सुबह में नवकारशी के बाद, जैन लोग उपाश्रय में जाते है।में महाराज साहेब, याने जैन साधू व्याख्यान करते है। जिससे सुनने के लिए सभी जैन जाते है। जैन मुनि, धर्म ज्ञान देते है। जैन धर्म में कुल २४ तीर्थंकर होते है। जैन मुनि इन २४ तीर्थंकर की जन्म, संसार त्याग, तप और मोक्ष की बाते बताते है। उनके जीवन में घटित प्रेरणादायक प्रसंग बताते है। वो लगभग १ से १.३० घंटा चलता है। आखिर में जैन मुनि जिस भी लोग को उपवास, एकासना और कोई भी तपस्या हो तो उसके मुताबित के “पच्चखाण” देते है|
फिर शाम को सूर्यास्त के पहले भोजन करके, अपने धर्मस्थानक में जाते है। उस वक़्त सभी जैन, अपने साथ मुह्पत्ति, कटासनु और रजोणा लेकर धार्मिक क्रिया के लिए जाते है। मुह्पत्ति मतलब मुह के ऊपर सफ़ेद कलर का मुह को ढकने के लिए बांधा हुआ कपड़ा, जिस की वजह से बोलने पर कोई भी सूक्ष्म जिव की हत्या न हो। कटासनु मतलब जमीं पर बैठने के लिए आसन, रजोणा एक लकड़ी के आगे बहोत सारे खुल्ले धागों से बना हुआ होता है। जिसे बैठने के लिए आसन बिछाते समय जमीन पर फिराया जाता है, ताकि जमीन पर रहे हुए कीड़े या मकोड़े दूर हो जाए, ताकि जमीन पर बैठते वक़्त उन जीवो की ह्त्या न हो।
धार्मिक क्रिया में “सामायिक” की जाती है।इस क्रिया समजाती है की, सभी जैन को अपने आप में प्रवेश करके खुद के अंदर निरीक्षण करना है। अपने में रहे हुए गुण और दोष को समजना है। दूसरी क्रिया “प्रतिक्रमण” की होती है| जिस क्रिया के मुताबिक “प्रति” याने वापस "क्रमण" याने आना। प्रतिक्रमण याने की सांसारिक प्रवृति में जहा भी मन अटका पडा है वहा से मन को “वापस" लाके धार्मिक क्रियाओं में लगाना। यह सब “सामायिक" और “प्रतिक्रमण” की प्रवृति में करीब २ घंटा होता है। इस प्रकार सभी जैन का पूरा दिन व्यतीत होता है। इस तरह ८ दिन पसार होते है।
तीर्थंकर महावीर जन्म कल्याणक वांचन दिन
पर्युषण का पाचवा दिन तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म वांचन के लिए और जन्म दिन मनाने के लिए रखा गया है। उस दिन ज्यादातर जैन उपवास रखते है। महावीर जन्म वांचन के दिन, उपाश्रय में जैन मुनि महावीर स्वामी का चरित्र और जीवन यात्रा के बारे में बताते है।
महावीर स्वामीजी की माता त्रिशला देवी को महावीर स्वामी के गर्भावस्था दरमियान आये हुए १४ स्वप्न, जन्म, उनके विवाह, पुत्री जन्म, माता पिता का अनसन से संसार त्याग ,महावीर स्वामी का संसार त्याग, महावीर स्वामीजी की १२.५ साल की कठोर तपस्या, तपस्या के दरमियान उन्हें दिए गए उत्सर्ग, भयंकर उत्सर्ग को समता से भुगतना, केवल ज्ञान की प्राप्ति करना, समाज को अँधश्रध्दा से बहार निकालना, बलि प्रथा बंध करवाना, समाज में रहे दूषण को दूर करना आदि विषयो पर व्याख्यान द्वारा समजाते है।
जैन मंदिर जिसे देरासर कहते है। वहा पर महावीर स्वामी की माता को आये हुए १४ स्वप्न का कार्यक्रम किया जाता है। १४ स्वप्न थे १.ऐरावत हाथी.२.नंदी ३.सिंह ४.देवी लक्ष्मी जी ५.फूलो का हार ६.पूर्णिमा का चन्द्र ७.सूर्य ८.धर्म धव्जा ९.चांदी का कलश १०.कमल का फुल ११.क्षीर समुद्र १२.देव विमान १३.रत्नों से भरा कुंभ १४.निर्धूम अग्नि।
इस कार्यक्रम में देरासर की छत के करीब से १४ स्वप्न एक के बाद एक को उतारा जाता है। हरेक स्वपन के ऊपर ”मण के हिसाब से घी की बोली” लगती है, जो जैन श्रावक ज्यादा “मण घी की बोली” बोलता है। वह स्वप्न को अपने घर ले जाता है। “एक मण घी” का भाव फिक्स किया होता है। उस भाव के मुताबिक रूपया देरासर में जमा करवाया जाता है।
इस तरह १४ स्वप्न की बोली का आदेश दिया जाता है। सबसे ज्यादा “मण घी की बोली" लक्ष्मी जी के स्वप्न के लिए लगती है। वैसे ही महावीर स्वामी के जन्म के बाद “पारणा” की भी बोली का आदेश दिया जाता है। जो जैन सबसे ज्यादा “मण घी की बोली” बोलता है। उसके घर में महावीर स्वामी का “पारणा” जाता है। १४ स्वपन और महावीर स्वामी का पारणा को घर में लाना अति शुभ माना जाता है। यह कार्यक्रम यहाँ समाप्त होता है।
अब जिस के घर महावीर स्वामी का पारणा लिया होता है, उस घर मे सभी जैन महावीर स्वामी को पारणे में झुलाने जाते है। महावीर स्वामी के दर्शन का लाभ लेते है। इस प्रकार महावीर स्वामी के वांचन दिन मनाया जाता है।
पर्युषण पर्व का आखरी दिन कैसे मनाते है? 
