मकर संक्राति २०२५

   मकर संक्राति २०२५  

                                                                                                          Surya riding on 7 horses Chariot, By Gita Press Gorakhpur, image compressed and resized, Source is licensed under CC0 1.0

 

अनुच्छेद/पेरेग्राफ शीर्षक
१. उत्तरायण
२. मकर संक्रांति का वैज्ञानिक समाधान
३. २०२५ में मकर संक्रांति कब है?
४. मकर संक्रांति की पूजा
५. मकर संक्रांति देश के अलग अलग राज्यों में कैसे मनायी जाती है? हरियाणा और पंजाब में लोहारी, उत्तर प्रदेश में मेघ मेला, बिहार में खिचड़ी, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्रमे मकर संक्रांति,,असम में मधु बिहू,तमिलनाडु में पोंगल और बंगाल मे पोश पोरबो
६. मकर संक्रांति से जुडी पौराणिक कथा
मकर संक्रांति का हिन्दू में धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों महत्त्व है। यह त्यौहार हिन्दू धर्म के अनुसार, सूर्यदेव को समर्पित होता है। ज्योतिष गणना अनुसार, पृथ्वी को १२ राशि में बाटा गया है।  इस दिन सूर्य का धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश होता है। संक्रांति का अर्थ है प्रवेश करना। इस दिन सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करते है। इसलिए इसे मकर संक्रांति कहते है। इस दिन से सूर्य की किरणे पृथ्वी के दक्षिण भाग से उत्तर भाग में स्थलांतर करती है इसलिए इसे "उत्तरायण" भी कहते है। इसे "माघी" भी कहा जाता है। 

                                            मकर संक्रांति का वैज्ञानिक समाधान

                                                              North Season, By Tau Olunga, image compressed and resized, Source is licensed under CC0 1.0

पृथ्वी को वैज्ञानिक तरीके से ५ भागो में बाटा गया है। १ उत्तर ध्रुव वृत, २. कर्क रेखा, ३ भूमध्य रेखा, ४ मकर रेखा, ५ दक्षिण ध्रुव वृत। १  उत्तर ध्रुव वृत याने पृथ्वी का सबसे उत्तर का भाग, २ कर्क रेखा याने उतर ध्रुव और भूमध्य रेखा के बीच का भाग, ३ भूमध्य रेखा याने पृथ्वी की बरोबर बीच की रेखा ४ मकर रेखा याने भूमध्य रेखा और पृथ्वी के दक्षिण भाग के बीच का भाग, ५  दक्षिण ध्रुव वृत याने पृथ्वी का सबसे दक्षिण का भाग।

अपनी पृथ्वी अपने धरी पर २३.५ डिग्री झुकी हुई है और अपनी ही धरी पर गोल घूमती है। साथ में सूर्य का चक्कर भी लगाती है। परन्तु २३.५ डिग्री झुकी होनेके कारण सूर्य की किरण पूरी पृथ्वी पर समान रूप से नहीं पहोचते है। इसलिए ऋतुओ का निर्माण होता है। इसलिए मौसम बदलते रहता है।

१४ जनवरी याने मकर संक्रांति के दिन सूर्य की किरणे पृथ्वी की भूमध्य रेखा से उतर भाग में जाने की शुरुआत करती है। याने सूर्य की किरणे अब पृथ्वी की मकर रेखा में प्रवेश करेगी। इसलिए अब सूर्य किरण की वजह से गर्मी की ऋतु का प्रारंभ हो जाएगा। याने पृथ्वी की किरणे अब दक्षिण भाग से उत्तर भाग में आने लगेगी इसलिए गर्मी की ऋतु की शुरुआत हो जायेगी। सूर्य की किरणे उत्तर भाग में  स्थलांतर करती है इसलिए इसे उत्तरायण भी कहते है।

इस तरह हिन्दू पुराण की  ज्योतिष गणना या वैज्ञानिक तरीको के परिणाम एक समान ही है। सूर्य की किरण का दक्षिण से उत्तर की तरफ प्रकाशित होना। 

                                                     साल २०२५  में मकर संक्रांति कब है?

इस बार मकर संक्राति १४ जनवारी २०२५ मंगलवार  को है। सूर्य महाराज १४ जनवारी २०२५  मंगलवार, सुबह  ८:५६ बजे धनु राशी से मकर राशी में संक्रमण (प्रवेश) करेंगे। पुण्यकाल का मुहूर्त सुबह ०८:५६ से शाम ६:१६  बजे तक है। महा पुण्य काल का समय सुबह ०९:०३ से सुबह १०:४८  तक है।  

                                                                                                                                                                                                                                                                               मकर संक्रांति पूजा                                                                               


 
मकर संक्रांति सूर्यदेव को समर्पित है। इसलिए इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। सुबह ब्रह मुहूर्त में उठकर गंगा जी या तो पवित्र नदी में स्नान करके पवित्र होना चाहिए। अगर नदी में स्नान शक्य न हो तो घरके पानी में गंगा जल मिला के स्नान करना चाहिए। अब सूर्यदेव को शुद्ध पानी से अर्ध्य देना चाहिए और "ॐ घिणी सूर्याय नमः" का जाप करना चाहिए।    

                                               मकर संक्रांति देश के अलग अलग राज्यों  में कैसे मनायी जाती है?

