बसंत पंचमी २०२४

                                                                   बसंत पंचमी २०२४   

                                         SARASWATI MATA, By अजय शिंदे, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY -SA 4.0

अनुच्छेद शीर्षक
१. अबूझ मुहूर्त
२. वसंत पंचमी की तिथि और मुहूर्त
३. माँ सरस्वती की उत्पति
४. माँ सरस्वती की पूजाविधि
५. वसंत पंचमी लो क्या करे?
६. कुम्भ मेला और बसंत पंचमी का स्नान
७. श्री कृष्ण और श्री सरस्वती देवी
८. पृथ्वीराज चौहान और बसंत पंचमी
बसंत पंचमी का त्यौहार माँ सरस्वती को समर्पित है। यह दिन माँ सरस्वती का प्रागट्य दिन भी है। माँ सरस्वती विधा, ज्ञान, बुद्धि, वाणी, संगीत, कला और शिक्षा की देवी भी कही जाती है। इसलिए बच्चे को आज के दिन से पहला अक्षर पढाने की शुरुआत की जाती है। माँ सरस्वती को शारदा, वीणावादिनी, भगवती, वाक्देवी, वर्णेश्वरी, भारती, कमला और हंसवाहिनी आदि नाम से मशहूर है, इस दिन को "अबूझ मुहूर्त" होता है याने की कोई भी शुभ कार्य करने के लिए मुहूर्त देखने की जरुरत नहीं होती है। भारत में ६ ऋतु होती है। शर्दी, गर्मी, बरसात, ग्रीष्म, पतझड़ और बसंत इन सभी में बसंत को ऋतुओ का राजा कहा जाता है। इस ऋतुमे  न तो ज्यादा ठण्ड होती है ना ज्यादा गर्मी।  वातावरण भारत के सभी प्राणी के लिए अनुकूल रहता है। पतझड़ के बाद आये नए फूल, नए फसल और चारोओर हरियाली और खुशबु से मन प्रफुलित हो जाता है। 

बसंत पंचमी की तिथि और मुहूर्त 

बसंत पंचमी माघ माह की शुकल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। इस वर्ष बसंत पंचमी २६ जनवरी २०२३, गुरूवार को आती है। बसंतपंचमी का प्रारंभ मंगलवार १३ फेब्रुअरी २०२४, दोपहर ०२ :४१ मिनट से होगी और समाप्ति बुधवार,  १४ फेब्रुअरी २०२४ , दोपहर १२:०९ को होगी। बसंत पंचमी का सरस्वती पूजा का मुहूर्त १४ फेब्रुअरी प्रात: काल  ७: ०१ मिनट से दोपहर १२:३५ मिनट तक रहेगा। पूजा का कुल समय ५ घंटा और ३४ मिनट का होगा।  

              

                                                                         माँ सरस्वती की उत्पति 

                                            Mustered Field, By Nitin Das, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

हिन्दू पुराणों के अनुसार, इस पृथ्वी की रचना करने के बाद ब्रह्माजी इस रचना से संतुष्ट नहीं थे। उनको ऐसा लगता था की इस पृथ्वी की रचना में कुछ कमी है। पृथ्वी उस वक्त नीरस लगती थी क्योकि चारोओर सनाटा था। तब उन्हों ने विष्णु जी को समस्या बताई। तब विष्णुजी ने कहा जब आपने सुष्टि रची है तो इसका उपाय आपको ही निकालना है। तब विष्णुजी की बात से प्रेरित होकर ब्रह्माजी ने पृथ्वी पर अपने कमंडल से पानी को छिड़का। तब उसमे से चार भुजाधारी अति सुंदर देवी की उत्पति हुई। इनके हाथो में वीणा, वरमुद्रा, वेद और माला थी। जब देवी ने अपनी वीणा से सुर छेड़े तब पूरी पृथ्वी का मानो पूरा वातावरण ही बदल गए। इस प्रकार बसंत पंचमी को माँ सरस्वती की उत्पति हुयी। 

पूरा वातावरण रस से भर गया इसलिए उन्हें सरस्वती कहा गया। लोगो को वाणी मिली हवा में सरसरात आ गयी।   पक्षी कलरव करने लगे। पूरा पृथ्वी का वातावरण रंगीन बन गया। लोगो को वाणी मिल गयी। पेड़ पौधे खिल गए। पूरा वातावरण में जान आ गयी। सरस्वती देवी के लोगो के जीवन में आने से लोगो में बुद्धि, मेधा का संचार हुआ। लोगो के जीवन में संगीत और एक नया ही जोश आ गया। पृथ्वी का वातावरन रंगीन और जिवंत हो गया। इस दिन नयी फसल से खेल लहलहा उठे मानो पुरी धरती खिल उठी। चारोओर हरियाली छा गई। धरती का मानो नया जन्म हो गया। 

                                                                          माँ सरस्वती की पूजा विधि

    
                                                               Saraswati puja in Nepal, By Arun giri, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

 बसंत पंचमी के दिन प्रातः काल उठकर शुद्ध होकर सर्व प्रथम माँ सरस्वती की पूजा दोपहर तक कर लेनी चाहिए। माँ सरस्वती की पूजा पिले या सफ़ेद वस्त्र और फूल की जाती है। सबसे पहले एक बाजोठ के ऊपर सफेद या पीला  वस्त्र बिछा दो। इस बाजोठ पर सरस्वती देवी का फ़ोटो स्थापित करे।  साथ में गणेश जी का स्थापन भी करे माताजीको कुमकुम का तिलक करके हल्दी मिश्रित अक्षत लगाए। गणेशजी को सिंदूर से तिलक करके दूर्वा अर्पित  करे। पंचामृत भी रखे।  नैवेद्य में बूंदी के लडडू और कोई भी पिली मिठाई चढ़ाये। धुप, दिप, फूल औरअगरबत्ती से देवी सरस्वती और गणेशजी की आरती करे। इस प्रकार पूजा करके पंचामृत और प्रसाद का वितरण करे। 

                                                                          बसंत पंचमी को क्या करे ?                           