Sadhvi Pramukh Shree Kanak Prabha ji, By Rishabh Dugar Jain,JPG image compressed and resized, Source is licensed under CCBY-SA 4 0 Praying man Prayer Young- Free image on pixabay, JPG image compressed and resized, source is licensed under cc Public Domain Mark पर्युषण पर्व का आखरी दिन को “सवत्सरी” कहते है। इस दिन का सबसे महत्व का हिस्सा है “आलोवणा” इस के बगैर, पर्युषण पुरे नहीं होते है। ”आलोवणा“ के लिए दोपहर का समय रखा जाता है। इस दिन ज्यादातर जैन उपवास रखते है। इस में जैन मुनि पुरे वर्ष दरम्यान किये गए पापो का प्रायश्चित करवाते है। इसमें पूरा जैन समाज हाजिर रहता है। इसका हरेक जैन के लिए बहोत महत्व रहता है। अपना कामकाज, नौकरी, धंधा छोड़कर अचूक हाजिर रहते है।
पर्युषण के अंतिम दिन का प्रतिकमण को "सव्त्सरी प्रतिक्रमण" कहते है। जो हरेक जैन करता ही है। इस प्रतिकमण की समाप्ति के बाद, सभी जैन के दुसरे को “मिच्छामी दुक्कडम” करते है। वर्ष दरमियान कोई भी मन दुःख एक दुसरे के व्यवहार से लगा हो तो “मिच्छामी दुक्क्डम“ करके खत्म किया जाता है | इस तरह सवत्सरी का दिन पूरा होता है|
पारणा का दिन (उपवास खोलने का दिन)
JPG Image shows, Parna day, A fast breaking day by jain community after tapasya in "Paryushan Parv" Religeous Festival.
पर्युषण पर्व के समाप्ति के बाद का दूसरा दिन का भी बहोत महत्व है| इस दिन पर्युषण में जिस जैन भाई, बहनों ने बड़ी तपस्या की होती है ,उन के “पारणा" का दिन होता है। उस दिन धर्म स्थानक में, इन लोगो का उपवास खोला जाता है, याने "पारणा" करवाया जाता है। उस दिन तपस्वी के रिश्तेदार और धर्म स्थानक के ट्रस्टी मिलकर पारणा करवाते है।
जैन में तपस्या कई तरह की होती है।छठ याने दो उपवास, अठ्ठम याने तीन उपवास का पारणा तो पर्युषण में ही हो जाता है। मगर “अठ्ठाइ“ याने ८ उपवास, “मासक्षमण” याने ३० उपवास, वर्षीतप याने की साल भर, एक दिन खाना और एक दिन उपवास किया जाता है। ये सब तप का पारणा सवत्सरी के दुसरे दिन किया जाता है। इसलिए बड़ी तपस्या के पारणा का दिन होने की वजह से इस दिन का भी बहोत महत्व होता है।
तीर्थंकर महावीर स्वामी का जीवन चरित्र
4th day of Paryushan Parv festival, is to listan Tirthankar Mahavir life story.JPG image represent 14 dreams seen by mother before birth of a Tirthankar Mahavir.
