श्राद्ध पक्ष २०२४

                                                  श्राद्ध पक्ष २०२४ 

                                                                                      Pinda Daan- Jagannath Ghat- Kalkata JPG, By Biswarup ganguly, image compressed and resized, source, is licensed under CC BY-SA 3.0                       Fast food Crow JPG , By Inugami-bargho, image compressed and resized, source is licensed under CC BY-SA 3.0

अनुछेद /पेरेग्राफ शीर्षक
१. प्रस्तावना
२. ज्योतिष का श्राद्ध से क्या सम्बन्ध है?
३. महाभारत के कर्ण से जुडी श्राद्ध कथा
४. श्राद्ध पक्ष कब और कितने दिन का होता है?
५. श्राद्ध पक्ष में क्या नहीं करना चाहिए।
६. घरमे अपने हाथो से ही पितृ तर्पण विधि
७. गया तीर्थ की पौराणिक कथा
८. उत्तराखंड का ब्रह्मकपाल तीर्थ
९. मध्य प्रदेश के उज्जैन का सिद्धनाथ घाट                                                                                
१०. महाराष्ट्र का त्रयंबकेश्वर

हिंदू धर्म में मानव जीवन अनेक संस्कारो  से जुडा है। ये संस्कार बालक अपनी माँ के गर्भ में होने से शुरू होते है और अन्तयेष्टि याने की मरण तक चलते है। उसके मरने के बाद उसका बेटा उसकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण विधि करता है। जिसे श्राद्ध कहते है। श्राद्ध याने श्रद्धा पूर्वक सन्मान के साथ की गई विधि। जो हरेक बेटे की जवाबदारी याने की फ़र्ज़ में आता है। माता पिता या कुटुंब का कोई भी व्यक्ति चाहे वो बड़ा हो या छोटा, मरनेके बाद पितृ कहलाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, देवो से भी पहले पितृ की पूजा करनी होती है। 

संस्कृत में श्लोक है की "पुन्नाम नरकात त्रायते इति पुत्रः" अर्थांत, जो नरक से रक्षा करता है, वही पुत्र है। इसलिए हिन्दू धर्म में पुत्र का महत्व पुत्री से ज्यादा है। क्योकि तर्पण विधि पुत्र या घर के पुरुष के हाथो ही किया जाता है।  

हिन्दू धर्म में अपने जीवित माता पिता को सन्मान देना, उनकी सलाह सुनना और मानसिक शांति प्रदान करना हरेक संतान का कर्तव्य में आता है। वृध्धावस्था  में माता पिता की देखभाल करना, उनकी ईच्छा को पूरी करना, उनके जीवन जरुरीयात याने भोजन,वस्त्र और दवाईयो, देव दर्शन याने की यात्रा, वगरे का इंतज़ाम करना संतान की फ़र्ज़ में आता है। माता पिता के परलोकगमन के बाद, उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण विधि याने श्राद्ध करना अति आवश्यक है। जो व्यक्ति माता पिता के प्रति अपना फ़र्ज़ नहीं निभाता है, उससे देवो भी नाराज रहते है। कहा जाता है की,उसे और उसकी आनेवाली पीढी को पितृ दोष लगता है।                                                                                                                ज्योतिष का श्राद्ध से क्या सम्बन्ध है? 

     

Hindu Janam Kundali JPG, By Acharyaraman, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0
Dirghatamas Rish JPG, By Raja Ram Verma, image compressed and resized, the source is licensed under CC BY-SA 4.0

हिन्दू ध्रर्म के अनुसार, जब कोई बालक का जन्म होता है तब उसकी कुंडली बनाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर कोई भी व्यक्ति, अपने माता पिता के जीवित होने पर उनके प्रति अपनी फ़र्ज़ नहीं निभाता है और मरने के बाद, श्राद्ध याने माता पिता के आत्मा की शांति के लिए तर्पण विधि नहीं करता है उसे पितृ दोष लगता है| यह पितृ दोष जन्म कुंडली में निर्माण होता है। 

इस जन्म में उसे उसके बुरे परिणाम भुगतना पड़ता है। जिसकी कुंडली में पितृ दोष होता है, वह इस जन्म में कितना भी पढ़ लिख ले और अपनी पढाई से, कितनी भी उचाई पर पहोच जाये  पर उसे सफलता नहीं मिलती है।  धन में बरकत नहीं होती है। घर मे कलह का वातावरण होता है। उसके संतान भी उसका सन्मान नहीं करते है।  धंधे में क़र्ज़ हो जाता है। कुटुंब में एकता नहीं होती है। संतान प्राप्ति में देरी या संतान ही न होना। इन में से कोई भी लक्षण घरमे दिखते है। कुंडली में राजयोग होने पर भी उसका पूरा फल नहीं मिलता है।

