स्वामी विवेकानंद २०२५ - सभी हीरो के हीरो

                                               स्वामी विवेकानंद २०२५ - सभी हीरो के हीरो 

                                                Swamy-Vivekananda, By Manjappabg, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

अनुच्छेद/पेरेग्राफ शीर्षक
१. सभी हीरो के हीरो
२. नरेंद्र और गुरु रामकृष्ण
३. नरेंद्र से स्वामीजी बनने का सफर
४. अमरीका में अस्मरणीय और अदभुत भाषण
५. स्वामी विवेकानंद के जीवन के यादगार प्रसंग से शिख
६. स्वामी विवेकानंद ने युवा को सन्देश
स्वामी विवेकानंद
को अगर सभी हीरो के हीरो कहा जाए तो यह बिलकुल सच होगा। हमारे बहोत से लोगो के हीरो अब्दुल कलाम, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री हो सकते है मगर इन सब के हीरो एक ही थे,और वो थे स्वामी विवेकानंद। भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी वह कई लोग के हीरो रह चुके है। उनमे से एक प्रचलित नाम है निकला टेसला। जिनके नाम पर ३०० से अधिक पेटेंट और खोज रजिस्टर है। 

स्वामी विवेकानंद की माता बहुत ही धार्मिक थी। यह चाहती थी की उसका आनेवाला बेटा बहोत विद्वान हो और पुरे संसार में उनके कुल का नाम रोशन करे। उसकी गर्भावस्था दरमियान कहते है के, उनकी माता को स्वप्न में महादेवजी आये और महादेवजी ने कहा मै खुद तुम्हारे घरमे जन्म लूंगा। स्वामी विवेकानंदजी का जन्म १२ जनवरी १८६३ में हुआ। उनका पूरा परिवार पढ़ा लिखा था। उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। पिता एक कलकत्ता हाई कोर्ट के वकील थे। उनका स्वभाव परोपकारी था। उन्हों ने अपने बेटे का नाम नरेंद्र रखा। प्यारसे सब उसे नरेन् कहते थे।

                                                               नरेंद्र और गुरु रामकृष्ण 

                                                                                                                                                                             **** Wallpaper of Swami Ramkrishna Paramahansa, By Anurag toby, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0                                **** Kanch Mandir The Idol of Shri Ramkrishna and Sarada Maa, By SuparnaRoyChaudhary, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4..0

 नरेंद्र जब जवान हुए पर उन्हें मौज शौख और बाहरी दुनिया में हो रहे विकास से कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनको आध्यत्मिक जगत से लगाव था। यह एक गुरु की तलाश में थे जो उसे आध्यत्मिक मार्गदर्शन करे। तक़दीर से उनकी मुलाकात दक्षिण के मंदिर में रामकृष्ण परमहंस से हुयी। इस तरह विख्यात गुरु-चेला की जोड़ी बन गयी।रामकृष्ण परमहंस भी अपनी बाते नरेंद्र को बेझिझक बताते थे क्योकि वो जानते थे की उनकी बाते वही बराबर समज सकते थे। मरते वक़्त उन्हों ने नरेंद्र को बुलाकर कहा की मै ने अपना सब ज्ञान तुम्हे दिया है। मेरे जाने के बाद तुम्हे यह पुरे भारत के युवा में बाटना है और उन्हें जगाना है।  उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के वक़्त नरेंद्र की उम्र सिर्फ २३ साल थी।

                                                                 नरेंद्र से स्वामीजी बनने का सफर

            Viveka Tirtha (15585153228), By Ramkrishna Math and Ramkrishna mission Belur Math, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0

उतनी छोटी सी उम्र में भी वह अपने गुरु के दूसरे शिष्यों को पढ़ाते थे। उनको दुनियाभर के पुस्तक का ज्ञान देते थे पूरा दिन अपने घर की जवाबदारी के लिए कमाई करते थे। रात को अपने गुरु के सभी शिष्योंका मार्गदर्शन करते थे। अब वो सब उनके शिष्य बन गए थे। नरेंद्र उनके गुरु थे। नरेंद्र अपने शिष्यों को धर्म, कर्म, योग और दुनिया भरमें होने वाले नए प्रयोग, नयी खोज और दुनिया भर के महानुभावो के बारे मे ज्ञान देते थे। वो बड़े ही ज्ञानी थे। 

इतने ज्ञानी होने के बावजूद बड़े ही सादगी में रहते थे। कहते है की उनके पास सिर्फ एक लोटा और तन पे एक कपड़ा होता था। उन्हों ने देखा देश में युवा अपने धर्म को भूलने लगे है। समाज छुआछूत और जाती में बट गया है। तब उन्हों ने भारत में युवा को जाग्रत करने और सनातन धर्म के ज्ञान को फ़ैलाने के लिए पुरे भारत का भ्रमण करने का निश्चय किया। उन्हों ने वाराणसी और काशी का सफर बिना पैसे और पैदल चलके कीया। उनकी यह सादगी देखकर उनके शिष्य उन्हें स्वामीजी कहने लगे।   

