ड वोर के बाद,खलिफा  का होद्दे की गरिमा को बचाने के लिए किया था। वह मूवमेंट भी सफल रही और गांधीजी "राष्ट्रनेता" बन गए। गांधीजी ने हंमेशा अहिंसक आन्दोलन ही किया। वह हिंसा के खिलाफ थे।        

पहला विश्व युध्ध २०१८ के पहले सप्ताह में समाप्त हो गया। ब्रिटन उसमे विजयी हुआ था। भारतीय सिपाहिओ ने बहोत ही अच्छा प्रदर्शन किया था। उस वक्त देश की हालत खराब थी। महगाई अपनी चरम सीमा पर थी। भारत ने ब्रिटेन को विश्व युध्ध में बहोत सहकार दिया था। इसलिए भारत को उम्मीद थी की अंग्रेज सरकार अब भारत को राहत देगी।  युध्ध के दरमियान, सरकार का रुख काफी नरम था। मगर जैसे ही युध्ध समाप्त हुआ, फिर से ब्रिटेन ने अपना दमनकारी रूप दिखाना चालू कर दिया। 

प्रजा महंगाई से पीड़ित तो थी ही, उस पर नए कर लगाकर सरकार ने जीना मुश्किल कर दिय। आज़ादी की लड़ाई का जन आन्दोलन तो चालु ही था। उस को कुचल ने के लिए, अंग्रेज सरकार ६ फेब्रुआरी २०१९ में "रौलेट एक्ट" लाई। जिसके मुताबित सरकार किसी भी इंसान को शक की बिना पर , कोई भी कारण बताए बिना ही २ साल तक जेल में रख सकती है। इस कानून का बहोत ही विरोध हुआ। बडे नेताओ ने सरकार को समझाने की बहोत कोशिश की। मगर सरकार नहीं मानी। पंजाब में वहा के लोकप्रिय नेता सत्यपाल और सैफुदीन को जेल में डाल दिया।|गांधीजी ने भी ६/४/२०१९ को हड़ताल कर दी।                                                                                                                                                                                                                        
                                                               जलियावाला  बाग  ह्त्या काण्ड 

      15 august 1947 image represents, whole story of brutal Jaliawala baug masacre by General Dyer. 

इस कानून के विरोध में “जलियावाला” बाग़ में जमा हुए, उसमे स्त्री,बच्चे भी थे। पंजाब में हालत को काबू करने के लिए जनरल दायर को भेजा गया। जिसने इतनी विशाल रेली को काबू में करने के लिए, निहत्थे लोगो पर मशीन गन से फायरिंग करवाई।  मशीन गन से १६५० राउंड करवाये। गोली से बचने के लिए कई लोगो ने कुए में छलांग लगा दी। स्त्री और बच्चे भी गोलिओ का शिकार हो गए। लगभग १००० लोगो न अपनी जान गवाई। अंग्रेजो के इस हत्याकांड से पुरे देश में एकता स्थापित हो गई।  

गांधीजी ने इसके खिलाफ "नॉन को-ओपरेटिव मूवमेंट" चालू की। जिसमे अंग्रेजो की सभी चीजो को जाहिर में जला दिया गया। सरकारी स्कूल में बच्चो ने जाना बंध कर दिया। सभी सरकारी कचहरी का विरोध किया गया। जलियावाला हत्या कांड की वजह से पूरा देश एक हो गया था। और लोग भी हिंसक होने लगे थे। इसलिए ४/४/१९२२ को चौरी-चौरा का किस्सा हुआ।  गोरखपुर में जब पोलिस चोकी के सामने जमा हुए आन्दोलनकारी पे सरकार ने गोलिया चलाई तब आन्दोलनकारीओ ने पूरी पोलिस चोकी जला दी।  जिस में २२ पोलिस मर गए। हिंसा होने के कारण गांधीजी ने यह आन्दोलन समाप्त कर दिया। 

                                                         15 august 1947 image represents, Freedom Fighter Lala Lajpat Rai, who martyred for the country.

