महात्मा गाँधी जयंती-२०२४

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अनुच्छेद/पेरेग्राफ | शीर्षक |
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१. | प्रस्तावना |
२. | गाँधीजी के धर का माहोल |
३. | गांधीजी की शिक्षा |
४. | गांधीजी की दक्षिण आफ्रिका की सफ़र |
५. | मोहनलाल से महात्मा बनने की सफ़र |
६. | बिहार के किसान का चंपारण |
७. | १९१८ अहमदाबाद मजदूर मिल आंदोलन |
८. | १९१८ खेडा सत्याग्रह |
९. | खिलाफत आंदोलन |
१०. | मोपला विद्रोह |
११. | असहयोग आंदोलन |
१२. | रोलेट नामक काला कानून, जलियावाला बाग हत्याकांड यावाला |
१३. | चौरी चौरा की घटना |
१४. | अन्य राजनैतिक |
१५. | वायकॉम सत्याग्रह (१९२४-१९२५) |
१६. | बारडोली सत्याग्रह १९२८ |
१७. | सायमन कमिशन ०३/०२/१९२८ |
१८. | सविनय अवज्ञा आंदोलन |
१९. | दांडी कुच १२/०३/१९३० |
२०. | गांधीजी "मेनऑफ़ ध इयर" |
२१. | धरासना कांड १९३० विश्व का सबसे बड़ा हिंसक लाठीचार्ज |
२२. | प्रथम गोलमेजी परिषद् |
२३. | द्वितीय गोलमेजी परिषद् |
२४. | पूना |
२५. | व्यतिगत आंदोलन |
२६. | क्रिस्प मिशन |
२७. | भारत छोडो आंदोलन ०७/०८/१९४२ |
२८. | सी आर फोर्मुल्ला |
२९. | "वन मेन बाउंडरी फाॅर्स" |
३०. | भारत विभाजन और गांधीजी |
३१. | नाथूराम गोडसे और गांधीजी की ह्त्या |
गांधीजी के घर का माहोल

गांधीजी वैष्णव धर्म के परिवार से थे। पिताजी दीवान थे। माता पुतलीबाई धार्मिक वृति की महिला थी। व्रत,पूजा,पाठ और बच्चो को अच्छे संस्कार देना, यही उनका लक्ष्य था शाकाहारी परिवार था। बहोत ही संस्कारी माहोल था।
गांधीजी की शिक्षा

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गांधीजी की प्राथमिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। कहते है कि,गांधीजी ने प्राथमिक शिक्षा ऊँगली से मिटटी में लिखकर पूरी की। सदभाग्य से, गांधीजी के पिता की बदली राजकोट शहर मे हुई, वहा गांधीजी ने काफी इनाम जीते और बाकी पढाई भी अच्छी तरह पूरी हुई।
१८८७ में मुंबई यूनिवर्सिटी से मेट्रिक की परीक्षा पास की। कोलेज की पढाई श्यामलदास कोलेज भावनगर से पूरी की। १८८८ में, गांधीजी के यहाँ पुत्र हरिलाल का जन्म हुआ। उसी साल वह वकीलत की पढ़ाई करने इंग्लेंड चले गए। गांधीजी अपनी माता की इच्छा विरुद्ध विदेश पढाई करने जा रहे थे। अपनी माता का तनाव दूर करने के लिए गाँधी जी ने अपनी माता को नॉन वेज और शराब और लड़की से दूर रहने का वचन दिया। १८९१ मे बेरिस्टर की डिग्री लेकर वापस भारत आ गये।
अब दो पुत्र और घर की जवाबदारी बढ़ने से गांधीजी मुंबई वकिलात करने गए। मगर वकिलात चली नहीं। फिर वह राजकोट चले आये। यहाँ गाँधी को एक वकील की फ़म से दादा अब्दुल्ला के केस के लिए दक्षिण आफ्रिका १८९३ में जांना पडा।
गांधीजी की दक्षिण आफ्रिका की सफर

अफ्रिका में भी अंग्रेजो का ही शासन था। वहा रंगभेद की निति चरम सीमा पर थी। अंग्रेजो वहा की प्रजा का शोषण करते थे। ०७/०६/१८९३ के दिन गांधीजी फर्स्ट क्लास की टिकेट लेकर डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे। बीच में एक स्टेशन से एक अंग्रेज चढ़ा, उसने गांधीजी को यानी काले आदमी को कम्पार्टमेंट में देखा। उसने गांधीजी को लोअर कम्पार्टमेंट में जाने को कहा। गांधीजी ने फर्स्ट क्लास का टिकट दिखाया।
अगले स्टेशन पर अंग्रेज के कहने पर टीसी ने गांधीजी को धक्का मारके मेरिसबर्ग स्टेशन पर उतार दिया। यह प्रसंग ने गांधीजी के जीवन में बहोत बड़ा परिवर्तन ला दिया। गांधीजी ने इस रंगभेद की नित्ती के खिलाफ लड़कर ख़त्म करने का निर्णय लिया। बस यहाँ से मोहनलाल करमचंद गाँधी की महात्मा गाँधी बनाने की प्रक्रिया चालू हो गयी।
एकबार फिर, जब गांधीजी को डरबन के कोर्ट में गए तब सर से पघडी हटाने को कहा गया। इस समस्या से लड़ने के लिए गांधीजी ने भारतीयों को इकठा करने लगे। १८९४ में: नेतील इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। इस दरमियान, अंग्रेजो ने नेतील असेम्बली में भारतीयों के मतदान का हक़ छीन लिया। इस मुद्दे को आंतरराष्ट्रिय स्तर पे उठाया और सफल रहे।
गांधीजी ने समान नागरिक हक़ के लिए साऊथ आफ्रिका में पहली बार में अहिंसक आंदोलन किया और उसे सत्याग्रह का नाम दिया। इसलिए गांधीजी को जेल भी हुई। गांधीजी का मानना था की अगर हमें सरकार में समान हक़ चाहिए तो सरकार के प्रति अपना कर्तव्य भी निभाना चाहिए। इसलिए वर्ल्ड वॉर में गांधीजी ने ब्रिटिशर की मदद भी की थी। १९०४ में गांधीजी ने डरबन में फीनिक्स आश्रम की स्थापना की।
गांधीजी ने १९०६ पहली बार असहयोग आंदोलन किया। यह आंदोलन साऊथ आफ्रिका की ट्रांसमोल गवर्नमेंट में भारतीयों पर लगाईं जा रही पाबंदी के लिए किया गया था। इस में हिन्दू विवाह को नहीं मानना भी शामिल था। यह आंदोलन कई साल चला। आखिरकार गांधीजी का यह आंदोलन भी सफल रहा। हिन्दू विवाह को मान्यता मिली और टोल टैक्स भी खत्म हुआ।
१९०६ में गांधीजी ने टॉलस्टॉय आश्रम की स्थापना कालीन बाखके साथ किया। १९०६ में एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट का विरोध और सफलता भी मिली।