जैन धर्म में २४ तिर्थंकर हुए है। महावीर स्वामी २४ वे तीर्थंकर है। महावीर स्वामी का जन्म इस्वीसन पूर्व ५९९ की चैत्र मास की शुकल पक्ष की तेरस को हुआ था। जन्म स्थल वैशाली याने के आज के बिहार राज्य के कुंदनपुर में हुआ था। उसके पिता का नाम सिध्धार्थ था। माता का नाम त्रिशाला देवी था।
जब महावीर स्वामी अपनी माता के गर्भ थे, तब उनकी माता त्रिशाला देवी को १४ स्वप्न आये थे। इस १४ स्वप्न का अर्थ विद्वानो ने बड़ा ही शुभ बताया था और कहा था की,आनेवाला बालक बहोत ही भाग्यशाली है। आनेवाला बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या फिर तीर्थंकर बनेगा। बालक अपने माता के गर्भ में ही थे की उसके पिता का राज्य धन धान्य से भर गया। सुख ,समृध्धि बढ़ने लगी। प्रजा के सुख में भी वृध्धि होने लगी। इस प्रकार राजा और राज्य में चारोओर से सुख समृध्धि की वृध्धि होने लागी। इसलिए बालक का नाम "वर्धमान" रखा गया।
JPG Image represents,Qualities like Courage and Fearlessness of child vardhaman
वर्धमान बचपन से ही पराक्रमी और निडर थे। एक दिन वर्धमान अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे की, अचानक एक बड़ा जहरीला नाग आ गया। भय के मारे सब दोस्त छिप गए तो कोई पेड़ पर चढ़ गए। मगर वर्धमान न तो डरे न भागे। उन्हों ने नाग को पूछ से पकड़ कर रस्सी तरह घुमाया और दूर फेक दिया।
वैसे ही एक दिन, खेल के बीच एक पागल और मदमस्त हाथी आ गया। सब बच्चे गभराकर भाग गए। बालक वर्धमान हाथी की सुंठ पकड़ कर हाथी पर चढ़ गया। इस तरह पागल हाथी को वश में कर लिया।
बालक वर्धमान निडर और पराक्रमी तो थे। साथ में वह अत्यंत बुध्धि मान भी थे। ९ वर्ष की आयु में ही उन्हों ने पूरा व्याकरण शास्त्र का अभ्यास कर लिया था। उन्हें कला, युध्धनिति, मनो वैज्ञानिक के विषय और राज्य वहीवट का भी संपूर्ण ज्ञान था।
बचपन से ही वर्धमान काफी दयालु थे। हरेक जिव के प्रति करुणा का भाव था। बचपन से ही,उन्हों ने वैराग्य पूर्ण जीवन जीने का फैसला कर लिया था। मगर उनकी माता की इच्छा के कारण ही वर्धमान ने राज कुमारी यशोदा से शादी की थी। उन्हें एक बेटी थी, जिसका नाम प्रिय दर्शिनी था। बाद में उनका विवाह, जमाली नामक राजा से हुआ था।
वर्धमान राज कुमार होने के कारण अपार वैभव के बीच पले बड़े थे। मगर बचपन से ही, वैराग्य पूर्ण जीवन जीने का तय कर लिया था। मगर अपने माता और पिता की सहमति नहीं थी इसलिए उन्हों ने दीक्षा ग्रहण नहीं की। इसलिए जब उनके माता पिता ने अनशन व्रत से संसार का त्याग किया। तब उनकी उम्र २८ साल थी। तब से, संसार में होते हुए भी, वैराग्य पूर्ण जीवन ही जीते थे। माता पिताके अवसान के २ साल बाद इन्हों ने संसार त्याग दिया।
वर्धमानजी ने राज्य कुंदनपुर के वन में ही साधू जीवन की शुरुआत की। २ दिन बाद ही, उन्हों ने केश लोचन (हाथो से खींच के बालो को निकलना) किया और एक सफ़ेद वस्त्र को छोड़कर, सभी वस्त्रो का भी दान कर दिया। ३० साल की आयु में पत्नी, बेटी, रिश्तेदार, राजा का वैभवी जीवन छोड दिया। वन में, हिंसक पशुओ के बीच, अन्न और जल का त्याग करके कठोर तपस्या का आरंभ किया। यह सब देखकर, लोग उन्हें “महावीर” के नाम से बुलाने लगे। इस प्रकार राजकुमार “वर्धमान” महावीर बने।

JPG Images represent different type of harassment is given to Tirthankar Mahavir to break his Tapan by Sangam Dev and a sheferd.
