महावीर जयंती २०२५

                                                                   महावीर जयंती २०२५    

                                                             Mahavir Swami, By me, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 3.0

अनुच्छेद/पेरेग्राफ शीर्षक
महावीर जयंती
माता को १४ स्वप्न और तीर्थंकर का जन्म
महावीर स्वामी का बचपन
महावीर स्वामी का विवाह
वर्धमान से तीर्थंकर महावीर बनने का सफ़र
बच्चो द्वारा उपसर्ग
कटपूतना द्वारा उपसर्ग
चंडकौशिक द्वारा उपसर्ग और उसका भवपार
कान में किल ठोकने का उपसर्ग
१० शुरपानी यक्ष के उपसर्ग
११ संगमदेव द्वारा उपसर्ग
१२ महावीर स्वामी का अभिग्रह और चंदनबाला
१३ ४५१५ दिन की तपस्या में सिर्फ ३४८ का अन्न
महावीर जयंती, जैन धर्म के वर्तमान अवसपिर्णी काल के २४ वे तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म दिन की तिथि है। महावीर स्वामी का जन्म आज से करीब २६०० साल पहले (ईसा से करीब ५९९ साल पहले) चैत्र सूद तेरस को हुआ था। याने इस साल महावीर स्वामी की जन्म तारीख १० अप्रैल २०२५, गुरूवार को है। महावीर स्वामी जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर है। महावीर स्वामी का जन्म बिहार राज्य के कुंदनपुर में हुआ था।  उनका जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनके माता का नाम त्रिशला देवी था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था,जो कुंदनपुर राजा थे। उनका गोत्र कश्यप था। महावीर स्वामी का जन्म राजशी परिवार में हुआ था। उनकाबचपन बड़े ही ऐशो आराम में गुजरा था।

                                            माता को १४ स्वप्न और तीर्थंकर का जन्म 


                                        The image represents 14 dreams seen by Trishladevi before the birth of Tirthankar Mahavir.

महावीर स्वामी के गर्भावस्था के दरमियान माता त्रिशला को १४ स्वपन दिखाई दिए थे उन्हों ने स्वप्न में, सफ़ेद हाथी, सफ़ेद बैल, सिंह, लक्ष्मी माता, फूलो की माला, चन्द्रमा, सूर्य देव ,ध्वज, चांदी का कलश, कमल के फूलो से भरा तालाब, क्षीर सागर, दिव्य रथ, रत्नो का संग्रह और धूम्रमुक्त अग्नि देखी। रानी ने यह बात जब सिद्धार्थ राजा को सुनाई तो, राजा ने राज ज्योतिष को इसका मतलब समजाने को कहा। तब राज ज्योतिष ने बताया की रानी त्रिशला देवी एक महान बालक को जन्म देगी जो पुरे संसार को मार्गदर्शन देगा। जो पुरे विश्व का कल्याण करेगा।  

                                                                      महावीर स्वामी का बचपन

हिंदी में कहावत है की "पुत्र के लक्षण पायने में" , इस के अनुसार, महावीर स्वामी का जन्म होते ही उनके राज्य में धन, वैभव और ऐशर्य बहाने लगा। मनो सभी प्रकार के सुख में वृद्धि होने लगी। इसलिए प्रजा ने उनका नाम वर्धमान रख दिया। 

बालक वर्धमान निडर और पराक्रमी तो थे ही, साथ में वह अत्यंत बुध्धि मान भी थे| ९ वर्ष की आयु में ही उन्हों ने पूरा व्याकरण शास्त्र का अभ्यास कर लिया था| उन्हें कला, युध्धनिति, मनो वैज्ञानिक के विषय और राज्य वहीवट का भी संपूर्ण ज्ञान था|