२३ सितम्बर १९१३ में,आफ्रिका में आखरी लड़ाई "गिर मिटीया प्रथा" के खिलाफ कस्तूरबा और १६ मेंबर ने लडी। इस प्रथा में भारतीय मज़दूर को बंधुआ मजदूर बनाकर कई सालो तक भारत नहीं जाने दिया जाता था। १९१३ की यह लड़ाई १९१४ में सफल हुई। भारतीय मज़दूर को इस प्रथा से छुटकारा मिला। गांधीजी दक्षिण अफ्रिका में २१ साल रहे।
पोस्ट जरूर पढ़े: १ ब्लड प्रेशर / रक्त चाप २. मधुमेह ३. आंवला /आमला, ४ . सोंठ (सूखा अदरक)
मोहनलाल से महात्मा बनने की सफर

०९/०१/१९१५ को गांधीजी भारत वापस आये। इसलिए इस दिन को "प्रवासी भारतीय दिवस" के रूप में मनाया जाता है। भारत में आते ही, गांधीजी ने कोचरब में जीवनलाल बैरिस्टर का घर भाड़े पे लिया। घरको ही गांधीजी ने आश्रम बना दिया। तब गांधीजी, जिसे अपना राजनैतिक गुरु मानते थे, उन्हों ने गांधीजी को सलाह दी की, आप पहले पूरा भारत भ्रमण करो ताकि,आपको भारत की समस्या का पता चले।
भारत भ्रमण के बाद गांधीजी ने जून १९१७ में अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की।

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बिहार के किसान का चंपारण आंदोलन

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ब्रिटिशरो ने बिहार के किशानो के साथ एक एग्रीमेंट किया था। किशानो को अपनी ३/२० भाग जमीन में नील की खेती करनी पड़ती थी। इस नील की डिमांड कम हो गयी थी। किसान को अपने उत्पादन का भाव भी नहीं मिलता था, ऊपर से ब्रिटिश अधिकारी को लगान चुकाना पड़ता था। इस एग्रीमेंट से निकल ने के लिए बड़ी फीस चुकानी पड़ती थी। बड़े ज़मींदार तो फ़ीस देकर छूट गया थे।
छोटे किसान बड़े परेशान थे। किसानो की फ़रियाद और तकलीफ लेकर राजकुमार शुक्ला गांधीजी को मिले। गाँधी जी और राज कुमार शुक्ला जब लखनऊ पहुंचे तो कमिश्नर ने गांधीजी को चंपारण जाने से रोका। तब डॉ राजेंद्र प्रसाद , जे बी कृपलानी, सुचिता कृपलानी, महादेवभाई देसाई, मजबूल हक, बृजकिशोर और खुद गांधीजी ने मिलकर आंदोलन चलाया।

इस आंदोलन को सफलता मिली। ३/२० पद्धति पर निल की खेती से किसानो को मुक्ति मिली और अवैध रूप से लिया गया लगान का २५% भी किसानो को वापस दिलाया, और जुलाई १९१७ में "चंपारण अग्रेरियन कमिटी" की रचना की गयी, ताकि फिरसे ऐसा अन्याय न हो। आंदोलन की सफलता और किसानो को मिला न्याय से प्रभावित होकर रविंद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को "महात्मा" के नाम से नवाज़ा।
१९१८ अहमदाबाद मज़दूर मिल आंदोलन

अंग्रेजो ने अहमदाबाद में कपास उद्योग को बहोत विकसित किया था। अहमदाबाद एक प्रमुख व्यापारी केंद्र भी बन चुकाता था। १९१७ में अहमदाबाद से मुंबई तक प्लेग फ़ैल चुका था। इसलिए सब मज़दूर शहर छोड़कर जाने लगे थे। मजदूर का पलायन रोकने के लिए प्लेग बोनस दिया जाता था। यह १ साल तक चला। १९१८ में मिल मालिकों ने और व्यापारी ने प्लेग बोनस देना बंध कर दिया।
मज़दूर प्लेग से तो परेशान थे ही ऊपर से , विश्व युद्ध की वजह से महंगाई बहोत बढ़ गयी थी। मालिकों ने भी प्लेग बोनस देना बंध कर दिया था। इन सब से परेशान होकर मज़दूर हड़ताल पर उतर गए और बोनस के बदले में ५०% वेतन बढ़ाने को कहा। मगर मालिको ने सिर्फ २०% बढ़ाने की तैयारी बताई।
आंदोलन की नेता अनसूया बेन थी। उन्हों ने यह समस्या गांधीजी को बताई। गाँधीजी ने मज़दूर की हालत देखकर भूख हड़ताल पर उतर गये। इसलिए मिल मालिक और व्यापारी ३५% वेतन बढ़ाने को तैयारी दिखाई। इस बात पर मज़दूर भी तैयार हो गए। समस्या सुलझ गई। मज़दूर भी संतुष्ट हो गए। आंदोलन भी सफल हो गया। गांधीजी ने "टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन" की स्थापना की।
१९१८ खेड़ा सत्याग्रह

