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अनुच्छेद/पैराग्राफ | शीर्षक/हैडिंग |
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१ | दुनिया का अनोखा त्यौहार |
२ | रक्षाबंधन २०२४ |
३ | रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है? |
४ | नविन यज्ञोपवित |
५ | रक्षाबंधन त्यौहार एक लेकिन नाम अनेक |
६ | पौराणिक कथा राजा इंद्र और दैत्यराज बलि की |
७ | दैत्यों और देवताओ के बीचकी पौराणिक कथा |
८ | श्री कृष्ण और द्रौपदी |
९ | हिंदू मुस्लिम को जोड़ता राजकीय प्रसंग |
यह त्यौहार श्रावन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन भाई और बहन के रिश्ते को गहरा और मजबूत बनाता है। इसदिन शुभ महूरत में बहन, अपने भाई की कलाई पे राखी बांधती है। अगर बहन शादीशुदा हो तो अपने ससुराल से राखी बांधने आती है।
रक्षाबंधन २०२४
रक्षाबंधन १९ अगस्त २०२४ को सोमवार को मनाई जायेगी। रक्षाबंधन श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। पूर्णिमा की तिथि का प्रारंभ सोमवार १९ अगस्त २०२४ रात ०३:४३ (हिन्दू केलिन्डर के अनुसार रविवार रात ०३:४३ )को होगा। पूर्णिमा की तिथि की समाप्ति सोमवार १९ अगस्त २०२४ रात ११:५५ को होगी ।
राखी के लिए अशुभ समय याने भद्रा समय सोमवार, १९ अगस्त २०२४ सुबह के ०६:०५ बजे से लेकर दोपहर को ०१:३२ बजे तक रहेगा। इस समय तक राखी बांधना अवैध है।
इसलिए इस साल राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त बुधवार, १९ अगस्त २०२४ भद्र समाप्त होने के बाद यानी दोपहर को०१:३२ बजे से शाम ०४: २० तक चलेगा।
[आंवला /आमला और जन्माष्टमी की पोस्ट जरूर पढ़े।]
रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है?

रक्षाबंधन के दिन बहन पूजा की थाली में दीपक जलाकर अपने भाई की आरती उतारती है। उसकी दाई कलाई में राखी बांधती है। और मिठाई खिलाती है। बहन अपने भाई की दुनिया की बुराई से रक्षा हो,इसलिए आशीष देती है। भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वादा करता है।भाई अणि बहन को उपहार देता है। रक्षाबंधन के दिन सब साथ में खाना खाते है। घर में हसी ख़ुशी का माहोल होता है। राखी एक रेशम की डोर होती है। मगर अब कई प्रकार की राखी बनती है। रक्षाबंधन के दिन राखी शुभ महूरत में ही बांधी जाती है। कभी भी भद्रकाल में राखी नहीं बांधी जाती है। क्योकी,पौराणिक काल से कि ऐसा कहा जाता है की,रावण की कलाई पे उसकी बहन सूर्पणखा ने उसे भद्रकाल में राखी बांधी थी। इसीलिए रावण शक्तिशाली राजा होने के बावजूद, युध्ध के मैदान में श्रीराम से बुरी तरह हार गया था।
नविन यज्ञोपवीत


‘रक्षाबंधन’ याने की श्रवण मास की यह पूर्णिमा का हिंदुस्तान के सभी राज्य में अलग अलग महत्व है। इसलिए अलग अलग तरीके से मनाया जाता है।