ज्योतिष शाश्त्र के अनुसार, इस पितृ दोष की शांति करानी पड़ती है वरना इस जन्म में उसका जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।

 पोस्ट जरूर पढ़े: १ ब्लड प्रेशर / रक्त चाप  २. मधुमेह  ३. आंवला /आमला, ४ . सोंठ (सूखा अदरक) 

                                          महाभारत के कर्ण से जुडी श्राद्ध कथा

           Shradh Paksh JPG image represents, story of Shradh Paksha. Impressed by charity, Indra gave him 16 days to perform shradh. Since than Shradh Paksh started.

महाभारत में अर्जुन के हाथो मृत्यु के बाद, जब अपने कर्मानुसार इंद्रलोक पहुंचे तो भोजन में उन्हें सोना ही सोना परोसा गया। तब कर्ण ने भोजन में सोना परोस ने का कारण पूछा तो बताया गया की, आपने आप के जीवन दरम्यान सोने का ही दान किया है और कभी भोजन का दान नहीं किया। न ही कभी अपने पितृ श्राद्ध किया ना श्राद्ध निमित ब्रह्म भोजन करवाया है। इसलिए आप को सोना ही परोसा गया है। तब कर्ण ने अपने पितृ के बारेमे पता नहीं होने का कारण दिया। तब इंद्र ने कर्ण की आत्मा को सोलह दिन का समय अपने पितृ की तर्पण विधि को करने पृथ्वी पर भेजा। इस तरह १६ दिन अपने पितृ की आत्मा की मुक्ति के लिए श्राद्ध किया। 

इसलिए ऐसा कहा जाता है की, भाद्रपद पूर्णिमा से आसो माह की अमावस्या तक सभी पितृ को यमलोक से मुक्त किया जाता है। सभी पितृ अपने कुटुम्बी और परिवार के पास आते है। परिवार जन भी यह १६ दिन अपने पितृ को याद करके उनकी आत्मा की शांति के लिए अपनी हैसियत के मुताबित, श्राद्ध करते है। 

कही लोग घरमे पितृ की तर्पण विधि ब्राह्मण द्वारा करवाते है। पितृ को पिंड दान किया जाता है। पितृ का  पसंदीदा भोजन बनाया जाता है। घरमे पूजा के बाद, ब्राह्मण को भोजन करवाते है। गरीबो को वस्त्र, अनाज और पात्र का दान करते है। 

तर्पण विधि के बाद, गाय को घास, कुत्तो को रोटी और कौवे को खीर पूरी भी खिलाते है। श्राद्ध में कौवे को बहुत महत्व दिया जाता है। ऐसा माना जाता है की, कौवे ने खाया हुआ भोजन सीधा पितृ को पहोचता है। 

ज्यादा तर लोग पितृ तर्पण की विधि, नदी किनारे धार्मिक स्थल पर करवाते है। 

                                         श्राद्ध पक्ष कब और कितने दिन का होता है?



तारीख                                  वार                                     श्राद्ध 
१८/०९/२०२४                    बुधवार                                प्रथम श्राद्ध 


१९/०९/२०२४                    गुरूवार                               द्वितीया श्राद्ध 
२०/०९/२०२४                    शुक्रवार                               तृतीया श्राद्ध 
२१/०९/२०२४                    शनिवार                               चतुर्थ श्राद्ध 
२२/०९/२०२४                    रविवार                                 पंचम श्राद्ध और छठवि श्राद्ध 
२३/०९ /२०२४                   सोमवार                                सातम श्राद्ध 
२४/०९ /२०२४ /                 मंगलवार                              आठम श्राद्ध                                                        २५/०९//२०२४                   बुधवार                                 नोम  श्राद्ध   सौभाग्यवती स्त्री श्राद्ध                                २६/ ०९/२०२४                   गुरूवार                                दशम श्राद्ध                                                       
२७/०९/२०२४                    शुक्रवार                                एकादशी श्राद्ध 
२८/०९/२०२४                    शनिवार                                एक भी श्राद्ध नहीं है 
२९/ ०९/२०२४                   रविवार                                  बारस श्राद्ध  
३०/०९ /२०२४                    सोमवार                                 तेरस श्राद्ध 
 ०१/१०/२०२४                    मंगलवार                               चौदस  श्राद्ध                             ०२/१०/२०२४                     बुधवार                                  सर्व पितृ अमावस्या                                                                                                          (पूनम और अमावस्या का श्राद्ध)                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 भाद्रपद माहकी पूर्णिमा से भाद्रपद माह की अमावस्या तक, सोलह दिन पितृ पक्ष यानी श्राद्ध पक्ष की तर्पण विधि के लिए होता है। इस साल २०२४, में अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार, श्राद्ध पक्ष तारीख १८/०९/२०२४  बुधवार  से ०२ / १० /२०२४ बुधवार  तक/होने वाला है |  