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खेडा आंदोलन २२/०३/१९१८ में गुजरात के खेडा गाँव के किसानो द्वारा सुसंगठित आंदोलन था। इस आंदोलन में "सर्वन्ट ऑफ़ इंडिया" के मुखिया विठलभाई पटेल भी सामिल थे। जो वल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई थे। गांधीजी की पहली मुलाक़ात वल्लभ भाई पटेल से यही पर हुई। इस आंदोलन में महादेवभाई पटेल, अन्सुयाबेन, मोहनलाल पंडया और स्थानिक नेता सामिल थे।
गुजरात में बारिश न होने के कारण सुखा पडा था। किसानो की फसल २५ % हो गई थी। किसान अपना घर नहीं चला सकते थे उस पर सरकार का लगान कहा से भरे? किसानो की परिस्थिति बहोत ही दयनीय हो गई थी। सरकारी अधीकारी पूरी फसल का लगान मांग रहे थे जो की नामुमकिन था। लगान न भरने पर अधिकारी किसानो की फसल काटकर ले जाते थे। किसानो की जमीन जप्त कर लेते थे।
गांधीजी केआंदोलन में जुड़ने पर किसानो में न्याय की आशा जगी। कायदे के अनुसार अगर फसल २५% होने पर कोई लगान नहीं देना होता है। गांधीजी ने किसानो को अपनी खेतो की फसल काटकर घर ले जाने को कहा। ऐसा करने पर सरकार ने सबकी धरपकड करके जेल में दाल दिया। गांधीजी के कहने पर सारे किसान जेल में जानेको तैयार हो गए|
गांधीजी ने सरकार से कायदा अनुसार किसानो छोड़ने को कहा। सरकार को झुकना पडा। यह आंदोलन भी सफल रहा।
प्रथम विश्वयुध्ध १९१४ से १९१८ तक चला था। इस विश्वयुध्ध में गाँधीजी ने भारतीय सैनिक को समजाकर ब्रिटीशरो का साथ देने के लिए समजाया था। इसलिए गांधीजी को ब्रितिश ने "सार्जेंट ऑफ़ ब्रितिसेर्स" की पदवी से नवाजा।
खिलाफत आंदोलन
१९१९ में प्रथम विश्वयुध्ध दरम्यान, तुर्की में सुन्नी वंशज ओटोमन का राज था। युध्ध में तुर्की हार गया था। तुर्की को सीवर की संधि करनी पड़ी थी। उस संधि के अनुसार,तुर्की में खलीफा की प्रथा बंध करके तुर्की में प्रजातंत्र लागू किया जाए। इसलिए तुर्की ने पूरी दुनिया को मदद के लिए आह्वान किया, मगर भारत के मुसलमान के सिवा किसीने साथ नहीं दिया।
भारत में मोहम्मद अली, शौकत अली,अब्दुल कलाम आज़ाद, हसरत मोहनी इन सबने गांधीजी को साथ लेकर खिलाफत आंदोलन किया, मगर तुर्की ब्रिटन से हार गया था इसलिए ब्रिटिश ने किसी की भी नहीं सुनी और खलीफा का पद रद्द कर दिया और प्रजातंत्र राज्य बना दिया।
खिलाफत आंदोलन को सफलता नहीं मिली। कोंग्रेस में कई नेता गांधीजी से नाराज हो गए दो बलिराम हेगडेवार ने इस्तीफा देकर "राष्ट्रीय स्वयं सेवक" नमक संस्था की स्थापना की।
मोपला विद्रोह
१९२१ में, केरल में अंग्रेजो ने मालाबार में ऐसा माहोल बनाया की मुसलमानों को लगा की हिन्दू हमारे साथ नहीं है। इस से केरल में दंगा फ़ैल गया और हजारो की संख्या में हिन्दू की क़त्ल की गई। यह दंगा १९२२ में पंजाब,१९२३ में अमृतसर में और १९२५ में नागपुर में सभी जगह पर बहोत बडे दंगे हो गये। इस तरह अंग्रेजो ने हिन्दू और मुसलमान में फुट डाल दी।
असहयोग आंदोलन
लाल,बाल,पाल की त्रिपुटी



Mahatma Gandhi JPG image represents, Indian Freedom fighter Lokmany tilak, Bal Gangadhar Tilak and Bipinchandra Pal. Trio known as "Lal, Bal, Pal" Lokmanya Tilak -Konkani Vishwakose, By Multiple Authour, JPG image compress and resized, source, is licensed under CC BY-SA 3.0
०१/०८/१९२० से इस आंदोलन की शुरुआत करने का फैसला लिया गया। इस बीच बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गयी। उनकी इच्छा के अनुसार लाला लाजपत राय को कोंग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। गांधीजी ने अंग्रेजो का पुरजोर विरोध करके हर एक विदेशी वस्तु का त्याग करने को कहा। तमाम सरकारी काम में असहयोग करने को कहा। गांधीजी के मुताबित अगर एक साल इस प्रकार विरोध करने से हम एक साल में ही आज़ाद हो जायेंगे। पूरा देश इस आंदोलन में जुड़ गया। लाल याने लाला लाजपत राय बाल याने बाल गंगाधर तिलक पाल याने बिपिनचंद्र पाल ने इस का नेतृत्व किया।
छात्रो ने सरकारी स्कूल में जाना छोड़ दिया। कोई भी विदेशी सामन और कपडे सब का बहिष्कार कर दिया। सरकारी नौकर और अफसरों ने सरकारी नौकरिया छोड़ दी। वकीलों ने वकिलात छोड दी। मद्रास को छोड़कर पुरे देश ने परिषद् चुनाव का विरोध किया। कोई सरकारी नियमो का पालन नहीं करता था। आयात धटकर ३०% रह गई।
इस बीच एक साल पूरा होने को था मगर,गांधीजी के हिसाब से मिलने वाली आज़ादी नहीं दिख नहीं रही थी। प्रजाजन की हिम्मत और हौसला टूटने लगा और इस प्रकार आंदोलन असफल रहा|
रोलेट नामक काला कानून, जलियावाला बाग़ ह्त्या कांड
विश्वयुध्ध के दौरान अंग्रेजो का रुख भारतीयों के प्रति नरम था। मगर विश्वयुध्ध खत्म होते ही अंग्रेजो ने अपना असली रंग दिखाना चालू किया क्योकि अब उन्हें भारतीय सैन्य की जरुरत नहीं थी।
१८/०३/१९१९ में, सरकार ने भारत में चल रहे आंदोलनों को कुचल ने के लिए "रोलेट एक्ट " का कानून लाये। कानून के अनुसार,पोलिस कोई भी व्यक्ति को संदेह की बिना पर जेल में अनियमित समय के लिए डाल सकती थी। किसी की धरपकड़ के लिए कोई भी कानूनी प्रक्रिया की जरुरत नहीं थी।
इस कायदा का विरोध सर्वप्रथम दिल्ही में स्वामी श्रध्धानंदजी ने किया। उनका साथ जिन्ना और मदन कुमार मालविया ने दिया। विरोध बढ़ने पर पोलिसो ने लाठीचार्ज और गोलीबारी चालू कर दी। पंजाब के दो बड़े नेता सैफूदिन किचलू और सतपाल ने भी आंदोलन कर दिया। पोलिस ने आंदोलन को कुचलने के लिए २९८ लोगो को गोलीबार करके मार दिया। पंजाब के बड़े नेता सतपाल और सैफुदीन किचलू दोनों की धरपकड़ की गई।
गांधीजी जब पंजाब के नेताओ को सपोर्ट करने पंजाब जानेके किये पलवल पहुचे तब गाँधी की धरपकड करके मुंबई छोड दिया। स्थानिक नेताओ ने आंदोलन अपने हाथो में ले लिया। गाँधी को पंजाब आने से रोकने से आंदोलन नहीं रुका।


