छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती

                                 छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती

                                                                                                                                                                                                                                                                   Chhatrapati Shivaji Maharaj, By Omkarjoshi123, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

अनुच्छेद शीर्षक
०१ हिंदू शूरवीर राजा शिवाजी महाराज
०२ शिवाजी महाराज का बचपन
०३ हिंदवी स्वराज का शुभारंभ 
०४ अफ़ज़ल खान का षडयंत्र
०५ बाजीप्रभु का बलिदान 
०६ साहिस्त खान की बेइज्ज़ती
०७ शिवाजी महाराज की हार और पुरंदर का समजौता
०८ औरंगजेब को चकमा
०९ "फाधर ऑफ़ इंडियन नेवी" का खिताब
१० "गढ़ आला पर सिंह गेला" तानाजी मालसुरे
११ "छत्रपति" बने शिवाजी महाराज
१२ दक्षिण भारत पर कब्जा 
छत्रपति शिवाजी महाराज जैसा प्रतापी, पराक्रमी, शौर्यवान, दुश्मन को पहचानने वाला, और कुशल नेतृत्व करनेवाला राजा कइ सदियों में एकबार ही होता है। जिस उम्र में बच्चे को पता ही नहीं होता है की भविष्य में उसे क्या करना है, ऐसी खेलने कूदने की उम्र में शिवाजी महाराज ने अपनी सेना बनाकर मुग़ल साम्राजय के किले हड़पना शुरू कर दिया था। भारत में अगर मोगलो को किसीने परेशान किया या रातो की नीद चुराली हो तो वह शिवाजी महाराज थे। उन्हों ने बड़े बड़े  मुग़ल शहंशाहो को भी चकमा दे दिया था। इस शिवाजी जयंती के दिन, उन्हों ने जो इतिहास रचा है उसे याद करके कुछ सिखते है।

मुग़ल बादशाह आदिल की सेना में एक शाहजी भोसले नामक मराठा सेनाध्यक्ष था उनकी पत्नी का नाम जीजा बाई था। उनके वहा शिवनेरी के किले में १६३० में एक बालक का जन्म हुआ। जिसने भारत में एक ऐसा इतिहास रचा  जिसकी किसीने कल्पना तक नहीं की थी। उनका नाम देवी शिवाय के नाम पर से रखा गया। इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से मशहूर हुए।


भारत उस समय विदेशी ताकतों से घिरा हुआ था। बीजापुर में आदिलशाह, गोलकोंडा मे कुतुबशाह, उत्तर में शाहजहां में याने पूरी जमींन पर मुगलो का और पानी पर पुर्तगीज़ो का कब्जा था। इस तरह पूरा भारत विदेशी ताक़तों का गुलाम था। ऐसी परिस्थिति में कोई भी हिन्दू राजा का अपना राज्य खड़ा करना नामुमकिन था। इसलिए जो भी हिन्दू शूरवीर थे वह मुगलो के सैन्य में भर्ती थे या सैन्य में उच्च अधिकारी के पद पर थे। 

                                                           शिवाजी महाराज का बचपन 

छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता शाहजी बीजापुर में मुग़ल बादशाह आदिलशाह के सेनाध्यक्ष थे इसलिए ज्यादातर वह अपनी घर से दूर ही रहे। शिवाजी की परवरिश माता जीजा बाई ने ही की। बचपन से ही माता जीजा बाई ने शिवाजी को हिन्दूत्व के संस्कार दिए। बड़े शूरवीर राजा महाराजा की कहानी सुनाकर पराक्रम और शूरवीरता के संस्कार दिए। अपना हिन्दू राज्य बनाने की प्रेरणा दी। युद्ध की तालीम शिवाजी महाराज को दादोजी कोंडे ने दी। राज्य के लिए नीतिशास्त्र सिखाया। दादोजी कोंडे समजते थे की उनकी दी हुई तालीम से शिवाजी महाराज भी उनके पिता की तरह ही मुग़ल के यहाँ उच्च पद पर बिराजमान होंगे। मगर माता जीजाबाई के संस्कार और वीर हिन्दू राजा और हिन्दू धार्मिक कहानी ने शिवाजी को अपना ही राज्य बनाने का हौसला दिया। 

