रथ यात्रा भाग - २ २०२४

अनुच्छेद (पेरेग्राफ) | शीर्षक |
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१ | भगवान यात्रा में शामिल |
२ | ध्वजा हवा की उलटी दिशा में लहराती है |
३ | मंदिर किकोई परछाई नहीं पड़ती है |
४ | मंदिर के ऊपर से परिंदा नहीं उड़ता |
५ | हवा का उलटा रुख |
६ | मंदिर के ऊपर का सुदर्शन चक्र का हरेक दिशा से दिखना |
७ | मंदिर पर उल्टा चढ़कर ध्वजा बदलना |
८ | मंदिर में समुद्र की आवाज़ नहीं सुने देना |
९ | भगवान का दिल नयी मूर्ती में स्थापित करना |
१० | खाना पहले ऊपर की मिटटी के बर्तन में पकना |
११ | दुनिया का सबसे बडा रसोई घर |
१२ | मंदिर के प्रसाद का कम नहीं पड़ना |
१३ | प्रसाद का एक भी दाना नहीं बचना |
१४ | रथयात्रा के दिन अचूक बारिस आना |
१५ | बेडी हनुमान |
१६ | बिना कोई आधुनिक मापदंड रथ को बनाना |
कोई भी इंसान अपना घर बनाता है जिसमे वो आता जाता है। वह हमेशा अच्छे से अच्छा बनाने की कोशिश करता है। जब यहाँ तो खुद भगवान भोजन करने आते है। इसलिए यह स्थान कोइ सामान्य मंदिर तो होगा ही नहीं। इसलिए यह मंदिर दुनिया का अनोखा मंदिर है। जिसमे होने वाली अनेक प्रक्रिया अनोखी है। जिसे आधुनिक विज्ञानं भी समज नहीं पाता है। जब विज्ञान की भी समज में नहीं आता है तब उसे चमत्कार कहा जाता है। तो चलो, इसी १५ चमत्कार के बारे में जानते है। * Rath Yatra image represents, Such a huge Mandir has No shadow and No flying of any Birds above Mandir. *Rath Yatra image represents, Mandir flag always flutter in opposite direction of wind. जगन्नाथजी के मंदिर ध्वजा हवा के प्रवाह से उलटी दिशा में लहराती है। हमेशा कोई भी मंदिर की ध्वजा हवा के प्रवाह की तरफ ही लहराती है। मानो हवा पूरब से पश्चिम की तरफ प्रवाहित है। तो सामान्य मंदिर की ध्वजा पश्चिम तरफ लहराती है। मगर जगन्नाथजी के मंदिर की ध्वजा उलटी दिशा याने पूर्व की ओर लहराती है। ऐसा क्यों होता है ? यह विज्ञान भी नहीं जानता।
* जगन्नाथजी के मंदिर की उचाई ४५ मंझले जितनी होने पर भी मंदिर कभी परछाई नहीं पड़ती है। दिन के किसी भी समय इतने बड़े मंदिर की परछाई क्यों नहीं दिखाई देती है? विज्ञानं अभी तक नहीं जान पाया।
*जगन्नाथजी के मंदिर के ऊपर से कोई भी परिंदा नहीं उड़ता है। ज्यादातर हरे क मंदिर के ऊपर से आप परिंदे को उड़ता देख सकते हो। ज्यादातर मंदिर केऊपर परिन्दे बैठे भी दिखाई देते है। मगर इस मंदिर पर न परिंदे उड़ते है ना बैठते है। क्यों? विज्ञान के पास कोई जवाब नहीं।
*जगन्नाथजी के मंदिर के पास ही हवा का रुख उल्टा है।हमेशा दिन में हवा कहा रुख समुद्र से धरती की ओर होता है। और शामको धरती से समुन्दर की ओर होता है। मगर जगन्नाथजी के मंदिर के पास यह क्रम उलटा होता है। क्यों? विज्ञान के पास जवाब नहीं। जगन्नाथजी का मंदिर समुन्द्र से १ किलोमीटर के अंतर पर ही है।
Rathayatra image presents, If you see Sudarshan Chakra on top of a jagannath mandir of Puri from any direction, it seems it is looking at you.
*जगन्नाथजी के मंदिर के ऊपर का सुदर्शन चक्र कोई भी दिशा से देखो, आप को हमेशा आप की ओर ही दिखेगा। मंदिर के ऊपर ध्वजा के साथ एक सुदर्शन चक्र ह। जो अष्ट धातु से बना है। जिसे निल चक्र भी कहते है। वह चक्र ११ फ़ीट ८ इन्च ऊँचा है जिसे पूरी शहर के किसी भी दिशा से देखो वह आपकी ओर ही लगेगा। इसका भी विज्ञान के पास कोई जवाब नहीं है।
Rath yatra image represents, daily changing of flag on mandir which is 214 feet in height.
*जगन्नाथजी के मंदिर की उचाई जो ४५ मंझले के बरोबर है। उसकी ध्वजा हररोज उलटा चढ़कर बदली जाती है। कहा जाता है की, यह सिलसिला करीब ८०० साल से एक ही चोला परिवार द्वारा निभाया जाता है। फिर भी कभी कोई हादसा नहीं हुआ। कहा जाता है की अगर एक दिन भी ध्वजा नहीं बदली गयी तो मंदिर १८ सालो तक बंध हो जाएगा।
Rathayatra Image represents, magical Singh Dwar of Jagannath mandir, if you cross one step of Singh Dwar, you can not able to hear the sound of the sea waves.
* जगन्नाथजी के मंदिर के सिंह द्वार में प्रवेश करते ही समुद्र की आवाज़ सुनाई नहीं देती है। मंदिर और समुद्र के बीच करीब १ किलोमीटर का ही फासला है। इसलिए समुद्र में उठनेवाली मौज़ो की आवाज़ मंदिर में स्पष्ट सुनाई देती है। मंदिर का एक सिंह द्वार है। इस सिंह द्वार के बाहर खड़े रहने से समुद्र के मौज़ो की आवाज़ स्पष्ट सुनाई देती है। मगर आप एक कदम सिंह द्वार में गए तो समुंद्रे की आवाज़ नहीं सुनाई देती है। क्यों? मंदिर के अंदर एक कदम से इतना फर्क क्यों ? विज्ञान फ़ैल। कोई जवाब नहीं .

