शहीद भगतसिंह

                                                                 शहीद भगतसिंह

                                     

नंबर शिर्षक
१. शहीद ए आज़म
२. शहीद भगत सिंह का कौटुम्बिक परिचय
३. जलियांवाला बाग ह्त्याकांड
४. चौरी चौरा की घटना
५. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन
६. साइमन कमीशन और लाला लाजपत राय शहीद
७. जॉन पी सौन्डर्स की ह्त्या
८. दुर्गा भाभी की देश भक्ति
९. दिल्ही ऐसेम्बली में बम
१०. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की जेल में ११६ दिन की भूख हड़ताल
११. महात्मा गांधीजी की मध्यस्थी
१२. एक दिन पहले ही फांसी
 

            शहीद ए  आज़म 
भारत देश को आज़ाद कराने के लिए ६,३२,००० क्रांतिवीर शहीद हुए। इसमें भगत सिंह का नाम शहीदी के सर्वोच्च शिखर पर बिराजमान है। भारतवासियो ने उसे शहीद ए आज़म का सन्मान दिया है। आज के समय में ११ साल से २३ साल की उम्र के युवा क्या करते है? ११ साल की उम्र में खेलकूद कर मज़ा करते है। २३ साल की उम्र में ज्यादातर पढ़ने में माहिर अपने केरियर की फ़िक्र में रहते है, या तो नौकरी और धंधे की शुरुआत करते है। मगर भगत सिंह ने इस ११ साल की उम्र से ही देश की फ़िक्र करना शुरू कर दिया था। ११ साल की उम्र में शहीद भगतसिंह ४० किलोमीटर पैदल चलकर जलियावाला बाग पहुचकर जनरलं दायर के हुकम से मारे गए निर्दोष लोगो के खून से भीगी मीटी को लेकर भारत को अंग्रेजो से आज़ाद करवाने की कसम खायी थी। २३ साल की उम्र में भगत सिंह भारत की आज़ादी के लिए फासी पर चढ़कर शहीद हो गए।
 

                                                 किशनसिंह  सिधू             विद्यादेवी सिधू 

                                              शहीद भगत सिंह का कौटुम्बिक परिचय              

नंबर परिचय विगत
१. नाम भगतसिंह किशनसिंह संधू
२. उपनाम भागोवाला (भाग्यवान)
३. माताजी का नाम विद्यावती किशन सिंह संधू
४. पिताजी का नाम किशनसिंह संधू
५. जन्म तारीख २८ सितम्बर १९०७
६. जन्म स्थल गांव-बंगा, जरवाला तहसील,जिल्ला-लायलपुर स्टेट पंजाब
७. धर्म सिख
८. जाती जाट
९. राष्ट्रीयता भारतीय
१०. स्कूल /विद्यालय दयानंद एंग्लो- वैदिक हाई स्कूल
११. महाविद्यालय नेशनल कॉलेज, लाहोर
१२. अभ्यास कला में स्तानक
१३. पुस्तके पढ़ना, समाचार पत्र में लिखना और नाटक में अभिनय करना
१४. वैवाहिक स्थिति अविवाहित
१५. बड़े भाई १.जगत सिंह, जिसका छोटी उम्र में ही निधन हो गया था .
१६. छोटे भाई कुलतार सिंह, कुलबीर सिंह,रणबीर सिंह, राजिंदर सिंह
१७. बहने बीबी प्रकाश कौर, बीबी अमर कौर, बीबी शकुन्तला कौर.
१८. क्रांतिकारी पार्टी हिन्दुस्तान सोसियलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
१९. मृत्यु तिथि २३ मार्च १९३१.
२०. मृत्यु स्थल लाहोर, पंजाब.
२१. मृत्यु की वजह देश के लिए बलिदान - फांसी
२२. मृत्यु के वक्त आयु २३ साल, ५ महीना और २३ दिन.
                                                                               