Jallian Wala Bagh Massacre portrait painting, By Priyadharshini M, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0 Detail of Mural Depicting 1919 Amritsar Massacre-Jallianwala Baugh -Amritsar-Punjab-india (12675536215), By Adam Jones, from Kelowna,BC.Canda., JPG image compressed and resized,Source is licensed under CC BY-SA 2-0.
पंजाब के दो प्रमुख नेता को गिरफ्तार किया गया और गांधीजी को भी आने से रोका गया तब जनता ने इस परिस्थिति से मार्ग निकालने के लिए १३/०४/१९१९ के दिन जब पंजाब के जलियावाला बाग़ की सभा में करीब २०,००० लोग इकठा हो गए जिसमे औरत और बच्चे भी थे क्योकि वैशाखी का त्यौहार था । जब जनरल डायर को इस का पता चला तो उसने जलिया वाला बाग़ में इकठ्ठा हुए बच्चो और औरतो समेत अनेक लोगो को गोली से मार दी। पुरे देश में इस ह्त्या काण्ड से हाहाकार मच गया।
गांधीजी ने विरोध में पुरे देश को असहयोग आंदोलन करने को कहा, मगर सरकार ने मार्शल लॉ लगा दिया ताकि ह्त्या कांड का विरोध न कर सके। मगर आंदोलन फिर भी चलता रहा। लोग आंदोलन में जुटे रहे, करीब एक साल तक आंदोलन जोरशोर से चलता रहा।
अब गरीब, छोटे किसान, मज़दूर वर्ग जो रोज लाकर रोज़ खाते थे या जिसने अपनी सरकारी नौकरियां छोड़ दी थी, वह सब परेशान हो गए। इस वजह से आमिर वर्ग, बड़े जमीनदार के वहा लूटफाट घटना बढ़ने लगी।
चौरी चौरा की घटना
ऐसे माहोल में एक घटना घटी। ०५/०२/१९२२ के दिन, गोरखपुर के चौरीचौरा के पास लोग शाम के वक़्त कही लोग हाथ में मशाल लेकर हड़ताल के लिए जा रहे थे, थोड़े लोग पीछे छुट गए तो बीच में पुलिस चौकी वालो ने पीछे छूटे हुए लोगो को मारा। यह बात आंदोलनकारी के समूह को पता चलने पर पूरा समूह पुलिस चौकी में आ गया । इतने सारे लोग को देखकर पुलिस वालो ने चौकी अंदर से बंध कर दी। लोगो ने दरवाजा ठोकने के बाद भी चौकी का दरवाजा नहीं खोला तो लोगो ने पूरी पुलिस चौकी को ही जला दीया । जिसमे करीब २० पुलिस जलकर मर गये।
गांधीजी को जब पता चला की २० पुलिस वालो को जला दिया गया और आंदोलन हिंसक हो रहा है तो गांधीजी ने असहयोग आंदोलन समाप्त कर दिया। इस प्रकार गांधीजी असहयोग आंदोलन समाप्त हो गया।
जज ब्रूमफील्ड के फैसले पर , १०/०३/१९२२ को गांधीजी को गिरफ्तार किया जाता है और ६ साल की सजा दी जाती है। दो साल बाद, ०५/०२/१९२४ मे गांधीजी बीमार हो जाते है, इसलिए उन्हें छोड़ दिया जाता है।
अन्य राजनैतिक पार्टीया
१९२३ में इलाहाबाद में स्वराज पार्टी, मोतीलाल नेहरु, सुभाषचन्द्र बोस, चितरंजन दास और विठल भाई पटेल ने मिलकर बनाई थी इस पार्टी को १०१ में से ४२ साईट मिली थी।
दूसरी पार्टी हिन्दुस्तान रीपब्लिकन एसोसिएशन - चंद्रशेखर आज़ाद, शविन्द्र सन्याल, रोशन सिंह, राम प्रसाद, बिस्मिल असफाक उल्लाह खान और राजेंद्र लाहोरी ने कानपुर में बनाई थी। ०९/०८/१९२७ मे सब ने मिलकर काकोरी ट्रेन को लुटा था। सब पकडे गए। इन मे से ४ को फंसी और बाकी को काला पानी की सजा के लिए आंदामान जेल भेजा गया।
१९२८ में भगत सिंह,राजदेव गुरु,बटुकेश्वर दत्त, जतिन दास, चंद्रशेखर आज़ाद ने मिलकर "हिन्दुस्तान सोसियालिस्ट रिपब्लिक एसोसिएसन" नाम की पार्टी बनाई। उनका पहला शिकार जे पी सांडर्स बना। जो के लाहोर के पुलिस अधिकारी थे। मगर वो मरने जॉन स्कोट को गए थे। ०८/०२/१९२९ को एस्सेम्बली मेबोम्ब फेका जिसके वजह से जे सी हिल्टन ने २३/०२/१९३१ [शहीद दिन] को लाहोर जेल में फाशी दी गई। २७/०२/१९३१ को चंद्रशेखर आज़ाद ने खुद ओ गोली मार दी।
वायकोम सत्याग्रह [१९२४-१९२५]

DR B.R AMBEDKAROIL PAINTING, By Rajashekharan parameswarn, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0
केरल के त्रावणकोर में अछूतों के प्रवेश को लेकर हुआ था। गांधीजी के जुड़ते ही अछूतों के लिए अलग से रास्ता बना दिया जाता है और यह आंदोलन सफल रहा।
बारडोली सत्यागृह १९२८

PM pays tribute to Sardar Vallabhbhai Patel on his Punya Tithi, Narendra Mody, Selva Rangam faved, JPG image compressed and resized, source is licensed under CC BY-SA 2.0
गुजरात के बारडोली में कालिपराज नामक आदिवासी वहा के जमींदारों की खेती का काम किया करते थे। अचानक उन आदिवासी पर टैक्स ३०% लगा दिया गया। तब वल्लभ भाई पटेल ने मध्यस्थी करके टैक्स ३०% से घटाकर ६.२३% करवा दिया। तब कालिपराज की आदिवासी महिला ने गांधीजी को वल्लभ भाई पटेल को "सरदार" की उपाधि देने को कहा। कालिपराज का नाम बदलकर रानिपराज कर दिया गया।
सायमन कमिशन ०३/ ०२/ १९२८

QUITIN7, By No machine-readable author provided Dore Chakravorty- common wiki assumed(based on copyright clams), JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 2.5.
भारत के संविधान में सुधर लानेके लिए ७ अंग्रेज सदस्य की कमिटी बनाकर भारत भेजा गया था। भारत के संविधान में सुधार करना था मगर भारत का एक भी सदस्य नहीं था। इसलिए गांधीजी ने सख्त विरोध किया इसलिए पुरे देश में विरोध चालू हो गया। लखनऊ मे खालिकुज्जमा ने, मद्रास में टी प्रकाशन और लाला लाजपत राय ने विरोध किया।
पुरे देश "सायमन गो बेक" नारो से गूँज उठा। लाहोर में लाला लाजपत ने सडक पर जुलुस निकाला। इस पर अंग्रेजो ने लाठीचार्ज किया। लाला लाजपत राय १७/११/१९२८ को शहीद हो गए। |
सविनय अवज्ञा आंदोलन