भील के राजा विश्ववसु के वंशज दयित्यापति अपनी आँखों पे पट्टी बांधकर और हाथो में दस्ताने पहनकर, इस नीलमणि (जिसे भगवान् का दिल कहते है) को पुराणी मूर्ति से निकल कर नयी मूर्ति में स्थापित करते है। इस नीलमणि को देखने की मनाई है। दयित्यापति के कहने अनुसार यह नीलमणि ह्र्दय की तरह धड़कता है। पुरे विश्व में साक्षात् भगवान बिराजमान हो ऐसा एक मात्रा स्थान है।
एक मंदिर और इतने चमत्कार इसलिए है क्योकि यहाँ साक्षात भगवान का वास है। यह मंदिर कैसे बना? किसने बनाया? क्यों बनाया? यहाँ भगवान खुद कैसे बिराजमान है। यह सब जानना है तो रथयात्रा भाग- ३ पढना न भूले


Rath Yatra image represents, 56 bhog mahaprasad of Jaggannathji Mandir satisfy each bhaktjan ,who visits mandir.
* जगन्नाथनाथजी के मंदिर में कितने भी भक्तजन आये मगर मंदिर का महा प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता। जगन्नाथजी के मंदिर में हररोज़ ३२०० किलो चावल का महाप्रसाद बनाया जाता है। यहाँ हररोज़ सामान्य दिन में २००० से लेकर २०,००० भक्त आते है। रथ यात्रा जैसे उत्सव में तो लाखो के हिसाब से भक्तजन आते है। मगर आजतक कभी भी प्रसाद की कमी नहीं हुयी। कैसे? इतना सही इंतज़ाम कोई सालो तक कैसे कर सकता है? यही तो चमत्कार है।
*जगन्नाथनाथजी के मंदिर कितना भी महाप्रसाद बनाया हो मगर मंदिर के पट बंध होते ही एक भी दाना नहीं बचता है। कैसे? ज्यादा बना हुआ प्रसाद कहा जाता है ? कोई नहीं जानता। या इतना अंदाज कैसे हो जाता है की कितने भक्तजन आनेवाले है? ये ही चमत्कार है।
*जगन्नाथजी के मंदिर की रथ यात्रा के दिन ही बारिश अचूक होती है। जिस दिन रथ यात्रा होती है उस दिन बारिश होती ही है। मगर बुद्धिजीविओ के अनुसार यह एक योग ही है। योग हर साल कैसे होता है? इसका इन बुद्धिजीविओ के पास कोई जवाब नहीं है। इसलिए भक्तजन के लिए एक चमत्कार ही है।


एक मंदिर और इतने चमत्कार इसलिए है क्योकि यहाँ साक्षात भगवान का वास है। यह मंदिर कैसे बना? किसने बनाया? क्यों बनाया? यहाँ भगवान खुद कैसे बिराजमान है। यह सब जानना है तो रथयात्रा भाग- ३ पढना न भूले।
जय जगन्नाथ
आगे का पढ़े : १ रथयात्रा - भाग -३ . २.
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