भारत के पश्चिम घाट और सागर वाले क्षेत्र में मछुआरे, इस दिन से मछली पकड़ने की शुरुआत करते है। नए काम की शुरुआत के पहले मछुआरे सागर के देवता "वरुण
देव" की पूजा करते है। वरुण देवता को नारीयेल अर्पण करते है। इसलिए इसे "नारियेली
पूर्णिमा" भी कहते है |
‘उत्तर भारत में याने की बिहार और मध्य प्रदेश में, इसदिन से खेतो में गेहू और अनाज नई फसल के लिए बिछाया जाता है। अपनी अच्छी फसल के लिए दुर्गा माता की पूजा करते है। वह लोग इसे "कजरी पूर्णिमा" के नाम से मनाते है।
गुजरात में इस दिन रुई को पंचगव्य में भिगोकर महादेवजी के शिवलिंग पर चढाते है। इस पूजा को "पवित्रपन्नो" भी कहा जाता है।
ओरीस्सा में इस दिन गाय और बैल की पूजा करते है।ओर्रिस्सा में इसे "गम्हा पूर्णिमा" के रूप में मनाया जाता है।ओरीस्सा में ही इसे राधा और कृष्णा जी के सम्बन्ध में "जूल्लन पूर्णिमा" के रूप में भी मनाया जाता है।
इस तरह पुरे भारत में बड़े प्रेम भाव से, हर्षौल्लाश से, धामधूम से और पूरी श्रद्धाभाव से रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है।
पौराणिक कथा राजा इंद्र और दैत्यराज बलि की

भगवान विष्णु दैत्यराज के दानी स्वाभाव को जानते थे। इसलिए उन्हों ने वामन अवतार धारण किया। भगवान् विष्णु ब्राह्मण भिक्षुक बनकर भिक्षा मांगने के लिए दैत्यराज बलि के दरबार में पहुच गए। वहा जाकर वामन अवतारधारी भगवान् विष्णुने बलि के पास तिन चरण जमीन भिक्षा में मांगी। दैत्यराज ने अपने स्वाभावानुसार, वामन अवतारी भगवान् विष्णु को वचन दे दिया।
तब दैत्यराज के गुरु शुक्राचार्य विष्णु को पहचान गए। इसलिए दैत्यराज बलि को चेताया। लेकिन दैत्यराज बलि समज नहीं पाए। अब वामन अवतारी विष्णुजी ने तिन चरण भूमि में,अपने पहले चरण में पूरी पृथ्वी, दुसरे चरण में सारा आकाश याने स्वर्गलोक नाप लिया और तीसरा चरण उठाकर बोले, इसे मैं कहा रखु? दैत्यराज बलि ने अपना सर झुकाकर अपने सर पर रखने को कहा।
भगवान विष्णुजी ने सर पर पैर रखते ही दैत्यराज बलि रसातल में चले गए। तब दैत्यराज बलि,जो भगवान विष्णु जी के भक्त भी थे। भगवान को अपने इस रसातल लोक के द्वारपाल बनाने की बिनती की। तब भगवान विष्णुजी ने भी अपने भक्त की बिनती का स्वीकार किया और भगवान विष्णु भी दैत्यराज के साथ रसातल में रहने लगे।
अब भगवान विष्णुजी की पत्नी लक्ष्मीजी,विष्णुजी के न लौटने पर चिंतित हो गयी। जब लक्ष्मीजी को विष्णुजी के न आने के कारण पता चला, तो वह और भी चिंतित हो गई की। अब विष्णुजी को कैसे वापस लाया जाये? तब नारदजी ने लक्ष्मी जी को मार्ग बताया। नारदजी ने लक्ष्मीजी को रसातल में जाकर दैत्यराज को भाई बनाकर, राखी बांधने को कहा। इस राखी के उपहार में विष्णुजी को मांगने को कहा।
इस तरह लक्ष्मीजी ने रसातल में जाकर दैत्यराज बलि हाथ में राखी का धागा बांधकर उसे अपना भाई बनाया। जब दैत्यराज ने लक्ष्मीजी को उपहार मांग ने कहा तब लक्ष्मीजी ने अपने पति भगवान् विष्णु को माँगा। इस तरह लक्ष्मीजी,विष्णुजी को रसातल से वापस लाई। कहते है, की उस दिन से रक्षाबंधन का हिन्दू त्यौहार शुरु हो गया।