श्राद्ध का अर्थ है, श्रद्धा से सन्मान पूर्वक पितृ के आत्मा की मुक्ति के लिए की गई तर्पण विधि। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश करते ही पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। श्राद्ध पक्ष १६ दिन चलता है। इसमें  सभी तिथि का समावेश हो जाता है। पूर्णिमा और अमास का भी समावेश हो जाता है।  

कोई भी पितृ का श्राद्ध, जिस तिथि को उनका परलोकगमन याने स्वर्गवास हुआ हो, उस दिन किया जाता है। अगर किसी को अपने पितृ के  परलोकगमन की तिथि याद न हो तो, उस पितृ का श्राद्ध महालय अमावस्या याने की सर्व पितृ अमावस्या की तिथि पर किया जाता है। इसे पितृ विसर्जनी भी कहा जाता है। किसी के पितृ की मौत अकस्मात से,अग्नि से, किसी शस्त्र से, विष से या जल में डूबने से होती है। ऐसी अकाल मृत्यु का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। उसकी अकाल मृत्यु चाहे कोई भी तिथि पर हुई हो।  

माता का श्राद्ध अष्टमी को और पिता का श्राद्ध नवमी  जाता है। इस प्रकार तिथि के मुताबित तर्पण विधि की जाती है।

                                         श्राद्ध पक्ष में क्या नहीं करना चाहिए। 

*पितृ की विधि में कभी लोहे का बर्तन इस्तमाल नहीं करना चाहिए। विधि में ताम्बा, पीतल या मिटटी के ही बर्तन इस्तमाल करना है। 

*विधि के दिन शरीर पर तेल नहीं लगाना है। अगर घर के सभी तेल न लगए तो बहेतर है। 

*पान, बीड़ी, सिगरेट,और नॉन वेज से दूर ही रहना है। 

*पुरे पितृ पक्ष दरम्यान दुसरो के घर का खाना नहीं खाना है। 

*घर में कोई भी नए खरीदी नहीं करनी है। सिर्फ दान देने के लिए कर सकते है। 

*कोई भी शुभ कार्य पितृ पक्ष में वर्जित है।

*श्राद्ध पक्ष में अपने धर पे मांगने वाले को खाली हाथ नहीं भेजना है। 

*बाल और दाढी  नहीं करनी है। 

श्राद्ध की तर्पण विधि को सफल बनाने के लिए इस नियम को पालना जरुरी है।

                                         घरमे अपने हाथो से ही पितृ तर्पण विधि  

      
                  Pinda Daan -Jagannath Ghat- Kalkata JPG , By Biswarup ganguly, image compressed and resized, source, is licensed under CC BY-SA 3.0  

अगर कोई  इतना गरीब है के ब्राह्मण को घर मे बुलाकर श्राद्ध की तर्पण विधि नहीं करवा सकता है। या उसके घर के पास ब्राह्मण नहीं है। या विदेश में रहता है जहा कोई ब्राह्मण नहीं मिलता है। ऐसी परिस्थिति में घरमे कैसे पितृ तर्पण विधि की जाए उसका मार्गदर्शन और विधि करने की रीत ब्राह्मण द्वारा बताए गई है। जो नीचे दी गयी है।

प्रथम पूरा घर की साफ़ सफाई करके इसे गौ मूत्र छिड़ककर पवित्र किया जाता है। गांव में तो पूरा घर गोबर से लीपा जाता है। 

विधि में, प्रथम तांबे के लोटे में थोड़ा सा गंगाजल डालकर पूरा लोटा सादा पानी डालकर भरा जाता है। फिर इस पानी में तिल, जव्, साबुत चावल, पीला फूल और चन्दन डाला जाता है। शास्त्रों में, हथेली में अंगूठे के पास वाले भाग को पितृ तीर्थ कहा गया है। इसलिए दाए हाथ के अंगूठे के निचे कुशा दबाकर उस पर पानी डालकर अंजलि दी जाती है। 