                                                   अमरीका में अस्मरणीय और अदभुत भाषण 

अपने भर्मण के दरमियान, उनकी मुलाकात ४ जुन १८९१ में, खेत्री के राजा अजीतसिंह से आबू पर्वत पर हुई । राजा अजीतसिंह ने ही उनको नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद का नाम दिया। खेत्री के राजा अजीतसिंह ने ही स्वामीजी को शिकागो जाने की व्यवस्था की थी। 


      swami vivekanand image shows, Speech is givan by Swami vivekanand in Chicago  USA in 1893.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         १८९३ के सप्टेम्बर महीने में एक "पार्लामेंट ऑफ़ रिलिजन" नाम का एक कार्यक्रम अमेरिका में हो रहा था। यहकार्यक्रम कोलम्बस ने अमेरिका ढूंढा इसके लिए यह इवेंट मनाया जाता था। इसमें दुनिया की टेक्नोलॉजी कीप्रगतिऔर दुनिया अनेक धर्म की चर्चा होती थी। इस में दुनिया के अनेक देश में से धार्मिक प्रतिनिधि आते थे। स्वामी विवेकानंद को भी इसने जाने का मौक़ा मिला। वहा हरेक देश के हरेक धर्म के प्रतिनिधि आये थे। 

हरेक धार्मिक प्रतिनिधि को वहा भाषण देना था। यह बात  स्वामी विवेकानंद  को पता ही नहीं थी। कुछ भी तैयारी के बिना उन्हों ने भाषण दिया। उनके भाषण में उन्हों ने सब के धर्म की प्रसंशा की किसी धर्म को उचा या निचा नहीं बताया मगर हरेक के धर्म को सन्मान देनेकी बात कही। लोगो को उनके भाषण से नया दृष्टिकोण मिला और बहोत ही प्रभावित हो गए। उसके लिए लोगो ने खड़े होकर तालिया बजाकर सन्मानित किया। उनके भाषण की चर्चा भारत के कई अखबार में छपी। स्वामी विवेकानंद  के भाषण वजह से दुनिया के देशो में भारत का सन्मान बढ़ा। सनातन हिन्दू धर्म के प्रति पुरे संसार का ध्यान केंद्रित हुआ। इस भाषण ने पूरी दुनिया में सनातन धर्म का, भारत के ज्ञान और भारत की महान विरासत का डंका बजा दिया था। 

 अमेरिका में कई लोग स्वामीजी को मदद करने के लिए तैयार थे। मगर स्वामीजी ने किसीसे मदद नहीं ली। अपने अमेरिका में रहने का खर्चा निकल ने के लिए यूनिवर्सिटी में लेक्चर दिए। उन्हों ने न्यूयोर्क कैम्ब्रिज और वाशिंगटन जैसे यूनिवर्सिटी में लेक्चर दिए। उन्हों ने सबको दया, प्रेम, सादगी और एक दूसरे के धर्म को आदर देनेको कहा। विश्व की हरेक संस्कृति को एक दूसरे का सन्मान करने को कहा। 

स्वामी विवेकानंद  को अपना जीवन की सही दिशा मिल गयी थी। अपने भाषण द्वारा अपने विचार उन्हों ने पूरी दुनिया में फैलाये।  इस तरह उन्हों ने अपनी माता की इच्छा को भी पूरा किया। अपने विचारो से पूरी दुनिया को प्रभावित किया। अब वह भारत में आकर गरीबो को मदद करना चाह्ते थे । इसलिए उन्हों ने भारत आने का निर्णय किया।  जब वह भारत लौटे तो हजारो की मेदनी ने उनका स्वागत किया। 

लोगो ने स्वामी विवेकानंद भव्य स्वागत किया। उनके ज्ञान और संस्कारो से उन्हों ने पूरी दुनिया को अपनी और ध्यान केंद्रित करने को मजबूर किया। अपना देश का नाम और अपने हिन्दू धर्म का नाम पूरी दुनिया में फैलाया। उन्हों ने दुनिया को बता दिया की सिर्फ और सिर्फ अपने ज्ञान, उत्तम विचार और अपने धार्मिक संस्कारो से भी दुनिया को झुकाया जा सकता है। यही स्वामीजी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। 