भगत सिंह का जन्म अविभाजित भारत के लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। उनका जन्म 19 अक्टूबर १९०७ को हुआ था। उनके पिताजी का नाम सरदार किशन सिंह संधू था। उनकी माताजी का नाम विद्या देवी था। भगत सिंह का उनका जन्म देश पर मर मिटने वाले परिवार में हुआ था। उनके खून में ही देश भक्ति थी। उनके जन्म के समय उनके चाचा और पिताजी दोनों जेल में थे। दोनों ने १९०६ मे लागु किये गए कोलोनिअल बिल का विरोध करने पर जेल में थे। भगत सिंह का जिस दिन जन्म हुआ उसी दिन दोनों जेल से रिहा हो गए। इसलिए भगत सिंह की दादी ने उनका उपनाम भागो वाला याने भाग्यवान रखा।

भगत सिंह की  प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से हुई। उसके बाद भगत सिंह की शिक्षा लाहौर की डीएवी(दयानंद एंग्लो वैदिक) हाई स्कूल में हुई। उसके बाद कि शिक्षा नेशनल कोलेज लाहौर में (१९२३) बी.ए में की। १९२३ में यानी कोलेज के दिनों में अनेक गतिविधिओ में भाग लेते थे। उन दिनों उन्हों ने एक निबंध की प्रतियोगिता भी जीती थी। जिसका विषय "स्वतत्रता के कारण पंजाब की समस्या" था। कोलेज के दिनों में उनको नाटक और लेखन में भी रूचि थी। भगत सिंह को किताबे पढ़ने का काफी शौक था। कोलेज काल के दिनों में ही उन्हों ने ५०से अधिक रुसी और यूरोपियन लेखको की किताबे पढ़ लि थी। विद्यालय में उनका संपर्क देशभक्त लाला लाजपत राय से हुआ। ऐसे देश भक्तों के संपर्क से भगत सिंह की देश भक्ति में काफी उछाल आया।

जलियांवाला बाग ह्त्याकांड
                                                                                                                                                              
                                
  Jallian Wala Bagh Massacre portrait painting, By Priyadharshini M, JPG  image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                 Detail of Mural Depicting 1919 Amritsar Massacre-Jallianwala Baugh -Amritsar-Punjab-india (12675536215), By Adam Jones, from Kelowna,BC.Canda., JPG  image compressed and resized,Source is licensed under CC BY-SA 2-0.         

भगत सिंह गांधीजी के विचारों से और उनके देश प्रेम से काफी प्रभावित थे। उस समय जलियांवाला बाग की घटना घटी . जलियांवाला बाग में सैकड़ों निर्दोष स्त्रीया  बच्चों को गोलियों से भून दिया गया। भारत में अंग्रेजों द्वारा किया गया सबसे बड़ा  नरसंहार था। उस वक्त भगत सिंह की  उम्र 11 साल की थी  जलियांवाला बाग की घटना सुनते ही भगत सिंह 11 साल की उम्र में  पैदल 40 किलोमीटर चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे और खून भरी मिट्टी को हाथ में लेकर भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने की शपथ ली इस घटना ने  भगत सिंह को पूरी तरह  आजादी का क्रांतिकारी सिपाही बना दिया।

चौरी चौरा की घटना

shaheed bhagat singh's post shows chaura chauri incidents and chaura chauri smarak in bihar
इस जलियांवाला बाग के नरसंहार के बाद गांधी जी ने असहकार आंदोलन  शुरू कर दिया। गांधीजी आंदोलन अहिंसक था।  ऐसे माहोल में एक घटना घटी। ०५/०२/१९२२ के दिन, गोरखपुर के चौरीचौरा के पास लोग शाम के वक़्त कही लोग हाथ में मशाल लेकर हड़ताल के लिए जा रहे थे। थोड़े लोग पीछे छुट गए तो बीच में पुलिस चौकी वालो ने, पीछे छूटे हुए लोगो को मारा। यह बात आंदोलनकारी के समूह को पता चलने पर पूरा समूह पुलिस चौकी  में आ गया। इतने सारे लोग को देखकर पुलिस वालो ने चौकी अंदर से बंध कर दी।  लोगो ने दरवाजा ठोकने के बाद भी चौकी का दरवाजा नहीं खोला तो लोगो ने पूरी पुलिस चौकी को ही जला दीया । जिसमे करीब २० पुलिस जलकर मर गये।