भारत के विभिन्न राज्यों में यह त्यौहार अलग अलग नाम से और अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। हरेक राज्य में भले ही मनाने का तरिका अलग हो, मगर यह सूर्यदेव को ही समर्पित है

         File:ਲੋਹੜੀ Lohri.jpg, By Sukhan saar, image compressed and resized Source is licensed under CC BY -SA 4.0

मकर संक्रांति को सबसे पहले हरियाणा और पंजाब में लोहरी के नाम से मनाया जाता है। इसे १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन लकड़ी को इकठा करके जलाया जाता है। इस दिन को गाना बजाना होता है। हसी ख़ुशी और आनंद में व्यतीत करते है। तिल, गुड़, भुने हुए मक्के, चावल, मक्के की रोटी और मुगफली आदि खाते है। नए फसल की कटाई की ख़ुशी त्यौहार में दिखाई देती है।

                                                       Dal Khichdi, By RohitValecha, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

मकर संक्रांति को बिहार मे खिचड़ी के नाम से जानते है। इस दिन को दान के पर्व के रूप में मनाता है। उस दिन अपनी हैसियत के मुताबित दान करते है। दान में उड़द, चावल, सुवर्ण, उन्नी वस्त्र,कंबल आदी देते है।

                          Allahabad, Triveni Sangam 03 (25731951228), By juggadery, image compressed and resized, Source is licensed under CCBY-SA 2.0

मकर संक्रांति  उत्तर प्रदेश में दान का पर्व ही है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर एक माह तक मेला लगता है जो १४ जनवरी से ही शुरू होता है। जिसे "माघ मेला" कहते है।  १४ दिसंबर से १४ जनवरी को "खर माह" कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन लोग गंगा स्नान करते है। इस दिन गंगा स्नान का अधिक महत्त्व है। स्नान के साथ दान भी करते है। खिचड़ी खाते है। पतंग उड़ाते है।

                                                                                                          The unexplored Fortress, By Shubhamd1106, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                                               Shoobh String 2013-8-, By Shoobhgroup, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

मकर संक्रांति राजस्थान में मकर संक्रांति के नाम से ही मनाया जाता है। राजस्थानी पकवान और मिठाईया बनाई जाती है। परिवार के साथ इकठा होकर मनाया जाता है। शादी के बाद की पहली मकर संक्रांति वाले जोड़े को कन्या के घर में बुलाकर खातिर की जाती है। उनको खाना खिलाया जाता है। दोनों को भेट सौगात दी जाती है। पतंग उड़ाके उसका भी आनंद लिया जाता है। 

                                                                                                            A night lit up on Makar Sankranti Uttarayana Festival with kites and lights India, By Bhavishya Goel from Gothenberg, Sweden, image                                                                    compressed  and resized, Source is licensed under CC BY 2.0                                                                                                                                                                   Chapdi Undhiyu (Tavo), By Darshandkt, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.

मकर संक्रांति को गुजरात में मकर संक्रांति ही कहते है। गुजरात में यह दो दिन का त्यौहार होता है। उत्तरायण और वासी उत्तरायण। इस त्यौहार का गुजरात में बेसब्री से इंतज़ार होता है। इसदि सभी लोग उंधियु, तिल, मुगफली, चना और ड्राई फ्रूट चिक्की, तिल के लड्डू आदि बनाते है। सभी लो ज्यादातार दिन छत याने टेरेंस पर ही गुजरते है। पुरे दीन पतंग उड़ाते है। इस दिन पूरा गुजरात पतंगों से भर जाता है। रात भी कंदील उडाते है। रत को भी सारा आकाश कंदील की रौशनी से भर जाता है। यह त्यौहार बच्चे से लेकर बुढ्ढे अपने तरीके से मनाते है। 

                                                                                                                                     IMG- 20200114-WA0022, By A25U19H, image compress and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0
                                      KITE SHOP'  Bandra , By Rudolph A Furtado, image compressed and resized, Source is licensed under CC0 1.0