                                                             हिंदवी स्वराज का शुभारंभ 

छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सपने को आकार देने के लिए उन्हों ने वहा रहनेवाले मावली किसानो की मदद से अपनी सेना बनाई।  अब अपना हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए  शिवाजी महाराज को किले की जरुरत थी। शिवाजी महाराज और उनकी सेना गोरिला युद्ध और छापामार युद्ध में निपुण थी। शिवाजी महाराज अच्छी तरह जानते थे की मुग़ल साम्राजय के पास बहोत ही बड़ी सेना थी। उनकी सेना युद्ध कुशल और तालीमबध्ध थी। उनसे मुकाबला करना नामुमकिन था। मगर शिवाजी के पास जो गोरिला और छापामार युद्ध की कुशलता थी उस से मुग़ल अनजान थे। 

१६४५ में, आमने सामने के युद्ध के बजाय शिवाजी महाराज ने बीजापुर के अधिकारी को रिश्वत देकर तोड़ा और १५ साल की खेलने कूदने की उम्र में तोरणा किला, कोंडाणा किला और चाकन किला को आदिल शाह से छीन लिया। इस तरह ही मुल्ला अहमद से भिवंडी किला, थाना किला और कल्याण किले अपनी जागीर में शामिल कर लिए। इस तरह महज १५ साल की उम्र मे ही शक्तिशाली मुग़ल साम्राजय की नीव पर प्रहार कर दिया। शिवाजी महाराज को रोकने के लिए बीजापुर के आदिल शाह ने शिवजी महाराज के पिताजी को २५ जुलाई १६४८ को आदिल शाह की आज्ञा से बाजी घोरपड़े ने गिरफ्तार कर लिया।  

उस संधि के अनुसार, शिवाजी महाराज ने अपने लिए करीब ७ साल यानी १६४९-१६५५ आदिल शाह से दूर रहे। इस सालो में उन्हों ने दूसरे किले फ़तेह करना जारी रखा। उन्हों ने करीब ४० किलो  पर अपना ध्वज फरका दिया। अपनी घुड़ सवार की सेना को विशाल  बना दिया। पैदल सेना को भी मजबूत बना दिया। उनका वर्चस्व दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया। उनके बढ़ाते हुए कद से मुग़ल साम्राजय में हड़कंप मच गया। संधि का समय खत्म होते ही १६५६ में शिवाजी ने चंद्रराव मोरे को मारकर आदिलशाह का जावली प्रदेश को अपने कब्जे में ले लिया।

                                                                   अफजलखान का षड़यंत्र 

Chatrapati Shivaji Maharaj post swhows How the conspirator Afzal Khan was killedby Shivaji Maharaj

इस से आदिलशाह ने क्रोधित होकर, शिवाजी महाराज को पकड़ने के लिए अपने सबसे खूंखार ७ फ़ीट के सेनापति अफ्जल्खान को भेजा। जिसने शिवाजी महाराज को डराने के लिए रास्ते में आनेवाले कई गांव को रौंद डाला। २  महीने की कश्मकश के बाद्द, अफ्जल्खान के सन्देश के अनुसार शिवाजी और अफ्जल्खान अकेले में मीटिंग के लिए प्रतापगढ़ के किल्ले पर १० नवम्बर १६५९ में मिले।

