वट सावित्री २०२२
वट सावित्री का व्रत, हिन्दू धर्म का एक अनोखा व्रत है। यह व्रत एक पत्नी का अपने पति के तरफ समर्पण के भाव का व्रत है। ऐसा पति और पत्नी का धार्मिक व्रत पूरी दुनिया में शायद एकेला है। वट सावित्री का व्रत सुहागने अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखती है। यह व्रत सुहागन स्त्रीओ के लिए ही है। यह प्रसंग हज़ारो साल पहले घटित हुआ था। मगर आज भी हरेक हिन्दू के घर मे यह प्रसंग प्रचलित है। आज भी हरेक परिणीता हिन्दू स्त्री वट सावित्री व्रत आने का इंतज़ार करती है। हिन्दू शास्त्र के अनुसार, इस वृक्ष के जड़ में ब्रह्मा,मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिवजी का वास माना जाता है। इसलिए हिन्दू के लिए यह एक पवित्र वृक्ष माना जाता है। इस वृक्ष के पत्ते में मारकंडे मुनि को श्री कृष्ण भगवान ने दर्शन दिए थे। भगवान बुध्ध को इस वृक्ष के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी। इसी वृक्ष के नीचे निर्वाण भी हुआ था। इस वृक्ष का आयु काफी बड़ा होता है। इसलिए वट वृक्ष को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है।
वट सावित्री का दिन और शुभ मुहूर्त
इस साल वट सावित्री के मुहूर्त में सर्वाधिक सिद्धि योग बनता है। इसलिए इस दिन किये गए धार्मिक कार्यो का फल अनेक गुना मिलता है।
सोने पे सुहागा, इस दिन शनि जयंती और सोमवती अमावस्या भी है।
वट सावित्री जयेष्ठ माह की अमावस्या की दिन मनाई जाती है। इस साल अमावस्या २९/०५/२०२२, रविवार दोपहर २:५४ मिनट से शुरू होती है। अमावस्या की समाप्ति ३०/०५/२०२२, सोमवार ४ ;५९ मिनट को होती है।सूर्योदय सोमवार को होता है। इसलिए इस साल जयेष्ठ अमावस्या सोमवार, ३०/०५/ २०२२ को मनाई जाएगी।
सूर्योदय ३०/०५/२०२२, सोमवार को सुबह ५; २४ मिनट को होगा। जब की सूर्यास्त शाम को ७ ;१३ मिनट को होगा।
राहुकाल का समय सुबह ७ : ०८ मिनट से ८: ५१ को होगा। उस समय पूजा या धार्मिक क्रिया वर्जित है।
अभिजीत मुहूर्त सुबह ११ : ५१ से १२: ४६ मिनट को है।
व्रत की पूजा विधी

उसके बाद, घर मे सर्व प्रथम गणेशजी पूजा की जाती है। घरमे बजोठ केऊपर लाल वस्त्र बिछाकर, गणेशजी की मूर्ति या गणेशजी को सुपारी के रूप में मौली बांधकर स्थापित किया जाता है। धुप, दिप, अगरबत्ती प्रज्जवलित करके लाल फूल या माला पहनाई जाती है। गणेशजी को लड्डू का प्रसाद चढ़ाके आरती करके आर्शीवाद लेते है। फिर बरगत के पेड़ की पूजा की जाती है।
वट सावित्री व्रत की पूजा में वट वृक्ष की अधिक महत्त्व है। सबसे पहले वट के वृक्ष की जड़ को पानी पिलाते है। वट के वृक्ष के नीचे सती सावित्री और सत्यवान मूर्ति या फोटो स्थापित करे। धुप, दीप , अगरबत्ती, रोली, सिन्दूर, चन्दन आदि से पूजा करे। पूजा थाली में सुहागन की सारी चीज़े रखे जैसे की चुडिया,बिंदी ,सिंदूर, बिछिया,महावर, साडी या ब्लाउज़ पीस साथ में दान और दक्षिणा भी रखा जाता है। फिर सुहागन महिलाये हाथ में सूती का धागा लेकर बरगद के पेड़ की कमसे काम सात परिक्रमा करती है।अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। अपने पति के स्वास्थय की रक्षा की प्राथना करती है। इस तरह वट के वृक्ष की पूजा समाप्त करके ब्राह्मण या जरुरतमंद को दान और दक्षिणा दी जाती है। घर मे आकर अपनो से बड़ो का आशीर्वाद लिया जाता है। सब मिलकर वट सावित्री की कथा सुनते है। .इस तरह वट सावित्री व्रत की समाप्ति होती है।
सावित्री सत्यवान की कथा