ऐसा कहा जाता है की, जब धरती पर कोई तीर्थंकर का जन्म होता है तब स्वर्ग से इंद्र और देवता उनका जलाभिषेक करते है। इसलिए बालक को मेरु पर्वत पर ले जाते है। जब इंद्र और सभी देवता बालक को मेरु पर्वत पर लेकर जा रहे थे। तब इंद्रदेव को चिंता हुई की इतना छोटा बालक देवो के जलाभिषेक कैसे सही पाएग?। बालक के रूप में रहे तीर्थंकर को अवधि ज्ञान से, इंद्रदेव की चिंता समज में आ गयी। तब इंद्रदेव की चिंता को ख़त्म करने के लिए, बालक महावीर स्वामी ने अपने पैर के अंगूठे को पर्वत पे दबाकर पूरा पर्वत हिला दिया। इस से इंद्रदेव की चिंता खतम हो गयी।

                                                                         Image represents,Qualities like Courage and Fearlessness of child vardhaman

बालक महावीर अपने दोस्तों के साथ जंगल में खेल रहे थे।  अचानक जंगल से एक बड़ा ही जहरीला नाग आया। नाग को देखकर सभी बालक इधर उधर भागने लगे। तभी बालक महावीर ने नाग को अपने हाथो से उठाकर जंगल में छोड़ दिया।

वैसे ही एक दिन सभी प्रजाजन भय के मारे घर से निकल कर भाग रहे थे। क्योंकी एक हाथी गांव में घुस आया था और उसके मार्ग में आने वाले सभी को अपने पैर के नीचे कुचल रहा था। लोगो की झोपड़िया भी कुचल रहा था। उस वक्त बालक महावीर ने उस हाथी के सामने जाकर उसकी सूढ़ पे हाथ फिराकर उसे शांत किया। 

इस तरह बालक के रूप में ही महावीर स्वामी ने अपने तीर्थंकर बनने का अंदाजा दे दिया था। 

                                                                 महावीर स्वामी का विवाह 

महावीर स्वामी के विवाह के बारे मे जैन धर्म के फिरको में अलग अलग मत है। दिगंबर पंथ को मानने वाले, महावीर स्वामी को ब्रह्मचारी मानते है। इस पंथ के मुताबित महावीर स्वामी इ पिता की इच्छा थी की उनका विवाह यशोदाजी से हो, मगर महावीर स्वामी को दीक्षा ग्रहण करनी थी इसलिए यशोदाजी से विवाह नहीं किया। उनके माता पिता की इच्छा थी की महावीर स्वामी का विवाह हो। 

जब की दिगंबर के पंथ के सिवा सभी मानते थे की, माता पिता की इच्छाको पूर्ण करने के लिए महावीर स्वामी ने यशोदा जी से विवाह किया था। वह एक पुत्री के पिता भी बने। पुत्री का नाम प्रियदर्शिनी था। उसका विवाह जमाली नामक राजा से हुआ था।  

मगर एक बात तो तय थी की, माता पिता की इच्छा नहीं थी की महावीर स्वामी दीक्षा ग्रहण करे।  इसलिए अपने माता पिता के स्वर्ग वास के बाद ही संसार का त्याग किया। 

                                                   वर्धमान से तीर्थंकर महावीर बनने का सफर

महावीर स्वामी की २८ के उम्र में उनके माता पिता ने अनशन करके संसार त्याग किया। उसके २ साल बाद, याने ३० साल की उम्र में ही महावीर स्वामी ने संसार त्याग किया। अपने साधू बनाने की पक्रिया उनके राज्य कुंदनपुर  के जंगल से ही शुरू की। संसार त्याग के २ दिन बाद ही, महावीर स्वामी ने केश लोचन (बालो को हाथ से खींचकर निकल ने की क्रिया) किया।  

राजकुमार होने के कारण अपने शरीर पर लदे हुए सारे सोने और चांदी के आभूषण और कपडे का त्याग किया। शरीर पर सिर्फ एक सफ़ेद वस्त्र ही रखा। राजकुमार के जीवन का ऐशो आराम और वैभवी जीवन को छोड़कर इतना कष्टदायक जीवन को अपनाया। जंगल में हिंसक पशु के बीच तपस्या करता देख प्रजाजनो ने इन्हे महावीर के नाम से पुकारने लगे।