दैत्यों और देवताओ के बीच युध्ध की पौराणिक कथा

एक बार दैत्यों और देवताओ के बीच धमासान युध्ध छिड़ गया। जो लगातार १२ वर्ष तक चला। अंत में देवताओ की बुरी तरह हार हुई। इस युध्ध में दैत्य याने राक्षसों याने असुरो की जित हुई। इसलिए इन्द्रदेव को स्वर्गलोक छोडकर भागना पड़ा। इन्द्रदेव सहित सर्व देवतागण अमरावती चले गए। दैत्यों ने तीनो लोक पर अपना कब्ज़ा कर लिया।
दैत्यों पृथ्वीलोक पर मनुष्यों पर अत्याचार करने लगे। पृथ्वीवासी को देवतागण की पूजा अर्चना करने पर पाबंधी लगा दी। साधू,साध्वी,ऋषिमुनि और तमाम पुजारी को होम हवन और धार्मिक विधि विधान पर पाबन्दी लगा दी गई। जो इस आज्ञा का पालन नहीं करता था उस पर ज़ुल्म किया जाता था। तमाम प्रजा को सभी देवता की पूजा छोडकर असुरो की पूजा करने को कहा गया।|तीनो लोक में त्राहिमाम फ़ैल गया। देवताओ को स्वर्ग से भगा दिया गया। स्वर्ग में भी असुरो याने दैत्यों राज करने लगे।
आखीर थक हारकर, इन्द्रदेव अपने गुरु बृहस्पतिजी के पास गए। इन्द्र ने कहा की वह अब असुरो के साथ लड़कर जीत नहीं सकते। न तो वह स्वर्ग वापस जा सकते है। इसलिए अब प्राण त्याग ने के सिवा दूसरा उपाय नहीं है। बृहस्पतिजी ने आश्वासन देते हुए उपाय बताया। उपाय के तौर पर,श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन प्रातकाल,पुरे विधि विधान से, मंत्रोच्चार के साथ एक ‘रक्षा सूत्र ‘ब्राह्मणों से बनाया गया। इस पावन दिन पर ब्राह्मणों से स्वस्ति सूत्र का वांचन करवाया गया। फिर इस ‘रक्षासूत्र’ को इंद्र की पत्नी इन्द्रानी ने इंद्र की दाई हाथ की कलाई पर बांधा।
‘येन बधे बालो राजा ,दानवेन्द्रो महाबल‘ तेन त्वामिविधानामि रक्षे
महाचल महाचल:
अर्थांत,जिस रक्षासूत्र से महाबली दैत्यराज बलि को बांधा गया था इस सूत्र से तुम्हे बांधता हू|
इस‘रक्षासूत्र को बांधकर इन्द्रदेव ने असुरो पर आक्रमण किया। फिर से देव और दानवो के बीच धमासान युध्ध हुआ मगर इसबार इन्द्रदेव की जीत हुई।माना जाता है की यह देवताओ ‘रक्षासूत्र’ की वजह से जीते। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। ऐसे अद्भूत विजय से रक्षाबंधन के हिन्दू फेस्टिवल को बल मिलाता है।
श्रीकृष्ण और द्रौपदी
यह कथा महाभारत के समय की है।शिशुपाल ,जो श्रीकृष्ण के बुआ का लड़का था। वह जन्म समय काफी कुरूप और विचित्र था। तब एक साधू ने कहा था की, अगर जो कोई इंसान इसे छुएगा
और यह बालक सुन्दर हो जायेगा याने उसकी
कुरूपता चली जाएगी तो उसी के हाथो यह बालक शिशुपाल की मौत होगी। श्रीकृष्ण के छूते ही
शिशुपाल की कुरूपता चली गई। तब शिशुपाल की माँ ,जो श्रीकृष्ण की बुआ थी,उसने
श्रीकृष्ण को उसे नहीं मरने का वचन माँगा | तब श्रीकृष्णने शिशुपाल की माँ को वचन