शिवाजी महाराज ने  दूरदर्शी से समज लिया की, अफ्जल्खान जरूर षड़यंत्र करेगा। इसलिए शिवाजी महाराज ने अपने मुस्लिम सेक्रेटरी की सलाह के अनुसार, अपनी कमर के एक बाजू नीचे कटार और दूसरी बाजू वाघनख रख दिए। अफ्जल्खान ७ फ़ीट ऊंचा और कदावर था जब की शिवाजी ५.६ फ़ीट के थे। मुलाक़ात के समय जब दोनों  गले मिले तो, अफ्जल्खान ने शिवाजी को दबोचकर कटार से हमला कर दिया। अब शिवाजी ने अपने वाघनख निकाले और अफ्जल्खान का पेट चिर दिया। अफ्जल्खान वही ढेर हो गया। शिवाजी ने प्रतापगढ़ से तोप फोड़कर अपने लश्कर को इशारा किया की अफ्जल्खान मारा गया है। शिवाजी महाराज के लश्कर ने अफ्जल्खान के लश्कर  को हराया उनके करीब ३००० सैन्य को बंदी बना लिया। इस १० नवम्बर १६५९ की जीत के बाद शिवाजी का कद काफी बढ़ गया। 

                                                           बाजीप्रभु का बलिदान 

अब शिवाजी महाराज की सेना ने कोंकण, कोल्हापुर की ओर कुच करके पन्हाला किला भी हासिल कर लिया। शिवाजी महाराज की बढती सल्तनत को रोकने के लिए आदिलशाह के सेनापति सिद्दी मसूद ने १६६० में शिवाजी महाराज को पन्हाला किले में चारोओर से घेर लिया। उस वक़्त आदिलशाही सैन्य को अंग्रेजो ने तोप और गोले दिए थे और मुग़ल भी आदिलशाह से मिल गये थे। इस तरह तीनो ने मिलकर शिवाजी महाराज को मौत के घाट उतारने की योजना बनाई थी। उस वक़्त शिवाजी महाराज की छोटी सी सेना ने आदिलशाह की विशाल सेना को बहादुरी से आगे बढ़ने से रोक दिया और शिवाजी महाराज पन्हाला किले से निकलकर सही सलामत विशालगढ़ पहोच गए। मगर इस १३ जुलाई १६६० की पवन खिंड की इस लड़ाई में शिवाजी का विश्वासु साथी बाजीप्रभु ने अपनी जान का बलिदान दे दिया।   शिवाजी महाराज ने आदिलशाही सल्तनत को मदद करने वाले अंग्रेजो की राजापुर  फैक्ट्री को फुक दिया और ४ फैक्ट्री के अफसर को बंदी बनाकर १६६३ के मध्य भाग तक कैद रखा।

                                                                 साहिस्त खान की बेइज्जती 

बीजापुर की बेगम ने औरंगज़ेब को शिवाजी महाराज को पकड़ने के लिए बिनती की।अप्रैल १६६३ में औरग़ज़ेब ने अपने मामा साहिस्ता खान को १.लाख सैनिक के साथ शिवाजी महाराज पर आक्रमण करने को भेजा। साहिस्ता खान ने विशाल सेना के दम पर पुरे पुणे को कब्जे में ले लिया और शिवाजी महाराज के लाल महल में भी कब्जा कर लिया। तब एक दिन शिवाजी महाराज ने ४०० बाराती के स्वांग में पुणे में दाखिल होकर रात को अपने लाल महल में घुसकर साहिस्त खान पर हमला कर दिया। अचानक हमले से साहिस्त खान अपनी जान बचाने के लिए बारी से कूद कर अपनी जान बचाई मगर उनकी तीन उंगली शिवाजी महाराज की तलवार से कट गई। अपनी कटी हुई ऊँगली और जान बचाकर पुणे के बाहर खड़ी अपनी सेना को लेकर भाग गया।

