अंगारकी चतुर्थी २०२३

अनुच्छेद/पेरेग्राफ | शीर्षक |
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१. | गणेशजी को समर्पित |
२. | अंगारकी चतुर्थी का महत्त्व |
३. | अंगारकी चतुर्थी की तिथि और मुहूर्त |
४. | अंगारकी चतुर्थी के व्रत की विधि |
५. | अंगारकी चतुर्थी से जुडी पौराणिक कथा |
हर महीने की शुकल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दोनों चतुर्थी को भकतजन गणेशजी का उपवास रखते है या व्रत करते है। इस तरह हर महीने की चतुर्थी का गणेशजी की पूजा अर्चना और व्रत का काफी महत्त्व है। अगर कृष्ण पक्ष की चतुर्थी याने की संकष्टी के दिन संयोग से मंगलवार है तब तो इसका महत्त्व कही गुना बढ़ जाता है। इस चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है।
अंगारकी चतुर्थी का महत्त्व
कोई भक्त अगर संकष्टी का व्रत नहीं कर सकता है मगर वह भक्त अंगारकी चतुर्थी का व्रत कर ले तो उसे पूरी साल की संकष्टी का पुण्य मिलता है ऐसा कहा जाता है। इसलिए अंगारकी चतुर्थी का हिन्दुओ के लिए अत्याधिक महत्त्व है। कहा जाता है की इस व्रत करने से जीवन की अनेक समस्या दूर हो जाती है। किसी के कुंडली में मंगल दोष की वजह से विवाह में विलम्ब होना। मंगल दोष के निवारण के लिए अत्यंत प्रभावी है।
विवाह के बाद पुत्र प्राप्ति न होना। विधार्थी को परीक्षा में यश नहीं मिलना। उद्योग धंधे में नुकशान होना। भक्त के सर पर क़र्ज़ होना। नौकरी में परेशानी होना। आय का न होना। परदेश गए हुए स्नेहीजन की प्रगति न होना। घर में लड़ाई,झगड़े होना। घर मे बरकत न होना। घर मे बिमारी रहना। जैसी कई समस्या अंगारकी चतुर्थी का व्रत करने से समाप्त हो जाती है। जीवन में सरलता आती है।इसलिए अंगारकी चतुर्थी का अनोखा महत्त्व है।
अंगारकी चतुर्थी की तिथि और मुहूर्त
इस वर्ष अंगारकी चतुर्थी मंगलवार १0 जनवरी २०२३ को है।
अंगारकी चतुर्थी का प्रारम्भ १० जनवरी २०२३ , मंगलवार दोपहर १२:०९ मिनट से होता है। अंगारकी चतुर्थी की समाप्ति ११ जनवरी २०२३ , बुधवार दोपहर ०२:३१ मिनट को होगी।
अंगारकी चतुर्थी के चंद्रोदय रात ८:४१ मिनट को होगा।
अंगारकी चतुर्थी के व्रत की विधि

सुबह प्रातः काल उठकर, स्नान आदि के बाद, प्रथम गणपतिजी की पूजा करनी है। इसलिए पूरे स्थान में गंगाजल छिड़ककर पवित्र करते है। एक पाट के ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर, चावल के ऊपर गणपतिजी की मूर्ति स्थापित करनी है। मूर्ति को को स्नान करके पवित्र करनी है। अब मूर्तिको सिन्दूर का टिका करना है। गणेशजी को जनोई, वस्त्र पहनाना है। अब गणपतिजी को प्रिय दूर्वा और लाल जसवंत के फूल चढाने है। अब हल्दी कुंकु,अबिल, गुलाल आदि चढाने है।उसके बाद, कपूर,धुप और अगरबत्ती जलाकर वातावरण को सुगन्धित करना है।
अब गणेशजी को अतिप्रिय ऐसे लड्डू का नैवेद्य धरना है। गणेशजी को पान, सुपारी, लॉन्ग, इलायची आदि मुखवास के लिए अर्पित करे। घर के सभी भक्तो को मिलकर गणेशजी के मंत्रोचार करे। शुद्ध घी के दीपक से गणेशजी की आरती पूरी श्रद्धा से करनी है। अंगारकी चतुर्थी के दिन पूरा दिन को उपवास रखना होता है। अनाज का उपयोग नहीं करना होता है। सिर्फ फलाहार करना है। शाम को चंद्र दर्शन के बाद ही, उपवास को छोड़ा जाता है। इस तरह अंगारकी चतुर्थी मनाई जाती है। जिसका फल २१ संकष्टी के बराबर होता है। जीवन की कठिन समस्याओ से छुटकारा मिलता है।
गणेशजी के लोकप्रिय असरकारक और आसान मंत्र इस प्रकार है। *वक्रतुण्ड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ, निर्विघ्न कुरुमे देव, सर्व कार्य सु सर्वदा। *ॐ गं गणपतये नमः *ॐ श्री गणेशाय नमः
अंगारकी चतुर्थी से जुडी पौराणिक कथा