स्वामी विवेकानंद  मद्रास और कलकत्ता गए। जहाँ भी गए लोगो ने उन्हें सन्मानित किया। स्वामीजी के पास कोई धन दौलत नहीं थी। फिरभी जो सन्मान मिलता था वह अद्भुत था। लोग उनके विचार जानना चाहते थे। उनकी बाते सुनना चाहते थे। अब स्वामीजी का स्वास्थय ठीक नहीं रहता था। उन्हें अस्थमा हो गया था। उनकी हालत देखकर डॉक्टर ने उन्हें उत्तरी भारत में जाने की सलाह दी क्योकि वहा का मौसम अस्थमा की बिमारी के लिए ज्यादा अनुकूल था।

वैसे भी स्वामीजी को उत्तरी भारत यानेकी पंजाब, हरियाणा जैसे भाग से आमंत्रण मिलते थे इसलिए वह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में भाषण दिए। सबको भाईचारे से रहने के लिए जातिवाद छोड़ने को कहते थे। अलग अलग जाती में शादी करने भी कहते है। ताकि जातिवाद खत्म हो जाए। 

स्वामी जी की  तबियत ठीक नहीं रहती थी।जब वह बैलूर मठ थे। उनकी बीमारी बढ़ गई थी। स्वामीजी को पता चल गया था की वह अब ज्यादा दिन नहीं निकल पाएंगे। यह बात स्वामीजी ने अपने शिष्य को बतया और अपना अंतिम संस्कार कहा करना है यह भी बता दिया था। अंतिम शाम में उन्हों ने करीब एक घंटा अपनी प्राथना में अकेले बिताया|  उसी रात को करीब ९ बजे ४० वर्ष की आयु में ही स्वामी विवेकानंद ने प्राण त्याग दिए। 

                                      स्वामी विवेकानंद के जीवन के यादगार प्रसंग से शिख 

                                                       ध्यान से अभूतपूर्व स्मरण शक्ति  मिलती है                        

स्वामी विवेकानंद जब विदेश से भारत आये और उन पर अस्थमा का हमला हुआ।  उस वक़्त उन्हें पता चल गया था की अब वो ज्यादा  दिन नहीं जी पाएंगे। ऐसी अवस्था में भी एनसायक्लोपीडिया ब्रिटानिका पढ़ रहे थे। तब एक  शिष्य ने कहा की इस पुस्तक के साडे २५ भाग पढ़ना, समजना और कंठस्थ करना काफी कठिन है।  तब स्वामी पुस्तक के १० भाग पढ़ चुके थे। स्वामी ने कहा मै ने इस के १० भाग पढ़े है अब आप इस में से मुझे कुछ भी पूछ सकते है। जब शिष्य ने स्वामी को पश्न पूछे तो, स्वामीजी ने उनके सही जवाब दिए। इतना ही नहीं उन्हों ने उस पुस्तक के कई वाक्य हूबहू बोल के दिखाए। इतनी गंभीर बिमारी में भी उनकी याद शक्ति अकबंध थी।  

                                                            इन्द्रियों पर नियंत्रण बहोत  जरुरी है 

स्वामी विवेकानंद को विदेश में एक महिला स्वामीजी से मिली और कहा की मै आपसे शादी करना चाहती हूँ । तब स्वामीजी ने कहा मुझसे ही क्यों शादी करना चाहती हो? तब महिला ने कहा मै आप के जैसा ही महान, बुद्धिमान और गुणवान पुत्र चाहती हूँ। वह तब ही संभव जब आप मेरे से शादी करेंगे। तब स्वामीजी ने कहा मै तो सन्यासी हूँ, मै तो शादी नहीं कर सकता। मगर मै एक रास्ता बताता हु। आज से मै आप का बेटा बन जाता हु और इस तरह आप मेरे जैसे बेटे की माँ भी बन जाओगी और मुझे शादी भी नहीं करनी पड़ेगी।  तब महिला स्वामीजी के पैरो में गिर गई और कहा कि आप साक्षात् भगवान के रूप है।                          

                                                           हमेशा लक्ष्य पर ध्यान पर होना चाहिए                                       

एक बार अमेरिका में स्वामी विवेकानंद ने कुछ लड़को को बंदूक से निशाना लगाते देखा।  मगर किसी का भी निशाना नहीं लग रहा था। तब स्वामीजी ने एक लड़के से बंदूक लेकर अचूक निशाना लगाया। इस तरह उन्हों ने १२ सही निशाने लगाए। तब लड़को ने उनके सचोट निशाने के बारे में पूछा तो स्वामीजी ने लडकोंको कहा अपना लक्ष्य अपने काम के ऊपर ही रखो। अपने ध्यान को जरा भी भटकने मत दो। तब सफलता मिलती है चाहे काम कोई भी हो। 