                                                     शिवाजी महाराज की हार और पुरंदर समझौता  

१६६४ में शिवाजी महाराज ने फिर मुगल साम्राज्य के अति धनवान व्यापारी संकुल सूरत पे हमला बोल दिया और सूरत लूटकर चले गए। साहिस्त खान की हार और सूरत की लूट का बदला लेने के लिए,अपने राजपूत सेना पति राजा जय सिंह को १.५ लाख सैन्य के साथ शिवाजी महाराज के ऊपर आक्रमण करने भेजा। इस बार राजा जयसिंह कामयाब रहे। ११ जून १६६५ को शिवाजी महाराज को मुग़ल के साथ एक "पुरंदर समझौता" करना पड़ा।  समझौते के अनुसार, शिवाजी महाराज को २३ किले और ४ लाख का सोना देना पड़ा। शिवाजी को मुग़ल का जागीरदार बनना पड़ा                                                                                                                                                                                        औरंगजेब को चकमा   

  
Chatrapati Shivaji Maharaj's post tells how Shivaji Maharaj tricked Aurangzeb. You can never keep a lion in a cage.

१२ मई १६६६, आगरा में शिवाजी महाराज और औरंगज़ेब की मुलाक़ात, औरंगज़ेब के जन्म दिन पर होती है। शिवाजी महाराज को भरे दरबार में अपमानित किया जाता है। तब शिवाजी महाराज भी भरे दरबार में औरंगज़ेब को दुआ सलाम किये बिना ही निकल जाते है।  इस से क्रोधित होकर शिवाजी महाराज को अपने बच्चे संभाजी के साथ नज़रबंद किया जाता है।  शिवाजी महाराज यहासे निकलने के लिए बिमारी का बहाना बनाते है। अपनी बिमारी को ठीक करने के लिए वह हर रोज़ फल गरीबो में बेचने के लिए बड़ीबड़ी टोकरी में फल मंगवाते है। शुरू में मुग़ल सिपाही फल की टोकरी की जांच करते है फिर लापरवाह हो जाते है। इसी परिस्थिति का लाभ उठाकर, इसी फल की टोकरी में छिपकर अपने बेटे के साथ शिवाजी महाराज आगरा से निकल जाते है। आगरा से निकलते ही शिवाजी महाराज अपने घर रायगढ़ पहोच जाते है।

                                                               "फादर ऑफ़ इंडियन नेवी" का खिताब 

शिवाजी महाराज को खतरा अंग्रेजो से भी था। वह खतरा समुद्र से जुड़ा हुआ था। इसलिए उन्हों ने अपना पूरा समुद्र किनारा सुरक्षित कर लिया था। शिवाजी महाराज के पास करीब ४०० समुद्री जहाज थे। शिवाजी महाराज को "फादर ऑफ़ इंडियन नेवी" कहा जाता था। मुगलो के साथ शिवाजी महाराज का शांति बनाये रखने का समझौता १६७० में खत्म होता था।अब शिवाजी महाराज ने मुगलो से अपने किले वापस जीतकर अपनी सल्तनत को बढ़ाना शुरू कर दिया। १६७१ से १६७४ तक शिवाजी महाराज और मुगलो के बीच कई बार युद्ध हुए। औरंगजेब ने अपने बड़े बड़े खूंखार योद्धा को जैसे की मोहब्बत खान और दावूद खान को भेजा मगर कोई भी शिवाजी को नहीं हरा पाए। शिवाजी महाराज का एक और दुश्मन बीजापुर का आदिलखान १६७२ में मृत्यु हो गई।

                                              "गढ़ आला पर सिंह गेला" तानाजी मालुसरे 

                                                        Chatrapati Shivaji Maharaj post shows How Tanaji Malasure won Kondhana Jilla won by sacrifice