                                                             हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन

 गांधीजी को जब पता चला की २० पुलिस वालो को जला दिया गया और आंदोलन हिंसक हो रहा है, तो गांधीजी ने असहयोग आंदोलन समाप्त कर दिया। इस प्रकार गांधीजी असहयोग आंदोलन समाप्त हो गया। गांधीजी के असहयोग आंदोलन बंद करने पर भगत सिंह काफी नाराज हुए। उन्होंने गांधी जी के अहिंसक आंदोलन से दूरी बना ली। और भगत सिंह ने क्रांतिकारी संगठनका पुनह गठन किया। इस संगठन का नाम था हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन। इस संगठन में चन्द्र शेखर आज़ाद, भगवती चरण वोहरा,सुखदेव राजगुरु और अस्फखुल्ला खान शामिल थे।

१९२७ में लोहार में बम धमाके किये थे। इसलिए मई १९२७ में पुलिस के हाथो गिरफ्तार हो गए। उस में भगत सिंह को ५ महीने की जेल और ६०,००० रुपये का जुर्माना किया। जेल से रिहा होनेके बाद अमृतसर में प्रकाशित पंजाबी समाचार पत्र में लिखना भी शुरू किया। जो "वीर अर्जुन अखबार" के नाम से जाना जाता था। यानी भगतसिंह एक पत्रकार भी थे। उनको किताबो पढनेका भी जबरजस्त शक था .



         
Shaheed Bhagat Singh's Post Shows that , Leader of the Simon Go Back movement, Lala Lajpat Rai, died due to the brutal lathi charge of the British.

                                                   साइमन कमीशन और लाला लाजपत राय शहीद

१९२८ फरवरी में इंग्लैंड से भारत की स्वायतता और भारत के लोगो की राजतंत्र में भागीदारी को प्रमाणित करने के लिए साइमन कमीशन भारत आया। भारत के लोगों की स्वायत्तता और राजतंत्र भागीदारी करने के लिए भारत का ही कोई सदस्य नहीं था। सभी सदस्य अंग्रेज थे। इसलिए भारत के लोगों ने विरोध किया और आंदोलन किया। इस आंदोलन के प्रमुख लाला लाजपत राय थे। प्रजा का विद्रोह  देखकर ब्रिटिश सुप्रीटेंडेन्ट ऑफ़ पुलिस जेम्स ए स्कॉट ने लाठीचार्ज का हुक्म दिया। इस क्रूरता पूर्वक किया गया लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय घायल हुए। और उन्होंने दम तोड़ दिया। लाला लाजपत राय की इस तरह मौत देखकर भगत सिंह  काफी आहत हुए। और भगत सिंह ने स्कोट को मारने का निश्चय कर लिया।

जॉन पी सौन्डर्स की ह्त्या

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर  सब ने मिलकर १७ दिसम्बर १९२८ को जेम्स ए स्कोट को मारने की तैयारी की। मगर गलती से जेम्स ए स्कॉट की बजाए, उसके असिस्टेंट जॉन पी सौन्डर्स को गलती से मार डाला। इस योजना में चंद्रशेखर आजाद ने भी साथ दिया था। उन्हों ने जिस कांस्टेबल ने दोनों पकड़ने की कोशिश की, उसे ८ गोली मार दि थी। ह्त्या होते ही खलभली मच गयी। चप्पे चप्पे पे पुलिस खड़ी हो गयी। गली गली में जासूस छोड द्दिए गए। इसलिए लाहौर से बाहर निकलना जरुरी था। इसलिए एक योजना बनायी गयी।

