राम नवमी २०२५
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अनुच्छेद (पैराग्राफ ) | शीर्षक |
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१. | हिन्दू की धार्मिक आस्था का सबसे बड़ा त्यौहार |
२. | राम नवमी के २०२५ के मुहूर्त |
३. | राम नवमी कैसे मनाते है? |
४. | पुराणों से जुडी राम जन्म कथा |
५. | प्रभु राम के अवतार में राक्षसो का संहार |
राम नवमी का त्यौहार, इस साल ०६ अप्रैल २०२५ , रविवार को मनाया जाएगा। राम नवमी की शुरुआत शनिवार, ०५ अप्रैल २०२५ को शाम को ०७:२६ को होगी। राम नवमी की समाप्ति ०६ अप्रैल २०२५ , रविवार को शाम को ०७ :२२ को होगी। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह ११:०८ से दोपहर १:३९ मिनट तक होगा। यानि मुहूर्त की अवधि २ घंटा और ३१ मिनट की होगी। राम नवमी मध्यान समय दोपहर १२:२४ को है। राम नवमी कैसे मनाते है?
Rama, Sita and Lakshmana, By Vijay chennupati, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0
रामनवमी के दिन, प्रातः काल उठकर नित्य कार्यक्रम के बाद ,स्न्नान आदि करके पूजा की तैयारी करते है। एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर सुपारीके ऊपर रोली और सिन्दूर लगाके गणपतिजी की स्थापना करे। सुपारी की जगह अगर श्री गणपतिजी की मूर्ति स्थापित करे तो ज्यादा अच्छा है। श्री गणपतिजी को मौली, दूर्वा और लाल फूल के साथ लड्डू का नैवेध चढ़ाते है।
श्री गणपतिजी के शुभ स्थापन के बाद, श्री राम प्रभु की मूर्ति या श्री राम, सीताजी और हनुमानजी का फोटो स्थापित करते है। फोटो के ऊपर मौली, फुलो का हार चढ़ाते है. रामजी को चन्दन का टिका करते है। पिले फूल चढ़ाते है। क्योकि रामजी विष्णुजी के अवतार है तो उन्हें पिली रंग ज्यादा पसंद है। उसके बाद दिप और धुप से आरती की जाती है। भगवन को बतासे और मिठाई का नैवेद का भोग लगाते है। इसके बाद राम चरित मानस का पाठ करते है। कई घर में हनुमान चालिशा और रामायण भी सुनते है। सार्वजनिक स्थान पर रामजी भजन भी करते है। इस प्रकार राम नवमी मनाते है।
पुराणों से जुडी राम जन्म कथा
त्रेतायुग में सूर्यवंशी राजा दिलीप,उनके पुत्र रधू, उनके पुत्र अज और उनके पुत्र दशरथ जो की अयोध्या के राजा थे।राजा दशरथ को तीन रानिया थी। जिनके नाम थे कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा। राजा दशरथ को तीन रानी होने के बावजूद एक भी संतान नहीं थी। इसलिए राज्य के कुलगुरु वशिष्ठ के मार्गदर्शन के अनुसार, राजा दशरथ ने श्रीगी नाम के ब्राह्मण से एक यज्ञ करवाया।
यज्ञ के समाप्ति पर अग्निदेव ने प्रस्सन होकर राजा दशरथ को खीर से भरा हुआ कुंभ दिया और कहा की आप अपनी इच्छा के अनुसार खीर आपकी रानीयो में बाट दे। यह खीर दशरथ राजा ने रानी कौशल्या को दी। रानी कौशल्या ने आधी खीर दूसरी रानी कैकेयी को दी। फिर दोनों रानी कौशल्या और कैकेयी ने अपने हिस्से की आधी खीर तीसरी रानी सुमित्रा को दी। इस प्रकार खीर बाटी गयी।
खीर के बटवारे के अनुसार, रानी कौशल्या ने राम को, रानी कैकेयी ने लक्ष्मण को, जबकि सुमित्रा ने भरत और शत्रुध्न को जन्म दिया। क्योकि सुमित्रा को रानी कौशल्या और रानी कैकेयी दोनों ने खीर में से हिस्सा दिया था।
प्रभु राम की माता कौशल्या को कहा गया था की, पुत्र का जन्म होगा अगर पुत्र का जन्म दोपहर तक होगा तो यह आपका पुत्र राजा बनेगा और जीवन में सुख, समृद्धि,धन, वैभव,लोकचाहना और ऐसोआराम में ज़िंदगी बीतेगी। जीवन में कोई कष्ट नहीं आएगा। अगर पुत्र का जन्म दोपहर के बाद हुआ तो जीवन अति कष्टमय बीतेगा।