मुगलो के साथ किया हुआ समझौता १६७० में खत्म होते ही, शिवाजी महाराज ने मुग़ल को समझौते में दिए हुए सभी किले फिर से जीतकर अपने कब्जे में लेने लगे। मगर कोंढाणा का किला फ़तेह करना काफी कठिन था। औरंगजेब ने वहा काफी कड़क बंदोबस्त करके रखा था। उसकी रखवाली के लिए उदयभान के हाथो में थी। कहा जाता है की वह एक दिन में १-५ गाय, १.५ भेड़े और ५० शेर (१ शेर = ९३३ ग्राम) चावल खा जाता था। उसकी १८ पत्नी और १२ पुत्र थे। सभी पुत्र उस से भी बलवान थे।  उसका सेनापति भी खतरनाक था वह भी १ दिन में 1-२ गाय, १ भेड  और २० शेर चावल खाता था। उसके उपरांत ५००० सैन्य था।  

इस किले के २ दरवाजे थे कल्याण दरवाजा और पुणे दरवाजा। दोनों ही दरवाजे से अंदर जाना मतलब मौत को दावत देना था। शिवाजी महाराज की माता जीजा बाई जब प्रताप गढ़ किले में आयी तो वहा की खिड़की से कोंढाणा किला दीखता था। उसे देखकर उसे मुगल से वापस लेने की इच्छा होती थी। मगर इस बार उन्हों ने किला वापस लेनेका मन बाना लिया और शिवाजी महाराज को बुलाकर कोंढाणा का किला छीनने का मानो हुकम दे दिया। शिवाजी ने जिजामाता को समझाया की जो भी किला पर कब्जा करने गया उनमे से कोई भी वापस नहीं आया है। मगर माता की जिद के आगे उन्हें जुकना पड़ा। 

अब किला फ़तेह करने के लिए शिवाजी को अपने बचपन का मावल दोस्त तानाजी मालुसरे ही योग्य लगे। मगर उस वक़्त उमरठ गांव में उनके बेटे रायबा की शादी में व्यस्त थे। शिवाजी का सन्देश मिलते ही, शादी को रोककर ,अपने भाई सूर्याजी और सेलारमामा के साथ अपने १००० मावल सैन्य को लेकर शिवाजी के पास पहुंचे। माता जीजा बाई के आदेश के बाद तानाजी कोणधाना किला फ़तेह करने निकल पड़े। कोंढाणा किला के जंगल में उदयभान ने कोली जाती के हिन्दू को बसाके रखे थे जो उनके जासूस बनकर सब माहिती उदयभान को पहुंचाते थे। 

तानाजी ने उन कोली को बहुत सारे तोहफे अफ़ीन और सोना देकर अपनी ओर कर लिया। उन कोली ने तानाजी को उदयभान से मिलाया। उदयभान को एक भवानी के संत के तौर पर तानाजी की पहचान दी गई। तानाजी ने उदयभान को प्रभावित करके किले में रहनेकी परवानगी दे दी। किले की पूरी जासूसी करके तानाजी को पता चला की किले में बड़ा जश्न होने वाला है। किले की पिछले हिस्से की दीवाल से जहा सैन्य की संख्या कम थी। जश्न के दिन तानाजी ने यशवंती नामक "घो" [यानी छिपकिली की एक जाती, जो दिवार पर चिपक जाती है उसके शरीर बंधी हुई रस्सी से दीवाल पर आसानी से चढ़ा जाता है]  की मदद से करीब ३०० सैन्य किले पर चढ़ गए और चौकीदार  मारकर किले पर हमला कर दिया।

१७ फरवरी १६६०, जश्न के कारण सब नशे में थे और अचानक हुए हमले से मुग़ल सैन्य पर तानाजी की सेना हावी हो गयी। बाकी सैन्य ने किले के दरवाजे खोल दिए और हमला बोल दिया। इस प्रकार मुग़ल सेना को घेरकर लगभग ढेर कर दिया। मगर उदैभान के साथ युद्ध करते समय तानाजी का हाथ काट गया। मगर जित के करीब पहोच चुके तानाजी ने कतेहाथ के साथ लड़ते हुए उदयभान को मार दिया। उदयभान के मरने के बाद, मुग़ल सैन्य भागने लगे अपनी जान बचने के लिए किले से कूद गए। इस विजय को पाने के लिए तानाजी बहुत ही घायल हो गए और वह भी शहीद हो गए।   