पहले तीन अंजलि ब्रह्माजी, विष्णुजी और शिवजी को अर्पित की जाती है। फिर सात अंजलि सदा चिरंजीव आत्मा व्यासजी, हनुमानजी परशुराम, विभीषणजी, अश्वत्थामा, बलि और कृपाचार्य को दी जाती है।

उसके बाद अपने पितृओ जिस के लिए आप ये तर्पण विधि करते है, उसका ध्यान करे। फिर उस आत्मा के गोत्र का नाम लेना है। बाद में उनका नाम ले के तीन बार अंजलि देनी है, साथ में यह श्लोक पूरी श्रद्धा और भाव से बोलना है, "तृप्यन्ताम  तस्स प्रतिम पितृभ्यो तृप्यन्ताम" और प्राथना पूरी श्रद्धा से करते हुए कहना है के यह विधि आपके लिए की गई है इसे स्वीकार करे। आपकी कृपा हम पर बनाए रखे। आपका आशीर्वाद देते रहे। 

अब विधि समाप्त होने के बाद, बचा हुआ जल जिसे अंजलि के वक्त पात्र में डाला गया था, कुशा जिस से अंजलि दी गई थी ,और लोटे में विधि के दरम्यान रखा हुआ जल, तील, जव्, चन्दन साबुत चावल आदि पीपल के वृक्ष के नीचे पवित्र जगह में विसर्जित कर दे। 

बाद में गाय को घास, कुत्ते को  रोटी और कौवे को भोजन करवाना है। गरीब को कुछ दान जरूर देना है।  इस तरह घर में अपने ही हाथो से पितृ की तर्पण विधि करनी है।  

घरमे ब्राह्मण को बुलाकर भी शास्त्रोक्त विधि से श्राद्ध की तर्पण विधि की जाती है। 

ज्यादातर लोग तर्पण विधि किसी नदी के तट पर और धार्मिक स्थल पर ही करना चाहते है। इस विधि के लिए गया, उत्तराखंड, उज्जैन और नाशीक सबसे उचित माने जाते है। यहाँ पूरी विधि विधान से पिंडदान और तर्पण विधि भी करते है। ये सभी स्थान का अपना ही अलग महत्व है। इस स्थानों पर हजारो श्रद्धालु अपने कुटुंब के साथ आकर अपने पूर्वज याने पितृ के आत्मा को मुक्ति करवाते है। 

 दुनिया का सबसे बड़ा  पितृ तर्पण विधि का स्थान  "गया" तीर्थ है।    

श्राद्ध पक्ष में पितृ तर्पण विधि के लिए गया तीर्थ सबसे प्राचीन, अति पवित्र माना जाता है। कहते है की, यहाँ श्रद्धा से आने मात्र से, पितृ के मुक्ति के मार्ग खुल जाते है। यहाँ फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट के पास पिंड दान और तर्पण  विधि की जाती है। श्राद्ध के लिए गया तीर्थ, दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ है। यहाँ करीब १०,००० ब्राह्मण विधि के लिए उपलब्ध है। हर साल करीब १० लाख हिन्दू पुरे विश्व से तर्पण विधि करवाने आते है।

                                                   गया तीर्थ की पौराणिक कथा 

Vishnupada JPG, By Myself, image compressed and resized, the source is licensed under CC BY-SA 2.5

पौराणिक काल में एक गया नामक असुर था। असुर कुल में जन्म होने के बावजूद वह बड़ा धार्मिक था। हंमेशा लोक कल्याण के काम करता था।  मगर असुर जाती का होने से उसके काम की कोई कदर नहीं करता था। वह, भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। उसने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की। भगवान विष्णु ने प्रस्सन होकर वरदान  मांगने को कहा। तब  गयासुर, जो लोक कल्याण के काम करना चाहता था, उसने भगवान् विष्णु से मांगा की जो भी परिजन मुझे देखे या मेरा स्पर्श करे उसकी मुक्ति हो जाए। भगवान् विष्णु ने "तथास्तु " कहकर वरदान दे दिया। 

अब कोई भी  परिजन, गयासुर को देखता या स्पर्श करता उन सभी की  मुक्ति होने लगी, चाहे वो कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो। गयासुर अतिशय विशाल काय था। वह घूम घूम कर सब को मुक्त करने लगा। इसलिए पापी, अत्याचारी सभी की मुक्ति होने लगी। पाप और पुण्य का फर्क मिट गया। यमलोक खाली हो गया। सृष्टि की व्यवथा बिगड़ गई।