महांवीर स्वामी ने अपने साधू जीवन में कठोर तपस्या की। जिस में १२.५ साल की कठोर तपस्या में उन्हों ने अनेक उपसर्ग को सहन किया। उस में चरवाहों ने कानो में लकड़े की शूल ठोक दिए। क्रोधित ग्वाला ने महावीर स्वामी पर कोड़े फटकारे। शुरपानी नामक यक्ष ने मदमस्त हाथी, विकराल सिंह और विष से भरे नाग का रूप लेकर महावीर स्वामी को विचलित करने की खूब कोशिश की।
संगम देव नामक देव ने तीर्थंकर महावीर अनेक संकट दिए। जिसमे भयंकर वर्षा और तूफ़ान फैलाया। चिट्टी, बिच्छु, मच्छर, उंदीर और नाग से कटवाया। राक्षस, सिंह, जंगली पशुओ के रूप लेकर डराया। काल चक्र से मारने की कोशिश की। अप्सरा से ध्यानभंग करवाना आदि अनेक उपसर्ग सहन किये। मगर महांवीर स्वामी ने कभी संयम नहीं खोया।

वैशाख सूद १० के चौथे प्रहार में, रुजू पालिका के नदी के तट पर, साल वृक्ष के छाया में षष्ठी का तप करके गोधोविक आसन में ध्यान में लींन थे। तब उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। याने ४२ वर्ष की साधू जीवन में केवलज्ञान प्राप्त करके तीर्थंकर बन गए। अपने ४५१५ दिन की तपस्या में सिर्फ ३४८ दिन ही अन्न ग्रहण किया। जो भी बिना खाने के पात्र, हाथ में जितना भी समाया इतना ग्रहण करके तपस्या की।
केवलज्ञानी होने के बाद, वह हंमेशा विहार करते रहे, याने अलग अलग गावो में घूमते रहे। लोक कल्याण का काम करते रहे। लोगो में धर्म की भावना बनाते रहे। जैन धर्म मे साधू, साध्वी, श्रावक और श्राविका ऐसी व्यवस्था बनाई। पशु बलि, अंधश्रधा, भेदभाव आदि रिवाजो को दूर किया। कई पापीओ का अपने केवलज्ञान से भव पार किया। ७२ साल की उम्र में आसो सूद अमास के दिन याने की दिवाली के दिन तीर्थंकर महावीर का निर्वाण याने मुक्ति की प्राप्ति हुयी।
पर्युषण पर्व पूरी दुनिया में एक मात्र ऐसा त्यौहार है जो बिना आडंबर, धार्मिक विधि से और तपस्या से पूरा होता है।
जय जिनेन्द्र और मिच्छामी दुक्कडम तपस्या में होनेवाली तकलीफ के घरेलु उपचार १ चक्कर या उल्टी : मलमल (सूती कपड़ा) में एक कपूर की गोटी और ३ या ४ लोंगके तुकडे को रखे और उसकी पोटली बनाये। इस पोटली को सूंघने से चक्कर और उल्टी बंध हो जाएगी। २. पैर ठन्डे पड रहे हो तो : निलगिरी की तेल की २ या ३ बुंद लेकर पैर के तलवो पर मालिश करने से गर्मी आ जाएगी। शुध्ध घी की मालिश् भी कर सकते है। ३. पित : पित हो गया हो टो आधा निम्बू लेकर माथे पर, गले पर,छाती और नाभि पर गोलाकार रगड़ने से पित बैठ जाएगा। ४. पेट में गड़बड़ हो तो :जीवन- जीवन मिक्षर नाम की दवा के दो बुन्द नाभि में डाले। ५. पैर टूटते हो या दुखते हो तो कोलन वाटर लेकर दो या तिन बुन्द्मिनत पैरो में मालिश करे। ६. नींद न आती हो तो जायफल को घिसकर नाभि में गोलाकार लगा दो। ७. गले में गरमी हो रही होतो : पक्के केले के छिलके का सफ़ेद हिस्से को गले पर रखकर उसके ऊपर कपड़ा बाँध दो। आधे घंटे में गरमी कम हो जायेगी।
इस पोस्ट में दी हुई माहिती जैन धर्म स्थानक और जैन पुस्तिका से और इन्टरनेट से ली है। फिर भी अनजाने में कोई भूल चुक हुई हो तो हमारे सभी जैनधर्म प्रेमी और पोस्ट पढ़ने वालो को "मिच्छामी दुक्कडम" कहता हु।
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पहले तीर्थंकर श्री रुषभ स्वामी को कैलाश पर्वत पर, १२ वे तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामी को चंपापुरी में, २२ वे तीर्थंकर नेमिनाथ स्वामी को गिरनार पर्वत पर और २४ वे तीर्थंकर महावीर को पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया। बाकी २० तीर्थंकर ने सम्मेत शिखर में मोक्ष प्राप्त किया।
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