                                                                    संस्कृति से चरित्र बनाता है      

एक बार स्वामी विवेकानंद जी विदेश गए तब उनकी वेशभूषा याने की पघडी और शरीर पर लपेटे हुई कपडे को देखकर लोगो ने उनके बाकी सामान के बारे में पूछा तो उन्हों ने कहा बस इतना ही है। उनका जवाब सुनकर सभी हँसने लगे और बोले यह कैसे संस्कृति है जिस मे न तो कोट पहनते है ना शर्ट। तब स्वामी ने जवाब दिया आपकी संस्कृति आपका दरजी नक्की करता है और हमारी संस्कृति हमारा चरित्र नक्की करता है। स्वामीजी का जवाब सुनकर सब चुप हो गए। 

                                                            विघ्नसंतोषी को उसीकी भाषा में जवाब देना है 

स्वामी विवेकानंद जब शिकागो की विश्व परिषद् में भारत की ओर से सनातन हिन्दू धर्म की प्रतिनिधि के रूप में गए थे। तब अपना भाषण की शुरुआत शून्य से की थी। उसकी पीछे एक रोचक प्रसंग है। शिकागो की परिषद् में उनके नाम के पहले विघ्नसंतोषी आयोजक लोगो ने ० याने शून्य लगा दिया था और भाषण के स्टेज सामने भी एक सफ़ेद कपड़ो में काला रंग का ० शुन्य बनाया था ताकि विवेकानंद विचलित हो जाए। स्वामीजी सब समज गए इसलिए उन्हों ने ज़रा भी विचलित हुए बगैर ० शून्य से ही अपने भाषण की शुरुआत की और विघ्नसंतोषी लोगो को उनकी ही भाषा मे जवाब दिया। 

                                                                लेने से ज्यादा देने से ख़ुशी मिलती है            

स्वामी विवेकानंद जब अमेरिका में अपने कार्यक्रम देने गए थे तब एक अमेरिकी महिला उनके लिए भोजन बनाती थी। एक दिन स्वामीजी थककर जब घरमे भोजन के लिए आये और महिला ने भोजन परोसा। तब कई गरीब बच्चे उनके सामने आये तो स्वामीजी ने अपना पूरा भोजन उन बच्चो में बाट दिया। यह देखकर महिला बोली अब आप क्या खाओगे तब स्वामीजी ने जवाब दिया इस भोजन का काम पेट की अग्नि शांत करने का है। इस भोजन ने मेरा नहीं तो किसी बच्चो के पेट की अग्नि को शांत किया। ऐसे विचार थे स्वामीजी के जिसने सबके दिल में अपनी जगह बनाली थी।  

                                                स्वामी विवेकानंद ने युवा को सन्देश 

**** काम,क्रोध,मोह,अहंकार और लोभ यह ५ दोष हरेक इंसान में होते है। जो जीतनी जल्दी इस दोषो को अपने जीवन से दूर कर सकता है, वह उतनी ही जल्दी जीवन में प्रगति कर सकता है। 

****जीवन में हमेशा अपना लक्ष्य स्पष्ट रखो। यही मुकाम की स्पष्टता ही आप को जीवन में विजेता बनाएगी।

****आपका स्वभाव अगर नकारत्मक है। तो पहले इस नकारात्मता से लड़ो उसे दूर करो। उससे भागो मत। तब ही आप सही मंज़िल को देख पाओगे।

****हररोज़ सुबह ब्रह्म मुहूर्त में याने ५ बजे उठाना चाहिए। इस से बुद्धि तेज होती है। सकारात्मता बढाती है। शरीर स्फुर्तीला होता है। शरीर में से आलश्य को भाग जाता है, इसलिए शरीर को नयी ऊर्जा मिलती है। जप तप और कोई भी धार्मिक या आध्यात्मिक कार्य के लिए अनुकूल समय है।   

**** जीवन में शिक्षा अत्यंत जरुरी है वरना जीवन अंधकारमय  हो जाता है। हर समय नया शिखना चाहिए।

****स्वामी विवेकानंदजी का अंग्रेजी में बहोत ही प्रसिद्ध वाक्य है।  जो युवा को मार्गदर्शन देता है। वह है :                                                                           There is only one difference between Dream and Aim.                                                                                          Dream requires effortless sleep and                                                                                                           Aim requires sleepless efforts.                                                                                                                            so Sleep for Dreams and                                                                                                                                          Wake up for Aims.                     

स्वामी विवेकानंद जैसे चरित्रवान, परोपकारी, गुरु का आज्ञाकारी शिष्य, बुद्धिमान, देश प्रेमी, अभूतपूर्व स्मरणशक्ति वाला योगी भारत जैसी धरती पर ही, सदियों में एकबार जन्म लेता है। इसलिए भारत सरकार ने भी उसे उचित सन्मान दिया है। स्वामी विवेकानंद की जन्म जयंती को याने १२ जनवरी  को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

                                             

आगे का पढ़े :  १. मकर संक्रांति २. २६ जनवरी 

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