Bhagat Singh"s post shows the image of Durga Devi and her son Sachi who helped Bhagat Singh, Rajguru, and Sukhdev to reach Culcatta from Lahaul

इस भूमिगत मिशन को पार करने के लिए भगवती चरण शुक्ला की पत्नी दुर्गाभाभी का साथ लिया गया। इस संगठन के सदस्य भगवती चरण शुक्ला और उसकी पत्नी दुर्गा भाभी भी थे। योजना को अंजाम देने का काम सुखदेव को सौपा गया। उस रात भगतसिंह और सुखदेव एक क्रांतिकारी सोहनसिंह जोश के घर में रुके। उस रातको ही सुखदेव दुर्गा भाभी से मिले। योजना में दुर्गा भाभी और उनका एक छोटा बच्चा था, उसे भी योजना में शामिल होना था। दुर्गा भाभी इस के लिए तैयार हो गयी। तब सुखदेव ने कहा भाभी इसमें आप की और आपके बच्चे की जान भी जा सकती है। तब दुर्गाभाभी ने कहा था जैसे एक बेटा याने भगत सिंह शहीद होगा वैसे दूसरा बेटा याने उसका बेटा भी शहीद हो जाएगा। ( ऐसी शूरवीर मा का जन्म भारत देश में ही हो सकता है। ऐसे महान बलिदानों से मिली आज़ादी को अब हमें सुरक्षित रखना है )

दुर्गा भाभी की देश भक्ति

योजना के अनुसार, भगत सिंह एक अंग्रेज अफसर बने थे। उन्हों ने चमचमाते जूते, काला कोट और पेंट और सर पर अंग्रेजो की तरह लम्बी गोल टोपी पहनी थी। उनकी सरदारजी की हर निशानी और दाढ़ी, ह्त्या के पहले ही हटा दी थी। दुर्गा भाभी और उसके बच्चे को भगत सिंह की पत्नी और बच्चे का रोल करना था। जबकि राजगुरु को अपना सर मुंडवाकर तीनो के नौकर का रोल करना था। उन सब को लाहौर से निकलकर कलकत्ता पहुचना था। भगत सिंह का मुह अंग्रेजी टोपी की वजह से आधा ही दीखता था। ऊपर से उसने दुर्गा भाभी के बेटे सची को गोद में उठाकर आधा मुह भी ढक दिया। उन सब के पहनावा औरआत्मविश्वास देखकर रेल की पुलिस ने समजा कोई अंग्रेज अपने बीवी, बच्चे और नौकर के साथ मुसाफ़री कर रहे है। इसलिए पुलिस ने उनको बैठने की व्यवस्था तक सहकार भी दिया। इस तरह भगत सिंह, दुर्गा भाभी, राजगुरु, सुखदेव और चंद्रशेखर आज़ाद के योजना से सभी कलकत्ता पहुच गए।

                                                                                                                                                  Shaheed Bhagat Singh's Post Shows an image of Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt, who throw a bomb in e  Delhi Assembly 


दिल्ही ऐसेम्बली में बम 

मौत की की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़कर, भूमिगत होना पड़ा। भूमिगत होने के लिए बावजूद भगत सिंह क्रांतिकारी की भूमिका निभाते रहे। जब ब्रिटिश सरकार ने देश को लुटाने के लिए, मजदूर विरोधी बिल पास करने का फैसला किया। तब पुरे देश में इसका विरोध हुआ। मगर भगत सिंह और साथियों ने सरकार को इस कानून के खिलाफ सरकार को जगाने के लिए दील्ही एस्सेम्बली में बम फेकने का इरादा बनाया। 8 अप्रैल 1929, को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर, दिल्ही ऐसेम्बली में "इन्कलाब जिंदाबाद" के नारे लगाकर बम फेंका। यह बम किसी की जान लेने के लिए नहीं था। इसलिए इसे दिल्ही ऐसेम्बली में बैठे मेंबरों से काफी दूर फेका गया। मगर अफरा तफरी में मेंबरों को छोटी मोटी इजा हुई। बम फेंकने के बाद भी भगत सिंह  भागे नहीं। अगर चाहते तो भाग सकते थे। भगत सिंह को गिरफ्तार करके हिरासत में ले लिया गया।