एक अश्वपति नामक राजा था। उसकी पत्नी का नाम ममता था। इस राजा बहोत ही दयावान था। उसके राज्य की प्रजा सुखी और संपन्न थी। मगर वह निसंतान था। राजा और रानी दोनों ही गायत्री के उपासक थे। दोनों अपनी श्रद्धा भाव से माता गायत्री की उपासना और व्रत करने लगे। माता गायत्री ने प्रस्सन होकर वरदान मांगने को कहा। रानी ने कहा हम निसंतान है। हमें अपने राज्य का उत्तराधिकारी चाहिए। माता गायत्री ने कहा मैं तुम्हेँ एक पुत्री का वरदान देती हु। जो तुम्हारे कुल का नाम रोशन करेगी।
राजा के वह एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। राजा ने उसका नाम सावित्री रखा। कहतेहै की माता गायत्री को सावित्री भी कहा जाता है। कहा जाता है की कन्या को जवान होने में देर नहीं लगती। राजा की पुत्री गायत्री भी जवान हो गयी। राजा ने गायत्री के साथ अपने विश्वासु दरबारी भेजे और सावित्री को अपने योग्य राजकुमार यानि योग्य जीवन साथी चुनने को कहा। सावित्री ने अपने लिए ध्युमतसेन के पुत्र सत्यवान को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना।
जब वह अपने पिता को अपने मनपसंद जीवनसाथी के बारे मे बताने पहुंची। उस वक़्त नारदजी भी मौजूद थे। जब सावित्री अपने मनपसंद जीवन लिए सत्यवान का नाम लिया। तब नारदजी ने कहा सत्यवान का खानदान बहुत उमदा है। मगर इस वक़्त उनका समय खराब है। उसके पिताजी ध्युमतसेन कारजी उनके शत्रु रुक्मी छीन लिया है। रुक्मी बहुत ही शक्तिशाली है। ध्युमतसेन अपनी आँखों की रोशनी गवा चुके है। इसलिए वन में ही घर बनाकर रहते है।
इस से भी कमनसीबी यह है की सत्यवान अल्प आयु है। उसके जीवन का करीब एक साल ही बचा है। यह सुनकर राजा अश्वसेन ने सावित्री को कोई दूसरा जीवनसाथी पसंद करने को कहा। मगर सावित्री ने कहा स्त्री अपने जीवन में एक ही बार अपना साथी चुनती है। मैंने सत्यवान को वचन दे दिया है। अब मेरे नशीब में जो भी होगा मुझे मंजूर है। इस तरह सत्यवान और सावित्री का ब्याह हो गया। करीब एक साल पूरा होने में चंद दिन ही बचे थे। सावित्री अब सत्यवान जब वन में लकडे काटने जाए तो भी सत्यवान के साथ ही रहने लगी।
एक दिन वन में लकडे काटते वक़्त सत्यवान बेहोश होकर गिर गए। उस वक़्त उनके प्राण निकल गए। यमराज आये जैसी उन्हों ने सत्यवान के शरीर में से प्राण खींच लिए। सावित्री ने यमराज को रोका और सत्यवान को जीवन दान देने को कहा। मगर यमराज ने कहा सत्यवान का आयुष्य समाप्त हो गया है। मुझे उनके प्राण ले जाने ही पडेगा। तब सावित्री ने कहा मै तो पतिव्रता हु। इसलिए मै तो अपना पति साथ ही रहूंगी। वह जहा जाएंगे मै भी उनके साथ ही रहूंगी। आप मुझे मेरे पति के साथ जाने से नहीं रोक सकते।

मनुष्य की सीमा खत्म होने पर भी जब सावित्रि ने यमराज का पीछा नहीं छोड़ा तो उसे रोकने के लिए यमराज सावित्री को तीन वरदान माँगने को कहा। सावित्री ने कहा प्रथम वरदान में मुझे अपने ससुर की आँखे और राज्य चाहिए। यमराज ने मंजूरी देते हुए तथास्तु कहा। दूसरे वरदान में अपने पिता के वहा सौ पुत्र का जन्म हो ऐसा मांगा। यमराज ने मंजूरी देते हुए तथास्तु कहा। तीसरे वरदान में उसने अपने को सौ सुपुत्र की माता बनाने को कहा। यमराज ने मंज़ूरी देते हुए तथास्तु कहा।
तब सावित्री ने कहा मै एक पतिव्रता स्त्री हु। आपने मुझे सौ पुत्र की माता बनने का वरदान दिया है। आप मेरे पति को मुज से अलग कर रहे हो। इस जन्म में तो मेरे पति सत्यवान ही है। एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के अलावा किसी ओर के बारे में सोच भी नहीं सकती। इसलिए अगर आप को अपने दिए हुए वरदान की इज्जत रखनी है तो मेरे पति के प्राण आपको करना ही पडेगा। तब यमराज को समज में आ गया की सावित्री पतिव्रता स्त्री है। वह सौ पुत्र की लालच में कभी अपने पति का साथ नहीं छोड़ेगी। इसलिए सावित्री पतिव्रता होने के कारण ही सत्यवान का प्राण यमराज को वापस करना पड़ा और सत्यवान को जीवतदान मिला। इस तरह पतिव्रता स्त्री के आगे यमराज को भी झुकना पड़ता है। इस तरह माता गायत्री देवी का कथन सही साबित हुआ। राजा अश्वसेन का नाम भी सावित्री की पतिव्रता होने के कारण अमर हो गया।
उस वक़्त से आज तक हिन्दू धर्म की हरेक स्त्री वट सावित्री का व्रत रखती है और अपने पति की लम्बी उम्र की और स्वस्थ जीवन की कामना करती है।
आगे का पढ़े : १ रथयात्रा - भाव १. २. रथयात्रा - भाव २.
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