इस कारण माता कौशल्या चिंतित रहती थी और मनोमन चाहती थी की पुत्र का जन्म सुबह में ही हो। प्रभु राम का जन्म चैत्र माह के शुकल पक्ष की नवमी को बरोबर मध्यान के समय हुआ तब न सुबह थी और न ही शाम थी। इसलिए प्रभु राम को धन, वैभव, ऐशोआराम, लोकचाहना, राजपाट आदि सबकुछ मिला मगर बहोत संघर्ष अतिशय कष्ट और लम्बे इंतज़ार के बाद।
प्रभु राम के अवतार में राक्षसो का संहार
वैसे तो विष्णुजी के हरेक अवतार पृथ्वी पर अधर्म को मिटाकर धर्म की फिर से स्थापन के लिए ही होता है। इस तरह श्री राम का अवतार भी पृथ्वी पर राक्षसी ताक़तों को हटाकर धर्म की पुनः स्थापन के लिये ही हुआ था। श्री राम काल में भी अनेक राक्षसी ताक़त थी जिसे श्री राम ने इस पृथ्वी से नेस्तानाबूद कर दिए।

उनका पहला और सबसे बड़ा राक्षस लंका पति रावण था। रावण बहुत ही बड़ा तपस्वी ब्राह्मण था। वह एक क्रूर राजा के साथ साथ अति ताक़तवर और कुशल राजा भी था। जिसकी ताक़त से देवता भी डरते थे। क्योकि वह एक मायावी था। उसके उपरांत बड़ा तांत्रिक भी था। कहते है की उसके प्राण उसकी नाभि में थे। वह बड़ा ज्योतिष शास्त्र का ज्ञानी भी था। कहने का मतलब है की उसे किसी भी तरह से मिटाना मुश्किल था , इसलिए ही विष्णु जी को रावण को मारने के लिए अवतार लेना पड़ा।
अयोध्या के पास ही सुन्दर वन था। इस वन मे अनेक ऋषिमुनि और तपस्वी रहते थे। ऋषिमुनि तपस्या के साथ साथ यज्ञ भी करना पड़ता था। इस यज्ञ को ताड़का नामक राक्षसी अपवित्र कर देती थी। आखिर विश्वामित्र ऋषि ने अयोध्या जाकर राम और लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा के लिए साथ लाये। ताड़का सुकेतु यक्ष की बेटी थी। मगर उसकी शादी सूंद नामक राक्षस से हुई थी। इसलिए उसे भी राक्षस ही माना जाता था। उसके दो पुत्र थे सुबाहु और मारीच। विश्वामित्र ऋषि के यज्ञ के दौरान ताड़का विघ्न डालने आयी तब राम और लक्ष्मण ने ताड़का और उसके पुत्र सुबाहु को मार दिया। मगर मारीच नामका ताड़का पुत्र बच गया।
राम और लक्ष्मण वनवास के दरमियान, जब सूर्पणखा का नाक लक्ष्मण ने काटा तब वह पहले रावण के दो सौतेले भाई खर और भूषण के पास गयी थी। रावण के पिताजी ऋषि विष्वसती दो पत्निया थी कैकशी जिस से रावण का जन्म हुआ था। दूसरी पत्नी से खर और दूषण का जन्म हुआ था। लक्ष्मण ने सूर्पणखा का नाक काट लिया था तब पहले वह खर और दूषण के पास गई थी। दोनों भाई बदला लेने के लिए,अपनी अपनी सेना के साथ राम और लक्ष्मण से लड़ने गए थे। मगर राम और लक्ष्मण ने दोनों भाई ने खर और दूषण को ही मार दिया।

मारीच रावण का मामा था। इसलिए जब सूर्पणखा का नाक लक्ष्मण ने काट कर उसका अपमान किया। तब सूर्पणखा ने रावण को बदला लेने के लिए कहा। तब रावण ने सीता का हरण करनेके लिए मारीच को हिरन बनाने के लिए तैयार किया। उस मारीच ने ही रावण के सहयोग करके, सीताजी को ललचाने के लिए सोने का हिरन का रूप लिया। उसी हिरन को पाने के लिए सीताजी ने राम और लक्ष्मण अपने से दूर किया। उस परिस्थिति का लाभ लेकर रावण सीताजी को उठा ले गया। मगर मारीच राक्षस राम के हाथो मारा गया।