मकर संक्रांति इसी नाम से महाराष्ट्र में यह ३ दिन तक मनाते है। इस त्यौहार को काफी पवित्र मना जाता है। इस दिन सभी लोग एक दूसरे के प्रति रहे हुए वैरभाव को भुलाकर गले मिलते है। पुराने झगड़े और मन मुटाव को भूलकर एक नए रिश्ते की शुरुआत करते है। एक दूसरे के घर जाकर अभिवादन करते है। एक दूसरे को तिल और गुड़ से बने लड्डू देते है और कहते है की तिल गुड़ खावा आणि गॉड गॉड बोला याने मीठा खाके मीठा बोलो।

औरते घर मे पुरन पोली बनाती है। जो की महाराष्ट्र की बहुत ही स्वादिष्ठ वानगी है। जो पुरे भारत में मशहूर है। औरते हल्दी कुमकुम नामक त्यौहार मनाती है।

                                                                                                                                             Pongal 2056, By Kevinikil, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                                                                            Cpongal, By Thiagupillai, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

 मकर संक्रांति तमिलनाडु में पोंगल के नाम से पुरे भारत में प्रसिध्ध है। पोंगल ४ दिन तक मनाया जाता है। उसमे जून वस्त्र, घर का कबाड़ और जूनि पुरानी चीजे निकल देते है। नए वस्त्र और नयी चीजों की खरीदारी करते है। अपने जानवरो को भी सजाते है। नै फसल के चावल मंदिर में जाकर भगवन को अर्पण करते है और अगली फसल अच्छी हो इसलिए प्राथना करते है। 

                                                                                                    Bihu -Dance- assam, By Musta firoz ahmed, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                   Photo of a woman making Til- Pitha Magh Bihu, By Gitika Gayan, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

मकर संक्रांति असम में मध् बिहू के नाम से मनाया जाता है। असम में यह फसल की कटाई की ख़ुशी मे मनाया जाता है। नए फसल की ख़ुशी में रात के वक़्त अग्नि जलाकर लोग नाचते और गाते है। तिल, गुड़ और मुंगफली आदि की मिठाई बनाकर खाते है। इसे माघ बिहू भी कहते है।  

               
Pouse Sanskriti Special, By Reyacarmelite, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0
Colors of  Celebration, By Kazi Tahsin Agaz (Apurbo), image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0
                              
बंगाल में मकर संक्रांति को "पोश पोरबों" कहते है। बंगाल में ये ३ दिन का उत्सव होता है। यहभी नयी फसल के चावल कि कटौती के रूप में मनाया।  इस त्यौहार में खजूर गुड का शरबत पीते है। इस त्यौहार में लक्ष्मी को पूजते है। उसे "बहार लक्ष्मी" पूजा कहते है, या "मोकोर संक्रांति" भी कहते है। 

धार्मिक परंपरा के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओ की रात्र याने नकारात्मा का प्रतिक मानते है। और उत्तरायण को देवताओ के दिन याने सकारात्मक रूप में मनाया जाता है। इस दिन से देवताओ के दिन की शुरुआत होती है।  इसलिए सभी शुभकार्यो की शुरुआत होती है। इस दिन स्नान और दान का अधिक महत्त्व होता है। ज्यादातर  वस्त्रदान और तिल दान का अधिक महत्त्व होता है। भगवान् का जप,तप और पूजा का अधिक महत्त्व होता है। इस दिन किया हुआ दान का, अधिक गुना पुण्य  मिलता है। साल में १२ सक्रांति आती है इसमें मकर संक्रांति ख़ास है, क्योकि पुराणों के अनुसार, देवताओ का दिन की शुरुआत होती है।

                                          मकर संक्रांति से जुडी पौराणिक कथा

                                                                                                                                      SHANI GOD< By Indian post, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0                                                                                                         Surya riding on 7 horses Chariot, By Gita Press Gorakhpur, image compressed and resized, Source is licensed under CC0 1.0

मकर संक्रांति  की कथा  सूर्य देव और उसके पुत्र शनि देव पर आधारित है। सूर्य देवता का विवाह विश्व कर्मा की बेटी संज्ञा के संग हुआ था। वह एक सरल और कोमल स्वभाव की थी। वह नरम थी और सूर्य देव के ताप को सहन नहीं कर सकती थी। इसलिए वह खुद तपस्या करके अपना तेज बढ़ाना चाहती थी। ताकि सूर्य देव के ताप को सहन कर सके। मगर इसका उपाय ढूंढते समय बीतता गया और वह वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नामक तीन संतान की माता बन चुकी थी। इतना समय बीतने के बाद भी वह सूर्य देव का ताप सहन नहीं कर सकती थी। 