                                                                         बच्चो द्वारा उपसर्ग 

वह से जब महावीर स्वामी ने विहार करके, शाम के वक़्त एक गांव में दाखिल हुए तो, छोटे बच्चे खेल रहे थे।  महावीर स्वामी हमेशा अपनी नजर निचे रखकर ही चलता थे ताकि कोई भी छोटा जीव इनके पैरो के नीचे कुचल न  जाये। खेलते हुए बच्चो ने कभी ऐसा निवस्त्र मानव नहीं देखा था। ऐसे मानव को अपनी तरफ आते देख कुछ बच्चो ने महावीर स्वामी की आँखों में धूल दाल दी। मगर महावीर स्वामी जरा भी विचलित नहीं हुए ना ही आँखों से धूल निकल ने की कोशिश की। इस तरह दीक्षा के बाद का ये पहला उपसर्ग था। ये तो बस शुरूआत थी। 

                                                                           कटपूतना द्वारा उपसर्ग 

एकबार शालिशिष नामक गांव में महावीर स्वामी अपनी साधना में लीन थे। ठण्ड का मौसम था।  चारोओर ठंडी हवा चल रही थी। महावीर स्वामी अपनी काउस्सग अवस्था में अपने तप में लीन थे। तब कटपूतना नामक एक व्यन्तरी को इस महावीर स्वामी को देखकर बहोत की क्रोध आया। उसने इस भयंकर ठंडी में अपना रूप बदलकर अपने लम्बे बाल को बर्फ के पानी में भिगोकर महावीर स्वामी के कंधे पर रख दिया। कही घंटो के बाद हार मानकर,  कटपूतना  ने महावीर स्वामी की माफ़ी मांगी। 

                                                   चंडकौशिक द्वारा उपसर्ग और उसका भवपार    

                                      Tirthankar Mahavir helps to remember poisoius snake Chand Kaushik to remember his previous sadhu birth and guide him to achive moksha

एकबार महावीर स्वामी स्वेतांबी नगरी की ओर विहार कर रहे थे।  रस्ते में घने जंगल में, कनकखल नामक तापस के आश्रम के पास चंड कौशिक नामक एक दृष्टिविष सर्प रहता था। इसलिए कोई भी ग्रामवासी वहा से नहीं गुजरते थे। महावीर स्वामी को भी वहा से विहार करते हुए रोका गया। मगर महावीरस्वामी उसी मार्ग पर ध्यान में खड़े हो   गए। वह चंड कौशिक ने महावीर स्वामी को अपने मार्ग में देखकर, क्रोधी स्वभाव के कारण महावीर स्वामी पर अपनी दृष्टि से विषयुक्त ज्वाला फेकने लगा मगर महावीर स्वामी पर कोई असर नहीं हुई। इसलिए क्रोधावेग में महावीर स्वामी को काट लिया। काटने पर महावीर स्वामी के अंग से लहू की जगह दूध की धारा बहाने लगी। इसे देखकर वह थोड़ा शांत हुआ। 