                                                                                                                                                                                                                   
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की जेल में ११६ दिन की भूख हड़ताल

जेल में भगत सिंह ने देखा की भारतीय और अंग्रेज कैदी के साथ अलग व्यवहार किया जाता है। भारतीय कैदियो की वर्धी बरसों से नहीं बदली गई थी। रसोई में चूहे और वंदो से भरा रहता था। कोई भी अखबार नहीं पढने दिया जाता था। चिठ्ठी लिखने के लिए भी कागज और पेन नहीं दिया जाता था। जब की यह सारी सुविधा अंग्रेज कैदी को मिलती थी। इसलिए इन सारी सुविधा के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर जेल में जून, १९२९ से भूख हड़ताल कर दी।


उनकी भूख हड़ताल तुड़वाने के लिए अंग्रेजो ने भगत सिंह और साथियों पर अमानवीय जुल्म किये।जैसे की कोडो से पीटना, बर्फ की लादी पर घंटो तक सुलाना, कही दिनों तक पिने के लिए पानी न देना और जबरजस्ती दूध पिलाना। मगर भगत सिंह और साथी ने भूख हड़ताल नहीं तोड़ी। १३ सेप्टेम्बर १९२९ को स्वतंत्र सेनानी और क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ दास की ६३ दिनों की भूख हड़ताल के कारण मृत्यु हो गयी। पुरे देश में सरकार के खिलाफ नफ़रत फ़ैल गयी। फिर भी हड़ताल जारी रही। आखिरकार ५ अक्टूबर १९२९ याने ११६ दिन की भूख हडताल के बाद सरकार को जुकना पडा। भगत सिंह की सारी शर्त माननी पड़ी।


 
Shaheed Bhagat Singh's Post Shows an image of Irvin, who told  Gandhiji, how to pardon Bhagat Singh's hanging.

महात्मा गांधीजी की  मध्यस्थी 

हमारे लोकप्रिय वक्ता राजीव द्दिक्षितजी के अनुसार, सरकार को भगत सिंह की लोकप्रियता का अंदाज हो गया। अंग्रेजो की लोकल इंटेलिजेंस यूनिट के रिपोर्ट के अनुसार अगर भगत सिंह को फांसी दी गयी तो पुरे हिंदुस्तान में बगावत हो जाएगी। और बहोत ही कम समय में हमें भारत की सत्ता छोड़नी पड़ेगी। ऐसी अंग्रेजो की संसद में चर्चा होती थी। १९३०/३१ में गांधीजी लन्दन अंग्रेजो की सरकार से बात करने गए थे। उस समय अंग्रेजो का नेता इरविन था। गांधीजी को इरविन ने बताया की अगर भगत सिंह की फांसी की सज़ा माफ़ करनी हो टो, आप मुजे भगत सिंह से माफीनामा लाकर दीजिये। फिर मै अपनी संसद को एकमत से माफ़ी देने को कहूंगा। यह माफीनामा एक साल के अन्दर लाकर दो।


गांधीजी ने कहा मै आपको ४दिन /५दिन में ही भगत सिंह से बात करके बताउंगा। गांधीजी ने ताबडतोब अपनी पहचान का अल्लाहाबाद का वकील तेज बहादुर सप्रू को टेलीग्राम करके भगत सिंह से माफ़ी नामा की बात करने को कहा। तेज बहादुर सप्रुजी लाहौर जेल में भगत सिंह को मिले और गांधीजी द्वारा भेजा गया इरविन के माफीनामा की बारे में बताया। तब भगत सिंह ने माफीनामे से इनकार कर दिया। भगत सिंह ने कहा हमने कुछ गलत नहीं किया है।