इसलिए उन्हों ने तपस्या करने का निर्णय किया। इसलिए उन्हों ने अपनी छाया का निर्माण किया। और उसमे प्राण फूंककर अपनी जैसी ही बना दिया। उसका नाम "सवर्णा" रखा। वह उसी की छाया थी और संज्ञा ने ही सवर्णा को उत्प्पन किया था। इसलिए उसे आदेश दिया की आज से तुजे मेरी जगह लेनी है। मेरे बच्चों और मेरे पति को जैसे मैं सम्हालती हु वैसे ही तुजे सम्हालना है और ये बात तेरे मेरे बीच ही रहनी चाहिए। मेरे पति याने सूर्यदेव और बच्चो को पता नहीं चलना चाहिए। 

अपनी जिम्मेदारी संज्ञा को सोपकर संज्ञा अपने पिता के घर गयी और साड़ी बात बतायी। तब संज्ञा के पिताजी को ये बात योग्य नहीं लगी। इसलिए उसने अपने घर वापस जाने को कहा। संज्ञा उसके पिता के घरसे निकल गयी मगर अपने घर न जाकर जंगल में तप करने लगी उसने घोड़ी का रूप ले लिया ताकि कोई उसे पहचान ना सके।

इस तरफ सूर्य देव के साथ रहते रहते सवर्णा, सावर्णि मनु, शनि देव और भद्रा नामक तीन बच्चो की माँ बन गयी। सवर्णा महादेव की भक्त थी तो शनिदेव के समय सवर्णा ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। तपस्या के समय वह धूप मे कही घंटो की कठोर तपस्या की। इसका असर गर्भ में रहे शनि के ऊपर पड़ा और उनका रंग काला पड गया। मगर साथ ही उसकी माँ ने जो तपस्या की थी उसका तेज और शक्ति उनमे भी आ गया था।

जब शनिदेव का काला वर्ण देखा तो सूर्य देव ने सवर्णा पर शक किया और उसे घर से निकाल दिया। उस वक़्त शनिदेव छोटे थे मगर उस उम्र में जब उन्हों ने सूर्य देव के सामने क्रोध से देखा तो सूर्य देव भी काले पद गए और जिस रथ पर सवार थे वह भी रुक गए। इसलिए पुरे संसार में हाहाकार मच गया। इसके उपाय के लिए सूर्य देव महादेवजी के पास गए तब महादेवजी ने सूर्य देव का शक दूर किया। और समझाया की तेरी पत्नी निर्दोष है। 

अपनी गलती समज मे आते ही, वह जाकर अपनी पत्नी और शनि देव को घर ले आये और उनकी माफ़ी मांगी। माफ़ी मांगते ही वह स्वस्थ हो गए। अपने पुराने रूप में आ गए। मगर सूर्य देव और शनि देव के बीच रिश्ते में जो दरार पड गयी थी वह कायम रही। साथ में रहने के बावजूद भी सूर्य देव शनि देव के क्रोधित स्वभाव से परेशान थे। शनिदेव का काला रंग भी उन्हें पसंद नहीं था। इसलिए फिर दोनों को अलग कर दिया।

इस बार शनिदेव ने सूर्य देव को श्राप दिया की आप को कुष्ठ रोग होगा और आप को आपके जिस तेज का घमंड है वही नहीं रहेगा और आप निस्तेज हो जाओगे। इस तरह सूर्यदेव कुष्ट रोगी बन गए। सूर्य देव की यह हालत उनकी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से नहीं देखी गयी। इसलिए यमराज ने महादेव की तपस्या करके सूर्य देव को स्वस्थ किया। 

सूर्यदेव शनिदेव ने दिए हुए श्राप से क्रोधित थे इसलिए स्वस्थ होते ही सूर्यदेव ने शनिदेव का घर जो कि कुंभ राशि था, उसे जला डाला।  जब ये बात की खबर यमराज को हुई तो उन्हों ने सूर्यदेव को समझाया और शनिदेव के घर भेजा और शनिदेव को मनाने को कहा। यमराज की बात जब सूर्य देव शनिदेव के घर जो की अब मकर राशि था। वहा गए और सुलह की इस से प्रस्सन होकर शनिदेव ने अपने पिता के चरण पखाले और मतभेद दूर किये। इसलिए जब सूर्यका शनिके नए घर मकर में प्रवेश होता है इस घटना को मकर संक्रांति कहते है।  

मकर संक्रांति पुरे भारत में अलग अलग तरीके से मनाई जाती है। इस संक्रांति का धार्मिक सांस्कृतिक और पारम्पारिक महत्त्व भी है। इसका वैज्ञानिक समाधान भी है।

आगे का पढ़े :  १. २६ जनवरी  2. नेताजी सुभाषचंद्र बोस                

PS. These images are taken from the internet, no copyright is intended from this page. If you are the owner of these pictures kindly e-mail us we will give you the due credit or delete it. 















  

Previous
Next Post »

Please do not enter any spam link in the comment box. ConversionConversion EmoticonEmoticon