उसे शांत हुआ देख, महावीर स्वामी ने उसे कर्मो का स्मरण करने को कहा। दरअसल चंड कौशिक अगले जन्म में साधू था मगर अतिशय क्रोधी था। साधू भव में अन्य साधू के साथ गोचरी के लिए जाते वक़्त एक मेंढक उनके पैर से कुचल गया। अन्य साधू ने यह देखा था। इसलिए दो से तीन बार सामायिक करते समय प्रायश्चित के लिए याद दिलवाया। क्रोधित स्वाभाव के कारण, अन्य साधू को मारने के लिए भागे मगर एक खंभे से टकराकर उनकी मौत हो गयी। मृत्यु के समय के क्रोधित भाव से उन्हें चंड कौशिक नामक सर्प का जन्म मिला। इस तरह जाती स्मरण ज्ञान से उसे अपने अधोगति का कारण  गया। चंड कौशिक सर्प ने उसी वक्त महावीर स्वामी के सामने ही संथारा ले लिया। मगर फिरभी उसकी विष दृष्टि से किसी की भी जान जा सकती थी। इसलिए उसने अपना सर अपने बिल में छुपा लिया। १५ दिन तक महावीर स्वामी उसके समीप ही ध्यान मग्न रहे। इस तरह एक सर्प को भवपार उतरने  महावीर स्वामी  अपनी जान की परवा तक नहीं की।                                                                                                                                                                                                                                          कान में किल ठोकने का उपसर्ग                                    

                                                                                                                                                                                                                                         image represents, Shepherd tortured Tirthankar Mahavir by hammering nail in his ear to break his Tap  

महावीर स्वामी जब संवाणि नामक गांव में मौन धारण करके अपनी साधना में लीन थे। तब एक चरवाहे ने महावीर स्वामी के पास अपने जानवर छोड़ के ध्यान रखने को कहा। मगर महावीर स्वामी तो ध्यानमग्न थे। वापस आने पर चरवाहे ने जब अपने जानवर को नहीं देखा, तब महावीर स्वामी को इस बारे में पूछा। मगर मौन और ध्यानमग्न अवस्था में महावीर स्वामी से भी कोई जवाब नहीं मिला। तब ग़ुस्से मे चरवाहे ने लकड़ी की कील बनाकर महावीर स्वामी के कान में ठोक दी। बहार से कील किसीको न दिखे, इसलिए बाहरी भाग को काट दिया। 

असहय वेदना के बावजूद, विहार करते हुए जब महावीर स्वामी सिद्धार्थ नामक वणिक के घर गोचरी के लिए गए। तब वहा आये हुए वैद ने महावीर स्वामी का मुख देखकर ही समज लिया की, इनके शरीर में किसी जगह कंटक चुभनेकी वजह से साधू अत्यंत पीड़ा हो रही है। तब सिद्धार्थ वणिक और वैध ने रोहिणी नामक औषधि से कही दिन के उपचार के बाद, महावीर स्वामी को इस पीड़ा से आज़ाद किया। मगर कान से कील निकालते समय महावीर स्वामी को इतनी वेदना हुई की उनके मुख से बड़ी निकल गयी। यानी ये उपसर्ग तीर्थकर की सहन शक्ति के बाहर था।

महावीर स्वामी के कुल २७ भव हुए। उनमे से १८ वे भव में वासुदेव के अवतार में उन्हों ने अपने नौकर के कान में   गरम सीसा  डलवाया था। वह कर्म महावीर स्वामी के इस तीर्थंकर के भव में उदय  आया। इस के फल स्वरुप उन्हें यह पीड़ा सहन करनी पड़ी। कर्म किसी को नहीं छोड़ता चाहे वह तीर्थंकर ही क्यों न हो।

                                          शुरपानी यक्ष के उपसर्ग  

शुरपानी नामक यक्ष ने महावीर स्वामी के ऊपर अगणित उपसर्ग किये। उसका तरिका जरा अलग था।  वह अपना रूप बदलने में  कामयाब था। वह कभी विषैला साप का रूप लेता था। कभी मदमस्त हाथी का रूप लेकर महावीर स्वामी को डराने की कोशिश करता था। कभी जंगली पशु के रूप में आता था। कभी खूंखार सिंह का रूप ले लेता था। मगर  शुरपानी के किसी भी रूप से डरकर विचलित नहीं हुए।                                                                                                                                                                                                                                                संगमदेव द्वारा उपसर्ग                                                                                                           

                 

          Sangam Dev harassed and tortured by changing himself into different images of a lion, elephant, and ghost to break his Tap and Dhyan of Tirthankar Mahavir.