३/२/१९२८ को भारत के सविधान के लायक है या नहीं? उसके लिए साइमन कमीशन की रचना की। जिसमे सभी अंग्रेज ही सदस्य थे। जिसका सबने नेता और जनता विरोध किया। पुरे देश में "साइमन गो बेक" के नारे लगे।  जब कमीशन लाहोर पंहुचा तो लाला लाजपत राय के नेतृत्व में विरोध किया गया।| जहा शांतिपूर्वक आन्दोलन कर्ताओ पर लाठी चार्ज करने पर लाला लजपतराय मारे गए। इसका बदला,भगत सिह ने १७/१२/१९२८ को अपने दोस्त राजगुरु के साथ मिलकर लिया। एस.एस.पी सान्डर्स को राजगुरु ने १ गोली मारकर बेहोश किया और भगतसिंह ने ४ गोली दागकर काम तमाम कर दिया। 

                                                       भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फासी 
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Teen Murti Bhavan/The wall of Revolutionary: Chandrashekhar Azad, Shivaram Hari Rajguru, Bhagat Singh and Sukhdev Thapar, By Mangesh Kalelkar, image compressed and resized, source is licensed under CC BY-SA 2.0

८/४/१९२९ को, ब्रिटिश संसद में मजदूरो के हक्क में कोई भी निति पारिद नही हुई। इसलिए भारत की जनता इस ब्रिटिश निति के विरुध्ध हो गई है। यह जताने के लिए, भगत सिंह ने दिल्ही  की केन्द्रीय असेम्बली में बम फेका।बम कोई भी नुकशान न हो ऐसी जगह पर फेका गया। भगतसिंघ चाहते तो किसी भी असेम्बली मेंबर पर बम फेक सकते थे। मगर भगतसिंघ का इरादा निति का विरोध दर्शाना ही था। इसलिए बेम फेककर उन्हों ने "इन्कलाब जिंदाबाद" का नारे लगाकर अपनी धरपकड़ करवा ली। इस कार्य में उनके साथ बटुकेश्वर दत्त भी थे। 

भगतसिंह और साथी को छुड़ा ने के लिए आम जनता में से बहुँत ही माफ़ी की अर्जी आने लगी। लोगो में आक्रोश फ़ैल गया। इसे देखकर,सरकार ने जो फांसी २४/३/१९३१ के बजाय २३/३/१९३१ को शामको ७.३१ को चुपचाप दे दी। इस प्रकार भगत सिंह,सुखदेव थापसर और शिवरामन राजगुरु अपने देश पर युवा अवस्था में ही शहीद हो गये।

                                                                              सुभाष चंद्र बॉस                                               

                                                                                                Bundesarchiv Bild 110111-Alber-064-22A, Subhas Chandra Bose bei Heinrich Himmler, By Alber, Kurt, image compressed and resized, Source is licensed u CC BY-SA 3.0DE 
Netaji Subhash Bose- arriving at 1939 AICC meeting, By TonyMitra, image compressed and resized, Source is licensed under  CC  BY 2.0

नेताजी सुभाष चन्द्र के बिना भारत की आज़ादी का प्रकरण अधुरा रह जाता है। |नेताजी १९२० से १९३० के दौरान राष्ट्रीय कोंग्रेस के युवा नेता थे,और १९३८ में राष्ट्रिय अध्यक्ष भी बने। मगर नेताजी और गांधीजी के विचारो में काफी अंतर था। इसलिए उन्हें हटा दिया गया। | आज़ादी जंग के दौरान गांधीजी के नेतृत्व में देशबंधु चितरंजन के सहायक के रूप में कई बार गिरफ्तार भी हुऐ और जेल में भी गए। 

दुसरे विश्व युध्ध के दौरान,जर्मनी चले गए। १९४३ में,वहा से सिंगापूर में "इंडियन नेशनल आर्मी" के पद पर रहे। जापान और जर्मनी की मदद से "आज़ाद हिन्द फ़ौज" की रचना की। इस आर्मी की मदद से उन्हों ने भारत के आंदामान–निकोबार द्वीप समूह, मणिपुर, नागालैंड में जीत हासिल की। मगर जर्मनी और जापान की दुसरे विश्व युध्ध में हार के बाद पीछे हटाना पडा। नेताजी के नारे ने युवको में नया जोश भर दिया था। वह नारा था "तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आज़ादी दूंगा"     


                                                                                                         Rejecting British -made cloth /Mahatma Gandhi, By Kandukuru nagarjun, image compressed and resized, Source is licensed under  CC BY 2.0                                          Dandi Salt March/Mahatma Gandhi Sabarmati Ashram, Ahmedabad, By Kandukuru Nagarjun, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0