आखिरकार, यमराज और सभी देवतागण ब्रह्माजी के पास गए और सृष्टि  को गयासुर से जो नुकशान हो रहा है वह बताया। इस का उपाय बताने को कहा, ब्रह्मा जी ने गयासुर के पास जाकर कहा की हम सभी देवता तुम्हारी पीठ पर हवन करना चाहते है। इस बात से गयासुर प्रस्सन हुआ और देवो ने गयासुर की पीठ पर विशाल शिला रख दी ताकि वह घूम फिर ना सके। मगर गयासुर तो महाकाय था, इतनी बड़ी शिला और देवो बिराजमान होने बावजूद घूमता रहा। कोई फर्क नहीं पड़ा।  

जब भगवान् विष्णु भी आकर गयासुर पर बैठ गए। तब भगवान् विष्णु  गयासुर के आराध्य देव होने के कारण गयासुर स्थिर हो गया, और कहा की आप मुझे  इस शिला में स्थापित कर दीजिये। अब मैं धूमकर सबके पाप नष्ट  करना  बंध कर दूंगा। भगवान विष्णु ने उनकी इच्छा के बारे में पूछा तो गयासुर ने कहा, आप ने मुझे वरदान दिया था। 

 वह कभी व्यर्थ नहीं हो सकता, इसलिए जो भी व्यक्ति यहाँ आकर पितृ तर्पण करेगा। उसके पितृ को मुक्ति मिलनी चाहिए। ये मेरी इच्छा है। मरने के बावजूद, लोक कल्याण का ही सोचने से भगवान विष्णु और सभी देवता प्रस्सन हुए और भगवान विष्णु ने वचन दिया की, मै स्वयं यहाँ बिराजमान रहूंगा और पितृओ की मुक्ति दिलाऊंगा। फिर भगवान विष्णु जी ने वहा अपने पैर के निशान छोड़े जो आज भी मौजूद है।

इसलिए गया तीर्थ का इतना महत्व है। 

                                                  उत्तराखंड का ब्रह्मकपाल  तीर्थ 

Badrinath Vallely, along the Alaknanda River Uttarakhand JPG , By Subarno Banerjee, user Ekabhishek  image compressed and resized, source is licensed under CC BY-SA 2.0

ब्रह्माजी को पांच शिर थे। इसलिए उन्हें पंचानन भी कहते थे। एक दिन जब ब्रम्हाजी ने स्वयं वेद के बारे में गलत प्रचार करने लगे। इस वजह से धर्म का दुष्प्रचार होने लगा। इसलिए शिवजी ने ग़ुस्से मे आकर ब्रह्माजी का पांच में से एक शिर काट डाला। मगर वह शिर शिवजी के त्रिशूल में चिपक गया। इस सिर को त्रिशूल से अलग करने के लिए भगवान शिवजी बदरीनाथ के पास अलकनंदा नदी के किनारे आये और वहा शिर से त्रिशूल को अलग कर दिया। 

ब्रह्माजी का सर जिस जमीन पर रखा वह जमीन पवित्र हो गयी। इसलिए इस स्थान की जमीन भी पूर्वज की तर्पण विधि करने लिए योग्य हो गई। तब से यहाँ,अलकनंदा नदी किनारे बद्रीनाथ के अक्षयवट पास पितृ तर्पण विधि श्राद्ध पक्ष में करते है। यहाँ आपको करीब १०० ब्राह्मण विधि के लिए उपलब्ध है। पुरे विश्व से करीब हर साल १ लाख श्रद्धालु तर्पण विधि के लिए आते है। 

                                            मध्य प्रदेश के उज्जैन का सिद्धनाथ घाट 

Ram Ghat, Ujjain, By Bernard Gagnon JPG, image compressed and resized, Source is licensed by CC BY-SA 3.0

शिप्रा नदी के किनारे भैरवगढ़ में देवी पार्वतीजी ने खुद अपने हाथो से बरगद का पेड़ लगाया था। यही पर भगवान शिवजी और देवी पार्वती जी के पुत्र कार्तिकेय की सर मुंडन की विधि की गई थी। इसलिए यह जगा अति पवित्र मानी जाती है। श्रद्धालु यहाँ अपने पितृ की तर्पण विधि के लिए आते है। यहाँ साल में करीब २ लाख श्रद्धालु पुरे विश्व से आते है। करीब ३००० ब्राह्मण विधि के लिए उपलब्ध  है।  