संगम देव नामक देव ने तीर्थंकर महावीर की तारीफ़ जब स्वर्ग में इंद्र के मुँह से सुनी। तब संगम देव को विश्वास नहीं  हुआ। इसलिए वह नीचे महावीर स्वामी को अपने ध्यान से विचलित करने आया। उसने महावीर स्वामी पर अगणित उपसर्ग किये। महावीर स्वामी पर संगम देव ने सबसे ज्यादा उपसर्ग किया। जिसमे महावीर स्वामी को अप्सरा भेजकर ध्यानभंग  करवाना। भयंकर वर्षा करवाना और भयंकर तूफ़ान फैलाना। राक्षस और जंगली पशु से डराना। वैशिले कीड़ो से कटवाना। जैसे बिच्छु, साप, नाग, चिट्टी  मच्छर से कटवाना। मगर इतने उपसर्ग करने बाद भी महावीर स्वामी विचलित नहीं हुए। महावीर स्वामी को चोरी के जुल्म में फ़साना। इतने उपसर्ग सहन करने के बावजूद, महावीर स्वामी की तपस्या अविरत चल रही थी                                                                                                                                                महावीर स्वामी का अभिग्रह और चंदनबाला


                                          Image represent Tirthankar Mahavir gets a food as per his concept after 5 months and 25 days by Chandanbala.
महावीर स्वामी ने पोष  महीने की कृष्ण पक्ष की एकम को एक अभिग्रह किया की जो कि करीब करीब नामुमकिन था। जैन मुनि हररोज़ अपना भोजन श्रावक (जैन धर्म के अनुयायी) के घर वहोरने याने लेने जाते है। उस भोजन वहोरने के लिए अभिग्रह किया की, अगर कोई राजकुमारी, जो अब दासी बन गए हो , जिसका सर मुंडवाया हो, उसके पैर में बेड़िया लगी हो, जिसने तीन दिन से खाना नहीं खाया हो, उसका एक पैर घर के अंदर और एक पैर घरके बहार हो, उसकी आँखों में अश्रु हो, ऐसी राजकुमारी के हाथो सुपडे के कोने मे उड़द के बाकुले ही वहोरुगा याने भोजन के लिए ग्रहण  करूंगा।ऐसा अभिग्रह पूरा होना करीब नामुमकिन था। महावीर स्वामी के ऐसे अभिग्रह के कारण ही  उनको ५ महीने और २५ दिन से उपवास चल रहे थे।

इस तरफ चम्पा नगरी का राजा दधिवाहन, शतानीक राजा से हार गया। उसकी पत्नी को सतानिक राजा के सैनिक ने अपनी रानी बननेको कहा, तब उसने अपनी जीभ अपने दातो से कुचल कर आत्महत्या कर ली। उसकी बेटी याने  राजकुमारी को अपनी बेटी बनाकर रखने का वादा करके कौसाम्बी में धनावह नामके एक धनिक को बेच दिया। उसने उसका नाम चंदनबाला  रखा था। क्योकि उसका स्वाभाव शांत और शीतल था। यह हररोज की तरह घरमे आते ही धनावह शेठ के पाँव धोती थी। 

एक दिन पाँव धोते समय चंदनबाला के केश पानी में गिर गए जिसे शेठ ने उठाकर दिए और चन्दन बाला  ने फिर से बांध के रख दिए। मगर ये सब शेठ की पत्नी ने देख लिया। उसने उसका गलत मतलब निकाला और सोचा की हो सकता है की धनावह शेठ उसे अपनी पत्नी बना दे और उसको इस घर में दासी की तरह रहना पड़े। इस सोच से उसने धनावह शेठ बाहरगांव जाते ही, चन्दनबाला के सारे,बाल काटकर मुंडन करवाकर  उसके पैरो में बेडी डालकर, उसे अँधेरे कमरे में बंध कर दिया। तीन दिन के बाद, जब शेठ वापस आने पर दूसरी दासी ने शेठ को सब बाते बताई।  तब शेठ ने दरवाजा खोला।  मगर तीन दिन से उसका उपवास था। 