                                                                        दांडी कुच 

गांधीजी ने सीवील "डिस-ओबेडिएंट मुवमेन्ट" के तहत १२/३/१९३०, गाँधीजी ने अपने कार्यकर्त्ताओ के साथ नमक कानून तोडने के लिए दांडी कुच की। क्योकि सरकार ने नमक मजदूरो पे कर डाल दिया था। साबरमती से दांडी के बिच हजारो लोग जुड़ गए| ५/५/१९३१ को गांधीजी के साथ ६००० लोग भी गिरफ्तार हुए। कही सत्याग्रही को बेदर्दी से पीता गया। इस अंग्रेजो की हिंसक दमन निति को पूरी दुनिया ध्यान का आकर्षित किया। गाँधीजी के जेल में जाने के बाद भी यह आन्दोलन जरी रहा। अंत गाँधी जी को जनवरी १९३१ को रिहा किया गया। 

इस घटना के बाद गाँधी जी को राउंड टेबल कोंफ्रंस में लन्दन बुलाया। इस आन्दोलन को बांध करने के लिए गाँधी-इरविन समजौता सही किया गया। सभी राजकीय बंदी को छोड़ा गया और सारे दमनकारी कायदे को रद्द किया गया। 

                                                                भारत छोडो आंदोलन 

दुसरे विश्व युध्ध के बिच, भारत छोडो आन्दोलन का नारा, गांधीजी ने ९ अगस्त १९४२ को मुंबई अधिवेशन में दिया था। गांधीजी को तुरंत गिरफ्तार किया गया। लेकिन इस वक़्त पूरा देश आन्दोलन के साथ जुड़ गया था। भारत के युवाओ ने पुरे देश में हड़ताल और तोड़फोड़ से आन्दोलन चलता रहा। गांधी का नारा "करो या मरो" को सार्थक करते रहे। लाल बहादुर शास्त्री ने भी "मरो नहीं मारो" का नारा देकर युवाओ में नया जोश भर दिया। गांधीजी और सरोजिनी नायडू को येरवडा के आगाखान पेलेस में, पटना जेल और अहमद नगर जेल में, इस तरह देश की विभिन्न जेलों में डालकर अलग कर दिया गया। आंदोलन फिरभी चलता रहा। मगर गांधीजी जेल में जाते ही इस आन्दोलन में करीब ६०,००० लोग गिरफ्तार हुए। करीब ९०० लोग मारे गए। 

"Quit India Movement" Photo at Gandhi Memorial, Sabarmati Ashram, Ahmedabad, By Sushant purohit, Image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

भारत छोडो आन्दोलन में लाखो लोग सामिल थे। युवाओ ने अपनी पढाई छोड़कर जेल चले गए।  विश्व युध्ध के समाप्त होते ही गांधीजी को आज़ाद किया गया। ब्रिटन में भी लेबर पार्टी की सरकार बनी जो भारत के आज़ादी के पक्ष में थी। गांधीजी के जेल निवास दरमियान, जिन्हा ने अपना मुस्लिम लीग का वर्चस्व  बढ़ा दिया और देश के विभाजन की बात की। १६ अगस्त १९४६ को मुस्लिम लीग के समर्थन के लिए नक्की किया। उस दिन हिन्दू-मुसलमानों में खुनी संघर्ष चालू हो गया और बात वहीं पर अटक गई। 

माउन्ट बटन की नियुक्ति, नए वाइसरॉय के पद पर हुई तो आज़ादी की बात को अंतिम रूप दिया गया। मगर हिन्दू मुस्लिम लीग को एक करने में विफलता मिली। तब १५ अगस्त को आज़ादी का दिन नक्की किया गया। मगर देश के विभाजन का भी फैसला किया गया। 

इस तरह आज़ादी मिली। मगर देश के दो टुकड़े में बट गया। 

इस तरह २०० साल के संघर्ष, हजारो मातृभूमि के चाहनेवालो युवाओ के बलिदान से आज़ादी मिली है। जिसमे अगिनत माताओने अपने बेटो और अगिनत सुहागनों ने अपने पतिओ की आहुति दी है। तब जाकर आज़ादी मिली है। इसलिए १५ अगस्त का महत्त्व है।

                                                                मेरा  भारत महान  


१.  गणेश चतुर्थी    २. पर्युषण पर्व                       

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