दिया की,वह शिशुपाल के १०० गुनाह माफ़ कर देगा ,मगर जैसे एक और गुनाह किया तो उसे मार
डालेगा |
शिशुपाल १०० गुनाह कर चूका था। जब वह श्रीकृष्ण के साथ सभा में मोजूद था,वहा शिशुपाल ने श्रीकृष्ण के साथ दुर्व्यवहार करके उनका अपमान किया। तब श्रीकृष्ण ने भरी सभा में अपने सुदर्शन चक्र से उसका शिर काट डाला। मगर सुदर्शन चक्र शिशुपाल का शिर काटने के बाद वापस श्रीकृष्ण की उंगली में आते समय थोड़ी सी चोट कर गई। इस कारण श्री कृष्ण की उगली में से खून बहने लगा। तब खून को रोकने के लिए, सभा में हाजिर सभी लोग कपड़ा ढुढने लगे। मगर वहा हाजिर द्रौपदी ने अपनी पहनी हुई नए साडी में से पल्लू फाड़कर श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया।इस तरह बहते हुए खून को रोक लिया। इस घटना से प्रस्सन होकर, श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया की समय आने पर इस का ऋण जरुर चुकायेगे।
जब कौरवो के साथ चौसर खेलते समय ,पांडव युधिष्ठिर जब अपना राजपाट,अपने भाई के साथ द्रौपदी को भी हार गए। तब कौरव दुर्योधन के कहने पर भरी सभा में, द्रौपदी को वस्त्रहीन करने के लिए ,उसके भाई दुशाशन द्रौपदी का चीरहरण करने लगा। तब द्रौपदी ने मनोमन श्रीकृष्ण को मदद के लिए पुकारा। श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की मदद के लिए आये।कहा जाता है के श्री कृष्ण ने ९९९९ साडी की पूर्ति की। दुशाशन साडी उतार ने के लिए खीचते खीचते थक गया पर वस्त्रहीन नहीं कर पाया। इसलिए वह थक हार कर चला गया। इस तरह श्रीकृष्ण ने अपने ऊँगली पर बाँधी हुई साडी के पल्लू की एक पट्टी का क़र्ज़ उतारा। कहा जाता है की श्रीकृष्ण ने साडी के पल्लू की पट्टी में जितने तार थे। उतनी साडी की पूर्ति की थी। उस दिन भी श्रवण मास की पूर्णिमा ही थी। इस महाभारत के प्रसंग से रक्षाबंधन के हिन्दू फेस्टिवल को मजबूती मिलती है।
हिन्दू मुस्लिम को जोड़ता राजकीय प्रसंग
Raksha Bandhan image represent, Maharani Karanavati of Chittod send a Rakhi to Muslim sultan Humayu of Delhi, so he fulfil duty of a brother.
चित्तोड़ की विधवा महारानी कर्णावती के ऊपर जब गुजरात के सलतान बहादुर शाह ने आक्रमण किया। महारानी कर्णावती के पास सैन्य शक्ति बहोत ही कम थी।वह कोई भी हालत में सुलतान का मुकाबला नहीं कर सकती थी। उसकी सेना गुजरात के सुलतान से लड़ने में असमर्थ थी। उसका पुत्र भी छोटा था। इस लिए अपने राज्य और प्रजा को बचाने के लिए दिल्ही के सुलतान हुमायु को रानी कर्णावती ने राखी भेजी। साथ में अपनी तकलीफ भी बताई।सुलतान हुमायु रानी की मज़बूरी और समस्या समज गया।
ऐसे कही प्रसंगों से राखी और रक्षाबंधन का महत्व का पता चलता है।
आगे का पढ़े : १ जन्माष्टमी २. १५ अगस्त १९४७
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