अब सीताजी की खोज में, राम और लक्ष्मण को दंडक वन में कबंध नाम का विचित्र राक्षस मिला। कबंध को सर और गला ही नहीं था। सिर्फ एक बड़ी आँख चहरे की जगह पर थी। वह भी ऋषिमुनि के यज्ञ में विघ्न डाल रहा था। मगर वह बहुत शक्तिशाली था। उसने राम और लक्ष्मण दोनों को एकसाथ दबोच लिया था। उन तीनो के बीच भीषण युद्ध हुआ। अंत में लक्ष्मण ने उसके दोनों हाथ काट दिए थे। इस तरह फिर ऋषिमुनि को संकट से उभारा।मरने से पहले,जब कबंध को राम और लक्ष्मण के हाथो मौत का पता तो, वह संतुष्ट होकर बोला "मै मुकत हो गया"।

राम और रावण के युद्ध में जब रावण के एक के बाद मायावी राक्षस मरने लगे और सेना का मनोबल टूटने लगा तो रावण ने अपने भाई कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण अतिशय विशाल काया का मालिक था। वह ६ माह सोता था। ६ माह के बाद एक दिन खाने के लिए जागता था फिर सो जाता था। कठिन तपस्या के बाद, ब्रह्माजी से वरदान मांगने में जबान फिसल गई। वरदान में इन्द्रासन के बजाय निंद्रासन मांग लिया था। जब युद्ध क्र मैदान मे, कुम्भकर्ण ने जब राम की सेना को बहोत ही क्षति पहुचायी। तब श्री राम के तीर से मारा गया।
अब कुम्भकर्ण की मौत के बाद, रावण ने अपने सबसे शक्तिशाली और मायावी पुत्र मेघनाद को युद्धके मैदान में उतारा। उसका दूसरा नाम इंद्रजीत था क्योकि उसने इन्द्रको पराजित किया था। उसके पास बड़े ही खतरनाक हथियार थे। जो मेघनाद ने विष्णु और भगवान शिव को प्रस्सन करके हासिल किये थे। मेघनाद ने आते ही हाहाकार मचा दिया। सैन्य को गंभीर नुक्सान पहुंचने के बाद उसने लक्ष्मण को भी मूर्छित कर दिया। तब लक्ष्मण को होश में लाने की जड़ीबूटी, हनुमानजी कन्याकुमारी से कश्मीर एक रात में पहुंचकर नहीं लाते तो,लक्ष्मण का जीना मुश्किल था। इस तरह मेघनाथ को हारने के लिए राम और लक्ष्मण को अतिशय कठिनाई झेलनी पड़ी।
लक्ष्मण जब मेघनाद के शक्ति बाण से मूर्छित हो गए। तब वैद ने हनुमान जी को संजीवनी बुट्टी हिमालय से लाने के लिए कहा। रावण को ये बात पता चलते ही, उसने अपने विश्वासु मायावी राक्षस कालनेमि को हनुमान जी का मार्ग रोकने के लिए भेजा। कालनेमि ने हनुमान जी को अपनी माया से अपनी मृत्यु तक रोकने की कोशिश की। मगर हनुमानजी के बल के सामने उसे अपने प्राण गवाने पड़े।
इस प्रकार अपने वनवास दरमियान ही, श्री राम जिसे लोग अयोध्या के भावी राजा मानते थे। इस १४ साल के वनवास में ही इस धरती को कही मायावी और क्रूर राक्षसों से आज़ाद किया। फिर से ऋषिमुनि यज्ञ और तपस्या बड़ी ही शांति और सलामती से करने लगे। बलि का वध करके इसके भाई सुग्रीव को अपना हक़ दिलवाया। लंका को रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद जैसे अजेय राक्षसों से आज़ाद करवा के विभीषण जैसे राम भक्त को राजा बनाया। शबरी का राम का इंतज़ार ख़त्म करवाकर उसका उद्धार किया।
सोचो अगर राम वनवास में गए बिना ही अयोध्या की गद्दी पर बैठ जाते और सभी राजा की तरह राज करके जीवन समाप्त करते तो, क्या हम आज श्री राम को याद करते? इसलिए १४ साल के वनवास में किये गए कार्यो ने ही, सामान्य अयोध्या के राजा राम से श्री राम अवतार बनाया। इसीलिए सादिया बीतने के बाद, आज भी पुरे विश्व के ह्रदय पर राज करते है।
राम नवमी के इस पर्व को श्री राम को याद करके बोलो, " सियावर रामचंद्र की जय"।
Ram Darbar, By Dr(Er), Alok Gupta, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0
आगे का पढ़े : १. महावीर जयंती २. हनुमान जयंती
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