गणेश पुराण में ब्रह्माजी द्वारा कही गई कथा इस प्रकार है। पृथ्वी के बालक भौम ने नर्मदा नदी के किनारे गणेशजी के मंत्रोचार से गणेशजी की हजारो वर्ष तपस्या की। बालक होनेके बावजूद , निराहार याने बिना कुछ भी खाये तपस्या की। उनका शरीर दुर्बल हो गया मगर तपस्या जारी रखी। बालक की कठोर तपस्या को देखकर गणेशजी ने अपनी दस भुजावले स्वरुप के दर्शन करवाया। गनेहजी के दसो भुजाओं में शस्त्र थे। उनकी सूंढ़, एक दन्त, लम्बे कान और पूरा शरीर अलंकार के तेजस्वी प्रकाश से सुशोभित था। साथ में, अत्यंत सुन्दर वस्त्र धारण किये थे।
बालक भौम ने गणेशजी को देखकर उनके चरणों में गिर गया। गणेशजी के गुणगान करने लगा। छोटे से बालक की भक्ति देखकर गणेशजी ने अपनी इच्छानुसार वरदान माँगने को कहा। बालक भौम ने कहा आपका दर्शन मात्रा से मै धन्य हो गया हु। मेरी तपस्या सफल हो गयी। मेरी यह धरती धन्य होगी। मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। आप मुझे यह आशीर्वाद दो की मेरा नाम तीनो लोक में कल्याण करनेवाले के रूप में प्रसिद्ध हो। आज चतुर्थ तिथि में आपके दर्शन हुए है तो इस तिथि को मंगलमय बना दो ताकी इस तिथि सबके दुःख दूर करनेवाली और संकट हरने वाली हो।
इतने छोटे बालक के इतने अच्छे विचार से प्रभावित होकर गणेशजी ने वरदान दिया की तुम देवताओं के साथ अमृतपान करोगे। तुम पुरे ब्रह्मांड में मंगल के नाम से प्रसिद्ध होंगे आप का वर्ण रक्त के सामान है। इसलिए तुम अंगारक के नाम से प्रसिद्ध होंगे। अंगारकी चतुर्थी को जो कोई भी मेरा व्रत करेगा उसे पुरे साल के संकष्टिका फल मिलेगा। अंगारकी चतुर्थी का व्रत करने वाले का हर विध्न समाप्त कर दूंगा। उसे मनोवांछित फल दूंगा। तुमने जो तपस्या की है उसके फल स्वरुप, तुम अवंतिका नगरी के राजा बनोगे।
इस प्रकार वरदान देकर, गणेशजी अंतर्ध्यान हो गए। मंगल ने अवंतिका नगरी के राजा बनते ही वहा गणेशजी के दस भुजावाले, सुन्दर वस्त्र से सुशोभित बड़ी मूर्ति की स्थापना करके मंदिर बनवाया। उसका नाम मंगलमूर्ति रखा। अवन्ति क्षेत्र का यह मंदिर सब के लिए वरदान बन गया। तब से जो कोई भी अंगारकी चतुर्थी को मंगल की पूजा करता है, उसको मंगल दोष से मुक्ति मिल जाती है।
जरुर पढ़े : * रथयात्रा भाग- १ * रथयात्रा भाग- २ * रथयात्रा भाग- ३.
आगे का पढ़े : १ आंवला / आमला २. एलोवेरा
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