शेठ ने उस बंध दरवाजा खोला और बेड़िया काटने के लिए इंतज़ाम करने गए। उसकी पत्नी अपने पीहर चली गयी थी। इसलिए चंदनबाला को खाने के लिए पशु को देनेवाले उड़द के बाकुले पड़े थे।  वही चंदनबाला को दे दिए। इतने में महावीर स्वामी अपनी गोचरी के लिए विचरते हुए वहा पधारे। चंदनबाला ने खुश होकर महावीर स्वामी को उड़द के बकुले वहोरा का प्रयत्न किया।  मगर महावीर स्वामी के अभिग्रह के मुताबित, आँखों में आसु  नहीं थे।  इसलिए महावीर स्वामी वापस जाने लगे। बस यह देखकर चंदनबाला की आँख में आसु आ गए। इसलिए महावीर स्वामी का अभिग्रह पूरा होते ही महावीर स्वामी ने चंदनबाला के हाथो महावीर स्वामी ने उड़द के बकुले वहोरे याने ग्रहण किये। इस तरह ५महिने और २५ दिन के बाद, महावीर स्वामी का अभिग्रह पूरा हुआ।

                                                                     

                            Pavapuri Jain Temple, By Arpita Saheb Mandal, image compressed and resized, Source is licensed under CC BY-SA 4.0                                                                   Lord Mahavir s kevalgyan kalyanaka, Https://en Wikipedia .org./, image compressed and resized, Source is licensed  under CC BY-S 4.0

                                                
                                   ४५१५ दिन की तपस्या में सिर्फ ३४८ दिन ही अन्न ग्रहण


महावीर स्वामी ने कुल ४५१५ दिन की तपस्या में सिर्फ ३४८ दिन ही अन्न ग्रहण कियामहावीर स्वामी को वैशाख महीने के शुकल पक्ष की १० के चौथे प्रहर में ,रुजू  पालिका के नदी के तट पर ,षष्टी का  तप करके, गोधाविक आसान में लीन थे। तब उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। याने महावीर स्वामी तीर्थंकर महावीर बने। 

केवल ज्ञान प्राप्त होने के बाद भी  महावीर स्वामी सतत विहार करते रहे।  लोक कल्याण के काम करते रहे।  लोगो में धर्म की भावना बढ़ाते रहे। जैन धर्म में साधू, साध्वी, श्रावक और श्राविका की व्यवस्था कायम की। उस वक़्त पशुबलि, अंध श्रद्धा और गलत रिवाज और समाज के भेद भाव को मिटाया। ७२ साल की उम्र में ४२ साल का साधू जीवन काटकर केवल ज्ञान प्राप्त किया। आसो माह की अमास के दिन याने दिवाली के दिन तीर्थंकर महावीर का निर्वाण  याने जीवन मरण के इस फेरे से मुक्त हो गए।

                                             तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी का विश्व को संदेश

 तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी ने पुरे विश्व को संदेश दिया है की , मेरी पूजा मत करना और मुजसे कोई उम्मीद भी मत रखना की मै आपके लिए कोई चमत्कार करूँगा। क्योकि दुःख को जन्म आपने दिया है तो इसे दूर आपको ही करना पडेगा। मै आपको सिर्फ इस से बाहर निकालने का मार्ग बता सकता हु। क्योकि मै स्वयं उस मार्ग पर चला हु। मगर मेरे दिखाए हुए मार्ग पर आपको ही चलना होगा। क्योकि मै मार्ग दाता हु मोक्ष दाता नहीं। 

                                                                       जय जिनेन्द्र  

                                                                  


 आगे का पढ़े :  १.हनुमान जयंती   २.अक्षय तृतीया

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