Rejecting British -made cloth /Mahatma Gandhi, By Kandukuru nagarjun, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0
१०/०३/१९२२ को गांधीजी ६ साल की सज़ा पाने के बाद जेल में गए। तब से १९२८ तक, कई क्रांतिकारी ने अपनी अलग राजनैतिक पार्टी बनाकर हिंसक आंदोलन किये। तो कोई पार्टी बनाकर चुनाव लडे और सफल भी रहे। मगर आज़ादी मिलने के कोई आसार भी नहीं दिखाई दे रहे थे। अंग्रेजो ने कई लोकप्रिय नेता को हिंसा करने पर फांसी द दी। इतने विरोध के बाद सायमन कमिशन भी लागू कर दिया।
अब लोगो को फिरसे, गांधीजी की जरुरत महसूस हुई। कोंग्रेस अधिवेसन में गांधीजी को फिरसे आंदोलन का कोई मार्ग बताने को विनंती की गई। तब गांधीजी ने "सविनय अवज्ञा आंदोलन" का मार्ग बताया। अहिंसक आंदोलन ही करने को कहा।
प्रथम गांधीजी ने ११ सूत्री कार्यक्रम बनाया और इसे वाईसरोय इरविन को भेजा और कहा आप मेरी यह मांगे काबुल कर लो वरना मुझे आंदोलन करना पडेगा, वह मांगे निचे मुजब थी।

१० दिन तक जब इरविन का जवाब नहीं आया तो गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन करने का निश्चय किया।
गांधीजी ने पुरे देश में नमक कानून को तोड़ने का एलान किया। छात्रो सरकारी स्कूल में न जाए। हरेक विदेशी वस्तु का त्याग किया जाए सरकारी अधिकारी नौकरी छोड़ दे। भारतीय सैनिक इस्तीफा दे। कोई भी हिंसा का सहारा न ले।
१२/०३/१९३० दांडी कूच