किला फ़तेह होते ही, शिवाजी महाराज को खबर दी गई। मगर शिवाजी महाराज के आने से पहले ही तानाजी दुनिया छोड चुके थे। पुणे में शासन करने के लिए कोंढाणा किला अति महत्त्व का था क्योकि वो पुरंदर, राजगढ़ और तोरण किले बीच था। इसलिए मराठा को अपनी मराठा सल्तनत के लिए अनिवार्य था। दूसरा वह किला अभेद था। तीसरा मुग़ल के लिए,  मराठा साम्राज्य पर नज़र रखने के लिए जरुरी था। इतना महत्त्व का किला जितने के बाद भी शिवाजी महाराज ने जश्न नहीं मनाया। क्योकि इस किले को जितने के लिए अपने बचपन दोस्त,अति विश्वासु जागीरदार,  बहादुर और निष्ठावान सिपाही जैसे अपने घर के सभ्य के बराबर साथी को खो दिया था। शिवाजी महाराज ने इतना ही कहा "गढ़ आला पर वाघ गेला" मतलब की गढ़ तो जीते मगर एक सिंह को खो दिया।  

                                                                 छत्रपति बने शिवाजी महाराज 

अब शिवाजी महाराज का हिंदवी राज का स्वपन पूरा होने जा रहा था। ६ जून १६७४ मे, हिन्दू रीत रिवाजो, परम्परा, तिलक, जनेऊ, सात  जल और वैदिक मंत्रोचार के साथ सदियों के बाद एक ब्राह्मण गंगा भट्ट के हाथो शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया। शिवाजी महाराज अब छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से सन्मानित किये गए।  करीब ५०००० लोग की हाजरी में कार्यक्रम हुआ। १८ जून १६७४ में उनकी माता जिसने शिवाजी महाराज को हिन्दवी राज्य का सपना दिखाया था उनकी मृत्यु हो जाती है।

                                                                  दक्षिण भारत पर कब्जा 

अब छत्रपति शिवाजी महाराज की दक्षिण भारत को मुघलो से बचने के लिए उन्हों ने १६७७ में हैदराबाद जाकर गोलकोण्डा सल्तनत से जाकर मुग़ल का साथ न देने का समझौता किया। कर्नाटक के वेल्लोर और गिंगी किले पर कब्जा किया। मैसूर में भी कई पहाड़ी विस्तार पर अपना कब्जा  कर लिया।  इस तरह दक्षिण में भी अपना साम्राज्य स्थापित करने लगे। उनका पूरा देश में हिन्दू साम्राज्य का स्वपन सिद्ध होने ही वाला था। इतने में १६८० में छत्रपति शिवाजी महाराज की मौत हो गई। 

छत्रपति शिवाजी महाराज एक अलग तरह के शासक थे। जब वह किसी भी प्रदेश पर अपना कब्जा कर लेते थे तो कभी भी उस प्रदेश की किसी भी महिला को स्पर्श नहीं करते थे। अपने किसी भी सैनिक को भी स्पर्श नहीं करने देते थे। उन सभी महिला को सुरक्षित अपने घर तक पहुंचाने का इंतजाम करते थे। इतने उच्च विचारो के मालिक थे छत्रपति शिवाजी महाराज। 

                                                                       जय  हिंद

                                                                                 



आगे का पढ़े:  १. महा शिवरात्रि      .कुंभ मेला समाप्ति 

PS. These images are taken from the internet, no copyright is intended from this page. If you are the owner of these pictures kindly e-mail us we will give you the due credit or delete it. 















Previous
Next Post »

Please do not enter any spam link in the comment box. ConversionConversion EmoticonEmoticon