हमारे फांसी चढ़ने से ही देश में नया जोश आयेगा। जो भारत देश को आज़ाद करवाएगा। मेरे एक के मरने से भारत में ऐसे हजारो भगतसिंह बाहर आयेंगे और देश को आज़ादी मिलेगी। ३ बार त्तेज बहादुर सप्रू भगत सिंह को मनाने लाहौर जेल गए। फिर गांधीजी को टेलीग्राम किया की भगत सिंह माफीनामा के लिए इनकार करते है। गांधीजी ने भगतसिंह का फैसला इरविन को सुनाया। और भगत सिंह की फांसी तय हो गयी।



                                         

                                                                  Shaheed Bhagat Singh's Post Shows, Bhagat Singh, Rajguru, and Sukhdev are hanged a day before.   


                                                                                              एक दिन पहले ही फांसी 


अंग्रेजो की जासूसी संस्था लोकल इंटेलीजेंस यूनिट ने बताया की, भगत सिंह को फांसी देने के बाद, उनके परिवार और देशवासी उनका शरीर मांगेगे। उनके शरीर का जुलुस निकालेगे। जिससे देश में नफ़रत कि आग फ़ैल जायेगी। पूरे देश में विद्रोह हो जाएगा। जिसे काबू करना मुस्किल हो जाएगा। हो सकता है हमें पंजाब को खोना पड़े। विद्रोह के डर से, तीनो को फांसी ३१/०३/१९३१ सुबह को देनी थी ,वह फांसी,अंग्रेजो ३०/०३/१९३१ को शामको ७:३३ को ही दे दी। उनके शरीर को जेल की पीछे की दीवाल तोड़कर जेल के बाहर निकाला। तिनो के शरीर जगह पर नदी के किनारे जलाने का निर्णय लिया गाया था।


,इस तरह भगतसिंह के शरीर को जेल में सामान और सब्जी लाने वाली ट्रक में रखकर बाहर निकाला गया। ट्रक में सफ़ेद कपडे में भगत सिंह के शरीर को सिपाही के साथ रखा गया और ट्रक ड्राईवर को उनका साथ देनेके लिए कहा गया। ट्रक ड्राईवर शक हो गया। उसके पूछने पर भी उसे कुछ नहीं बताया गया। ट्रक ड्राईवर ने सुमसाम जगह पर ट्रक में कुछ गड़बड़ हुई है, कहकर ट्रक को रोका। फिर से पूछा की इस सफ़ेद कपडे में क्या है? सिपाही सब भारतीय ही थे। ड्राईवर ने जब कहा हम सब अपनी मजबूरी कारण अंग्रेजो की नौकरी करते है। बाकि हम सब भारतीय ही है। ऐसा कहकर सिपाहियों को विश्वाश में लिया तब सिपाहियों ने बताया की इसमें भगतसिंह का शरीर है। उसे नदी के किनारे जलाना है। उसके लिए लकड़ी भी जमा करनी है।


हुसैनीवाला में समाधि


तब ट्रक ड्राईवर समज गया। वह भी देश भक्त था। उसने ट्रक सीधी भारत पाक बॉर्डर के हुसैनी वाला तक लाया। हुसैनी वाला में गाव के नजदीक ट्रक को लकड़ी लेने के बहाने रोका। और आसपास के नजदीकी गाव में जाकर पूरा वाकया सुनाया। गाव के लोग ट्रक के पास पहुचातेही सिपाही शरीर छोड़कर भाग गए। भगत सिंह के शरीर को ट्रक से उतारा गया पुरे सन्मान के साथ अग्नि संस्कार किये और भगतसिंह की समाधि बनायी गयी। आज भी देश के मामूली ट्रक ड्राईवर की देश भक्ति के कारण हुसैनी वाला में भगतसिंह की समाधी है।


Shaheed Bhagat Singh's Post Shows, The Samadhi of Bhagat Singh which is in Husainiwala, Amritsar near the Indo -Pakistan border.

इन्कलाब जिंदाबाद

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