हरेक शिक्षण संस्थान में सरस्वती की आराधना की जाती है। विधार्थी को सरस्वती पूजन जरूर करते है। माँ  सरस्वती स्थान के सामने अपनी किताब और कलम रखकर पूजा करते है।  यह दिन सभी शुभ कार्य के लिए पवित्र माना जाता है। इस दिन बच्चो की पढाई का आरंभ किया जाता है। जिसे अक्षराभ्यास कहते है। इस दिन बच्चो का नामकरण, बच्चो का विधा आरंभ, नया वाहन, नए घर मे गृहप्रवेश आदि के लिए शुभ माना जाता है। संगीतकार अपने वाधो की पूजा करते है। इस दिन घर मे भी पिले पकवान बनाये जाते है।  

                                                        कुंभ मेला और बसंत पंचमी का स्नान 

   
                                                 Har ki Pauri at Haridwar, By Kanu_887, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

इस साल कुंभ मेला का आयोजन हरिद्वार में है। कुंभ मेला में स्नान का महत्त्व अधिक होता है। कुंभ में दो प्रकार के स्नान होते है। पर्व स्नान और शाही स्नान।  इनमे वसंत पंचमी पर्व स्नान में आती है। इस वर्ष इस दिन हरिद्वार में बसंत पंचमी का पर्व स्नान १६ फरवरी को है।

                                                                      श्री कृष्ण और श्री सरस्वती देवी 

भागवत पुराण के अनुसार श्री कृष्ण ने सरस्वती देवी को वरदान दिया था  की अब से बसंत पंचमी के दिन आपकी भी आराधना की जायेगी। तब से माँ सरस्वती की हर बसंतपंचमी के दिन पूजा की जाती है। वह पूजा आज भी जारी है।  

                                            पृथ्वीराज चौहान और बसंत पंचमी 

Maha_ranapratap_singh, By Sandeep 1830977, image copress and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0

बसंत पंचमी के दिन का एक अति महत्त्व का प्रसंग है। जो हरेक भारतीयों को जानना जरुरी है। भारत पर कही मुग़ल आक्रमणखोरो ने चढ़ाई की। इस आक्रमणखोरो का मुकाबला हमारे क्षतिय राजाओ ने बड़ी ही बहादुरी पूर्वक किया। हमारे राजा बहादुर तो थे ही साथ में दयावान भी थे। इनमे से आक्रमणखोर मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान पर १७ बार आक्रमण किया। १६ बार पृथ्वीराज चौहान से वह बुरी तरह हार गया। मगर हिन्दू संस्कार "क्षमा विरस्य भूषणम" अर्थात "क्षमा ही वीरो का आभूषण है" के मुताबित पृथ्वीराज चौहान ने इसे माफ़ कर दिया।  

 १७ वि बार पृथ्वीराज चौहान हार गए। मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान और उनके सेनापति को बंदी बना लिया। बंदी बनाते ही मोहम्मद गोरी ने उनकी आखे फोड़ दी। मोहम्मद गोरी को मिली माहिती के मुताबित पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चला सकते है। यही बात उसे देखनी थी। इसलिए उसने एक आयोजन किया। 

उसने एक पर्वत पर घंट लगाया और उसे बजाया और चौहान को बाण चलाने को कहा।  मगर उनके सेनापति ने चौहान को सांकेतिक भाषा में राजा कहा पर बैठा है वह बताया। "चार वास चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुलतान है मत चुको चौहान" इस संकेत मिलते ही चौहान ने अंदाज़ा लगा लिया की मोहम्मद गोरी किस दिशा में कितने अंतर पर बैठा है। घंटनाद होते ही उसने घंट पर बाण चलने के बजाय मोहम्मद गोरी पे बाण चलाया और वही ढेर कर दिया। जब मोहम्मद गोरी के मरने की खबर मिलते ही पृथ्वीराज जी और उनके सेनापति ने एक दूसरे पे वार करके वही प्राण छोड़ दिए क्योकि वैसे भी मोगल छावनी से भाग सकनेवाले नहीं थे।

यह प्रसंग वसंत पंचमी को हुआ था इसलिए याद किया। हमारे हरेक भारतवासी को जानना जरुरी है की हमारे राजा कितने बहादुर और शौर्यवन थे मगर साथ में दयालु और उच्च संस्कार के मालिक थे।

बसंत पंचमी को माँ सरस्वती की उत्पति से पृथ्वी को नया रंग और रूप मिला। पृथ्वी को ज्ञान और बुद्धि का वरदान मिला। पृथ्वी संगीतमय हुयी। पृथ्वी  हकारात्मता और नए जोश से भर गई मानो नया जन्म हो गया। इनका मशहूर मंत्र है "ॐ सरस्वत्यै नमः" 

                                                 

आगे का पढ़े :  १. छत्रपति शिवाजी महाराज    २. महा शिवरात्रि 

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