                                            महाराष्ट्र का त्रयंबकेश्वर 

    
            Trimbakeshwar JPG , By Niraj Suryawanshi, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0 

महाराष्ट्र के ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है और त्रम्बकेश्वर भगवान शिवजी के १२ ज्योतिर्लिंग में से एक है। इसलिए अति पवित्र है। यहाँ का शिवलिंग त्रिमुखी है। जो ब्रह्मा, विष्णुजी और भगवान शिवजी जुडी एक पौराणिक कथा भी है। एक बार ऋषि  गौतम की पत्नी का झगड़ा, बाकि सभी ऋषि की पत्नी के साथ हो गया। सब ऋषि ने ऋषि गौतम को पाठ सीखाने की ठान ली। 

सब ऋषि ने मिलकर गणेशजी की आराधना कर के प्रस्सन किया। सबने मिलकर गणेशजी को ऋषि गौतम को आश्रम से बाहर करने को कहा। गणेशजी वचनबद्ध हो चुके थे, इसलिए गणेशजी ने एक अति दुर्बल गाय का स्वांग रचा और गौतम ऋषि के खेत में घुसकर अनाज खाने लगी। गौतम ऋषि ने जब गाय को खेत के बाहर निकालने की कोशिश की तो गाय गिरकर मर गई।

सभी छिपे हुए ब्राह्मण बाहर आए और गौतम ऋषि को गौ हत्यारा कहने लगे। इतने सारे ब्राह्मण को एकसाथ देखकर वो गभरा गए। इसलिए इसका प्रायश्चित कैसे करे? उस बारे में बता ने को कहा। तब सभी ने मिलकर गौतम ऋषि को पृथ्वी के तीन चक्कर, ब्रह्मगिरि पर्वत पर १०० चक्कर और एक महीने का व्रत रखने को कहा। अगर यह प्रायश्चित नहीं कर सकते तो नदी  गंगाजी को यहाँ लाओ। उसमे स्न्नान करके १ करोड़ पार्थिव शिवलिंग की आराधना करके फिर गंगा नदी में डुबकी मारके शुद्ध हो जाओ।

ऋषि गौतम ने प्रायश्चित करनेके लिए भगवान शिवजी की तपस्या की और भगवान शिवजी को प्रसन्न किया।  शिवजी से गौ ह्त्या के पाप से मुक्त करने को कहा। तब भगवान  शिवजी ने बताया तुमने कोई गौ ह्त्या नहीं की है।  सभी ब्राह्मण ने मिलकर तुमको फसाया है। इसलिए वह सभी ब्राह्मण को मै दंडित करना चाहता हु। 

तब गौतम ऋषि ने सब को माफ़ करनेको कहा। क्योकि उन लोगो की हरकत के कारण ही ऋषि गौतम को भगवान शिवजी के दर्शन का लाभ मिला। तब सभी ब्राह्मण, ऋषिमुनि, सारे देवगण और गंगाजी ने खुद प्रगट होकर, भगवान शिवजी को वही स्थापित हो ने को मनाया। इसलिए भगवान शिवजी वही ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। 

ज्योतिर्लिग, तीन मुखी शिवलिंग, गंगाजी का प्रागट्य और कुंभ मेला का महा पर्व भी यही होता है। इसलिए यह अति पवित्र स्थल माना जाता है। करीब ३ लाख लोग हर साल अपने पितृ की तर्पण विधि को लोग आते है। तर्पण  विधि के उपरांत पितृ दोष, कालसर्प दोष, नारायण बलि की विधि के लिए भी आते है। 

इस प्रकार श्राद्ध पक्ष का हिन्दुओ  में अनोखा महत्त्व होता है। श्राद्ध पक्ष में हिन्दू को अपने पितृ की आत्मा को तृप्त करने का अनोखा अवसर मिलता है। तृप्त पितृ के आत्मा की शांति से, आशीर्वाद पाने का लाभ मिलता है। 

 पोस्ट जरूर पढ़े: १ ब्लड प्रेशर / रक्त चाप  २. मधुमेह  ३. आंवला /आमला, ४ . सोंठ (सूखा अदरक) 

आगे का पढ़े :  १. अधिक मास २ नवरात्री

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1 comments:

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RT
admin
1 नवंबर 2020 को 2:33 pm बजे ×

Good Knowledge about Shard Paksh

Congrats bro RT you got PERTAMAX...! hehehehe...
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