Dandi Salt March/Mahatma Gandhi Sabarmati Ashram, Ahmedabad, By Kandukuru Nagarjun, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0
अंग्रेजो ने जब भारतीयों पर नमक बनाने पर पाबंदी लगा दी और नमक पर टेक्स भी बड़ा दिया। कानून तोड़ने की शुरूआत गांधीजी ने १२/०३/१९३० के दिन ७८ कार्यकर्ता के साथ शुरू की। ३८५ किलोमीटर की पैदल यात्रा करके ०६/४०४/१९३० की दिन दांडी, नवसारी के पास पहुचे। २४ दिन की पैदल यात्रा की, रास्ते में हरेक गाव को नमक का कानून तोड़ने को कहा।
गांधीजी ने कोस्टल हांउस पहोचकर, खुद ने अपने हाथो से नमक बनाकर नामक का कानून तोड़ा। अंग्रेजो ने गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया। इस तरह हर एक गाव में गांधीजी के कहने पर नमक कानून तोड़ा गया करीब ६०,००० लोगो को गिरफ्तार किया गया। इस तरह नमक कानून ने फिर से भारत के लोगो को एक बार फिर पुरे भारत को एक कर दिया।
१९३० में टाइम मेगेजिन ने गांधीजी को "मेन ऑफ़ इयर"के पुरस्कार से नवाजा।
नमक कानून तोड़ने की प्रक्रिया पुरे देश में चालू हो गई। सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत, पुरे देश में अहिंसा से नमक का कानून तोडा गया।
सीमांत क्षेत्र याने देश के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में गाँधी के बहोत बड़े अनुयायी थे, उनका नाम खान अब्दुल गफार खान था। यह लाल कुर्ती धारण करते थे। इसलिए उनके आंदोलन को "लाल कुर्ती आंदोलन" भी कहा जाता था। उन्हों ने हमेशा गांधीजी के उसूलो पे चलते थे। हमेशा अहिंसक आंदोलन ही किया। सीमांत क्षेत्र में गांधीजी की कोई भी मुहीम को बड़ी असरकारक तरीके से चलाते थे| इसलिए उनको "सरहद के गाँधी" भी कहा जाता था। उन्हों अपने ९८ साल के जीवन काल में ३५ साल जेल में काटे थे।
सविनय आंदोलन, पूर्व उत्तर में "जिया तरंग आंदोलन" के नाम से मणिपुर के पास में चला। इसका नेतृत्व येदुनाग के द्वारा किया गया। परन्तु यह आंदोलन हिंसक हो गया। इस आंदोलन में ज्यादातर जनजाति के लोग थे। वह लोग सरकार द्वारा किया गया अत्याचार सहन न कर सके और आंदोलन हिंसक हो जाने के कारण उनके लीडर येदुनाग को अंग्रेजो ने पकड़कर फ़ासी दे दी।
फिर ये आंदोलन येदुनाग जी की बहन गायडेल्यु ने चलाया। मगर वह भी हिंसक आंदोलन ही चलाती थी। उसके पास अपने सशस्त्र बल था और छापामार की लड़ाई में माहिर थी। मगर उसको भी अंग्रेजो में कैद करके जेल में डाल दिया।वह भारत की आज़ादी बाद ही जेल से छूट सकी|
धरासना कांड १९३० विश्व का सबसे बड़ा और हिंसक लाठीचार्ज
०५/०५/१९३० के दिन गांधीजी धरासना पहुचे क्योकि उस जगा पर अंग्रेजो नमक शाला में नमक बनाते थे। मगर अंग्रेजो ने गांधीजी की धरपकड़ कर ली। अब इस का नेतृत्व अब्बास तैयबजी ने किया। अब अंग्रेजो ने उसकी भी धरपकड़ करके जेल भेज दिया।
अब नेतृत्व के लिए सरोजिनी नायडू, गांधीजी के पुत्र मणिलाल और गांधीजी के पौत्र हरिलाल भी शामिल हुए। कोंग्रेस के हजारो कार्यकर्त्ता आ गए। इतनी बड़ी भीड़ को काबू करने के लिए अंग्रेजो ने लाठीचार्ज किया मगर एक भी कार्यकर्ता ने विरोध नहीं किया। अंग्रेजो कि लाठी खाते रहे, बदन से खून निकलता रहा मगर कोई भी व्यक्ति ने जवाब में हिंसा नहीं की। यह घटना के वक़्त अंग्रेजी पत्रकार वेब मिल्लर हाजिर था उसने कहा ऐसा लाठीचार्ज मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा। यह विश्व का सबसे बड़ा लाठीचार्ज है।
तमिलनाडु से चक्रवती राज गोपालाचारी ने त्रिचिरापल्लि से वेदारानी तक नमक कानून तोड़ने के लिये मार्च किया। केरल से केलप्पन और के टी माधवन सविनय अवज्ञा आंदोलन को आगे बढा रहे थे। कालीकट से पयानुर तक मार्च की। आंध्रप्रदेश में स्त्री और नौजवानों ने आगे बढाया।
कर्नाटक में सैनिकट्टा में नमक बनाने की जगह थी। वहा पर आंदोलन बहोत लोग इकठा हो गए| उड़ीसा मे कटक , पूरी, बालासुर और आसाम मेसिल्हत से नोवाखली तक यात्रा की गई थी।
इस तरह गांधीजी का यह आंदोलन पुरे देश में आग की तरह फ़ैल गया वरनाअब तक के आंदोलन निश्चित राज्य या प्रदेश में ही होते थे। इस कारण आयात करीब ३५% ही रह गया। सिगरेट के आयात घटकर २०% रह गई। मुंबई में १४ फेक्टरी बंध हो गयी। भारतीय उद्योग का विकास हो गया। नए स्वदेशी विद्यालय खुले।
इस आंदोलन को दबानेके लिए सभी बड़े नेता को गिरफ्तार कर लिया गया और कुल ९०,००० लोग को जेल में डाल दिया। गांधीजी को भी यरवडा जेल में डाला गया। इस तरह यह आंदोलन पुरे देश में सफल रहा और अंग्रेज काफी दबाव में आ गए।
प्रथम गोलमेजी परिषद
प्रथम गोलमेजी परिषद् में देश के ८९ लोग अलग अलग पार्टी जैसे की मुस्लिम लीग, दलित की पार्टी और देश के १६ नरेश गए थे मगर कोंग्रेस ने बहिस्कार किया था। जहा सबने एक होकर स्वराज की मांग के बदले अपने निर्वाचिन मंडल के लिए अलग व्यवस्था की मांग कर दी। इस तरह ये परिषद् का उदेश्य ही नहीं रहा। मगर अंग्रेज जान गए के सभी पक्ष के बीच सहमती नहीं है।
अब देश में चल रहे आंदोलन को शांत करने के लिए इरविन ने सामने से गांधीजी से गांधी - इरविन पैक सही किया गया। गांधीजी को २६/०१/१९३१ को जेल से रिहा किया गया। ०२-०३-१९३० को गांधीजी ने इरविन को पत्र लिखा था मगर इरविन ने कोई जवाब नहीं दिया था। मगर आज २६/०१/१९३१ को खुद इरविन चाहता था की इस आंदोलन को शांत करने के लिए गांधीजी से बात की जाए।
१७/०२/१९३१ के दिन गांधीजी और इरविन की मुलाकात हुई। ०५/०३/१९३१ को समजौते पर सही की गई। जिसके मुताबित दोनों की और से जो मांग रखी गयी थी। जिसे एक दुसरे ने सहमति दे दी।
इरविन ने गांधीजी की समजुती इस प्रकार हुई। पहला इरविन ने गांधीजी को सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त करने को कहा, दूसरी शर्त में - गांधीजी को द्वितीय गोलमेज परिषद में हाजरी देनेको कहा। तीसरी शर्त में - गांधीजी को विदेशी वस्तु के बहिस्कार को खत्म करना होगा, चौथी शर्त में- हड़ताल कानून के मुताबित ही करनी होगी। आखिर में- पुलिस के कार्यवाही की तपास की मांग नहीं करोगे।
इन के सामने, इरविन सरकार अहिंसा के कैदियो को छोड़कर, सभी राजनैतिक कैदियो को छोड देंगी। दुसरे में, भारतीयो को नमक बनाने की अनुमति दी जायेगी तीसरी और आखरी शर्त के मुताबिक़, सरकारी नौकरों को उनकी नौकरी वापस दी जायेगी। इस प्रकार गांधीजी का "सविनय अव्य्गा आंदोलन" समाप्त हुआ।
द्वितीय गोलमेज परिषद
द्वितीय गोलमेज परिषद् ०७//०९/१९३१ को नक्की हुई। इस परिषद में कुल ३१ मेंबर गए थे। इस समय वाइसराय विलिंटन थे। इस परिषद में गांधीजी, एनी बेसंट, सरोजिनी, मीराबेन आगाखान, जिन्ना और भीमराव आंबेडकर, घनश्यामदस बिरला और गांधीजी के पुत्र देवदास गाँधी भी शामिल थे।
गांधीजी ने दो प्रस्ताव रखे पहला वाइसराय के अधिकारों में कमी की जाए. दूसरा प्रस्ताव मे कहा के भारत में उत्तरदायित्व का शासन लगाया जाए। मगर गांधीजी की बातो पर किसीने ध्यान नहीं दिया। अंग्रेज चाहते थे की अल्प संख्यक के लिए अलग से निर्वाचन मंडल बनाया जाए और भारत में एक संगी ढांचा बनाया जाए अंग्रेजो ने मुस्लिम , दलित के लिए अलग से निर्वाचिन मंडल बनाने की तैयारी बताई।
वाइसराय ने कहा क्षेत्रीय और प्रांतीय क्षेत्र की स्वायत्ता दी जायेगी। वित् सुरक्षा युद्ध और विदेशी व्यापार आदि ब्रिटिश संसद के अधीन होंगे। मगर गांधीजी को ये मंजूर नहीं था इसलिए वह भारत लौट आये। आकर देखा तो सब बड़े राजकीय नेता को जेल में बंध कर दिया था और पिटाई हो रही थी। पत्रकारों के हक़ छीन लिए गए थे। इसलिए गांधीजी ने सरकार को सब को छोड़ने को कहा, नहीं तो फिर से आंदोलन करनेकी धमकी दी। धमकी देते ही गांधीजी को भी गिरफतार कर लिया। कोंग्रस को अवैध घोषित कर दिया।
पूना पेक्ट

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गांधीजी इस परिस्थिति को देखकर आमरण उपवास पर चले गए। मदन मोहन मालविया, राजेंद्र प्रसाद और गोपालाचारी वें सब ने मिलकर आम्बेडकर को समजाया की आप एक बार जाकर गांधीजी से मिले। दोनों के बीच बातचीत हुई। गांधीजी ने बताया की जाती और धर्म के नाम पर जो अंग्रेज बटवारा कर रहे है उसके खिलाफ है. आम्बेडकर ने भारत में दलितों के साथ हो रहे अन्याय के बारेमे गांधीजी को अवगत किया। गांधीजी ने आम्बेडकर को वचन दिया की आज से वह दलितों का काम करेंगे और दलितों की तकलीफ दूर करेंगे। २४/ ९/१९३२ को गांधीजी और आम्बेडकर के बीच "पूना पेक्ट" नामक समजौता हुआ। दलितों के लिए अलग निर्वाचित मंडल को समाप्त का दिया गया।
२४/०९/१९३२ के बाद गांधीजी ने अपना पूरा ध्यान दलितों की समस्या समझने और दूर करने के लिए लगाया ताकि दलितों अपने आप को अलग न समजे। गांधीजी ने दलितों को हरिजन का नाम दिया। उनके लिए समाचार पत्र भी निकाला। अपना ध्यान राजनैतिक और देश की समस्या से हटाकर दलितों के उध्धार के लिए लग गए।
१७/१०/१९४० में तीन घटना ऐसी धटी की गांधीजी ने राजनैतिक पटल पर वापसी की।
ब्रिटेन ने भारत को पूछे बिना ही २ वर्ल्ड वोर में जौक दिया। ब्रिटिश द्वारा रखा गया अगस्त प्रस्ताव जो कोंग्रस ने खारिज कर दीया। तीसरा जब मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान की मांग की।
व्यकतिगत आंदोलन
१७/१०/१९४० ,गांधीजी ने आते ही व्यतिगत आंदोलन चालु किया। इस आंदोलन का मकसद अंग्रेजो की हकीकत पुरे देश तक पहुचने का था। इस आंदोलन में कोई सभा और लोगो का जमावड़ा नहीं करना था क्योकि ऐसा करने से पोलिस नेता को स्थल पर पहोचते ही गिरफ्तार कर लेती थी। इसलिए इसबार कोई भी होहा करे बिना ही नेता अपने दिए हुए क्षेत्र में जाकर वहा के लोगो को आंदोलन की जानकारी देनी थी।
इस का प्रारम्भ, १७/१०/१९४० को महाराष्ट्र के पवनार आश्रम से किया गया। इस आंदोलन के लिए विनोबा भावे, जवाहरलाल नेहरु और ब्रह्म्भट को सत्याग्रही बनाया गया।
इस आंदोलक्न में ये ३ नेता और करीब २०,००० लोग गिरफ्तार हुए। ये आंदोलन सफल नहीं हुआ और कोई परिणाम नही आया।
क्रिस्प मिशन

ब्रिटन को वर्ल्ड वोर २ के लिए भारत के जवानों की अत्यंत जरुर थी। ब्रिटन ने भारत को विश्व युध्ध २ में भारत के नेता को पूछे बिना ही घसीटा था। इसलिए हमारे नेता ने विरोध किया। इसलिए भारत के नेताओ के सपोर्ट के लिए २३/०३/१९४२ को "क्रिस्प रिपोर्ट" के तहत भारतीयों को सविंधान मे ज्यादा छुट दी जाने की लालच दी गयी थी। मगर पहले विश्व युध्ध के दरमियान हुए अनुभव से सभी नेता सावध हो चुके थे।
क्रिस्प रिपोर्ट में जो भी सविधान में छुट देने की बात की गयी थी वो सब विश्व युध्ध खत्म होने के बाद देने का वादा किया था इसबार कोई भी नेता को इस क्रिस्प रिपोर्ट पे भरोषा नहीं था।
इसलिए ११/०४/१९४२, गांधीजी ने इसे ''पोस्ट डेटेड चेक'' कहकर रद्द कर दिया। नेहरु ने इसे "डूबती हुई बैंक का चेक"कहा, इस तरह "क्रिस्प रिपोर्ट" नाकामयाब रहा।
०७/०८/१९४२ भारत छोडो आंदोलन

"Quit India Movement" Photo at Gandhi Memorial, Sabarmati Ashram, Ahmedabad, By Sushant purohit, JPG Image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0
कोंग्रेस की मीटिंग में जब गांधीजी ने "भारत छोड़ो" आंदोलन का प्रस्ताव रखा तब किसी नेता ने सपोर्ट नहीं किया क्योकि गांधीजी ने किये हुए पिछले आंदोलनों को सफलता नहीं मिली थी। तब गांधिजी ने गुस्से में आकर एक मुठ्ठी बालू से पुरे देश में आंदोलन करवा सकता हु। तब जाकर "भारत छोडो" का प्रस्ताव पास हुआ। जन जागृति का माप निकालने के लिए जवाहरलाल नेहरु ने ०१/०८/१९४२ में "तिलक दिन" जाहिर किया। लोग उमड़ पड़े।
गांधीजी ने १३ सूत्री कार्यक्रम जाहिर किया। ये जानकारी अंग्रेज सरकार को मिली तब अंग्रेजो ने रातोरात "ऑपरेशन जीरो" का अमल किया। भारत के गाँधी सहित सभी नेता को तुरंत गिरफ्तार करके नेता जेल में डाला गया। गांधीजी को आगाखान पैलेस में रखा गया। बाकी अन्य नेताओको अहमद नगर किले में कैद किया।
जो भी लोग आंदोलन के सपोर्ट में बाहर निकले उसे अंग्रेजो ने बर्बरता से पिटा और जेल में बंध कर दिया। करीब १ लाख लोगो को जेल में डाला गया।
कोंग्रेस के बचे हुए नेता असरफ अली, राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायणऔर उषा मेहता ने भूमिगत आंदोलन चलाया। जनता को जागृत करने के लिए उन्हों ने रेडियो का उपयोग किया। मगर उन सबको भी पकड़कर जेल मे डाला गया। इस प्रकार पुरे आंदोलन को पूरी तरह कुचल दिया गया।
गांधीजी को ०६/०५/१९४४ को जेल से रिहा किया गया। यह गांधीजी का आखरी बड़ा जन आंदोलन था।
सी आर फोर्मुल्ला
०९/०९/१९४४ से २७/०९//१९४४, के बीच सी.आर.गोपालाचारी एक फार्मूला मुस्लिम लीग को साथ में लेने के लिए सी आर फोर्मुल्ला लाये थे मगर उसमे भी जिन्ना ने अलग मुस्लिम देश की मांग नहीं छोड़ी तब गांधीजी ने भी जिन्ना से मुलाकात करके उसे समजा ने की कोशिश की मगर असफल रहे।
लार्ड माउन्ट बेटन का "वन मेन बाउन्दरी फ़ोर्स" का खिताब

Gandhi with lord and Edwina Mountbatten| Mahatma Gandhi s Sabarmati Ashram, By Kandukuru Nagarjun, JPG image compressed and resized, source is licensed under CC BY 2.0
१० /०७ /१९४५ , में ब्रिटन में आम चुनाव हुआ। उसमे लेबर पार्टी की जित हुयी। इस तख्ता पलट से भारत को काफी फायदा हुआ। लेबर पार्टी को भारत से सहानुभूति थी। ०६/०८/१९४६ के दिन सरकार ने नेहरु को अंतरिम सरकार के लिए आमंत्रित किया। जो नेहरु ने १२/०८/१९४६ में स्वीकार किया। उस मीटिंग में पाकिस्तान की मांग को नकार दिया गया। तो जिन्ना ने "डायरेक्ट एक्सन" के प्लान अनुसार हिन्दू को मारना शरु किया और कोमी दंगेभड़क गए। इस दंगे ने विराट रूप धारण कर लिया था
बंगाल में दंगे की शुरुआत हुई और बहोत बड़े पय्माने पर हत्याए होने लगी। परिस्थिति पोलिस के भी काबू में न रही। ये खबर मिलते ही गांधीजी देल्ही छोड़कर सीधे नो आखाली पहुचे और आमरण अनसन पर बैठ गए। ये बेकाबू दंगा गांधीजी के आमरण उपवास पे उतारते ही शांत हो गया।
गांधीजी के इस कार्य से प्रभावित होकर अंग्रेज गवर्नर लार्ड माउन्ट बेटन ने कहा जो काम मै ५०,००० सशस्त्र सैनिक को भेजकर भी न कर सकता यह काम एक बुढ्ढे आदमी ने कर दिया इसलिए लार्ड माउन्ट बटन ने गांधीजी को "वन में बाउन्दरी फ़ोर्स " के पद से नवाजा।
यह दंगे बंगाल के कलकत्ता से मुंबई, बिहार,उड़ीसा और पंजाब तक फैल गया। सरकारी आकडे के अनुसार १,८०,००० लोग मारे गये मगर लोगो का कहना है की, करीब ५,००,००० लोग मारे गए थे। करीब १,८०,००,००० लोग बेघर हो गए थे। इस से पता चलता है की दंगा कितना भयानक होगा, और इस तरह जबरजस्ती से जिन्हा अंतरिम सरकार में सामिल हुए।
माउन्ट बेटन ने कोंग्रेस, मुस्लिम लीग, दलित, शिख,और सभी राजा रजवाड़े को मिलकर ब्रिटन में क्लिमन हेडली को रिपोर्ट दिया की भारत का विभाजन ही भारत की संविधान की समस्या का उकेल है। जब विभाजन की बात भारत आकर माउंट बेटन ने गाँधीजी को बताई तो गांधीजी ने जीना को अध्यक्ष बनाने की भी तैयारी बताई।
मगर कोई भी हालात में देश के विभाजन को रोकने को कहा। जब बात नहीं बनी तो हताश के साथ गुस्से होकर बोले अगर पकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर से गुजरना होगा। सरदार वल्लभ भाई पटेल और नेहरु ने जब गांधीजी को सही परिस्थिति बताई तब जाकर गांधी सहमत हुए। इस तरह जिन्ना की जिद के कारण भारत का विभाजन हुआ।
भारत विभाजन और गांधीजी


A Familier scene railway station| By Dr.Ghulam Nabi Kazi, JPG image compressed and resized, source is licensed under CC BY-SA 2.0 Happy coincidence where the spotlight hit the exact spot as the headlight, By Shankar s, JPG image compressed and resized, Source is licensed under CC BY 2.0
विभाजन के बाद जब हिन्दू, जो पाकिस्तान में थे और मुसलमान जो भारत में थे दोनों को अपना देश छोड़कर जाना था। इस स्थलांतर के दरमियान लोगो में बहुत गुस्सा था जो एक बर्दास्त की हद के बाद फुट पडा और कत्लेआम मच गया| पकिस्तान से आनेवाली ट्रेन में लाशो से भरी आती थी और हिन्दू औरत के साथ बलात्कार होता था। बच्चे तक को ज़िंदा नहीं छोड़ा जाता था। इस परिस्थिति को सरकार सम्हाल ने की हालत में नहीं थी।
ऐसी परिस्थिति में गांधीजी ने अहिंसा रोकने की भरपूर कोशिश की। बहोत ही गंभीर परिस्थिति वाले देश के विस्तार में अपनी जान की परवाह न करते हुए कत्लेआम को रोकने की कोशिश की। भारत के मुसलमानो की जान को गांधीजी अनसन करके बचा लेते थे मगर पाकिस्तान के हिन्दू को कोई बचाने वाला नहीं था।
नाथूराम गोडसे और गांधीजी की ह्त्या


नाथूराम गोडसे के बयान के मुताबित, पकिस्तान मे रहे हिन्दू मर्दो का क़त्ल किया जाता था और औरतो को नग्न हालत में जुलुस बनाकर बेचा जाता था उनके ऊपर बलात्कार किये जाते थे। हिन्दू के मंदिर और शीखो के गुरुद्वारा को तोडा जा रहा था। ४० मिल लम्बी शरणार्थी की कतार भारत आ रही थी। यह सब सुनकर भारत की प्रजा गांधीजी की विरुद्ध होती जा रही थी।
नाथूराम गोडसे ने दिए हुए अपने बयान के मुताबित, जब गोडसे ने देखा की पाकिस्तान से आये हुए हिन्दू, जिसमे औरते, छोटे बच्चे भी शामिल थे, उस वक्त बारिश भी गिर रही थी, वातावरण में ठण्ड थी। सब हिन्दू ने खाली पड़ी मस्जिद में आसरा लिया। तब गांधीजी ने अनशन करके खराब वातावरण में औरतो, बच्चो बूढ़ो को मस्जिद से बहार निकाल दिया और सरकार ने उनके रहने का भी कोई प्रबंध नहीं किया। तब गोडसे को लगा की गांधीजी की जिद से हिन्दू को नुकशान हो रहा है। सरकार भी गांधीजी की जिद के आगे लाचार है और ऐसी कई घटना घटने लगी और भारत में ही हिन्दू को लाचार देखा तब तब हिन्दू को गांधीजी की जिद से बचानेके लिए गांधीजी को मारनापड़ा।
३० /०१/१९४८, शाम को ३ बजे, बिरला हाउस में सब के सामने गांधीजी के ऊपर तीन गोली दाग दी और भागने के बजाय अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया। शामको ५ को आकाशवाणी ने गांधीजी ह्त्या की खबर देश को दी।
1 comments:
Click here for commentsOne Man soo many movement, in true sense he shook the world in gentle way..!!
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